संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई-बुक | प्रकाशक: डेलीहंट | श्रृंखला: सुनील #17
किताब लिंक: किंडल
पहला वाक्य:
ब्लास्ट के ऑफिस के केबिन में चपरासी जिस आदमी को छोड़कर गया, वह बन्दर था।
कहानी:
जुगल किशोर उर्फ़ बन्दर जब सुनील के दफ्तर में आया तो उसे लगा ही था कि उसने खुद को किसी न किसी पंगे में फँसा दिया है या वो उतावला होकर किसी पंगे में फँसने जा रहा है। बन्दर की आदत थी कि जब भी उसके सामने कोई खूबसूरत लड़की आती थी वह अपने होश खो बैठता था और ऐसे मामलों में उलझ जाता था जिससे आगे चलकर उसका नुकसान ही होता था।
इस बार भी ऐसे ही कुछ हुआ था। बन्दर चाहता था कि जो करामात वह करने जा रहा है उसमें सुनील कम से कम उसके साथ खड़ा रहे। और सुनील की गलती यह थी कि उसने दोस्ती के कारण बन्दर की करामात में साथ दे दिया था।
अब सुनील और बन्दर दोनों ही कानून के शिकंजे में आने वाले थे। वह एक कत्ल के मामले में फँस से गये थे और सुनील को पता था कि अगर उसने जल्दी ही असल कातिल को न खोजा तो उसे और बन्दर दोनों को जेल जाने से कोई नहीं बचा सकता था।
आखिर बन्दर ने ऐसी क्या करामात की थी जिसके चलते उनके जेल जाने के हालात बन गये थे?
सुनील क्या असल कातिल को खोज पाया?
आखिर यह कत्ल क्यों किया गया था?
जुगल किशोर उर्फ़ बन्दर – सुनील का दोस्त
सुनील कुमार चक्रव्रती – ब्लास्ट का सीनियर रिपोर्टर
जयंती – एक लड़की जिसने बन्दर को एक कार्य करने को कहा था
कमल मेहरा – एक व्यक्ति जो कि दीपक लॉज में रह रहा था
रमाकांत – सुनील का दोस्त और यूथ क्लब का मालिक
जौहरी – रमाकांत का आदमी
सुमित्रा – कमल मेहरा का पड़ोसी
कुँवर नारायण सिंह – राजनगर का प्रसिद्ध संग्रहकर्ता
डाकू कहर सिंह – एक डाकू जिसकी रिवॉल्वर काफी प्रसिद्ध थी और जो विश्वनगर में मारा गया था
रेणु – ब्लास्ट की रिसेप्शनिस्ट
प्रभुदयाल – पुलिस इंस्पेक्टर
देवपाल मेहरा – कमल मेहरा का दादा
मेरे विचार:
दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिसका महत्व दुनिया में सबसे ज्यादा रहा है। बाकी रिश्ते तो हमें बने बनाए मिलते हैं लेकिन दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जिसे हम लोग खुद बनाते हैं। दोस्त न हों तो जीवन नीरस हो जाता है। फिर चूँकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो ऐसे में उसे दोस्तों की हमेशा जरूरत रहती है। कहते भी हैं कि दुःख बाँटने से घटता है और खुशियाँ बाँटने से बढ़तीं हैं। और ये तभी हो सकता है जब किसी व्यक्ति के दोस्त उसके साथ मौजूद हों। लेकिन दोस्ती हमेशा अच्छी ही हो ये जरूरी नहीं है। कई बार दोस्ती के चक्कर में लोगों को लेने के देने भी पड़ जाते हैं। कई बार दोस्तों की बेवकूफियों का फल हमें भी भुगतना पड़ता है। कई बार न चाहते हुए हम भी उनकी बेवकूफियों में शामिल हो जाते हैं। वो कहते हैं न नादान की दोस्ती जी का जंजाल। मुझे लगता है व्यक्ति कभी न कभी ऐसे जी के जंजाल पालता ही है। प्रस्तुत उपन्यास बन्दर की करामात के केंद्र में भी ऐसी ही एक दोस्ती है जो कि ब्लास्ट के चीफ रिपोर्टर सुनील कुमार चक्रव्रती के जी का जंजाल बन जाती है।
बन्दर की करामात सुनील श्रृंखला का सत्रहवाँ उपन्यास है। यह उपन्यास प्रथम बार 1967 में प्रकाशित हुआ था और मैंने जो संस्करण पढ़ा वह 2014 में डेलीहंट एप्प द्वारा प्रकाशित ई बुक संस्करण था। अब डेलीहंट तो बंद हो गया है लेकिन यह उपन्यास आप किंडल पर पढ़ सकते हैं।
उपन्यास की शुरुआत सुनील के दोस्त बन्दर उर्फ़ जुगल किशोर के सुनील के पास उसके दफ्तर में आने से होती है। वह किसी तरह सुनील को अपने एक बेवकूफाना कार्य में साथ देने के लिए मना लेता है और इस के बाद वह सुनील के साथ ऐसी मुसीबत में फँस जाता है जिससे बचने के लिए सुनील को नाको चने चबाने पड़ जाते हैं। यह एक सीधी साधी कहानी है जिसमें अनापेक्षित मोड़ या गहरे रहस्य भले ही न हो लेकिन इसका तेजी से घटित होता घटनाक्रम पाठक को उपन्यास पढ़ते जाने पर विवश कर देता है। सुनील अपनी सूझ बूझ और रमाकांत की मदद से मामले की तह में किस तरह जाता है और इस दौरान कौन कौन सी बातें पता लगती हैं यह जानने के लिए आप उपन्यास के पृष्ठ पलटते चले जाते हैं। वहीं उपन्यास में मौजूद रोचक संवाद पृष्ठ पृष्ठ आपका भरपूर मनोरंजन करते हैं। बन्दर जिन भी दृश्यों में मौजूद है उसमें वह जान डाल देता है। पाठक हँसे बिना नहीं रह पाता है।
उपन्यास की कमी की बात करूँ तो उपन्यास में दो तीन ही बात मुझे खटकी थी।
पहली यह कि सुनील जब अध्याय दो में जयंती से मिलने जाता है तो वह बन्दर को कॉल इसलिए करता है ताकि उसे पहचान सके। यह बात मुझे अटपटी लगी क्योंकि पहले अध्याय में ही बन्दर उसे पत्रिका के कवर में जयंती की फोटो दिखा चुका होता है। यह एक सम्पादन की गलती है। इसमें अगर सुनील के पहचनाने की जगह जयंती के पहचानने की बात होती तो शायद ज्यादा तर्कसंगत होती।
एकाएक उसे अपनी मूर्खता का आभार हुआ। इतनी देर यह तो उसने सोचा ही नहीं था कि वह जयंती को पहचानेगा कैसे?
(अध्याय 2 का अंश)
किताब किंडल पर मौजूद है। अगर आपके पास किंडल अनलिमिटेड की सदस्यता है तो इसे बिना किसी अतरिक्त शुल्क दिए पढ़ सकते हैं।
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©विकास नैनवाल ‘अंजान’
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (31-03-2021) को "होली अब हो ली हुई" (चर्चा अंक-4022) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चाअंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार,सर।
मुझे लगता है आप बंदर उर्फ जुगल किशोर को बहुत पसंद करते हैं, अगर सचमुच ऐसी ही बात है तोआप गैंग वॉर नामक थ्रीलर उपन्यास पड़े, जो कि सुनील श्रृंखला का ना होकर एक थ्रीलर है जो कि सिर्फ बंदर पर ही केंद्रित है, या फिर आप सुनील श्रृंखला का उपन्यास चोर सिपाही पढ़ेजो कि किंडल पर उपलब्ध है यह भी बंदर पर ही लिखा गया है।।
और सचमुच गैंगवार पढ़कर आपको ऐसा लगेगा जैसे आपने सचमुच कोई उपन्यास पढ़ा है पाठक साहब के 10 सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले उपन्यास मैं तो इन्हें रखूंगा
वाह!! बन्दर को केंद्र में रखकर लिखे यह उपन्यास जरूर पढूंगा। नाम साझा करने के लिए आभार।
आपके इस ब्लॉग पर बहुत अच्छे उपन्यासों की जानकारी मिल जाती है । बहुत बढ़िया पोस्ट ।
जी एक बुक जर्नल पर प्रकाशित लेख आपको पसन्द आते हैं यह जानकर अच्छा लगा। आभार।
वाह ये काफी रोमांचक लगा।
सटीक समालोचक दृष्टि गुण और दोषों के साथ।
साधुवाद।
लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।
बहुत सही समीक्षात्मक जानकारी भरे आलेख के लिए आपका शुक्रिया ।
आभार मैम।
'बंदर की करामात' में जो ख़ामियां आपने पकड़ीं विकास जी, वे तो (क्लाइमेक्स में बंदर की ग़ैर-मौजूदगी को छोड़कर) मेरी निगाह से भी चूक गई थीं। बहरहाल आप निष्पक्ष होकर उपन्यास (और अन्य प्रकार की पुस्तकें भी) पढ़ते हैं, यह आपकी समीक्षाओं से पता चलता है। मैं ख़ुद बंदर का प्रशंसक हूँ और एक बार मैंने पाठक साहब से पूछा था कि वे कभी बंदर से फिर मुलाक़ात करवा सकते हैं क्या तो उन्होंने इनकार कर दिया था। आपने पाठक साहब का उपन्यास 'गैंगवार' नहीं पढ़ा हो तो ज़रूर पढ़ें क्योंकि उसमें बंदर ही नायक है जबकि सुनील केवल अतिथि भूमिका में है। बंदर के अन्य उपन्यासों में 'ख़ूनी नेकलेस', 'फ़्लैट में लाश', 'चोर-सिपाही' आदि हैं और वह ऐसे प्रत्येक उपन्यास में भरपूर मनोरंजन प्रदान करता है।
जी उपरोक्त उपन्यास मैंने नहीं पढ़े थे। साझा करने के लिए हार्दिक आभार। जल्द ही इन्हें पढ़ने की कोशिश रहेगी।