अपनी कमियों के बावजूद भी मनोरंजन करने में सफल होती है ‘बटलर’ | राज कॉमिक्स | तरुण कुमार वाही

 संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 64 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | लेखक: तरुण कुमार वाही | परिकल्पना: विवेक मोहन | सहयोग: संजय गुप्ता, अनुपम सिन्हा | चित्र: मनु | सुलेख व रंग: सुनील पाण्डेय | संपादक: मनीष गुप्ता | प्लैटफॉर्म: किंडल

कॉमिक बुक लिंक: अमेज़न

कहानी

मुंबई में दहशत का माहौल था। कई दिनों से रात को लोग गायब हो रहे थे और फिर उनका कुछ पता नहीं लग रहा था। 

वहीं दूसरी तरफ चिड़ियाघर और सर्कस के जानवर भी सुरक्षित नहीं थे। कोई था जो चिड़ियाघर जाकर जानवरों पर हमला कर रहा था और उनके शरीर से माँस गायब कर रहा था। 

मुंबई में हो रही ऐसी विभित्स घटनाओं ने डोगा को भी चिंतित कर दिया था। 

आखिर कौन था इन घटनाओं के पीछे? 

वह ऐसी हरकतें क्यों कर रहा था? 

क्या डोगा इन घटनाओं के पीछे मौजूद लोगों का पता लगा पाया?

मेरे विचार

डोगा की कॉमिक्स पढ़े हुए मुझे काफी वक्त हो गया था। ऐसे में जब यह कॉमिक्स किंडल पर दिखी तो इसे पढ़ने का लोभ मैं संवरण नहीं कर पाया। बटलर शीर्षक ने भी रुचि जगाई। बटलर शब्द जब भी सुनता हूँ तो एक अमीर घर में मौजूद सूट-बूट धारी बुजुर्ग का अक्सर मन में उभरता है। अक्सर बहुत अमीर लोगों के घरों में बटलर पाये जाते हैं। यह घर में कार्य करने वाले नौकरों में सबसे वरिष्ठ होते हैं जो घर के बाकी नौकरों से कार्य करवाते हैं। ऐसे में इस कॉमिक का बटलर से क्या लेना देना है यह देखना बनता था? हाँ, कॉमिक बुक के आवरण चित्र में एक शेफ नजर आ रहा है जो डोगा को मार रहा है और डोगा के पीछे नर मुंड पड़े दिख रहे हैं। ऐसे में आवरण देखकर यह मन में आया था इस शेफ का इस बटलर से क्या लेना देना है? और इस सवाल के साथ मैं इस कॉमिक्स को पढ़ने लगा। 
कॉमिक की शुरुआत खलनायक उर्फ बटलर की एंट्री से होती है। पाठको वो वह शिकार करते दिखता है जिसके बाद पाठक जान पाते हैं कि यह शिकार उसका पहला शिकार नहीं है । वहीं लोगों के गायब होने से जहाँ एक तरफ पुलिस परेशान है वहीं डोगा भी परेशान है। वह जीजान से लोगों के गायब होने का रहस्य जानने के पीछे लगा है लेकिन उसके हाथ खाक ही आती है। लेकिन जब एक सर्कस में हुई दुर्घटना से निपटने के लिए डोगा सर्कस पहुँचता है तो उसका टकराव खलनायक से होता है। यहाँ पर हम जानते हैं कि खलनायक न केवल क्रूर है बल्कि मक्कार भी है और इस कारण कॉमिक आपको बाँध लेती है। पाठक देखना चाहेगा कि डोगा कैसे इस मक्कार  खलनायक से पार पाएगा। 
 कहानी आगे बढ़ती है और इस बार बटलर की कारिस्तानी सूरज और मोनिका को भी अपने चपेट में लेती है। संयोग से कुछ ऐसा होता है कि डोगा को एक आध गलतफहमी के बावजूद इस खलनायक तक पहुँचने के तार मिलते जाते हैं।   वह उन्हे थामकर आगे बढ़ता है और खलनायक से भिड़ जाता है। यह भिड़ंत रोचक है और इसके पहले भाग में खलनायक डोगा पर भारी पड़ता दिखता है जो कि कहानी में रोमांच पैदा करता है। हाँ, दूसरे भाग में जब डोगा की भिड़ंत खलनायक से होती है वह इतनी जानदार नहीं रहती है। उधर भी डोगा को जरा मशक्कत करनी होती तो मज़ा आता।
कॉमिक में सूरज और मोनिका के बीच का समीकरण भी देखने को मिलता है जो कि कथानक को मनोरंजक बनाता है।
कथानक की कमी की बात करूँ तो एक दो छोटी छोटी बातें थीं जिन पर ध्यान देना चाहिए था। कॉमिक का नाम बटलर है और खलनायक से शेफ की ड्रेस पहनी रहती है। बटलर नाम के पीछे फिर भी कारण समझ आता है और कॉमिक में दिया है। लेकिन वह शेफ की पोशाक क्यों पहनता था इसके पीछे कोई मजबूत कारण नहीं दिया गया है। यह कारण दिया जाना चाहिए था।  
वहीं कथानक में संयोग काफी होते हैं। डोगा सर्कस में जाता है जहाँ बटलर से टकराता है। फिर सूरज के रूप में उसके साथ जो घटित होता है वह भी संयोग से होता है जो कि आगे के सबूत उसे मुहैया करवाता है। वहीं जब एक बार खलनायक डोगा को छकाकर निकल भागता है तो यह भी संयोग ही रहता है वह उससे उस जगह पर भिड़ रहा था जो कि संयोग से ऐसी जगह के नजदीक थी जिस पर उसे पहले से शक था। इसी संयोग से डोगा उस स्थान तक पहुँचता है जो कि निर्णयाक लड़ाई का मैदान बनता है। यह संयोग थोड़े कम होते तो अच्छे रहता। 
एक और बात थी जो कि मुझे खली। डोगा खलनायक की पहचान आखिर में जिस तरह से करता वह थोड़ा कमजोर लगा। भले ही यह काम एक ट्विस्ट देने के लिए किया हो लेकिन जो तरीका दर्शाया वह ज्यादा प्रभावशाली न बन सका।  यहाँ इससे ज्यादा कुछ कहना स्पॉइलर देना होगा। लेकिन इतना कहूँगा कि जिसके न होने से वह खलनायक को पहचानता है वह चीज पहले भी खलनायक के पास नहीं थी। शुरुआती फ्रेम्स में शायद आर्टिस्ट उसे बनाना भूल गया था। 
आर्टवर्क की बात करूँ तो आर्टवर्क मुझे पसंद आया। काफी तगड़ा है। ऊपर फ्रेम वाली बात छोड़ दें तो कथानक के साथ पूरा न्याय करता है। 
  
अंत में यही कहूँगा कि बटलर अपनी कमियों के बावजूद बटलर पाठक का मनोरंजन करने में सफल होती है। अगर कॉमिक बुक नहीं पढ़ी है तो एक बार सकते हैं।

कॉमिक बुक लिंक: अमेज़न

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “अपनी कमियों के बावजूद भी मनोरंजन करने में सफल होती है ‘बटलर’ | राज कॉमिक्स | तरुण कुमार वाही”

  1. यह कॉमिक्स मैंने सिर्फ और सिर्फ मनु सर की आर्ट के चलते खरीदा था, और उसी साल रात की रानी, भूल गया डोगा, डोगामार, बिक गया डोगा, मुंबई का बाप etc जैसी जबरदस्त सीरीज देखने को भी मिली थी !!

    1. मनु जी का आर्ट काफी अच्छा है। इन सभी को पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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