कथाकार शिवमूर्ति के सम्मान में हुआ ‘उपलक्ष्य-75’ कार्यक्रम आयोजित

कथाकार शिवमूर्ति के सम्मान में 'उपलक्ष्य-75' कार्यक्रम आयोजित
  • लेखक विचारक नहीं हो सकता, अगर वह विचारक हो गया तो दूसरों की नहीं, अपनी ही कहेगा: शिवमूर्ति
  • शिवमूर्ति की कोई भी रचना ऐसी नहीं होती जिसमें लोकरंग न आये : रविकांत
  • शिवमूर्ति का साहित्य संवैधानिक और सामाजिक नैतिकता के द्वंद्व को सबसे प्रभावशाली ढंग से उजागर करता है: चंदन पांडेय
  • शिवमूर्ति हिंदी के उन विरले रचनाकारों में हैं, जिनकी हर रचना वास्तविक पात्रों के इर्द-गिर्द बुनी हुई होती है: अशोक महेश्वरी

31 अक्टूबर, 2025

नयी दिल्ली: लेखक विचारक नहीं हो सकता। अगर वह विचारक हो गया तो दूसरों की न सुनेगा, न कहेगा, वह अपनी ही कहेगा। लेखक जैसा होता है, उसका कुछ अक्स उसके पात्रों में दिख ही जाता है। मेरा मानना है कि खुद को आदमी बनाने की जो गति पहले थी, वह मंद हुई है। अब वह विपरीत दिशा में जा रही है। पहले लगता था कि आदमी आदमी बन रहा है, लेकिन अब यह लगने लगा है कि आदमी को आदमी बने रहने में ही मुश्किलात बढ़ गयी हैं।

समकालीन हिंदी साहित्य के प्रतिनिधि कथाकार शिवमूर्ति ने यह बातें अपने रचनाकर्म पर हुई बातचीत के दौरान कही। यथार्थवादी आँचलिक कहानियों के लिए प्रसिद्ध शिवमूर्ति अपने जीवन के 75वें वर्ष में हैं। उनकी रचनाएँ भारतीय ग्रामीण समाज के उस हिस्से का सच बयान करती हैं जो बदलते समय में उपेक्षित होते हुए भी देश की आत्मा को जीवित रखे हुए है।

इसी रचनात्मक विरासत का उत्सव मनाने के लिए राजकमल प्रकाशन ने 31 अक्टूबर की शाम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (एनेक्स) में विशेष कार्यक्रम ‘उपलक्ष्य–75’ का आयोजन किया। कार्यक्रम में इतिहासकार व सम्पादक रविकांत और कथाकार चंदन पांडेय ने शिवमूर्ति से उनके रचनाकर्म पर संवाद किया, वहीं दिलीप गुप्ता के निर्देशन में साइक्लोरामा नाट्य समूह के कलाकार गौरव कुमार, अन्नुप्रिया और तुषार ने ‘अगम बहै दरियाव’ और ‘केसर कस्तूरी’ के अंशों की संगीतमय पाठ-प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन तसनीफ़ हैदर ने किया।

बातचीत के दौरान शिवमूर्ति ने कहा, “केवल कल्पना के बूते पर आप उतना चटक किरदार नहीं खड़ा कर सकते। मैं अपने आसपास जो देखता-सुनता हूँ, उन्हीं कहानियों को लिखता हूँ। मेरी रचनाओं में जितने भी पात्र आए हैं, उनसे मैं कभी न कभी मिला हूँ। उन्होंने आगे बताया कि इन दिनों वे आत्मकथात्मक लेखन कर रहे हैं, जिसे पाठक उनकी अगली किताब के रूप में पढ़ पाएँगे।”

लेखन प्रक्रिया से जुड़े सवाल पर शिवमूर्ति ने कहा, “लेखन कैसे होता है इसको बता पाना बहुत मुश्किल है। रचना-प्रक्रिया हर किसी की अलग होती है। अलग-अलग जगहों, घटनाओं और अनुभवों से जो कुछ भी मन में संचित होता जाता है, वही आगे चलकर रचना का रूप लेता है। जब मैं लिखने बैठता हूँ, तो दिमाग अपने आप ही उन देखी-सुनी चीज़ों को जोड़ने लगता है। मुझे जहाँ से जो अनुभव मिलता है, उसे मैं अपने ‘कबाड़खाने’ में डालता जाता हूँ, और जब उन्हें जोड़ता हूँ तो वह रचना बन जाती है। मेरी भूमिका बस इतना भर है कि मैं उन तत्वों को जोड़ दूँ जो पहले से प्रकृति ने दे रखे हैं। उन्होंने कहा कि मैं जब लिखता हूँ तो केवल कहानी और उसकी पठनीयता पर ध्यान देता हूँ, मेरी कोशिश रहती है कि उसकी व्यावहारिकता बनी रहे।”

इस दौरान रविकांत ने कहा, “शिवमूर्ति की कोई भी रचना ऐसी नहीं होती जिसमें लोकरंग न आये। उनकी हर कहानी अपने समय और समाज की गंध लिए होती” है। वहीं चंदन पांडेय ने कहा कि “शिवमूर्ति ने वास्तविक जीवन से उठाये गये पात्रों को इतना सजीव रूप दिया कि वे हमारे समाज की सामूहिक स्मृति का हिस्सा बन गये। उनका साहित्य संवैधानिक नैतिकता और सामाजिक नैतिकता के द्वंद्व को सबसे प्रभावशाली ढंग से उजागर करता है। जीवन की कठिन सचाइयों को उन्होंने जिस सहजता और करुणा के साथ रूपायित किया, वही उन्हें अपने समय के सबसे मानवीय लेखक बनाता है।”

इससे पहले, स्वागत वक्तव्य में राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने कहा, “शिवमूर्ति हिंदी के उन विरले रचनाकारों में हैं, जिनकी हर रचना वास्तविक पात्रों के इर्द-गिर्द बुनी हुई होती है। ग्रामीण जीवन का इतना सटीक और सजीव चित्रण समकालीन लेखकों में कम ही दिखाई पड़ता है। कोई पाठक जब इनकी रचनाओं को पढ़ता है तो बहुत दिनों तक उस पर कहानी का असर बना रहता है।”

यह आयोजन राजकमल प्रकाशन की विशेष कार्यक्रम शृंखला ‘उपलक्ष्य 75’ की दूसरी कड़ी है। यह उन प्रतिष्ठित लेखकों को समर्पित है जो इस वर्ष अपने जीवन के 75 वर्ष पूरे कर रहे हैं। ऐसे अनेक लेखक जिनके साहित्यिक अवदान से हिंदी समाज भलीभाँति परिचित है, यह आयोजन शृंखला उनकी रचनात्मक यात्रा को रेखांकित करने का प्रयास है।


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Author

  • 'एक बुक जर्नल' साहित्य को समर्पित एक वेब पत्रिका है जिसका मकसद साहित्य की सभी विधाओं की रचनाओं का बिना किसी भेद भाव के प्रोत्साहन करना है।
    सन् 2012 से हम यह कार्य निरंतर रूप से कर रहे हैं। यह प्रोत्साहन रचनाओं के ऊपर पाठकीय टिप्पणी प्रकाशित करके, नयी साहित्यिक कृतियों की जानकारी साझा करके, साहित्य से जुड़ी खबरे साझा करके और लेखकों द्वारा भेजी गयी उनकी रचनाओं को प्रकाशित करके किया जाता है। हमारी कोशिश है एक वृहद पाठक वर्ग तक इन जानकारियों को पहुँचाया जाए।
    आप भी साहित्य और लेखन से सम्बंधित लेख, अपनी पुस्तक का अंश और अपनी रचनाएँ हमें भेज कर इस मुहिम में सहयोग दे सकते हैं।
    हमारा पता है: contactekbookjournal@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *