संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई-बुक | एएसआईएन: B0969NK8VD
किताब लिंक: अमेज़न
कहानी:
अनिरुद्ध पाठक हिन्दी अपराध साहित्य का एक जाना माना नाम था। जहाँ सभी प्रकाशक उसके उपन्यास प्रकाशित कर पाने की चाहत रखा करते थे वहीं पाठक उसके नवीन उपन्यासों का बेसब्री से इन्तजार करते थे।
और यह सब कुछ केवल अनुराग अस्थाना के कारण ही मुमकिन हो पाया था।
अनुराग आस्थाना अनिरुद्ध पाठक का रचा ऐसा किरदार था जिसने उसे अपराध साहित्य की दुनिया में बुलंदी पर विराजमान करवा दिया था।
परन्तु यह सब पाने के बावजूद अनिरुद्ध परेशान चल रहा था। उसकी जिंदगी बुरे हादसों की एक कड़ी बनती चली जा रही थी। उसका परिवार हो, उसकी प्रेमिका हो या उसका लेखन हो। अब कोई भी सुरक्षित न था। अनिरुद्ध जानता था कि अगर जल्दी यह हादसे न रुके तो उसको बर्बाद होने से कोई नहीं रोक सकता था।
और अनिरुद्ध को लगता था कि इन सबका उसके किरदार अनुराग आस्थाना से कुछ सम्बन्ध था।
आखिर अनिरुद्ध को ऐसा क्यों लगता था?
क्या असल में उसका लिखा काल्पनिक किरदार उसके दुर्भाग्य की वजह बन गया था?
क्या अनिरुद्ध अपनी परेशानियों से निजाद पा पाया?
मेरे विचार:
चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जब अपने पाठकों के लिए कुछ लेकर आते हैं तो यह अब तय होता है कि वह कुछ अच्छा ही होगा। अपने नवीनतम उपन्यास अनहोनी में भी वो अपने पाठकों की इस अपेक्षा पर खरे ही उतरते हैं।
अनहोनी मूल रूप से एक परालौकिक रोमांचकथा (paranormal thriller) है जिसमें रहस्यकथा (mystery) के गुण भी मौजूद है। लेखक परलौकिक तत्वों का इस्तेमाल कर कहानी में रहस्य और रोमांच दोनों ही को बरकरार रखने में सफल हुए हैं।
सैम कौन है? वह अनिरुद्ध के विषय में इतना कैसे जानता है? वही अनिरुद्ध के साथ हो रही घटनाओं के पीछे किसका हाथ है? यह सब प्रश्न पाठक को उपन्यास पृष्ठ पलटते जाने के लिए मजबूर कर देते हैं।
जैसे जैसे आप कथानक पढ़ते चले जाते हैं आप जान पाते हैं कि सैम भी अपनी एक अलग मुसीबत से जूझ रहा है। वह किसी की तलाश में है और उसके तार भी अनिरुद्ध को हो रही परेशानी से जुड़े होते हैं। यह दोनों किरदार किस तरह से अपनी अपनी परेशानियों से निजाद पाते हैं और ऐसा करने में इन्हें क्या क्या करना पड़ता है यही उपन्यास का कथानक बनता है जो कि अंत तक आप पर अपनी पकड़ बनाये रखता है।
उपन्यास के किरदारों की बात करूँ तो वह कथानक के अनुरूप बन पड़े हैं। चिरईया का किरदार मुझे विशेष तौर पर पसंद आया है। पाठक के रूप में मैं उससे एक और बार जरूर मिलना चाहूँगा।
उपन्यास में वेदांता पैरा नोर्मल सोसाइटी का अपना महत्व है। इसके सदस्य कहानी में महत्वपूर्ण किरदार निभाते हैं। मुझे इस संस्था ने भी काफी प्रभावित किया है। इस उपन्यास में इस संस्था के विषय में लेखक थोड़ा बहुत तो बताते हैं लेकिन फिर भी काफी कुछ बताने के लिए रह जाता है। मसलन सदस्यों द्वारा पहनी गयी विशेष पौशाक का महत्व क्या है? यह चीज अभी कथानक से उभर कर नहीं आई है। फिर ऐसे कई मामले होंगे जिससे संस्था के दुनिया भर में फैले सदस्य दो चार होते होंगे। ऐसे में मैं चाहूँगा कि इस संस्था के दूसरे मामलों को भी लेखक कलमबद्ध करे और एक श्रृंखला के तौर पर उसे विकसित करें। उम्मीद है लेखक इस संस्था से जुड़े एजेंट्स के अन्य कारनामें भी पाठकों तक लाएँगे।
लेखक चन्द्रप्रकाश पाण्डेय परालौकिक तत्वों का विवरण जिस तरह से देते हैं वह भी रोचक रहता है। अलग अलग उपन्यासों में अलग अलग तरह से वह विवरण देते हैं। इस उपन्यास में भी सैम और वशिष्ठ साहनी के बीच चंदानी गाँव में आत्मा और ऊर्जा से जुडी हुई बातचीत होती है। विज्ञान के मापदंड पर आत्मा का विवरण करना मुझे भाया था। उनका इस हिस्से को लिखने के प्रोसेस के विषय में जरूर जानना चाहूँगा।
उपन्यास मुझे पसंद तो आया है लेकिन इसमें कुछ ऐसी चीजें भी है जो कि मुझे लगता है और बेहतर हो सकती थी।
सबसे पहली चीज तो यही है कि कहानी संयोग पर टिकी हुई है। असल जीवन में संयोग होना आम बात हैं लेकिन जब गल्प में संयोग होता है तो उसे पचाना मेरे लिए मुश्किल सा हो जाता है। सैम का अनिरुद्ध तक पहुँचना एक संयोग ही रहता है। सैम आखिर होस्पिटल में क्या कर रहा था यह बात आखिर तक लेखक द्वारा नहीं बताई जाती है। शायद यह एक संयोग था कि वह उधर मौजूद था। कथानक से तो ऐसा ही प्रतीत होता है। वहीं उपन्यास का एक किरदार बंसती है जिसके आने से सारे घटनाक्रम में बदलाव आ जाता है। उसका भी सैम से ही टकराना एक संयोग ही रहता है। कहानी के दो महत्वपूर्ण बिन्दुओं का इस तरह संयोग पर आधारित होना मुझे इतना ठीक नहीं लगा। अगर लेखक कुछ बेहतर विकल्प सोचते तो शायद कथानक और अच्छा हो सकता था।
कहानी में एक छोटा सा प्लाटहोल भी मुझे लगा। हंसराज पाणिनी पहले कहता है कि उसके घर अनिरुद्ध की किताबों के कई संस्करण पड़े हुए हैं क्योंकि उसकी बीवी उसकी फैन है लेकिन फिर बाद में अनिरुद्ध से उसकी लिखी किताबें मँगवाता है ताकि वह उन्हें पढ़कर मामले को जाँच सके। यह बात बेतुकी लगी। अगर उसकी पत्नी उसकी फैन थी तो कम से कम उसके पास अनुराग अस्थान श्रृंखला के चार उपन्यास तो होने ही चाहिए थे जिन्हें वह मँगवाकर कहानी पढ़ सकता था। क्योंकि यह वो उपन्यास थे जिन्होंने अनिरुद्ध को प्रसिद्ध किया था।
हाँ, बातचीत के शुरुआत में वह अनिरुद्ध द्वारा हस्ताक्षर की गयी कॉपी अपनी पत्नी को गिफ्ट देने के लिए जरूर कहता है लेकिन मामले की गम्भीरता को देखते हुए मुझे नहीं लगता कि कोई भी डॉक्टर इस काम को पहले तवज्जो देगा। एक परेशान हाल शख्स जो ठीक होने के लिए आपके पास आया उससे ही उसकी किताब मँगवाना जबकि उसके पास किताबें रहती हैं मुझे एक डॉक्टर के किरदार से मेल खाती बात नहीं लगी। अगर मैं डॉक्टर की जगह होता तो शायद अपनी पत्नी से पहले अनुराग के विषय में बातचीत करके चीजें समझ लेता या घर से ही किताबें मँगवा लेता और फिर पत्नी से बातचीत करता।
“…आपके नाम से मेरी वाकिफियत की वजह ये ही कि मेरी श्रीमती जी आपकी बहुत बड़ी प्रशंसक हैं। उनके कलेक्शन में आपकी सारी किताबों के कई कई एडिशन मौजूद हैं।” (36%)
“मुझे थोड़ा वक्त दीजिये। और हाँ, अनुराग अस्थाना सीरीज की सारी किताबें मुझे भिजवा दीजिये, मैं उस करैक्टर को स्टडी करना चाहता हूँ।” (46%)
इसके अलावा कहानी में बीच बीच में कुछ प्रूफ की कुछ गलतियाँ भी हैं जो जिन्हें अपडेट कर ठीक किया जा सकता है। ई-बुक यह सुविधा आपके देती है।
उपन्यास का एक कमजोर पहलू मुझे कहानी का अंत भी लगी। उपन्यास में चिरईया एक खतरनाक किरदार है जिसे मुझे लगता है अंत में पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया गया है। वह जितनी शक्तिशाली है उतना विकराल नहीं दर्शाई गयी है। वहीं कहानी में एक प्रसंग नरबलि का है। चिरईया और नरबलि वाले प्रसंग को लेकर कहानी का अंत और रोमांचक बनाया जा सकता था जो अभी उतना रोमांचक नहीं बन पड़ा है। अंत में पीछे की कहानियाँ ही ज्यादा चलती हैं जो कि थोड़ा बोर करती हैं। मुझे लगता है कहानी का मुख्य क्लाइमेक्स चंदानी गाँव में घटित होता तो एक बेहद रोमांचक अंत बन सकता था। अभी क्लाइमेक्स का मुख्य हिस्सा वेदान्ता संस्था के दफ्तर में होता है और चंदानी गाँव में बस उपसंहार सा घटित होते हुए दिखता है।
यह कुछ ऐसी बातें थी जो एक पाठक के रूप में मुझे लगता है और बेहतर हो सकती थी। इनमें सुधार हो सकता था। मुझे लगता है यह एक अच्छे उपन्यास को बेहतरीन उपन्यास में तब्दील कर सकती थीं।
अंत में यही कहूँगा कि अनहोनी एक पठनीय उपन्यास है जो शुरू से लेकर अंत तक आपको बाँध कर रखता है। कथानक कसा हुआ है और लेखक कथानक में सस्पेंस और रोमांच बरकरार रखने में कामयाब हुए हैं। मुझे उपन्यास पसंद आया है और अगर आपने नहीं पढ़ा है तो मैं चाहूँगा आप इसे एक बार पढ़ें। आप निराश नहीं होंगे।
उम्मीद है लेखक पाठकों को चिरईया और वेदांता पैरानोर्मल संस्था से जल्द ही दोबारा मिलवायेंगे।
किताब लिंक: अमेज़न
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अच्छी समीक्षा है।
जी आभार…..
आपकी समीक्षा ने तो उपन्यास को पढ़ने की लालसा जगा दी है विकास जी। आशा है, अब तक आप वेद प्रकाश शर्मा का उपन्यास 'जिगर का टुकड़ा' पढ़ चुके होंगे। एक बात और बताइए – क्या आपने 'कार्तिक कॉलिंग कार्तिक' नाम की हिंदी फ़िल्म देखी है जिसमें फ़रहान अख़्तर ने केन्द्रीय भूमिका निभाई है?
जी आभार सर। पढ़िएगा उपन्यास। नहीं वेद जी का उपन्यास जिगर का टुकड़ा अभी तक नहीं पढ़ा है। असल में वेद जी के कम ही उपन्यास मैंने पढ़े हैं। अभी किंडल अनलिमिटेड में नसीब मेरा दुश्मन डाउनलोड किया है। देखते हैं वह कैसी रहेगी।
जी कार्तिक कालिंग कार्तिक मैंने देखी हुई है। अच्छी फिल्म थी।
आपकी समीक्षा से पाण्डेय जी का
'आवाज' उपन्यास पढा।
पहली बार लगा की हिंदी हाॅरर में सार्थक कहानियाँ भी हैं।
रोचक उपन्यास था।
'अनहोनी' भी पढने का प्रयास रहेगा।
दिलचस्प समीक्षा के लिए धन्यवाद।
उपन्यास पर आपकी टिप्पणी का इंतजार रहेगा।
Sounds intriguing! I like mysterious/paranormal stories, however, as you said, too many coincidences make the story a bit implausible.
Very nice review. I like how you mention the characters.
Just a bit. But i'm sure you'll like it. You should give it a go. I would love to read your views on the book. Other works of writer are also good. He is trying something new in this genre as compared to other works present in hindi.
समीक्षा के बाद अब उपन्यास की ओर…
आपके विचारों का इंतजार रहेगा….