उपन्यास 15 मई 2017 से 18 मई, 2017 के बीच पढ़ा
संस्करण विवरण :
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 240 | प्रकाशक: धीरज पॉकेट बुक्स | शृंखला: देवराज चौहान
पहला वाक्य :
“कौन हो तुम?” होटल के कमरे की बैल बजने पर देवराज चौहान ने दरवाजा खोला तो सामने स्वस्थ, पैंतालीस-पचास बरस की उम्र के व्यक्ति को खड़ा पाया।
कहानी
जयप्रकाश नायक नाम का एक व्यक्ति था जो पैशे से तो क्लर्क था लेकिन कभी मिलिट्री में काम करता था। उसके पास एक घडी थी जिसके एवज़ में जोरावर देवराज को कोई भी कीमत देने को तैयार था।
आखिर उस घड़ी में ऐसा क्या था कि जोरावर उसके लिए इतनी रकम देने को तैयार था?
इन सबके सवाल तो उपन्यास पढ़ने के बाद ही आप को मिलेंगे।
विचार
उपन्यास शुरुआत से ही मनोरंजक है। कहानी तेज गति से भागती है और उसमे कई बदलाव होते हैं। जैसे जैसे कहानी आगे बढती है खलनायक बढ़ते जाते हैं। और देवराज के लिए मुसीबतें भी। लेकिन वो जिस समझदारी से इनसे निपटता है वो उपन्यास को इंटरेस्टिंग बनाता है।
उपन्यास के ज्यादातर किरदार मुझे पसंद आये। जगमोहन और देवराज का रिश्ता मनोरंजक है। देवराज उसे काफी कण्ट्रोल में रखता है। वो दोनों साथ कैसे आये होंगे ये दिलचस्प किस्सा होगा। ऐसा किस उपन्यास में हुआ है? अगर आपको जानकारी है तो जरूर बताइयेगा। फिर देवराज के उपन्यास पढते हुए मुझे कई बार मन में ये ख्याल भी आता है कि उसने क्यों अपराध की दुनिया में कदम रखा। उसके अन्दर लालच बहुत कम है लेकिन वो कई बार हद से ज्यादा भी क्रूर हो जाता है। कई बार भगवान के ऊपर चीजें छोड़कर अपने को संतोष दे देता है। कई विरोधाभास हैं। ये जानना बनता है कि क्यों वो डकैत बना।
इसके इलावा इस उपन्यास में एनी डिक्सन के किरदार ने मुझे थोड़ा अचरच में डाला। उसमे जो बदलाव लेखक ने दिखाया है वो अचानक से ही हुआ है। शायद उन्होंने अंत को एक तरीके से सोचा था और उसी अंत तक पहुँचने के लिए एनी के किरदार के साथ ऐसा किया। वरना उसकी हरकत मुझे बेतुकी लगी थी।
इसके अलावा उपन्यास में कुछ और बातें ऐसी थीं जो मुझे तो खटकी थी या मुझे लगा जिनके विषय में लेखक को स्पष्ट कर देना चाहिए था।
१.जब टोनी को पता था कि उसके पीछे देवराज चौहान पड़ा है तो वो अपने घर में ही क्यों रह रहा था। उसने जहाँ पैसे रखे थे खुद उधर ही क्यों न चले गया। ऐसा होता तो देवराज उसे कभी ढूँढ नहीं पाता। टोनी क्योंकि एक अनुभवी अपराधी था तो उससे इतनी समझ की उम्मीद तो की जा सकती थी। यही बात जागीरा और महेंद्रसिंह पर भी लागू होती है। जागीरा ने तो अपने फ्लैट पर किसी सुरक्षा का बंदोबस्त भी नहीं किया था।
२. उपन्यास में कई बार दिखाया है कि इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े किसी से निर्देश ले रहा था। उसी के निर्देशानुसार वो देवराज के पीछे लगा हुआ था। लेकिन ये कौन व्यक्ति था? इसके विषय में कोई बात अनिल जी ने नहीं बताई है। और ये अज्ञात व्यक्ति क्यों देवराज और बाकी किरदारों के पीछे पड़ा था?
३. जब महेंद्र ने गोली चलाई तो नायक बीच में क्यों कूदा। उसके कूदने के पीछे का तुक मुझे समझ नहीं आया। जोरावर उसका रिश्तेदार तो था नहीं। और नायक के पास बन्दूक भी थी जिससे कुछ देर पहले उसने कई गार्ड्स को मारा था। तो वो कूदने के बजाये शूट कर सकता था।
४. शंकर लाल और नायक का गुप्त साथी कौन था। देवराज शंकरलाल से पूछता है। और फिर शंकरलाल की प्रतिक्रिया देखकर मुस्कुरा देता है। इससे मुझे लगा कि उसे इस बात का पता चल गया था। अगर ऐसा था तो पाठक को बताना चाहिए था।
इसके इलावा उपन्यास का अंत का हिस्सा मुझे थोड़ा जल्दी में निपटाया गया लगा। थोड़ा एक्शन सीक्वेंसेस बड़े होते तो अच्छा होता। और अपने संस्करण की बात करूँ तो कई जगह प्रिंटिंग की गलतियाँ थीं। कई शब्द जैसे मुस्कुराकर, घबराकर गलत छपे थे। पता नहीं इनकी जगह क्या छपा था। कुछ अजीब ही था वो।
इन सब छोटी छोटी बातों को छोड़ दे तो ज्यादातर उपन्यास मुझे मनोरंजक लगा। कथानक में ज्यादा बड़े प्लाट होल नहीं हैं जिससे पढने का मजा किरकिरा हो। कहानी पठनीय थी और मेरे हिसाब से इसे एक बार पढ़ा जा सकता है।
अगर आपने उपन्यास पढ़ा है तो आपको ये कैसा लगा? अपनी राय जरूर दीजियेगा।
अनिल मोहन के मैंने एक- दो उपन्यास ही पढें है।
समय मिला तो भविष्य नें अवश्य पढूंगा ।
जी, वक्त लगेगा तो पढ़ियेगा।वैसे मैंने इनका अर्जुन भरद्वाज सीरीज का एक उपन्यास पढ़ा था। खतरनाक आदमी। मज़ा आ गया था। उस श्रृंखला के और उपन्यास पढ़ने की सोच रहा हूँ।
jagmohan aur devraj ek sath underworld novel mai aye the
आनकारी देने के लिए शुक्रिया,जी। आप ब्लॉग पर आये उसके लिए शुक्रिया। आते रहिएगा।
मैंने अनिल मोहन जी का अभी बस एक ही उपन्यास पढ़ा है जिसका नाम है हमशक्ल और वो अर्जुन भारद्वाज का है मुझे काफी अच्छा लगा अर्जुन भारद्वाज का वो उपन्यास आप भी पढियेगा।
अर्जुन भारद्वाज श्रृंखला के कुछ उपन्यास मैंने पढ़े हैं और वो मुझे पसंद आये थे..यह भी मिलेगा तो जरूर पढूँगा….
मैंने अनिल मोहन जी का अभी बस एक ही उपन्यास पढ़ा है जिसका नाम है हमशक्ल और वो अर्जुन भारद्वाज का है मुझे काफी अच्छा लगा अर्जुन भारद्वाज का वो उपन्यास आप भी पढियेगा।
मैंने अनिल मोहन जी के 50+ उपन्यास पढ़ें हैं और सब एक से बढ़कर एक है हर उपन्यास में जान डाल देते हैं
जी सही कहा..मुझे भी अनिल मोहन जी के काफी उपन्यास पसंद आते रहे हैं..ब्लॉग पर आप आये अच्छा लगा…. आते रहियेगा….