एक नर्स की डायरी – निमाई भट्टाचार्य | अनुवाद: कुमार नीलाभ | डायमंड बुक्स

एक नर्स की डायरी - समीक्षा

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 136 | प्रकाशक: डायमंड बुक्स | अनुवादक: कुमार नीलाभ

पुस्तक लिंक: अमेज़न

कहानी

ईशानी एक नर्स है जो कि कालना कस्बे के अस्पताल में काम करती है। अस्पताल में ड्यूटी देना और ड्यूटी देकर अपने हॉस्टल आना ही उसकी दिनचर्या में शामिल है।
ईशानी अपनी जिंदगी से खुश नहीं है। उसे लगता है कि उसकी ज़िंदगी में कभी खुशी आ भी नहीं सकेगी।
आखिर ईशानी अपनी ज़िंदगी से खुश क्यों नहीं है?
ईशानी को ऐसा क्यों लगता है कि उसकी ज़िंदगी में अब खुशियाँ नहीं आएँगी?

विचार

‘एक नर्स की डायरी’ निमाई भट्टाचार्य के बांग्ला उपन्यास ‘अनुरागिनी’ का हिंदी अनुवाद है। उपन्यास डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है।  अनुवाद कुमार नीलाभ द्वारा किया गया है और अच्छा हुआ है।
‘एक नर्स की डायरी’ जैसे नाम से ही जाहिर होता है एक डायरी शैली में लिखा गया उपन्यास है। अंग्रेजी में ऐसे उपन्यास को, जहाँ कथानक को डायरी, चिट्ठी या दस्तावेजों के माध्यम से बढ़ाया जाता है,  अपिस्टलरी उपन्यास कहा जाता है। उपन्यास में ईशानी की डायरी के अंश पाठक को पढ़ने को मिलते हैं। इन डायरी एंट्रियों के माध्यम से उपन्यास की नायिका ईशानी के गुजरे और वर्तमान जीवन से पाठक का परिचय करवाया जाता है।  यह डायरी 9 मई से 27 अक्टूबर तक के बीच की है।
उपन्यास के शुरुआत में हमें पता चलता है कि ईशानी एक अस्पताल में नर्स है। यह अस्पताल एक छोटे से कस्बे कालना में मौजूद है। वह अपनी ज़िंदगी से खुश नहीं है और न उसे ये उम्मीद है कि अब उसकी ज़िंदगी में खुशी आएगी। जैसे जैसे डायरी आगे बढ़ती है वैसे वैसे ईशानी की एंट्रियों के माध्यम से उसके गुजरे जीवन के विषय में पता लगता है। यह जानने के लिए कि, उसके गुजरे जीवन में ऐसा क्या हुआ जिसके कारण वह यह समझती है कि अब खुशी उसके द्वार पर नहीं आएगी, आप उपन्यास के पृष्ठ पलटते चले जाते हैं। लेखक ईशानी की वर्तमान ज़िंदगी के साथ साथ उसकी गुजरी ज़िंदगी के हिस्से भी इस तरह से खोलते हैं कि आपके अंदर यह जानने की उत्कंठा रहती है कि ईशानी, जो कुछ समय पहले इतनी हँसी खुशी में अपनी ज़िंदगी बिता रही थी, ऐसे दुखी क्यों रहने लगी।
उपन्यास के अधिकतर हिस्से को ईशानी के गुजरे जीवन पर ध्यान केंद्रित किया है। जब उसके जीवन से जुड़े सभी गुजरे पहलू पाठक के सामने उजागर हो जाते हैं तब लेखक नर्सों के जीवन पर  ध्यान केंद्रित करते हैं। नर्स कैसे और क्यों इस कार्य को करने आई हैं। ऐसा नहीं है कि  हर नर्स दुखी होकर ही इस पेशे में आती है लेकिन ईशानी के अनुभव में काफी दुखी लड़कियाँ रहती हैं जिन्होंने दुखी और मजबूर होने के कारण इस पेशे को अपनाया है। उनकी क्या परेशानियाँ हैं? उनके क्या दुख हैं? यह लेखक दर्शाने में सफल होते हैं। इसके साथ साथ वह खुशहाल नर्स के कुछ उदाहरण भी देते हैं जो यह दर्शाता है कि सब कुछ विषादपूर्ण इधर नहीं है। डॉक्टर और नर्स के बीच में अस्पताल में अक्सर कैसी सामाजिक खाई बनी रहती है यह भी इधर वो दिखाते हैं। वहीं वो ऐसे चिकित्सकों का भी उदाहरण देते हैं जो कि भले ही संख्या में कम हो लेकिन वो इस खाई को पाटने की कोशिश करते हैं।
अस्पताल में मरीज बेबसी की हालत में आता है। वह नर्सों पर निर्भर रहता है। कई बार इस दौरान उनके बीच एक रिश्ता सा पनप जाता है। पर अक्सर मरीजों का यह व्यवहार अस्तपाल से निकलते ही बदल जाता है। यह भी  इधर  दिखता है। जैसे जैसे नर्स अनुभवी होती जाती हैं वह यह चीजें समझ जाती हैं लेकिन फिर भी कैसे इस कारण कभी कभार उन्हें दुख सहना पड़ता है यह भी इधर दिखता है।
चूँकि यह डायरी शैली में लिखा गया उपन्यास है तो किरदारों के विषय में अधिकतर बताया ही गया है। ऐसे में वह उतने विकसित नहीं हो पाते हैं। यह इस शैली में लिखे गए उपन्यास की कमी होती है। इसके अतिरिक्त ईशानी काफी समय से अस्पताल में नौकरी कर रही थी। ऐसे में ऐसा क्या हुआ कि वह अपनी डायरी लिखने लगी? यह एक ऐसी बात है जिसके लिए लेखक कोई पुख्ता कारण नहीं देते हैं। अगर इसके लिए पुख्ता कारण देते तो बेहतर होता क्योंकि अभी वो ट्रिगर बिंदु नहीं दिखता है जिसके चलते ईशानी अपनी गुजरी ज़िंदगी को दर्ज करने के लिए विवश सी हो गयी थी।
यह उपन्यास सहज सरल भाषा में लिखा गया है जिससे उपन्यास की पठनीयता बनी रहती है। संस्करण की बात करूँ तो संस्करण में कुछ कुछ वर्तनी की गलतियाँ हैं जो कि पढ़ने की लय को बिगाड़ती हैं पर वो इतनी अधिक नहीं है कि ज्यादा असर डालें।
उपन्यास का बांग्ला शीर्षक अनुरागिनी था जिसका अर्थ है कि वो जिसे किसी से प्रेम हो। उपन्यास में ईशानी को भी एक व्यक्ति से प्रेम रहता है लेकिन वह प्रेम उतना उभर कर आ नहीं पाता है। मुझे लगता है कि यह प्रेम थोड़ा और उभारना चाहिए था। हाँ, एक जगह बस एक डायलॉग आता है जिसमें ईशानी कहती है कि वो उस व्यक्ति की अनुरागिनी बन गयी है। हिंदी अनुवाद के नाम की बात करें तो मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि ‘एक नर्स की डायरी’ के बजाए अगर नाम ‘ईशानी’ होता तो बेहतर होता। अभी ‘एक नर्स की डायरी’ से ऐसा लगता है जैसे उपन्यास मुख्यतः नर्सिंग क्षेत्र के विषय में हो पर ऐसा नहीं है। उपन्यास मुख्यतः ईशानी के गुजरे जीवन के विषय में है और आखिर के एक दो अध्याय ही नर्सिंग से जुड़े हुए होते हैं। ऐसे में यह शीर्षक आकर्षक तो है लेकिन एक गलत अपेक्षा पाठक के मन में जगाता है। मुझे लगता है कि ‘ईशानी’ नाम इस पर सटीक बैठता है।
अंत में यही कहूँगा कि ‘एक नर्स की डायरी’ एक पठनीय उपन्यास है। ईशानी के जीवन गाथा आपके मर्म को छू जाती है और साथ ही नर्सों की दुनिया से यह आपका संक्षिप्त रूप से परिचय करवाने में भी सफल होता है। अगर नहीं पढ़ा है तो एक बार पढ़कर देख सकते हैं।
उपन्यास के कुछ अंश जो पसंद आए:
“देख दीदी भाई , किसी भी इनसान की ज़िंदगी बराबर एक जैसी नहीं रहती। इनसान चाहे कितना भी सुखी क्यों न हो, उसकी ज़िंदगी में भी दुख आता है… और दुखियों की ज़िंदगी में भी सुख के दिन आते हैं।”
मैं पेट के बल लेटकर दादी माँ की बातें सुनती रहती हूँ।
“सावन-भादों की बारिश जैसे लगातार नहीं चलती, ठीक वैसे ही शरद ऋतु भी बराबर नहीं होती है।”
दादी माँ एक गहरी साँस छोड़कर कहती हैं- “और जो इनसान इस चरम सत्य को खुशी-खुशी मान सकता है, सिर्फ वो इनसान ही ज़िंदगी में सुख का हकदार होता है।”
दादी माँ यह बात ही हजारों तरीके से समझाती थी।
इस दुनिया में सिर्फ इनसान ही एक ऐसा जीव है, जो हर मौसम को उपभोग करना जानाता है। इनसान कभी भी सुख या दुख में अपने आपको बहा नहीं देता है।इनसान दुख के दिनों को शायद भूल नहीं पाता है.., फिर भी वो भविष्य की तरफ आगे बढ़ता रहता है। इस दुनिया में सिर्फ इनसान ही अपने सामने आने वाली हर बाधाओं को जीतकर ज़िंदगी जीना जानता है।
इनसान को ज़िंदगी में आगे बढ़ना ही पड़ेगा। सुख-दु:ख की यादों के सहारे ज़िंदगी नहीं जीनी चाहिए। ये बात सच है क, नई-नई यादों के नीचे अतीत की यादें पूरी तरह से दबी न रह जाए.. फिर भी थोड़ी बहुत धुँधली हो जाती हैं।

पुस्तक लिंक: अमेज़न


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “एक नर्स की डायरी – निमाई भट्टाचार्य | अनुवाद: कुमार नीलाभ | डायमंड बुक्स”

  1. आदरणीय संछि‌प्त टिप्पणी पढ़ने के बाद लगा की उपन्यास पूरा पढना लाज़िमी है क्योंकि नर्स के व्यवहार से ही मरीज़ों के जीवन में उम्मीद जागती है ।

    1. जी टिप्पणी आपको पसंद आयी यह जानकर अच्छा लगा। जैसा कि टिप्पणी में लिखा है यह पुस्तक एक लड़की ईशानी के जीवन पर केंद्रित है जो कि एक नर्स है। उपन्यास में मुख्यतः ईशानी के गुजरे जीवन पर ध्यान दिया गया है। अतः आप उसी अपेक्षा से इसे पढ़ेंगी तो उपन्यास का लुत्फ बेहतर तरीके से ले पाएँगी।

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