संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई बुक | पृष्ठ संख्या: 426 | प्रकाशन:थ्रिल वर्ल्ड | श्रृंखला: विराट राणा #1
किताब लिंक: पेपरबैक | किंडल
पहला वाक्य:
रात के आठ बजे थे।
दिल्ली मथुरा हाईवे के किनारे बसे कोसीकलां गाँव से दस किलोमीटर पहले मौजूद वह हवेली कभी ‘राणा जी की हवेली’ नाम से जानी जाती रही होगी लेकिन अब वह प्रेत कुंज के नाम से ही आस-पास के इलाके में बदनाम थी।गाँव वालों का मानना था कि इस हवेली में भूत प्रेतों का साया था और उन्होंने कई बार इधर प्रेतात्माओं को भटकते हुए देखा था। हालत ये थी कि रात ढलने के बाद कोई भी गाँव वाला हवेली के सामने से गुजरने की हिम्मत नहीं करता था।
हवेली में रहने वाला शमशेर सिंह राणा पहले तो इन बातों को अंधविश्वास मानता था लेकिन फिर उसके साथ ऐसी घटनाएँ होनी शुरू हुई कि उसे भी यकीन हो गया कि हो न हो इधर कोई परालौकिक शक्तियाँ कार्य कर रही थीं। और उसे यह लगने लगा था कि यह शक्तियाँ अब उसकी जान लेकर ही शांत होने वाली थीं।
ऐसे में बाहर से आये उसके परिवार वाले जब एक एक करके रहस्यमयी तरीके से मारे जाने लगे तो उसका यह यकीन और पुख्ता हो चला।
क्या सचमुच राणाओ की हवेली में प्रेतों का वास था?
आखिर क्यों गाँव वालों को ऐसा लगता था?
शमशेर सिंह राणा का आत्माओं के ऊपर विश्वास करने का क्या कारण था?
क्या हवेली में हो रही हत्याएं प्रेतों द्वारा की जा रही थी या कोई और उनके पीछे था?
अश्वमेघ सिंह राणा – हवेली का निर्माण करवाने वाले राजा
त्रिलोक और आलोक – अश्वमेघ सिंह राणा के बेटे जिनके हिस्से बाद में हवेली आई थी
अखिलेश सिंह राणा, शमशेर सिंह राणा, अनंत सिंह राणा और पल्लवी – त्रिलोक राणा के बच्चे जिनमें से अब शमशेर सिंह राणा ही हवेली में रहा करता था
शमशेर सिंह राणा – राणाओं की हवेली का मालिक जो कि हवेली में रहा करता था
केदार नाथ – शमशेर सिंह का नौकर
बबिता ठाकुर – हवेली की एक नौकरानी जिसकी छः महीने पहले मृत्यु हो चुकी थी
विराट राणा – शमशेर सिंह राणा के बड़े भाई का बेटा और ए सी बी में सीनियर इंस्पेक्टर
अभिषेक सिंह रजावत – विराट राणा का सीनियर
जगत प्रसाद – एम एल ए जिसके आदमियों को विक्रम ने पकड़ा था
महिपाल सिंह – महमूद नगर चौकी का इंचार्ज जिसके इलाके में प्रेत कुंज आता था
अवतार सिंह – महिपाल सिंह का मातहत
राजेश – पल्लवी का पति
आलोक और कार्तिक – राजेश और पल्लवी के बच्चे
कमलदीप साहा – विराट राणा का वकील
कैटरीना उर्फ़ कैटी – विराट की नौकरानी
डॉक्टर बलदेव खुराना – गाँव में कार्य करने वाला एक डॉक्टर
बालू वाला बाबा – गाँव में रहने वाला एक तांत्रिक
चन्द्रेश – बबिता का पति
नीलांश चक्रधर – पुलिस का सिपाही
मेरे विचार:
भूत प्रेत का अस्तित्व है या नहीं ये तो मैं नहीं जानता लेकिन उनके होने को मैं व्यक्तिगत तौर पर नकार नहीं पाता हूँ। कई ऐसे लोग हैं जो इन्हें अंधविश्वास मानते हैं और कई लोग इन पर पूरी तरह विश्वास करते हैं। जो इसे अंधविश्वास मानते हैं उनका ये मानना लाजमी भी है क्योंकि देखने में आया है कि भूत प्रेतों से सम्बन्धित ज्यादातर घटनाओं में मनुष्यों का ही हाथ रहता है। लोग अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए ऐसी चीजों को हवा देते हैं और कई ऐसे लोगों के अंधविश्वास का दोहन करते हैं जो कि इन चीजों में विश्वास करते हैं। खैर, जो भी हो अगर उपन्यासों की बारी आती है तो मुझे इस विषय को लेकर लिखे गये उपन्यासों को पढ़ने में ज्यादा रूचि रहती है। ऐसे में जब मुझे पता चला कि अपराध साहित्यकार संतोष पाठक ने छलावा नाम का उपन्यास लिखा है जो कि इसी विषय पर केन्द्रित है तो मुझे इसे पढ़ना ही था। यही कारण है किंडल अनलिमिटेड सेवा के अंतर्गत उनका जो उपन्यास मैंने सबसे पहले डाउनलोड किया वह छलावा ही था।
संतोष पाठक द्वारा लिखा गया उपन्यास छलावा विराट राणा श्रृंखला का पहला उपन्यास है। उपन्यास के केंद्र में प्रेत कुंज नाम की हवेली है जहाँ काफी वर्षों से ऐसी घटनाएं होती आ रही हैं जिनके पीछे का कारण पता कर पाना मुश्किल है और इस कारण उन्हें प्रेतलीला का दर्जा दे दिया गया है। प्रेत कुंज असल में राणा परिवार की मिल्कियत है और पिछली दो पीढ़ियों से यहाँ ऐसी घटनाएं हो रही है जिसके चलते शमशेर राणा को छोड़कर परिवार के बाकी लोगों ने इससे दूरी बना ली है। शमशेर एक अक्खड़ किस्म का इनसान है जो ऐसी बातें नहीं मानता है लेकिन फिर जब उसकी नौकरानी का प्रेत हवेली में दिखने लगता है तो वह भी सोचने पर मजबूर हो जाता है क्या भूत प्रेत सच में होते हैं?
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उपन्यास एक सस्पेंस थ्रिलर है। उपन्यास के शुरुआत में ही पाठक को लेखक बता देते हैं कि प्रेत कुंज के नाम से बदनाम हवेली में सब कुछ ठीक नहीं है। उसका मालिक एक ऐसा अय्याश व्यक्ति है जिसने अपनी अय्याशी के लिए आस पास की औरतों तक को अगवा किया है और वह केवल अपनी धन दौलत और ताकत के वजह से अभी तक बचा हुआ है। ऐसे में जब उसके साथ प्रेत लीला होने लगती है और उसकी जान पर बन आती है तो पाठक के मन में उसके लिए कोई दया भाव नहीं जागता है बल्कि मन के किसी कोने से यही आवाज आती है ही अच्छा हो ये प्रेत ही इसकी जान ले ले। फिर वह प्रेत असली हों या नकली। इस कहानी में ट्विस्ट लेखक इस तरह लाते हैं कि यह प्रेत न केवल गुनाहगार शमशेर सिंह राणा को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं बल्कि वो उसके परिवार के मासूम सदस्यों को भी नहीं बख्शते हैं। और इसीलिए पाठक के मन में इस प्रेत लीला का राज जानने की इच्छा बलवती हो जाती है। जहाँ पहले तक आप प्रेतों के साथ रहते हो वहीं अब आप चाहते हो कि हमारा नायक विराट उन पर काबू पाए।
चूँकि छलावा के केंद्र में भूत प्रेत हैं तो लेखक के लिए यह जरूरी हो जाता है वह ऐसा डरावना माहौल बनाएं और इस कार्य में वह सफल होते हैं। कई जगह प्रेतों के कारनामें दर्शाए गये हैं और जिन किरदारों के साथ वह होते दिखते हैं उनकी जगह पर आप अपने होने की कल्पना करें तो जरूर आपके बदन में सिहरन दौड़ जाएगी।
उपन्यास में सस्पेंस के साथ रहस्य का छौंका भी लगा हुआ है। उपन्यास जैसे जैसे आगे बढ़ता है इसकी कई परतें खुलती चली जाती हैं। कई संदिग्ध किरदार इसमें उभर कर आते है जो कि कहानी मे पाठक की रूचि बरकरार रखने में सफल होते हैं।
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उपन्यास का नायक विराट राणा है जो कि मुझे रोचक किरदार लगा। वह एक घुटा हुआ पुलिसिया है जिसके अंदर दया भाव भी मौजूद है। वह तेज तर्रार है लेकिन कई बार गलतियाँ भी कर देता है। वहीं उसे न्याय के लिए क़ानून से बाहर जाने से भी गुरेज नहीं है। उसके आगे आने वाले कारनामों का मुझे इंतजार रहेगा। उपन्यास के बाकी किरदार भी कहानी के अनुरूप बन पड़े हैं। मुक्ता चौधरी का किरदार मुझे पसंद आया। उम्मीद है आगे के उपन्यासों में वह देखने को मिलेगी।
उपन्यास की कमी की बात करूँ तो उपन्यास में इक्का दुक्का प्रूफ की गलतियाँ हैं जिन्हें ठीक किया जा सकता है। बड़ी कमी की बात करूँ तो मुझे यह इसका अंत लगा। अंत में लेखक ने एक बड़ा ट्विस्ट देने की कोशिश की है जो कि मुझे कमजोर लगा । जो व्यक्ति षड्यंत्रकारी निकलता है उसका एक साथी भी होता है। उसका यह साथी पाठकों को हैरत में डालने के लिए रखा गया लगता है लेकिन यही चीज कहानी को थोड़ा सा कमजोर कर देती है। यहाँ इससे ज्यादा कहना मामला उजागर करना होगा लेकिन इधर मैं इतना ही कहूँगा कि अगर एक पुलिसवाले के परिवार में कोई व्यक्ति मारा जाता है तो उस मामले को शायद दूसरे पुलिस वाले ध्यान से देखते होंगे। ऐसे में विराट जब अपनी तहकीकात करता है तो उस विषय में कुछ जानकारी उसे मिल जानी चाहिए थी विशेषकर जब वह एक दूसरी चौकी का चक्कर लगाकर आता है। वहाँ मौजूद अफसर एक व्यक्ति की बात तो करता है लेकिन दूसरे की न करना जमता नहीं है। और वह अफसर पूरी बात न जानता हो यह भी नहीं जमता क्योंकि ऐसे मामले में व्यक्ति अपने सभी सम्बन्धों के विषय में पुलिस वालों को बताता ही है ताकि उसका ख़ास ध्यान रखा जाए।
मुझे लगता है लेखक इस आखिरी ट्विस्ट से बचते तो भी ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ता। दो लोगों को दिखाना अच्छी सोच थी लेकिन दूसरा व्यक्ति कोई और हो सकता था। इसके अलावा एक और छोटी सी बात है जो खटकती है। कहानी में बालू वाले बाबा हैं जिन्हें हवेली के पुराने नौकरों के कत्ल के विषय में काफी जानकारी होती है। लेखक ने यह बात साफ नहीं की है कि उनको ये बातें किस तरह पता थीं। क्या सच में जैसे बाबा का दावा था ये उसे उसकी अराध्य देवी ने बताई थी या भी इस जानकारी का स्रोत कोई इनसान था।
अंत में यही कहूँगा कि छलावा एक पठनीय रचना है जो पाठकों का भरपूर मनोरंजन करता है। कहानी आप पर शुरुआत से ही पकड़ बनाकर चलती है और फिर एक के बाद एक हो रहे कत्ल, उनकी तहकीकात और प्रेत लीलाएं आपको उपन्यास के खत्म होने तक उपन्यास छोड़ने का मौका नहीं देती हैं।
मुझे तो यह उपन्यास काफी पसंद आया। अगर हॉरर का तड़का लगा हुआ सस्पेंस थ्रिलर आप पढ़ना चाहते हैं तो एक बार इसे देखें। उम्मीद है यह आपका उतना ही मनोरंजन करेगा जितना इसने मेरे किया है।
(यह उपन्यास किंडल अनलिमिटेड सेवा को सब्सक्राईब करके बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के पढ़ा जा सकता है।)
©विकास नैनवाल ‘अंजान’
बढ़िया समीक्षा….
जी आभार….
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-03-2021) को "चाँदनी भी है सिसकती" (चर्चा अंक-3994) पर भी होगी।
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मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चाअंक में मेरी प्रविष्टि को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार,सर…..
अपने ब्लॉग से ताला हटा दीजिए।
मैटर सलेक्त नहीं हो पाता है चर्चा में लेने के लिए।
जी सर.. एक्चुअली पहले लोग इधर से पूरा लेख बिना बताये उठाकर अपनी वेबसाइट पर अपने नाम से लगा दिया करते थे तो उससे बचने के लिए मुझे यह कार्य करना पड़ा…..
बहुत सुन्दर समीक्षा ।
जी आभार मैम…
बहुत सुन्दर समीक्षा
जी आभार मैम…..
उपन्यास पढ़ने की उत्सुकता जगा दी है विकास जी आपने । वैसे मैं भी भूत-प्रेतों को नहीं मानता । उम्मीद है, उपन्यास मुझे पसंद आएगा ।
जी आपको पसंद आयेगा क्योंकि यह एक रहस्यकथा भी है। वैसे भूत प्रेत को मानते न भी हों तो उपन्यासों में पढ़कर लुत्फ़ लिया जा सकता है। एक फंतासी मानकर ही। यह लेखक को कुछ और टूल्स दे देते हैं एक रोमांचक वातावरण का निर्माण करने के लिए।