संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 360 | प्रकाशक: सूरज पॉकेट बुक्स | श्रृंखला: देवराज चौहान
किताब लिंक: पेपरबैक | किंडल
पहला वाक्य:
ए सी पी कौल ने थके और भारी क़दमों से जेलर के कमरे में कदम रखा और कुर्सी घसीट कर बैठ गया।
कहानी:
बड़ा खान एक आतंकवादी संगठन का सरगना था जिसका संगठन भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ करा करता था। जब्बार मलिक बड़ा खान का ख़ास आदमी था जिसने उसके लिए कई ऐसी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया था।
जम्मू पुलिस ने जब जब्बार मलिक को पकड़ा तो उन्हें लगा था कि वह अब बड़ा खान तक पहुँच जायेंगे। लेकिन अपनी लाख कोशिशों के बावजूद वह जब्बार मलिक का मुँह नहीं खुलवा पाए थे।
अब दिल्ली से इंस्पेक्टर सूरजभान यादव को जम्मू भेजा जा रहा था। जब्बार मलिक ने दिल्ली में भी आंतकवादी गतिविधियाँ की थी और दिल्ली पुलिस उसे किसी भी हालत में फरार नहीं होने देना चाहती थी। इंस्पेक्टर सूरजभान यादव एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट था जिसने अब तक 32 से ज्यादा अपराधियों के एनकाउंटर कर दिए थे। अब उसी के ऊपर जब्बार से जानकारी निकालने की जिम्मेदारी आयद थी।
परन्तु जम्मू जो व्यक्ति पहुँचा वह सूरजभान यादव नहीं बल्कि देवराज चौहान था। अब देवराज चौहान सूरजभान बनकर जब्बार मलिक से मिल रहा था। उसने एक योजना बना रखी थी जिससे जम्मू पुलिस डिपार्टमेंट भी अंजान थी।
आखिर देवराज चौहान क्यों जब्बार मलिक से मिल रहा था?
वह सूरजभान यादव बना जम्मू में क्या कर रहा था?
असल सूरजभान यादव कहाँ था?
बड़ा खान – एक आतंकवादी संगठन का सरगना
जब्बार मल्लिक – बड़ा खान का आदमी
देवराज चौहान – डकैती मास्टर
इंस्पेक्टर सूरजभान यादव – दिल्ली पुलिस का एनकाउंटर स्पेशलिस्ट
सुधा – सूरजभान यादव की पत्नी
अनीस – बड़ा खान का आदमी
ए सी पी संजय कौल – जम्मू पुलिस का ए सी पी
राधे श्याम शर्मा – अब इंस्पेक्टर
सुधीर लाल – जेलर
जगमोहन – देवराज चौहान का साथ
पारस नाथ – दिल्ली में देवराज चौहान का साथी
डिसूजा – पारस नाथ का साथी
राठी – जम्मू में मौजूद ड्रग सप्लायर जिसके ऊपर इंस्पेक्टर सूरजभान यादव के अहसास थे
कलाम – राठी का आदमी
भूपेन्द्र कालिया – राठी का आदमी
जूबी – एक युवती जो कि बड़ा खान के लिए काम करती थी
राशिद और मस्तान – बड़ा खान के खास लोग
शौकत – राठी का आदमी
रौशनआरा जहाँ – कश्मीर में लड़कियों का काम करने वाली एक महिला
अब्दुल करीम – बड़ा खान का आदमी जो उसके होटल चलाता था
इफ्तिखार – बड़ा को हथियार बेचने वाला व्यक्ति
मुन्ना खान – बड़ा खान का आदमी
मेरे विचार:
भारत की सबसे बड़ी समस्याओं की बात की जाए तो उनमें आतंकवाद ऐसी समस्या है जिसका नाम सबसे ऊपर मौजूद समस्याओं में से एक रहेगा। आज़ादी के बाद अलग अलग कालखण्ड में भारत के अलग अलग हिस्से आतंकवाद से पीड़ित रहे हैं लेकिन कश्मीर एक ऐसी जगह है जहाँ आतंकवादी गतिविधियाँ सबसे ज्यादा होती रही हैं। पड़ोसी मुल्क की शह पाकर आतंकवादी उधर आते रहे हैं और धरती पर स्वर्ग कहे जाने वाली जगह को अपने खूनी कारनामों से बदनाम करते आये हैं।
प्रस्तुत उपन्यास खाकी से गद्दारी के केंद्र में भी कश्मीर की आतंकवाद समस्या ही है। यह डकैती मास्टर देवराज चौहान श्रृंखला उपन्यास जरूर है लेकिन इसमें वह डकैती न डालकर एक आतंकवादी संगठन के खिलाफ लड़ता दर्शाया गया है।
उपन्यास का मुख्य खलनायक बड़ा खान नाम का आतंकवादी है जो कि एक आतंकवादी संगठन का सरगना है। पाकिस्तान से आये बड़ा खान का एक ही उद्देश्य है भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ करते रहना। लेकिन वह यह गतिविधि मुफ्त में नहीं करता है। वह एक ऐसा संगठन चलाता है जो कि पैसे लेकर दूसरे संगठनों के लिए कार्य करता है। यानी आतंकवादी गतिविधि तो बड़ा खान का संगठन करता है लेकिन नाम उस संगठन का होता है जिसने उन्हें पैसे दिए हैं। उसके आदमी हर संस्था में मौजूद हैं और पैसे लेकर बड़ा खान की मदद करते हैं। वहीं बड़ा खान कौन है यह कोई नहीं जानता। उसका केवल नाम ही चलता है।
प्रस्तुत उपन्यास में देवराज चौहान इसी बड़ा खान से टकराते हुए पाठकों को दिखता है। वह जम्मू में इंस्पेक्टर सूरजभान यादव के रूप में आता है और बड़ा खान के ख़ास आदमी जब्बार मलिक से जेल में मिलने लगता है। वह जम्मू क्यों आया है और उसने सूरजभान यादव की पहचान क्यों ली है यह प्रश्न पाठक को उपन्यास के पृष्ठ पलटने के लिए मजबूर कर देता है।
जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है देवराज चौहान और बड़ा खान के बीच की लड़ाई गहरी होती जाती है। बड़ा खान की पहुँच कहाँ कहाँ तक है यह बात कहानी बढ़ने पर पाठकों को पता चलती जाती है।
उपन्यास का ज्यादातर हिस्सा देवराज की बड़ा खान तक पहुँचने की कवायद में गुजर जाता है। वह यह कार्य करने के लिए कई योजनायें बनाता है। इन योज्नाओं में जगमोहन उसका पूरा साथ देता है। यह योजनायें क्या रहती हैं और किस तरह इनका किर्यांवन होता है यह पढ़ना कथानक में रोचकता बनाये रखता है। वहीं आखिरी 60-70 पृष्ठों में कथानक तेजी से समापन की ओर भागता है। किरदारों के बीच काफी उठक पटक होती है और बड़ा खान क्यों बड़ा खान है और देवराज चौहान क्यों देवराज चौहान है यह भी देखने को मिलता है।यानी पाठक का भरपूर मनोरंजन होता है।
उपन्यास की कमियों की बात करूँ तो कमी के मामले में इक्का दुक्का चीजें ही हैं। कश्मीर के बाशिंदे सहायता, चेष्टा जैसे हिन्दी शब्द बोलते दर्शाए गये हैं जो कि थोड़ा सा अजीब लगता है। इक्का दुक्का जगह प्रूफ की छोटी मोटी गलतियाँ भी हैं जो कि सुधारी जा सकती थी। उदाहरण के लिए पृष्ठ 277 देखिये:
“ये तो हो ही नहीं सकता कि तुम बड़ा खान से मिलने वालों में से किसी को भी न जानते होगे।”
“रोशनआरा जहाँ?” जगमोहन के होंठ सिकुड़े, “ये कौन सी जगह है?”
ऊपर दिए संवाद में बीच का संवाद गायब लगता है। ऐसे ही कुछ जगह नामों में गलती की है जो कि पढ़ते हुए थोड़ा खटकता है। उपन्यास में जिस तरह से बड़ा खान का अंत हुआ भी वह थोड़ा बेहतर हो सकता था।
अंत में यही कहूँगा खाकी से गद्दारी एक ३६० पृष्ठ का वृहद कलेवर वाला उपन्यास है जो कि कहीं भी बोर नहीं करता है। अगर आप देवराज चौहान के प्रशंसक हैं तो एक बार इस उपन्यास को पढ़ना बनता है।
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
अब रेटिंग क्यो नही देते?
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मै आपके ब्लॉग पर एक बुक रिव्यू भेजना चाहता हूं।
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थैंक्यू
आभार….