संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 140 | प्रकाशक: हार्पर हिन्दी | श्रृंखला: जासूसी दुनिया #7 | अनुवादक: चौधरी ज़िया इमाम
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कहानी:
फरीदी और हमीद परेशान थे। कोई था जो फरीदी के घर के बाहर लाशें छोड़ रहा था।
अब तक फरीदी के घर के गेट पर दो लाशें मिल चुकी थीं और दोनों के विषय में डॉक्टर का कहना था कि उनकी मौत प्राकृतिक थी। दोनों ही की मौत मिर्गी के दौरे के कारण हुई थी जिससे उनका दिल जवाब दे गया था।
फरीदी के लिए यह बात पचानी मुश्किल थी। उसे यकीन था कि इन प्राकृतिक दिखती मौतों के पीछे कोई राज अवश्य था।
आखिर ये लाशें किसकी थी?
क्या इन लोगों की मौत प्राकृतिक थी या इनके पीछे कोई साजिश थी?
क्या फरीदी मामले को सुलझा पाया?
मुख्य किरदार:
रुकैया – शाहिद की दोस्त
नसीर – रुकैया का चाचा
अरशद – रुकैया का भाई
फरीदी – डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टीगेशन का इंस्पेक्टर
हमीद – फरीद का मातहत
शंकर उर्फ प्रोफेसर जावेद- एक अपराधी जो वापिस शहर में आया था
जैक्सन – फरीदी का अफसर
रशीद – सब इंस्पेक्टर
डॉक्टर शौकत – दिमागी बीमारी का विशेषज्ञ
नजमा – डॉक्टर शौकत की पत्नी
जाबिर – एक खूँखार व्यक्ति
संग्राम सिंह – रंजीत नगर का युवराज
मेरे विचार:
चालबाज बूढ़ा मशहूर लेखक इब्ने सफी की जासूसी दुनिया श्रृंखला का सातवाँ उपन्यास है। यह उपन्यास पहली बार 1952 में प्रकाशित हुआ था। हार्पर हिन्दी द्वारा इसे 2009 में पुनः प्रकाशित किया गया था।
उपन्यास की कहानी शहर के मेट्रो होटल से शुरू होती है जहाँ स्पेन की एक नर्तिकी उन दिनों आई हुई है और लोगों के बीच में उसका नृत्य प्रसिद्ध है। लेखक पाठकों को यहाँ एक कत्ल होते हुए दिखाते हैं और बाद में वह लाश इंस्पेक्टर फरीदी के गेट के बाहर बरामद होती है। कत्ल कौन कर रहा है यह तो पाठक जान जाते हैं लेकिन कत्ल क्यों हो रहा है और लाश फरीदी के गेट के बाहर क्यों छोड़ी जा रही है यह पाठकों को तब ही जाकर पता चलता है जब वह फरीदी के साथ इस तहकीकात में शामिल होते हैं।
उपन्यास शुरू से ही पाठकों पर पकड़ बनाकर चलता है। एक के बाद एक दो कत्ल जब हो जाते हैं तो फरीदी भी मामले को अपने हाथ में ले लेता है और तहकीकात आरम्भ कर देता है। तहकीकात आरम्भ करने का चूँकि उसके पास कोई सिरा नहीं होता है तो वह तुक्का मार रहा होता है और यह ठीक जगह लग भी जाता है।
फरीदी इस केस का इंचार्ज बन तो गया, लेकिन अभी तक वह किसी रास्ते को चुन नहीं सका था। इस बार उसे बिल्कुल अँधेरे में तीर फेंकना पड़ा था। (पृष्ठ 31)
वह एक ऐसे किरदार शंकर से मिलता है जिस पर दबाव डालकर वह मामले के एक सिरे को पकड़ लेता है। इसके बद घटनाएं इस तरह से घटित होती हैं कि उनका पीछा करते हुए वह मामले के अंत तक जा पहुँचता है।
शंकर का किरदार मुझे पसंद आया। वह एक अपराधी है जो कि शहर से किसी अमीर व्यक्ति की पत्नी को भगाकर या उसके शब्दों में उस अमीर व्यक्ति की पत्नी उसे भगाकर ले गयी थी। वहीं शंकर ने बैंक भी लूटा रहता है। यह सब उसे मेरे लिए रोचक बनाता है। इस उपन्यास में वह फरीदी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलता दिखता है।
उपन्यास पढ़ते वक्त कभी कभी आप किन्हीं ऐसे किरदारों से रूबरू होते हैं जिनकी पूरी जीवन कहानी आप तफसील से जानना चाहते हैं। शंकर मेरे लिए ऐसे ही किरदारों में से एक है। अगर मुमकिन होता तो मैं उसकी कहानी जरूर जानना चाहता।
उपन्यास में रहस्य और रोमांच तो है ही लेकिन इस उपन्यास में फरीदी के जीवन के फलसफों से भी पाठक बीच-बीच में वाकिफ होता रहता है। औरतों के विषय में उसकी सोच और वह खुद औरतों से क्यों दूर रहता है यह भी पाठक जान पाता है। फरीदी और हमीद के बीच के निम्न वार्तालापों को देखें:
औरत के करीब रहकर तुम हरगिज़ औरत को नहीं पहचान सकते। क्योंकि तुम्हारा जज़्बा जो औरत के करीब होने की वजह से जागता है, तुम्हें उसकी फितरत को पढ़ने नहीं करने देता। वह अपनी कमजोरियों को हुस्न और आर्ट का रंग दे कर उनको छिपाने लगती है। मिसाल के तौर पर:
माशूक की चाल में जो लंगड़ापन है।
दिल लेने का यह भी एक चलन है।। पृष्ठ (107)
“मैं कुछ और ही समझ रखा था।”
“गलत समझे थे आप..!” फरीदी ने कहा। “और अभी थोड़ी देर पहले आप ही ने रुकैया से कहा था कि मैं फरीदी की आर्ट का खून होते न देख सकूँगा। तुमने मेरी फितरत के बारे में उससे बिलकुल ठीक कहा था। वाकई अगर कोई औरत मेरी जिंदगी में आ गयी तो मैं बिलकुल बुद्धू होकर रह जाऊँगा। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है।” (पृष्ठ 109 )
फरीदी और हमीद के बीच यह बातचीत सोचने पर मजबूर करती है कि फरीदी की यह धारणा कैसे बनी है। यह दर्शाती है कि ऐसा नहीं है कि उसकी औरतों में दिलचस्पी नहीं है लेकिन वह उनसे दूरी एक डर के वजह से बनाकर रखता है। यह डर उसके मन में क्यों आया? क्या उसने किसी को औरत के इश्क में पड़कर अपना सब कुछ गँवाते देखा था यह फिर उसने जीवन के किसी पड़ाव पर खुद ही ऐसा अनुभव किया था। मैं यह बातें जरूर जानना चाहूँगा।
ऐसा भी नहीं है कि वह औरतों को नकारत्मक रूप से देखता है। औरत के प्रति उसका एक कथन, जो नीचे दिया गया है, यह दर्शाता है कि वह औरतों के व्यवहार को समझता है। वहीं आखिर में रुकैया को लेकर वह जिस तरह परेशान होता है वह भी यह दर्शाता है कि वह औरतों से नफ़रत नहीं करता बस उन्हें प्रेमिका के रूप में नहीं देख पाता है।
हर औरत की फितरत में ममता का कुछ न कुछ हिस्सा जरूर होता है और यह ममता उस वक्त बड़ी तेजी से जाग उठता है जब वह किसी ऐसे मर्द को तकलीफ में पड़ा देखती है जिससे उसका कोई ताल्लुक हो। पृष्ठ (108)
दूसरी दिन सुबह-सवेरे फरीदी घर से निकल गया। हमीद से उसे जाते देखा। उसके कोट के कॉलर में लाल रंग का बड़ा सा ताज़ा गुलाब लगा हुआ था। हमीद के शब्दों में उसने शायद अपनी जिंदगी में पहली बार इस तरह की बदपरहेजी की थी। हमीद के होठों पर एक दर्दनाक मुस्कराहट फ़ैल गयी। (पृष्ठ 119)
यहाँ मैं इतना ही बता पाऊँगा कि गुलाब वाला प्रसंग उसने रुकैया के सम्मान में ही किया था जिसे वह अपनी बहन मानने लगा था।
इस उपन्यास में लेखक ने फरीदी के औरतों के प्रति उसके नजरियों को ही नहीं बल्कि अपराध और अपराधियों को वह किस तरह से देखता है यह भी डायलॉग के माध्यम से उसके द्वारा कहलवाया है।
“… सुनो हमीद, मैं सिर्फ जासूसी की मशीन नहीं हूँ, मेरी नज़र इनसानी कमजोरियों और मजबूरियों पर भी रहती है। मैं जब भी किसी मुजरिम को कानून के हवाले करने लगता हूँ तो सोचता हूँ कि क्या अब हमें मुजरिमों से पनाह मिल जाएगी। क्या मुजरिमों को सजा देने से वह बुराई मिट जाएगी जिसमें फँस कर वे फाँसी के तख्ते की तरफ जाते हैं। अब तक करोड़ों कातिल सजा ए मौत पा चुके हैं, लेकिन क्या अब कत्ल नहीं होते। क्या मुजरिमों की तादाद कम हो गयी।”
फरीदी खामोश हो गया।
“उसका तो न अभी कोई हल निकला है, न ही निकलने की उम्मीद है।” हमीद बोला।
“उसका हल शुरू ही से मौजूद था लेकिन उसकी तरफ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। या अगर ध्यान दिया भी गया तो सिर्फ तफरीह के लिए। जेहनी बड़प्पन जाहिर करने के लिए। यह हल सिर्फ कागजों और भाषणों के जरिये किया गया।”
“तो आखिर इसका हल है क्या।”
“बुरों से ज्यादा बुराई की तरफ ध्यान दिया जाये, यह सोचा जाए कि आखिर जुर्म किये ही क्यों जाते हैं, क्यों न समाजी ज़िन्दगी को ऐसी ऊँचाई पर लाया जाय, जहाँ जुर्म का सवाल ही न रह जाए।”
यह वार्तालाप जहाँ एक तरफ फरीदी की सोच को दर्शाता है वहीं पाठकों को भी काफी कुछ सोचने विचारने के लिए दे जाता है।
उपन्यास के खलनायकों की बात करूँ तो इसमें नसीर और अरशद जैसे किरदार हैं जो कि खलनायक दिखते हैं लेकिन वह सिर्फ गुर्गे हैं। नसीर तेज तर्रार शख्स है जो कि फरीदी के सामने पड़कर उसे दिगभ्रमित करने से भी नहीं हिचकता है। लेकिन वह भी कहानी के मुख्य खलनायक के सामने शरीफ ही कहा जाएगा।
कहानी का मुख्य खलनायक जाबिर नाम का शख्स है जिसके विषय में पाठकों को बताया जाता है कि उसे कत्ल करने में मजा आता है। उसके विषय में फरीदी कहता है:
तुम्हें सुनकर हैरत होगी कि इस गिरोह का सरगना एक ऐसा आदमी है जो मजाकिया तौर पर खून करता रहता है। वह जून 1940 में यहाँ से भागकर जर्मनी चला गया था और सिर्फ अपनी खून की प्यास बुझाने के लिए जर्मनों के साथ क्रांतिकारियों के खिलाफ लग रहा था। (पृष्ठ 110)
मुझे यह किरदार काफी रोमांचक लगा लेकिन दुःख इसका है कि लेखक ने इसका कहीं इस्तेमाल नहीं किया है। इसके विषय में उपन्यास में केवल बात ही होती है। मुझे लगा था कि अंत में जाबिर और फरीदी के बीच कोई टकराव होगा लेकिन ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला जो कि निराशाजनक था।
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उपन्यास में फरीदी और हमीद के बीच की नोकझोंक भी है लेकिन यह पिछले उपन्यासों जितनी नहीं है। अक्सर इनके बीच की नोकझोंक हास्य पैदा करती है जो कि जासूसी दुनिया श्रृंखला के उपन्यासों का महत्वपूर्ण तत्व होता है। इस उपन्यास में मुझे हास्य की यह मात्रा थोड़ा कम लगी लेकिन फिर भी कथानक पर चूँकि इसका इतना असर नहीं पड़ता है तो ज्यादा शिकायत भी नहीं है।
किताब की कमियों की बात करूँ तो इसके हिस्से कुछ कमियाँ आएँगी।
उपन्यास में फरीदी को मामले का सबसे महत्वपूर्ण सुराग शंकर देता है। इसी सुराग का पीछा करते हुए वह मामले को सुलझा पाता है। परन्तु शंकर इस मामले की जानकारी कैसे रखता है यह बताया नहीं गया है। यहाँ हम बस यह अंदाजा लगा सकते हैं चूँकि वह अपराधिक किस्म का व्यक्ति था इसलिए उसे शहर के अपराधिक तत्वों के विषय में पता था। हाँ, अगर शंकर के स्रोतों की जानकारी दी जाती तो बेहतर होता। ऐसे में अभी तो यही लगता है कि लेखक ने मामला सुलझाने के लिए एक आसान रास्ता चुना है।
उपन्यास का खलनायक जाबिर के विषय में मैं ऊपर बता ही चुका हूँ कि उसका उतना इस्तेमाल नहीं किया गया है जितना की होना चाहिए था। अब चूँकि उपन्यास का शीर्षक चालबाज़ बूढ़ा उसी पर है तो मुझे लगता है उसे कम से कम कुछ दृश्यों में दर्शाया जाना चाहिए था और उसका फरीदी से टकराव भी दिखाया जाना चाहिए था। इससे कहानी और रोमांचक बन सकती थी।
उपन्यास के अंत में सब मामला खुलने के बाद फरीदी और उसके साथी किस तरह खलनायकों को पकड़ते हैं यह भी पाठकों को दर्शाया नहीं गया है। पाठकों को फरीदी केवल अपने अफसर जैकसन को इस विषय में बताते हुए ही दर्शाया जाता है। मुझे लगता है अगर आखिर की वह मुठभेड़ दर्शाई गयी होती तो उपन्यास और रोमांचक बन सकता था।
उपरोक्त बाते ही ऐसी थीं जो मुझे लगा कि अगर ध्यान में रखी होती तो चालबाज़ बूढ़ा अभी जितना अच्छा उपन्यास है उससे और बेहतर बन सकता था।
अंत में यही कहूँगा कि चालबाज़ बूढ़ा एक पठनीय उपन्यास है जो कि शुरुआत से लेकर अंत तक आपका मनोरंजन करता है। उपन्यास मुझे पसन्द आया। अगर आपने नहीं पढ़ा तो इसे एक बार पढ़ा जा सकता है।
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पहले इंस्पेक्टर विनोद नहीं हुआ करता था ?
मूल उर्दू में पहले भी फरीदी और हमीद ही थे। उस वक्त हिन्दी अनुवाद में विनोद कर दिया जाता था नाम। हार्पर हिंदी ने जब हिन्दी अनुवाद निकाला तो नाम उर्दू वाले ही रखे थे।