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ब्रिटिश उपन्यासकार जॉन ले कार का 12 दिसम्बर 2020 को न्यूमोनिया से निधन हो गया। वे 89 वर्ष के थे।
जॉन ले कार का वास्तविक नाम डेविड जॉन मूर कॉर्नवेल था। 19 अक्टूबर 1931 को उनका जन्म इंग्लैंड की डोरसेट काउंटी के पूल नामक कस्बे में हुआ था। उनकी शुरूआती शिक्षा इंग्लैंड में ही हुई। 1948-49 के बीच उन्होंने स्विटज़रलैंड के बर्न विश्वविद्यालय में विदेशी भाषाओं की शिक्षा ली। 1950 में ब्रिटिश सेना की इंटेलिजेंस कॉर्प्स के लिए कार्य करते हुए उन्होंने जर्मन इंटरोगेटर के तौर पर कार्य किया।
1952 में इंग्लैंड लौटकर उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड के लिंकन कॉलेज में दोबारा पढ़ाई आरम्भ की। इसी दौरान उन्होंने ब्रिटिश सुरक्षा एजेंसी एम आई फाइव के लिए कार्य करना शुरू किया।
1954 में जब उनके पिता को दिवालिया घोषित कर दिया गया तो वह पढ़ाई छोड़कर एक विद्यालय में पढ़ाने चले गये जहाँ से एक साल बाद लौटकर उन्होंने 1956 अपनी शिक्षा पूरी करी और प्रथम श्रेणी से परीक्षा उत्तीर्ण करी। इसके पश्चात उन्होंने दो वर्षों तक एटन कॉलेज में फ्रेंच और जर्मन की शिक्षा दी और आखिरकार 1956 में वे ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एम आई फाइव के अफसर बन गये। एम आई फाइव के लिए कार्य करते हुए ही जॉन ले कार ने अपना पहला उपन्यास ‘कॉल फॉर द डेड'(1961) लिखना शुरू किया।
1960 में जॉन ले कार का तबादला एम आई सिक्स में हुआ। यहाँ रहकर उन्होंने अपना दूसरा उपन्यास ‘अ मर्डर ऑफ़ क्वालिटी’ (1961) जो कि एक रहस्य कथा थी लिखा। एम आई सिक्स के लिए कार्य करते हुए ही उन्होंने अपना तीसरा उपन्यास ‘अ स्पाई हु केम इन फ्रॉम द कोल्ड'(1963) लिखा। ‘अ स्पाई हु केम इन फ्रॉम द कोल्ड’ ही वह उपन्यास था जिसने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई। चूँकि वह सुरक्षा एजेंसी में कार्यरत थे तो उनके असल नाम से चीजें प्रकाशित करने में प्रतिबन्ध था इसलिए उन्हें अपनी रचनाएँ जॉन ले कार के छद्दम नाम से प्रकाशित करनी पड़ी।
1964 में जब किम फिल्बी द्वारा रूस की सुरक्षा एजेंसी के जी बी के समक्ष कई एम आई सिक्स के एजेंट्स की पहचान उजागर कर दी गयी तो इन्हें भी पहचान खुल जाने के कारण अपनी नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा और वह पूरी तरह से लेखन के कार्य में जुट गये।
जहाँ जॉन ले कार के पहले दो उपन्यास रहस्य कथाएँ थीं वहीं इसके बाद लिखे गये उनके ज्यादातर उपन्यास गुप्तचरी के इर्द गिर्द ही लिखे गये थे। जॉन ले कार के ज्यादातर उपन्यासों की पृष्ठभूमि शीतयुद्ध के दौरान की ही हैं।
उनके लेखन की ख़ास बात यह भी है कि उनके जासूसी उपन्यासों में जासूसी के मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। उनके उपन्यास में हिंसा बेहद कम होती थी और दिमागी उठा पठक ज्यादा दिखाई देती थी। जासूसी का यह यथार्थवादी चित्रण उस वक्त प्रचलित ऐसे गुप्तचरी के उपन्यासों से बिल्कुल अलग था जिसमें फंतासी के तत्व ज्यादा होते थे। इस कारण उनकी रचनाओं से गुप्तचरी का एक नया स्वरूप पाठकों को देखने को मिला था।
उन्होंने अपने जीवन काल में पच्चीस के करीब उपन्यास लिखे हैं जिनमें से कईयों के ऊपर फिल्म और टेलीविज़न सीरियल का निर्माण भी हुआ है। 2019 में प्रकाशित ‘एजेंट रनिंग इन द फील्ड’ मृत्यु पूर्व उनकी आखिरी प्रकाशित किताब है ।
अपने जीवन काल में लेखन के लिए जॉन ले कार को कई सम्मानों से भी नवाजा गया। वहीं लेखन के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें कई विश्वविद्यालयों द्वारा मानद उपाधियाँ भी प्रदान की गयीं।
प्रमुख रचनाएँ: कॉल फॉर दी डेड(1961), अ मर्डर ऑफ़ क्वालिटी(1962), अ स्पाई हु केम इन फ्रॉम द कोल्ड(1963), द लुकिंग ग्लास वार(1965),टिंकर सेलर सोल्जर स्पाई (1965),द होनोरेब्ल स्कूल बॉय(1977),स्माइलीस पीपल(1979),द लिटिल ड्रमर गर्ल(1983), द नाईट मेनेजर(1993), द टेलर ऑफ़ पनामा (1996), द कांस्टेंट गार्डनर(2001), अ मोस्ट वांटेड मैन(2008), आवर काइंड ऑफ़ ट्रेटर (2010),एजेंट रनिंग इन द फील्ड(2019)
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
RIP🙏