साक्षात्कार: हादी हसन

लेखक हादी हसन से एक बुक जर्नल की बातचीत

हादी हसन जिला इटावा उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। अट्ठारह उन्नीस वर्ष के उम्र से वह उपन्यास लिखने लगे थे। उन दिनों अक्सर प्रकाशक लेखको को उनके असल नाम से नहीं बल्कि प्रकाशन के ट्रेडमार्क नाम से छापा करते थे और इन्हीं नामों से हादी हसन ने कई उपन्यास लिखे हैं। राजेश, पंकज, मदन शर्मा, करिश्मा दीवान, अम्बरीश, विक्की आनंद, राहुल, श्रीकांत पाटेकर कुछ ऐसे ही ट्रेडमार्क नाम हैं जिनके लिए उन्होंने लिखा  है।

हाल ही में फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन से उनका उपन्यास जहरीली प्रकाशित हुआ है। यह अपने नाम से प्रकाशित उनका प्रथम उपन्यास है।

एक बुक जर्नल ने उनके साथ हाल ही में बातचीत की और उनके जीवन और लेखन के विषय में जानना चाहा। आशा है आपको यह बातचीत पसंद आएगी।


प्रश्न: नमस्कार सर, पाठकों को कुछ अपने विषय में बताएँ।  आप कहाँ से हैं, शिक्षा दीक्षा कहाँ से हुई और वर्तमान में कहाँ रह रहे हैं?

उत्तर: मैं ज़िला इटावा , उ. प्र. का रहने वाला हूँ। इसी नगर के तत्कालीन समय के एक मात्र के. के. डिग्री कॉलेज जो कि कानपुर यूनीवर्सिटी से एफ़िलेटिड है, से मैंने ग्रेजुएशन कम्पलीट किया। ग्रेजुएशन के पश्चात् समय ही नहीं मिल सका। जॉब मिलते ही उसमें व्यस्त हो गया। फिर रिटायर हुआ और बस…! वक़्त की तेज़ रफ़्तार की वाकफ़ियत तब ही हो सकी, जैसे पलक झपकते सब कुछ ख़त्म। महज़ इतना सा फसाना है। बहुत कुछ होने के बाद भी लगता है कुछ हुआ ही नहीं।

लेखक हादी हसन
लेखक हादी हसन

प्रश्न: साहित्य के प्रति आपको झुकाव कब हुआ? घर में साहित्य को लेकर माहौल कैसा था?

उत्तर: साहित्य से मेरा जुड़ाव बहुत पहले से ही था। तब से जबकि मैं साहित्य की ए बी सी डी भी  समझता नहीं था। यहाँ मैं अपने विषय में बताने का तलबगार हूँ लेकिन अपने विषय में बताने के लिए मुझे अपने वालिदे मोहतरम अर्थात अपने पूज्यनीय पिताजी  श्री निसार सीमाबी के विषय में बताना होगा। मेरे पिता जी एच. एम. एस. इस्लामिया इंटर कॉलेज, इटावा में लेक्चरर के पद पर कार्यरत थे। उर्दू/हिन्दी दोनों में उन्हें कविता/शायरी करने में महारथ हासिल थी। अपने कॉलेज के कल्चरल प्रोग्राम्स के लिए नाटकों से लेकर प्रार्थना सभा तक सभी कार्यों का लेखन वे ही अंजाम दिया करते थे। प्रत्येक वर्ष नगर में लगने वाली प्रदर्शिनी में होने वाला ऑल इण्डिया मुशायरा उनके द्वारा ही सम्पन्न कराया जाता था। उन्हें 1965 में समूचे उ. प्र. से चुने गए नौ अध्यापकों में स्थान मिला था। शिक्षा विभाग उ. प्र. द्वारा सम्मनित किया गया था।

प्रश्न: लेखन का ख्याल मन में कब आया? अक्सर लोग कविता से लेखन की शुरुआत करते हैं। आपने शुरूआती लेखन किस विधा में किया था?

उत्तर: किसी लेखक से प्रभावित होकर इस फ़ील्ड में मेरी एन्ट्री हुई तो उस लेखक का नाम है कुमार कश्यप। कुमार कश्यप आगरा के एक नामी स्पोर्टसमैन थे। तब पहली बार वे आगरा की फुटबाल टीम के साथ इटावा एक टूर्नामेंट में खेलने आए हुए थे। मैं दर्शक था। मेरा उनका किसी प्रकार का परिचय नहीं था। खेल के दौरान कुछ साथियों ने बताया कि कुमार कश्यप खिलाड़ी होने के साथ ही साथ राइटर भी हैं। हम सभी साथी उनके खेल एवं व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सके। भविष्य में कोई नहीं झाँक सकता। मैं भी उस भविष्य से अनजान था कि आने वाले समय में श्री कुमार कश्यप मेरे अभिन्न मित्रों में से एक होंगे। मित्रों की टोली में यह बात सभी को ज्ञात थी कि मैं जासूसी दुनिया से लेकर जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा, वेदप्रकाश काम्बोज जी एवं तत्कालीन समय के लगभग सभी लेखकों को पढ़ा करता था। मेरे समूह में कदाचित सभी पाठक थे। श्री कुमार कश्यप जी के विषय में वार्ता के बीच यह प्रसंग आया कि अगर श्री कुमार कश्यप खेलने के साथ लिखने का कार्य भी कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं। वह बात हम सबके बीच हुई और सभी ने यूँ ही वह प्रस्ताव मेरी ओर धकेल दिया-तू लिख न, तू पढ़ सकता है तो लिख क्यों नहीं सकता? बस…वहीं से लिखने के लिए मेरे दोस्तों ने मुझे प्रेरित करना शुरू कर दिया और उसके साथ ही मेरा दिमाग़ उन दिनों के चर्चित पात्रों कर्नल विनोद, कैप्टेन हमीद सीरीज़ को लिखने के लिए अंदर ही अंदर तैयार होने लगा। उस समय तक श्री कुमार कश्यप के सुविख्यात पात्र विक्रांत ने जन्म नहीं लिया था और न ही कुमार कश्यप जी का नाम फ़िक्शन की दुनिया में चमका था। मैं एक दिन में एक उपन्यास तो पढ़ता ही था, तो प्लाट बनाना मेरे लिए आसान था। बारी महज़ लिखने की थी जिसका कि मुझे तजुर्बा नहीं था परन्तु मित्रों द्वारा प्रोत्साहित करने पर मैंने लिखना आरम्भ कर दिया।

प्रश्न:सर मैंने सुना है आपने भूत लेखन भी काफी किया है? आपने किन किन नामो से लिखा है? इस तरह के लेखन में कैसे आना हुआ?

उत्तर: पूरा जीवन भूत लेखन में ही व्ययतीत हुआ। उस समय जिस लेखक का नाम था, वही अच्छी कमाई कर रहा था, शेष लेखकों को भूत बनकर ही जीना पड़ रहा था। परिवार चलाना था तो भूत लेखन मेरी विवशता थी। हर माह का ख़र्च क़लम के माध्यम से ही पूरा करना था। नाम के चक्कर में रुक कर कुछ कर पाना मुमकिन नहीं था। यूं भी उस समय किस प्रकाशक को किसी के नाम की पड़ी थी। सब कमाई करने में लगे हुए थे। भूत लेखन करते हुए विभिन्न नामों से किया, उनमें से जो याद रह गए- जैसे कि राजेश, पंकज, मदन शर्मा, करिश्मा दीवान, अम्बरीश, विक्की आनंद, राहुल, श्रीकांत पाटेकर आदि आदि।

प्रश्न:जासूसी लेखन के प्रति रूचि कब जागृत हुई? इस विधा में लिखने की प्रेरणा आपको किन लेखकों से मिली?

उत्तर: आरम्भ जासूसी उपन्यासों से हुआ था तो जासूसी उपन्यासों में रुचि अधिक ही थी। दूसरे उपन्यास तो तब ही पढ़ा करता था जब पढ़ने के लिए अतिरिक्त कुछ बाक़ी न रहा हो। जहाँ तक प्रश्न प्रेरणा का है तो मैं कहूँगा कि प्रेरणा से अधिक विवशता मेरे सम्मुख थी। आयु 18, 19 के मध्य एक खिलंदड़ बेपरवाह युवक जिसने कभी सोचा भी नहीं था कि अचानक ही परिवार का बोझ उसके कांधों पर आ जाने वाला है लेकिन वक़्त और हालात सब सिखा देते हैं। जिसकी मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी, वह सब सहसा ही हो गया। वह एक वर्ष कैसे बीता, पता ही नहीं चला। कब मैं एक ज़िम्मेदार व्यक्ति बन गया, मालूम नहीं। विगत वर्ष में वालिदे मोहतरम का निधन कैंसर के चलते हो गया। एक वही तो थे परिवार को चलाने वाले, मझधार में छोड़ गए। अब परिवार को पालने की ज़िम्मेदारी मेरी थी, एक बेरोज़गार युवक की। ऐसे में लेखन के प्रति रुचि क्या माने रखती है। बेरोज़गार व्यक्ति के पास वक़्ती तौर पर एक ही मार्ग प्रशस्त था कि वह कलम के सहारे अपने परिवार को चला सके तो प्रकाशक महोदय के सम्मुख अपना पहला उपन्यास रखा तो आदेश हुआ कि यदि मैं विक्रांत सीरीज़ का उपन्यास लिखकर लाऊँ तब बात बन सकती है। उस समय पहली बार मैंने विक्रांत का नाम अपने प्रथम प्रयास में सुना था, किन्तु आवश्यकता थी परिवार चलाने की सो तुरन्त हाँ बोलकर लौट आया और लायब्रेरी की ख़ाक छानकर विक्रांत पात्र की तमाम जानकारी एकत्र करने के बाद पन्द्रह दिन में उपन्यास लिखा और अगले ही माह वह उपन्यास छपकर मार्केट में आ गया-जगन मौत के घेरे में-तो रुचि के अनुसार कुछ भी नहीं हुआ, जो हुआ-प्रकाशक महोदय के आदेशानुसार हुआ।

प्रश्न:क्या जासूसी लेखन के इतर भी अन्य विधाओं में आपने लिखा है?

उत्तर: हाँ, जासूसी के अतिरिक्त मैंने सामाजिक उपन्यास भी लिखे हैं। जहाँ काम मिला, तुरन्त लिख डाला। मनुष्य को आवश्यकता के सम्मुख घुटने टेक ही देने पड़ते हैं। नाम के बारे में किसी भी प्रकाशक के सम्मुख आग्रह करने की ऐसे में हिम्मत ही नहीं होती थी। इस बात से ख़ौफ़ज़दा रहता था कि कहीं प्रकाशन से मिला हुआ काम छिन न जाए।

प्रश्न: हिंदी अपराध लेखन की दुनिया को आप किस तरह देखते हैं। क्या इस दुनिया में किसी सुधार की आवश्यकता है? अगर हाँ तो वह कौन से सुधार हैं?

उत्तर: आपका यह प्रश्न अत्यन्त गूढ़ है। उपरोक्त वर्णन के अनुसार आप मेरा ध्येय समझ ही चुके होंगे। मैंने अपने परिवार के लिए सब कुछ करना था तो मैं महज़ कुम्हार के रुप में था जिसके चाक पर गुंधी हुई मिट्टी मौजूद थी, केवल आदेश की प्रतीक्षा रहती थी कि क्या बनाने का आदेश पारित हो-गिलास, सुराही अथवा तश्तरी-बना दूँगा। आज के समय में एक से बढ़कर एक लेखक आ रहे हैं। नई-नई विधाओं को लेकर तो उन विधाओं में सुधार स्वयं ही हो रहा है। अद्भुत प्लाट पर उपन्यास लिखे जा रहे हैं, इसमें सुधार की कोई आवश्यकता है ही नहीं। नवीनता परोसकर लेखक नए आयाम प्रस्तुत कर रहा है।

प्रश्न: हाल ही में आपका उपन्यास जहरीली फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है? अपने इस उपन्यास के विषय में पाठकों को कुछ बताएँ? 

उत्तर: फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशन का मैं तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ कि जिन्होंने मुझे मेरे अंतिम पड़ाव में नाम से छपने अवसर प्रदान किया। एक्चुअली-ज़हरीली-का प्लाट उसकी नवीनता को संजोने में स्वतः ही बढ़ता चला गया और करेक्टर भी जन्म लेते चले गए। अलबत्ता ज़हरीली एक मिस्ट्री है जिसका अंत जहाँ तक मैं समझता हूँ-पाठक को एक ज़बरदस्त झटका अवश्य ही देगा। चूँकि मिस्ट्री है, इस कारण उसके विषय में अधिक क्या कहूँ। कोशिश की है ताकि पाठक प्रत्येक पृष्ठ के साथ किसी प्रश्न का उत्तर तलाशने में व्यस्त हो जाए। एक बार फिर फ्लाई ड्रीम पब्लिकेशन का शुक्रिया।

जहरीली - हादी हसन | फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन

प्रश्न: आजकल आप क्या लिख रहे हैं? क्या पाठको को इस विषय में कुछ बताना चाहेंगे?

उत्तर: आजकल मैं अपने नए उपन्यास ’एलियन’ पर काम कर रहा हूँ। एलियन अपने आप में एक रहस्य से परिपूर्ण सब्जेक्ट है। फ़िलहाल उस रहस्यपूर्ण ताने-बाने में, मैं अपने आपको उलझाता जा रहा हूँ। देखना है कि उसका रहस्य मुझे कहाँ पहुँचाता है और अंत किस तरह से होता है। अभी आरम्भ ही है इस कारण कुछ अधिक जानकारी प्रस्तुत नहीं कर सकता। विवशता है, क्योंकि प्लाट अधूरा है। इस प्रकार के जटिल सब्जेक्ट के लिए कुछ ऐसा समय चाहिए जिसमें मिस्ट्री का ताना-बाना बुना जा सके। समय निकालने का प्रयत्न कर रहा हूँ।

प्रश्न: आखिर में सर, अगर आप पाठकों को कोई संदेश देना चाहें तो वह क्या संदेश होगा?

उत्तर: पाठकों को संदेश देना मेरे वश की बात नहीं। बेहद योग्य पाठक इस समय उपन्यासों को बड़ी गहनता से अध्ययन कर उसकी विवेचना करते हैं। अतः पाठकों के विषय में इतना ही कहने का ख़्वाहिशमंद हूँ कि क्राइम फ़िक्शन को पढ़ते हुए हमेशा इंजॉय करने का विचार मन में रखें, उससे प्रेरित होकर कोई ऐसा-वैसा क़दम कभी न उठाएं, यही मेरी सभी पाठकों से विनती है।  


तो यह थी लेखक हादी हसन से हमारी एक बातचीत। यह बातचीत आपको कैसी लगी हमें जरूर बताइयेगा।

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Author

  • विकास नैनवाल

    विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

12 Comments on “साक्षात्कार: हादी हसन”

  1. हादी हसन जी के विषय में काफी उपयोगी और रोचक जानकारी प्राप्त हुयी।
    लोकप्रिय साहित्य में छद्म लेखन ने अधिकांश लेखकों के सपनों‌ को खत्म कर दिया।
    साक्षात्कार के लिए धन्यवाद।

    1. साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जाक्नकर अच्छा लगा। हार्दिक आभार।

  2. बिल्कुल सरल चित व्यक्तित्व जान पड़ता है लेखक महोदय का– उपरोक्त साक्षात्कार को पढ़कर। इनके अनुभव के बारे में जानकर तथा साक्षात्कार को देखते हुए उम्मीद है "ज़हरीली" बाताये अनुसार ही रोचक तथा रहस्यपूर्ण कथानक होगा, जल्द ही आर्डर करूंगा।

    1. जी साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। उम्मीद है जल्द ही आप जहरीली के विषय में अपने विचारों से अवगत करवाएंगे।

  3. वाकई हादी हसन जी का पूरा इंटरव्यू पढ़कर बहुत सारी ऐसी बातें पता चलीं जो अब तक हर कोई अंजान था। इस इंटरव्यू से काफी कुछ सीखने को भी मिला। आभार आप दोनो का।

    1. जी सही कहा। हार्दिक आभार।

  4. पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। हादी जी को सलाम

    1. साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा सर। हार्दिक आभार।

  5. राहुल और विक्की आनंद नाम से लिखी कई बुक्स पढ़ी है हादी जी की
    कांटेक्ट में भी हैं आजकल अच्छा लगता पुराने लेखक के साथ कांटेक्ट में रहना

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