उपन्यास सितम्बर 25,2016 से अक्टूबर 9,2016 के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण :
फॉर्मेट: ई-बुक | प्रकाशक: डेली हंट | प्रथम प्रकाशन: 1983
मुझे तुमसे शिकायत है।
प्रभुदयाल एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिसवाला रहा है। न केवल वो अपनी ड्यूटी के प्रति ईमानदार है बल्कि एक होशियार इंस्पेक्टर भी है। लेकिन फिर भी वो सुनील के वजह से अक्सर नाकाबिल सा दिखता है। सुनील न केवल केस सुलझा लेता है बल्कि अक्सर ये भी दिखा देता है कि प्रभुदयाल की सोच में कितने पेच थे। वो क्या सोच रहा था और असल में हुआ उससे कितना जुदा। प्रभुदयाल को ये भी मालूम है कि ये सब वो इसलिए कर पता है क्योंकि उसके सिर पर पाठक साहब का हाथ है। वही पाठक साहब जो ये उपन्यास लिखते और सुनील से केस सुलझाते हैं। तो वो पाठक साहब से इस बात की शिकायत करता है। उसके अनुसार जब उसे काबिल इंस्पेक्टर बनाया गया है तो काबिलियत दिखाने का मौका मिले। वरना उसे भी एक बेवकूफ किरदार ही बना देते। वो चाहता है कि उसे अपनी काबिलियत दिखाने का मौका मिले और वो भी बिना सुनील के हस्तक्षेप किए हुए। पाठक साहब इस बात से राजी हो जाते हैं और प्रभुदयाल को केस मिल जाता है।
क्या वो ऐसा कर पायेगा? या इस बार भी उसकी सोच और असलियत के बीचे में उतना ही फासला रहेगा जितना कि अक्सर होता है।
जब भी मैं सुनील श्रृंखला का कोई भी उपन्यास पड़ता था तो उसमे ज्यादा बुरा मुझे प्रभु दयाल के लिए ही लगता था। प्रभु दयाल एक कर्मठ, ईमानदार और सख्त पुलिस वाले के रूप में दिखाया गया है लेकिन हर वक्त सुनील के सामने वो बेवकूफ ही बनकर रह जाता है। इसमें काफी काम तो उन सुनिलियन पुड़ियों का भी होता है जो सुनील उसे सरकाता है। ऐसे में एक ऐसे उपन्यास को पढना, जिसमे प्रभु अपनी काबिलियत को दिखाना चाहता है और उसे इस बात का बकायदा मौका भी मिलता है, रोचक था। हाँ, लेकिन जैसे प्रभुदयाल अपनी सारी ताकत और मातहत एक ही मामले को सुलटाने में लगा देता है वो यथार्थ के निकट नहीं था। लेकिन फिर यही बात इसमें पाठक साहब का किरदार भी प्रभु की टांग खींचने के लिए कहता है तो पाठक साहब ने सोच समझ कर ही ऐसा किया था।
उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री है जिसमे दो क़त्ल होते हैं। मर्डर मिस्ट्री वही अच्छी होती है जिसमे आप लेखक के बताने से पहले इस बात का अंदाजा न लगा सके कि खून किसने किया और कैसे किया। मैंने इस उपन्यास में थोडा बहुत अंदाजा तो लगा लिया था। मेरे अंदाजा लगा पाने में उपन्यास की कमी नहीं है। उपन्यास 1983 में पहली बार प्रकाशित हुआ था। तब से लेकर अब तक बहुत कहानियाँ ऐसी आ चुकी हैं, फिर चाहे फिल्म हो या नाटक हो जिससे आज का पाठक कहानी के विषय में थोडा बहुत अनुमान तो लगा ही पायेगा। पूरा अनुमान तो मैं नहीं लगा पाया था और इसलिए मिस्ट्री उपन्यास की मिस्ट्री मेरे लिए बरकरार थी।