संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स बाय मनोज गुप्ता | शृंखला: डोगा #22
टीम:
लेखक: तरुण कुमार वाही | चित्रांकन: मनु | संपादक: मनोज गुप्ता
कहानी
फोन पर जब वह खबर इंस्पटेक्टर चीता को मिली तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी। बात ही ऐसी थी।
मुंबई शहर में इस समय एक ऐसी लक्जरी टूरिस्ट बस चल रही थी जिसमें मौजूद 40 सवारियों के ज़िंदगी खतरे में थी। उस लग्जरी बस में एक ऐसा बम लगा हुआ था जो बस की गति 50 किलोमीटर प्रतिघंटे से कम होने पर फट जाता।
बस को रोका नहीं जा सकता था और चलती बस से बम हटाना नामुमकिन था।
पर चीता और डोगा इस नामुमकिन काम को करने का बीड़ा उठा चुके थे।
आखिर किसने ये बम लगाया था?
क्या डोगा और चीता पर्यटकों को बचा पाए?
विचार
‘जबरदस्त’ डोगा की कॉमिक बुक है जो कि प्रथम बार राज कॉमिक्स द्वारा 1995 में प्रकाशित किया गया था। अब कॉमिक बुक राज कॉमिक्स द्वारा मनोज गुप्ता द्वारा प्रकाशित किया गया है।
90 के दशक में हिन्दी कॉमिक बुक्स और नोवेल्स में लेखक पश्चिम से प्रभावित होकर काफी कहानियाँ लिखते हैं। यह प्रभाव अंग्रेजी उपन्यासों के साथ साथ अंग्रेजी फिल्मों का भी रहता था। यही कारण है कई कॉमिक बुक्स और हिन्दी उपन्यासों के प्लॉट अंग्रेजी फिल्मों या अंग्रेजी उपन्यासों जैसे होते हैं। हाँ, लेखक कई बार प्लॉट की प्रेरणा इन पश्चिमी रचनाओं से तो लेते थे लेकिन उसमें भारतीयता का तड़का लगाना नहीं भूलते थे। प्रस्तुत कॉमिक बुक जबरदस्त भी ऐसे ही भारतीय तड़का लगी प्रेरणा लगता है। 1994 में स्पीड नाम से एक फिल्म आयी थी जिसमें एक व्यक्ति एक लग्जरी बस पर बम फिट कर देता है और फिर नायक को किसी तरह उस बस में रखे बम को फटने से बचाना होता है।
जबरदस्त का भी मुख्य प्लॉट यही है पर लेखक तरुण कुमार वाही ने भारतीय अंदाज में इसे अच्छे से ढाला है। आतंकवाद भारत की बड़ी समस्याओं में से एक रही है। भारत देश ने आतंकवाद की मार लगातार झेली है और आतंकवाद के लिए चाहिए होते हैं विनाशकारी हथियार। प्रस्तुत कॉमिक बुक के केंद्र में भी एक ऐसा ही विक्रेता है जिसे लोग ‘जबरदस्त’ के नाम से जानते हैं। वह जबरदस्त क्यों हैं और किस तरह से अपने हथियार बेचता है ये तो आप कॉमिक बुक पढ़कर जाने तो बेहतर है।
32 पेज के कॉमिक में छठवें पृष्ठ से लेकर 27वें पृष्ठ तक डोगा और चीता उस चलती हुई बस से जूझते दिखते हैं जिसमें कि बम फिट रहता है। यह पृष्ठ रोमांच से भरे हैं। चूँकि बस में कोई ऐसा भी रहता है जो इनका प्यारा है तो रोमांच अधिक बढ़ जाता है। यह दोनों इस दौरान पर्यटकों को बचाने के लिए क्या क्या करते हैं और अपनी कोशिशों में उन्हें क्या क्या सफलताएँ और असफलताएँ देखने को मिलती हैं यह देखने के लिए आप पृष्ठ पलटते चले जाते हैं। कॉमिक बुक के ये पेज तेज रफ्तार हैं और आपको बाँध कर रखते हैं।
कॉमिक बुक की कमी की बात करूँ तो इसकी कमी इसका अंत कहा जा सकता है। उपन्यास की शुरुआत खलनायक की एंट्री से होती है। यह खलनायक ‘जबरदस्त’ एक हथियार विक्रेता है और बस में रखा बम भी इसकी ही योजना रहती है। कॉमिक बुक के अंत में इस खलनायक और डोगा का टकराव होता है। जहाँ बस वाली कहानी तेज रफ्तार और रोमांचक है वहीं मुख्य खलनायक से डोगा का टकराव जल्दबाजी में खत्म किया गया लगता है।उनके बीच की मुठभेड़ में भी खलनायक डोगा के समाने कोई बड़ी चुनौती नहीं रख पाता है। अगर डोगा के लिए उससे पार पाना भी थोड़ा मुश्किल होता तो बेहतर रहता।
कॉमिक बुक के आर्ट की बात करूँ तो मनु द्वारा किया गया है। उनका आर्ट मुझे पसंद आता है और इस कॉमिक बुक में भी जो आर्ट है वो मुझे पसंद हैं।
अंत में यही कहूँगा कि भले ही यह कॉमिक बुक का अंत थोड़ा बेहतर हो सकता था लेकिन उसके बावजूद कॉमिक बुक रोमांच के मामले में आपको संतुष्ट करने की काबलियत रखता है। अगर नहीं पढ़ी है तो पढ़कर देख सकते हैं।
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