बालू और मलंगा – डॉ प्रमोद कुमार अग्रवाल

बालू और मलंगा - डॉ. प्रमोद कुमार अग्रवाल

संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 58 | प्रकाशक: फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन | चित्रांकन: रोहित कर

पुस्तक लिंक: अमेज़न

कहानी

बरुआसागर एक छोटा सा नगर था जहाँ के लोगों के बीच आजकल एक ही चीज चर्चा का विषय बनी हुई थी। यह चीज थी नगर में अचानक से चले आए बंदरों का झुंड। इन बंदरों को लेकर कई तरह की बातें नगरवासियों के बीच हो रही थीं। कई तरह से इन बंदरों ने नगरवासियों के जीवन को प्रभावित भी कर दिया था।

बालू बरुआसागर में रहने वाला आठ वर्षीय बालक था। उसे भी बंदरों को लेकर काफी उत्सुकता थी। वह इनके विषय में अधिक जानना चाहता था।

बंदरों ने नगरवासियों के जीवन में क्या क्या बदलाव किया?
क्या बालू बंदरों के विषय में अधिक जान पाया? बंदरों के विषय में उसे किसने जानकारी दी?

विचार

‘बालू और मलंगा’ लेखक प्रमोद कुमार अग्रवाल का लिखा बाल उपन्यास है। यह उपन्यास फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है।

‘बालू और मलंगा’ का कथानक बरुआसागर नामक नगर में घटित होता है। अपने लेखकीय में लेखक बताते हैं कि बरुआसागर उनका गृहनगर है। वहाँ जब बंदर अचानक से आ गए तो वही चर्चा के केंद्र बन गए। उन्हें लेकर बच्चों में भी कौतूहल जागा और उसी कौतूहल को शांत करने के लिए उन्होंने यह बाल उपन्यास लिखा।

इस बाल उपन्यास की कहानी बरुआसागर में बंदरों के आने से शुरू होती है। कैसे नगर में बंदर आते हैं और फिर बंदरों से जुड़ी कौन कौन सी घटनाएँ उधर होती हैं। शहरवासी बंदरों के खिलाफ क्या क्या करते हैं और बंदर उनकी इस मुहिम पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। यह संघर्ष आखिर किस मुकाम तक पहुँचता है। यह सब उपन्यास का कथानक बनता है। उपन्यास आठ छोटे छोटे अध्याओ में विभाजित है।

उपन्यास के केंद्र में बालू नाम का बालक है जिसे बंदर बड़े आकर्षक लगते हैं और वह उनके और उनके कारनामों के विषय में जानने के लिए लालायित करता है। उसकी दादी और बहन उसकी यह जिज्ञासा शांत करते हैं। वह बंदरों द्वारा शहर में क्या क्या किया जा रहा है इससे जुड़ी कहानियाँ बालू को सुनाते हैं। साथ साथ बालू की दादी उसे दूसरी अन्य कहानियाँ सुनाती है जो कि जीवन जीने का निर्देश भी बालू को देती है। बालू के परिवार में उसकी दादी और बड़ी बहन रत्ना के अलावा उसकी माँ और उसके पिताजी भी हैं। बाल उपन्यास में लेखक इन किरदारों के माध्यम से बंदरों और शहर लोगों के बीच के रिश्ते को तो बताते ही हैं साथ ही वह समाज के कई पहलुओं पर भी टिप्पणी करते हैं। बच्चों पर पढ़ाई का अत्यधिक दबाव बनाते अभिभावक, लड़कियों के होने के चलते एक विशेष रूप से किसी को देखने का चलन, घरों में रहने वाले वृद्धों के प्रति उपेक्षा का भाव जैसी बातों को बाल पाठक इधर घटित होते हुए देखेंगे और इन मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनेंगे। वहीं बंदरों को लेकर क्या क्या गलतफहमियाँ लोगों में हैं यह भी जानेंगे।

उपन्यास में बालू के अलावा मलंगा का किरदार भी है। वह बंदरों का नेता है और बंदरों के समूह का नेता किस तरह कार्य करता है यह उपन्यास में बालू को सुनाई जाने वाली कहानियों से जाना जा सकता है। एक अच्छे नेता का क्या कर्तव्य होता है। उन्हें कई बार समूह की सुरक्षा के लिए कैसे छोटे छोटे स्वार्थों को किनारे रखकर कई बार कड़े कदम भी उठाने पड़ते हैं यह भी इधर दिखता है।

कथानक की कमी की बात करूँ तो इसका शीर्षक ‘बालू और मलंगा’ है। शीर्षक से ऐसा लगता है की बालू और मलंगा के आपसी रिश्ते को दर्शाता यह उपन्यास होगा लेकिन इधर ऐसा कुछ नहीं है। उपन्यास में बालू और मलंगा केंद्र में जरूर हैं लेकिन उनकी कहानियाँ अलग अलग ही चलती है। मुख्य रूप से तो बालू की कहानी ही इधर चलती है और उसे सुनाई जा रही कहानियों में मलंगा की जानकारी पाठकों को दी जाती है। ऐसे में कई बार लगता है कि शीर्षक कुछ और होता तो बेहतर होता। या फिर बालू और मलंगा का रिश्ता भी उपन्यास में गुँथा रहता तो बढ़िया रहता। बीच में दादी द्वारा बालू को दो कहानियाँ सुनाई जाती हैं जिनका बंदरों से कोई लेना देना नहीं होता है। एक कहानी का बरुआसागर से संबंध होता है तो वह उतनी नहीं खटकती है लेकिन हाथी हथिनी वाली कहानी पढ़कर यही लगता है की इस अध्याय के बजाए बंदरों से जुड़ा कुछ होता तो वह कथानक की थीम पर अधिक फिट बैठता।

उपन्यास बड़े आकार में प्रकाशित किया गया है और इसके जरूरी दृश्यों को कलाकार रोहित कर द्वारा अच्छे से दर्शाया गया है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि चित्रों में शेडिंग भी की जाती तो चित्र अभी जितने प्रभावशाली बने हैं उससे बहुत ज्यादा प्रभावशाली बन जाते।

अंत में यही कहूँगा कि आज के समय में नगर में रहने वाला शायद कोई ही ऐसा व्यक्ति जो जिसके घर के आस पास बंदर न हो। ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति इस उपन्यास में दर्शायी घटनाओं जैसी घटनाओं से दो चार हुआ होगा या उनके विषय में किसी से सुना होगा। ऐसे में उपन्यास और उनके किरदार वहाँ रहने वाले बच्चों से जुड़ाव महसूस करेंगे वहीं दूसरी और जहाँ बंदर नहीं हैं वहाँ वो बालू और मलंगा से मिलकर एक नई दुनिया में दाखिल होंगे।

पुस्तक लिंक: अमेज़न

This post is a part of Blogchatter Half Marathon 2024


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

2 Comments on “बालू और मलंगा – डॉ प्रमोद कुमार अग्रवाल”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *