संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | प्रकाशक: तुलसी कॉमिक्स | प्लैटफॉर्म: प्रतिलिपि | कथानक: विजय कुमार वत्स | संपादक: प्रमिला जैन | कला निर्देशक: प्रताप मुलिक | चित्र: चंदु | सुलेख: उदय भास्कर
कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि
कहानी
बल्लभगढ़ के राजा अवन्तीसेन ने जब जैतपुर के राजा जैतसिंह का निमंत्रण स्वीकार किया था तो उन्होंने सोचा भी नहीं था कि वहाँ जाकर उनका अपमान होगा।
लेकिन जब जैतपुर में धवलगढ़ के राजा धवल सिंह ने उनका अपमान किया तो वह धवल सिंह से बदला लेने का विचार कर बल्लभगढ़ लौट आए।
भले ही धवलगढ़ ताकत के मामले में बल्लभगढ़ से ज्यादा शक्ति सम्पन्न था लेकिन महाराज अवन्तीसेन ने उसकी ईंट से ईट बजाने का फैसला कर लिया था। और फिर अपने प्रधानमंत्री चंद्रमणि के कहने पर उन्होंने विषकन्या मोहिनी को धवलगढ़ के खिलाफ इस्तेमाल करने की ठानी।
धवलगढ़ के राजा ने अवन्तीसेन का क्या अपमान किया था?
क्या मोहिनी अवन्तीसेन का बदला ले पाई?
उसने बदला लेने के लिए किस तरह की योजना रची?
अपनी योजना को अंजाम देने के लिए उसे क्या क्या करना पड़ा?
किरदार
अवन्तीसेन – बल्लभगढ़ के राजा
मुदालसा – बल्लभगढ़ की रानी
जैतसिंह – जैतपुआर का राजा
धवल सिंह – धवलगढ़ का राजा
चंद्रमणि – बल्लभगढ़ का प्रधान मंत्री
मोहिनी – बल्लभगढ़ की एक विषकन्या
चित्ररथ – मोहिनी का रथ चलाने वाला
प्रबल, कुशल, निश्चल – राजा धवल सिंह के बेटे
संदीपन ऋषि – धवलसिंह और अवन्तीसेन का गुरु
मेरे विचार
मध्ययुगीन काल में राजाओं के पास विष कन्याओं की एक टोली हुआ करती थी। विष कन्याओं के विषय में कहा जाता है कि उनको बचपन से विष का पान कराया जाता था जिसके असर से वह जहरली हो जाया करती थी। वहीं विष कन्याओं को मर्दों को रिझाने का प्रशिक्षण दिया जाता था ताकि वह अपनी शिकार से नजदीकी स्थापित कर उन्हे आसानी से मौत के घाट उतार सकें। ऐसा कहा जाता है कि राजा ऐसी खूबसूरत विष कन्याओं का प्रयोग दुश्मनों के खिलाफ अक्सर किया करते थे। प्रस्तुत कॉमिक विष कन्या का जहर भी ऐसे ही एक राजा अवन्तीसेन की कहानी है जो कि अपने अपमान का बदला लेने के लिए विषकन्या मोहिनी का इस्तेमाल करता है।
मोहिनी किस तरह से इस अपमान का बदला लेती है यही कहानी बनती है। मोहिनी रूप बदलने में और लोगों का मन मोहने में माहिर है और यह बात कहानी में दिखती है। वह किस तरह से अपने शिकारों के नजदीक पहुँचती है यह कॉमिक बुक के पृष्ठ पलटकर पता चल सकता है।
कथानक के प्रति अपनी राय दूँ तो कथानक का विषय तो अच्छा है लेकिन प्रस्तुत कथानक इस विषय के साथ न्याय नहीं कर पाया। यह इसलिए क्योंकि कहानी में विष कन्या काफी आसानी से अपने शिकार तक पहुँच जाती है। अगर विष कन्या को शिकार तक पहुँचने के लिए कुछ मेहनत करती या कोई ऐसा किरदार होता जो उसे रोकने की कोशिश कर रहा होता तो शायद कथानक में रोमांच अधिक हो सकता था। अभी तो कथानक सपाट है। हमें पता है विष कन्या को क्या करना है और वह जिस तरह से उसे अंजाम देती है उसमें रोमांच तो कहीं महसूस नहीं होता है। हाँ, विष कन्यायें अपने कार्य को अंजाम कैसे देती हैं इसकी हल्की सी झलक देखने को मिलती है और यह कहानी विष कन्याओं के प्रति उत्सुकता जगाती है। कम से कम मेरी तो उत्सुकता जगी है और मैं इनके विषय में और अधिक जानकारी जुटाऊँगा।
कहानी का अंत सुखांत जरूर है लेकिन पढ़ते हुए मैं सोच रहा था कि किसी माँ बाप की सन्तान की मौत के लिए अगर कोई व्यक्ति जिम्मेदार हो तो क्या भविष्य में उनके मन में उस व्यक्ति की सन्तान के प्रति गुस्सा या वैमनस्य की भावना जागृत नहीं होगी। वैमन्सय जागृत होना प्राकृतिक है। ऐसे में दो पक्षों के बीच संधि होने पर भी ऐसे व्यक्ति की सन्तान को उन माँ बाप के घर शादी के बंधन में बांधकर में मैं तो नहीं भेजना चाहूँगा। लेकिन इधर ऐसा किया गया है जो कि मुझे अटपटा लगा। लेकिन फिर ये भी हो सकता है कि राजाओं के वक्त भावानयें अलग रही हों और वह इन बातों को जब्त कर जाते हों।
कॉमिक बुक में आर्टवर्क चंदू का है जो कि अच्छा है। मुझे पसंद आया।
अंत में यही कहूँगा कि विष कन्या के जहर का विषय जरूर रोचक है लेकिन कॉमिक बुक में रोमांच की कमी है। अगर रोमांच का पक्ष थोड़ा और मजबूत होता तो यह एक अच्छी कॉमिक बन सकती थी। फिलहाल यह एक अच्छे आइडिया पर बनी एक औसत कॉमिक बनकर ही रह गयी है। चाहें तो एक बार पढ़ सकते हैं।
कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि
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आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-10-2021) को चर्चा मंच "शरदपूर्णिमा पर्व" (चर्चा अंक-4223) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चाअंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार…