कई वर्ष हुए कि तुर्क लोगों ने सुली नाम का ग्रीस देश का एक प्रांत अपने आधीन कर लेने का विचार किया। उस प्रांत के लोग तुर्किस्तान के बादशाह को बिलकुल नहीं मानते थे। इसलिए उनको युद्ध में जीतकर अपना अधिकार स्थापित करने के इरादे से अल्लीपाशा ने सुली पर चढ़ाई की। इस समय सुलियट लोगों का नायक झबेला नाम का एक बड़ा शूर और देशाभिमानी पुरुष था। सुलियट स्वभाव से बड़े तीखे और वचन के बड़े सच्चे थे। उनका भी इरादा हुआ कि अल्ली को अपने दो-दो हाथ दिखावें। कुछ देर तक लड़ाई होती रही। परंतु पाशा की सेना अधिक थी। इसलिए सुलियट लोग बिलकुल हैरान हो गये और उनका नायक झबेला भी पकड़ा गया। जब वह पाशा के सामने लाया गया, तब उसने उसको अपने वश में कर लेने के इरादे से बहुत आदर-सत्कार के साथ अपने पास बैठाया और फिर कहा, “सुलियट लोगों को हमारे सुपुर्द कर देओ। बादशाह तुमसे बहुत खुश होवेंगे और तुमको इनाम भी बहुत कुछ मिलेगा। अगर तुम इस बात को न मानोगे तो तुम्हारे बदन का चमड़ा निकलवाकर तुमको यहीं पर मार डालेंगे।”
यह सुनकर झबेला ने उत्तर दिया कि “पहिले मुझे मुक्त तो करो। जब तक मैं ऐसा बँधुआ होकर तुम्हारे ताबे में हूँ, तब तक वे लोग तुम्हारे वश न होंगे। मैं उन्हें समझाऊँगा और तुम्हारा अधिकार कबूल कराने का प्रयत्न करूँगा। फिर जो कुछ होना होगा, सो आपको दीख ही पड़ेगा।”
इस पर अल्ली ने पूछा कि, “तुम अपने साथियों में जाकर फिर हमारे पास लौट आवोगे, इसका हमें विश्वास कैसे हो सकता है?”
“यह मेरा लड़का तुम्हारे पास जामिन रहेगा।”, झबेला ने अपने पुत्र की ओर अँगुली बतलाकर कहा, “वह मुझे प्राण से भी अधिक प्यारा है। सुलियट लोग मेरी अपेक्षा उसी को अधिक मानते हैं।”
पाशा ने उसका कहना कबूल किया, और झबेला अपने लड़के को उसके पास छोड़कर घर लौट आया। परंतु उसने दीन होकर अल्ली का अधिकार मान्य करने के लिए अपने लोगों से विनती नहीं की। इसके पलटे ऐसा कहा कि “तुम लोग जितना अभी लड़ रहे हो, उसकी अपेक्षा अधिक धैर्य और आवेश से लड़कर अपनी रक्षा करो। कुछ भी हो जाय, अल्ली के अधिकार का भार अपने सिर पर मत लेओ।” इतने में किसी ने उसके पुत्र का स्मरण किया और पूछा कि उसकी क्या दशा होगी? तब तो उसके अंतःकरण में एक ओर से अपने राष्ट्र को स्वतंत्र करने की प्रबल इच्छा और दूसरी ओर से स्वाभाविक पुत्र-प्रेम, इन दोनों का तुमुल युद्ध होने लगा। झबेला सचमुच देशाभिमानी वीर पुरुष था! अनिवार्य पुत्र-प्रेम के मोहपाश को भी हटाकर उस स्वातंत्र्यप्रिय पुरुष का मन तिल मात्र दुखित नहीं हुआ, वरन् अपने साथियों को जय की आशा से उत्साहित कर युद्ध की सिद्धता करने के लिए बड़े आवेश से प्रार्थना करने लगा।
कुछ काल बीत जाने पर उसने अल्ली पाशा को लिख भेजा कि “ऐ पाशा! मैं सेर को सवासेर हूँ!! मुझे इस बात का परम संतोष है कि तेरे पास से छूटकर अपने देश को पराधीनता से मुक्त करने के लिए मैं यहाँ आ गया। अब मुझे यह आशा नहीं है कि मेरे प्रिय पुत्र के प्राण बचेंगे। परंतु इसका बदला लिए बिना मैं कभी न रहूँगा। दूसरों की स्वतंत्रता हरण करने वाले तेरे सरीखे जो अधम मनुष्य हैं, वे कदाचित् मुझे ‘क्रूर और पाषाण-हृदयी पित’ कहेंगे। अपनी मुक्तता कराने के लिए अपने लड़के को मृत्यु के मुख में दे दिया, ऐसा भी वे कहते फिरेंगे। पर वे कुछ भी कहें और कुछ भी बकें, मेरा यही एक उत्तर है कि यदि मैं तेरा कहना मानता और तुझे सुली का राज्य दिला देता तो, ‘मैंने अपने स्वदेश बंधुओं से विश्वासघात किया––ऐसा कहकर,’ तू मुझे, मेरे पुत्र को और मेरे कुटुम्ब को अवश्य मार डालता। विश्वासघात जैसा निंदादोष माथे पर लेकर पशु के समान मरने की अपेक्षा स्वदेश के निमित्त अपने प्राण को अर्पण करना ही मुझे श्रेयस्कर जान पड़ता है। अब यदि हमारी जीत होगी तो परमेश्वर की कृपा से मुझे कई लड़के हो जाएँगे। पर यदि मेरा पुत्र स्वदेश-हितार्थ अपना जीव देने के लिए सिद्ध न होगा तो उसके जीने ही से क्या लाभ है? वह तो मुझे जीता और मरा समान ही मालूम होगा। फिर वह मेरा पुत्र कभी नहीं कहा जा सकता। इसलिए उसका मरना ही अच्छा है। यदि वह मृत्यु के मुख में पैर रखने का ढाढ़स नहीं कर सकता तो ऐसा कौन कहेगा कि उसका जन्म ग्रीस के स्वतंत्र संस्थान में हुआ है। बस, इससे अधिक मुझे कुछ नहीं लिखना है।”
यह लेख मिलने के पश्चात् अल्लीपाशा ने झबेला के लड़के को बादशाह के पास भेज दिया। जब उसको वज़ीर के सामने खड़ा किया तो उसकी छोटी उमर और तेज़ से भरा हुआ चेहरा देखकर सब लोग अचम्भा करने लगे। कदाचित् कुछ भय बतलाने से यह मान जाय, ऐसा समझकर वज़ीर ने कहा, “अरे फोटू, तू तो बड़ा खूबसूरत मालूम होता है। पर तेरे बाप ने बड़ी निमकहरामी की है। इसलिए बादशाह ने तुझे आग में जला देने का हुक्म दिया है। बोल, अब क्या कहता है तू?”
शेर का बच्चा शेर ही होगा। इस बंदर-घुड़की से फोटू काहे को डरता। उसने तुरंत ही जवाब दिया कि, “महाराज, ऐसा न कीजिए। मुझे आशा है कि मेरे पिता को अवश्य जय प्राप्त होगी, और जब वह युद्ध में जीत जायेगा तो आपसे बदला लिए बिना कभी न रहेगा। इसलिए आप ऐसा कोई काम न करें कि जिससे आपको उसके भीषण क्रोधाग्नि में गिरना पड़े।” यह बात सुनते ही वज़ीर और बादशाह दोनों को बड़ा आश्चर्य हुआ। उस लड़के का धैर्य-बल देखकर उसको मारने का निश्चय रहित कर दिया और उसको किसी एक टापू में क़ैदी बनाकर प्रतिबंध में रखा दिया।
इधर अल्लीपाशा ने सुलह करने के इरादे से 24 सुलियट लोगों को अपने पास बुलवाया और जब वे उसके पास आये तो वह कहने लगा कि “जब तक तुम्हारा प्रांत हमारे आधीन न होगा, तब तक तुम यहाँ से जाने न पाओगे। यदि दो-चार दिन में यह काम न हुआ तो तुम जीते जी वापस जाओगे, ऐसी आशा न करो।” यह सुनते ही उन लोगों ने कहा कि, “अरे अल्ली, देख, तू कैसा नीच है। संधि करने के बहाने से हमें यहाँ लाकर तू इस तरह का दुष्ट काम करने को तैयार हुआ है! ऐसे आचरण से तेरी कीर्ति दूषित हो जायगी। तेरा कपट देखकर हमारा निश्चय तो अधिकाधिक दृढ़ होता जाता है कि तेरा अधिकार कदापि स्वीकार न करेंगे। स्वातंत्र्य‑प्राप्ति के निमित्त हम अपना जीव भी देने को तैयार हैं। पर याद रख कि तेरे अधम कृत्य का स्मरण हमारे देश-बंधुओं के हृदय में चिरकाल जागृत रहेगा, और फिर तू हमारा प्रजासत्तात्मक राज्य कदापि पदाक्रांत नहीं कर सकेगा। बस, तू अब संधि की बातचीत करने योग्य नहीं है। तेरे बोलने में कुछ ठिकाना नहीं।”
जब इस उपाय से भी वे लोग हस्तगत न हुए, तब पाशा ने कुछ द्रव्य देकर वह प्रांत लेने का विचार किया। सुलियट लोगों में जो मुखिया थे, उनको द्रव्य का लोभ दिखलाकर अपने वश कर लेने के हेतु से डीमोज्वी नाम के एक श्रीमान गृहस्थ को उसने कहला भेजा कि यदि तुम हमारा यह काम कर देओ तो तुमको दस लाख अशर्फियाँ और बहुत कुछ इनाम मिलेगा। इसके सिवाय हमारे राज्य में बड़े ओहदे की जगह भी मिलेगी। यह संदेशा सुनकर उस धनिक ने जो जवाब दिया, वह सदैव ध्यान में रखने योग्य है। उसने कहा, “साहेब, आप मुझ पर कृपा-दृष्टि रखते हैं, इसी से मैं धन्य हूँ। मेरी विनती है कि आप कृपा करके अपने द्रव्य की थैलियाँ मेरे पास न भेजें। क्योंकि मैं यह नहीं जानता कि इस प्रकार के द्रव्य को कैसे गिनते हैं। आप इस बात को अच्छी तरह से याद रखें कि मेरे सम्पूर्ण राष्ट्र की बात तो एक ही ओर रहे, परंतु इस स्वतन्त्र राष्ट्र में एक छोटे से पत्थर की कीमत, आपके राज्य की सब सम्पत्ति से कई गुनी अधिक है। इसी पर से समझ लीजिए कि इस देश का मान-पान कैसा है। सुलियट लोगों का सम्मान शस्त्रास्त्र में है, द्रव्य में नहीं। क्षणभंगुर द्रव्य की आशा न करके शस्त्रों के बल पर अपना नाम अजर-अमर करना और अपने स्वतंत्रता की रक्षा करना—यही हमारा काम है, यही हमारा धर्म।”
हम कहते हैं कि—यही सम्मान है।
समाप्त
