दैनिक जागरण द्वारा वर्ष 2025 की तीसरी तिमाही यानी जुलाई से सितम्बर के बीच सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों की सूची जारी की जा चुकी है। कथा, कथेतर, अनुवाद और कविता श्रेणी में यह सूची जारी की गयी है। कविता श्रेणी में जिन कविता संग्रहों ने जगह बनायी है वह निम्न हैं:
सीपियाँ – जावेद अख्तर

पुस्तक विवरण:
कबीर, तुलसी, वृंद, रहीम और बिहारी आदि कवियों ने सदियों पहले अपनी गहरी अंतर्दृष्टि और मानव-स्वभाव की समझ की बुनियाद पर कुछ बातें कहीं, और इसके लिए उन्होंने कविता का जो रूप चुना, वह था-दोहा। दो पंक्तियों में गुँथी-गठी एक सम्पूर्ण कविता जो तीर की तरह जाकर हमारी चेतना में गड़ जाती है। सैकड़ों सालों से ये दोहे हमारे साथ रहते आए हैं, कभी ये हमें हमारी ख़ामियाँ दिखाते हैं, कभी हमारे रहबर बन जाते हैं, और कभी कोई ऐसा सच बता जाते हैं जिसे हमारी दुनियावी निगाह देखकर भी नहीं देखती। ‘सीपियाँ’ में जावेद अख़्तर ने ऐसे ही कुछ दोहों को चुनकर उनके भीतर छिपे सत्य को आमफ़हम ज़बान में हर किसी के लिए सुलभ कर दिया है। जो बातें इनसे निकलकर आई हैं वे आज भी उतनी ही सच हैं, आज भी उतनी ही उपयोगी हैं, जितनी उस समय थीं, और आगे भी उतनी ही सार्थक रहेंगी। जावेद अख़्तर हमारी आज की रोज़मर्रा ज़िन्दगी से उन्हें जोड़ते हैं और बताते हैं कि कैसे उन पर अमल करके, उनसे मिलनेवाली सीख को अपनाकर हम ख़ुद को बेहतर इनसान और अपनी दुनिया को एक बेहतर समाज बना सकते हैं।
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन | पुस्तक लिंक: अमेज़न
जाना ज़रूरी है क्या – ऐश्वर्या शर्मा

पुस्तक विवरण:
इस कविता संग्रह में ऐश्वर्या शर्मा ने दिल टूटने, जिजीविषा, स्त्रीत्व और संघर्षों से उबरने के जज़्बे को काव्यात्मक अभीव्यक्ति दी है। सादगी और सच्चाई से कहे शब्द सीधे दिल में उतरते हैं।
प्रकाशक: हिंद युग्म | पुस्तक लिंक: अमेज़न
घर के वास्ते – स्वयं श्रीवास्तव

पुस्तक विवरण:
यह लोकप्रिय युवा कवि स्वयं श्रीवास्तव का पहला काव्य संग्रह है। इसके हर गीत और नज़्में पहले ही लोगों की ज़ुबान पर हैं। स्वयं श्रीवास्तव अपने समय की असल समस्याओं को उठाते हैं। उनकी कविताओं में युवा मन की बेकरारी, बेकारी, प्रेम, असफलताबोध और सौन्दर्याकांक्षा मिलेगी। जब उनकी हिन्दुस्तानी जुबान में आप इन्हीं चीज़ों को सुनते हैं तो एक ही बात जेहन में कौंधती है— “देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उसने कहा मैं ने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है”।
प्रकाशक: युवान बुक्स | पुस्तक लिंक: अमेज़न
चाय-सी मोहब्बत – परितोष त्रिपाठी

पुस्तक विवरण:
चाय और मोहब्बत दोनों की तासीर गर्म होती है पर दोनों ही रूह में ताज़गी और ठंडक भरती हैं। ये कविताएँ और इनका कवि कैसा है यह फ़ैसला तो सुधी पाठक करेंगे पर यह आपके ज़ेहन को मोहब्बत से सराबोर करेंगी ऐसा मेरा विश्वास है। जब हम कविता रचने या चाय बनाने की प्रक्रिया में होते हैं तब हमें उसके स्वाद का पता नहीं होता। ज़िंदगी में और मोहब्बत में भी ठीक वैसा ही होता है, जब हम प्यार में होते हैं तो बस होते हैं… उसके स्वाद से बेपरवाह… अनजान। चाय पी लेने और ज़िंदगी जी लेने के बाद जो बचता है वही उसका असली हासिल है।
अबतक की ज़िन्दगी का हासिल, आप सबों की इबादतों का जो हासिल है उसे बड़े जतन से सहेजकर आज आपके हवाले करता हूँ।
मोहब्बत के नाम पर कितना कुछ किया जाता है या मोहब्बत अपनी क़समें देकर क्या-क्या करा लेती है, मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है जैसा आप सबके साथ होता है। फ़र्क़ बस यही है कि मैं उसे पन्ने पर रख लेता हूँ। बाद में सारे पन्ने जोड़कर ‘उसे’ वापस करता हूँ और लोग समझते हैं कि मैंने किताब लिखी है। आप जब ‘चाय-सी मोहब्बत’ को सीने पर रखकर या गोद में छुपाकर पढ़ेंगे तो आप मोहब्बत की गरमाहट को महसूस करेंगे।
प्रकाशक: हिंद युग्म | पुस्तक लिंक: अमेज़न
ईश्वर और बाज़ार – जसिंता केरकेट्टा

पुस्तक विवरण:
दिवासी जन-जीवन पर मँडराते सभ्यता-प्रेषित ख़तरों को पहचानना, सीधे-सरल ढंग से उन्हें शब्दों में अंकित करना और नागर केंद्रों से जंगलों-पहाड़ों की तरफ़ बढ़ते विकास की आक्रामक मुद्राओं का सशक्त प्रतिवाद गढ़ना जसिंता केरकेट्टा की कविताओं की विशेषताएँ रही हैं। उनकी कविताएँ अपनी सहज और संवादपरक मुद्रा में आदिवासी समाज की पीड़ाओं को समग्रता के साथ हम तक पहुँचाती रही हैं। इन कविताओं में उनके इस मूल स्वर के साथ कुछ और भी जुड़ा है। संग्रह में संकलित कई कविताएँ ऐसी हैं जो शोषण के चालाक षड्यंत्रों में ईश्वर की अवधारणा और असहाय जन-मानस में उसके भय की भूमिका को चीन्हती हैं। भीतर और बाहर की कई जकड़नों में धर्म, ईश्वर और आस्था ने जिस तरह मनुष्य-विरोधी ताक़त के रूप में काम किया है, वह बृहत् भारतीय समाज की विडम्बना है; लेकिन आदिवासी साधनहीनता पर उनका प्रभाव और भी घातक होता है।
‘मज़दूर जब अपने अधिकार के लिए उठे/तो कुछ ईश्वर भक्तों ने उनसे/हाथ जोड़कर प्रार्थना करने को कहा।’ और ‘धीरे-धीरे हर हिंसा हमारे लिए/ईश्वर द्वारा ली जा रही परीक्षा बन गई।’
इस विडम्बना को ये कविताएँ हर सम्भव कोण से पकड़ने का प्रयास करती हैं।आधुनिक शहरी सभ्यता के सम्पर्क से आदिवासी जीवन शैली में दिखाई देने वाली विरूपताओं की तरफ़ भी जसिंता की नज़र गई है जिससे पता चलता है कि विकास का हमला सिर्फ़ जंगल के संसाधनों और वहाँ के निवासियों के दोहन तक ही सीमित नहीं है, वह उनके सांस्कृतिक बोध को भी विकृत कर रहा है।जल, जंगल और आदिवासी जीवन से बाहर देश के सामान्य हालात भी इस संग्रह की कविताओं में जगह-जगह झाँकते दिखाई देते हैं। सत्ता का तानाशाही मिज़ाज हो या अपने ही देश की सैनिक ताक़त को अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति, कुछ भी कवि की निगाह से नहीं चूकता। यह संकलन निश्चय ही जसिंता की रचना-यात्रा का अगला चरण है।
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन | पुस्तक लिंक: अमेज़न
