संस्करण विवरण
प्रकाशक: प्रिंस कॉमिक्स | पृष्ठ संख्या: 14 | लेखक: अंसार अख्तर | चित्रांकन एवं इंकिंग: प्रेम गुप्ता | डिजिटल कैलिग्राफी: एन बाबू | इफैक्ट्स एवं रंग: अभिषेक सिंह | संपादक: मोहित मिश्रा
कॉमिक बुक लिंक: फिक्शन कॉमिक्स
कहानी
उसने ग्यारह कंकाल एकत्रित कर लिए थे। अब उसे बारहवें कंकाल की तलाश थी।
आखिर वह कौन था?
उसे कंकाल की तलाश क्यों थी?
क्या वह अपनी तलाश पूरी कर पाया?
मेरे विचार
बारहवाँ कंकाल फिक्शन कॉमिक्स की डार्क फिक्शन शृंखला का कॉमिक बुक है। कॉमिक बुक की कहानी अंसार अख्तर द्वारा लिखी हुई है । प्रिंस कॉमिक्स के अब तक डार्क फिक्शन शृंखला की जितनी कहानियाँ पढ़ी हैं उन्हें पढ़कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके अंतर्गत जो कहानियाँ वह पाठकों को पेश कर रहे हैं वो पारलौकिक तत्व लिए हुए होते हैं। प्रस्तुत कॉमिक बुक बारहवाँ कंकाल में भी ये तत्व देखने को मिलते हैं।
कॉमिक बुक की कहानी की बात करूँ तो 13 पृष्ठ की यह कहानी काफी अच्छी बन सकती थी लेकिन बन नहीं पाई है। कहानी की शुरुआत एक लड़की के एक व्यक्ति के साथ उसके घर आने से होती है। यहाँ पर आपको पता लगता है असल में वह लड़का एक खूनी है जो कि औरतों के कंकाल इकट्ठे कर रहा है। वह लड़की भी कंकाल में बदल जाती है। उसका मिशन पूरा हो चुका था लेकिन फिर उसको एक और कंकाल ढूँढने की जरूरत पड़ जाती है। इसके बाद कथानक का आगे का भाग उसका ऐसी ही किसी औरत की तलाश में बीतता है जिसके जरिए वह यह बारहवाँ कंकाल प्राप्त कर सके। अपने लक्ष्य में कामयाब होने के लिए वह क्या क्या करता है और आखिर में उसके साथ क्या होता है यही कॉमिक का ज़्यादतर हिस्सा बनता है। कहानी के अंत में लेखक ने एक ट्विस्ट देने की कोशिश की है लेकिन वह भी उतना प्रभावी नहीं बन पड़ा है।
कथानक खत्म करने पर आपके मन में कई सवाल रह जाते हैं। मसलन, यह कंकाल क्यों इकट्ठा किये जा रहे थे? कंकाल की संख्या में वृद्धि क्यों की गयी? क्या कंकाल केवल लड़कियों के ही चाहिए थे? अगर हाँ तो क्यों? यह कंकाल लाने वाला युवक कौन था जिसके घर में राजसी लोगों की तस्वीर थी? उसका ऐसे कार्य में लिप्त होने के पीछे क्या कारण था?
उपरोक्त सभी अनुत्तरित सवाल कथानक में एक तरह से अधूरेपन का अहसास दिलाते हैं। वहीं जिस तरह से कॉमिक का अंत किया गया है वह भी ऐसा लगता है जैसे लेखक किसी परीक्षा स्थल पर कोई परीक्षा देते हुए इस कहानी को लिख रहा था और अचानक से परीक्षा समाप्त होने की घंटी बजी और उसके मन में जो आया उससे उसने इस कहानी का अंत कर दिया। कहानी का ट्विस्ट मौजूदा ट्विस्ट से काफी बेहतर हो सकता था।
आर्टवर्क की बात करूँ तो आर्टवर्क अच्छा है और कथानक के साथ न्याय करता है।
अंत में यही कहूँगा कि अगर लेखक और प्रकाशक कहानी में कुछ पृष्ठ जोड़कर अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर देते और इसके अंत पर अतिरिक्त कार्य कर उसे बेहतर बनाते तो यह एक अच्छा कॉमिक बन सकता था। अभी यह एक कमजोर कॉमिक बनकर रह जाता है।
कॉमिक बुक लिंक: फिक्शन कॉमिक्स
यही तो दिक्कत है आज के कॉमिक्स क्रियेटर्स के साथ ! 25-30 पेज लायक की एक सस्पेंसफुल-हॉरर्र स्टोरी हो सकती थी अगर इसे बैलेंस रखा जाता ! पर अफसोस !
जी सही कहा। पृष्ठ कम करने के चक्कर में दिक्कत हो गयी।
Really loved it in a very superior and enjoyful format. Thanks for sharing
Blogging Generation
Thanks…