‘अंतिम परिचय ‘ शरत की अंतिम रचना है जिसे उनकी पत्नी ने पूरा किया है। हमारे जैसे, शरत के हार्ड कोर फैन्स के लिए तो उपन्यास एक अच्छी रचना बन पड़ा है, लेकिन ‘चरित्रहीन‘ और ‘शेष प्रश्न’ जैसी कालजयी कृतियों की तुलना में कमजोर है।
कमल और किरणमयी जैसी प्रखर, मुखर, बुद्धिमती, तेजस्वी और आत्मविश्वास से ओतप्रोत नायिकाओं के सामने सविता फीकी लगी हैं।
शरत यहाँ भ्रमित दिखे हैं।
सविता ने कुछ किया, क्या किया, कहीं स्पष्ट नहीं है । वृद्ध पति होने के कारण वे विमल से जुड़ती हैं। उनके स्वतंत्र व्यक्तित्व का दंड उनको मिलता दिखाया है कि पति (शायद) और बेटी भूखों मर जाते हैं।
उपन्यास सीधे सीधे कहता है कि नारी अपने मन की करेगी तो उसका चौतरफा विनाश होना है। सविता और विमल का संबंध भी साहसपूर्वक दिखाने में लेखक हिचका है।
एक तरफ शरत के विद्रोही मन ने उनको खींचा है तो दूसरी तरफ बीसवीं सदी के प्रारंभ के समाज की मध्यमवर्गीय नैतिकता उनको खींचती दिखती है।
“रोके है मुझे ईमाँ, खींचे है मुझे कुफ्र” वाली रमणीक स्थिति बन गयी है।
यह शरत के अंतिम दिनों की रचना है । उनके नख, दंत अब पूर्ववत तीक्ष्ण नहीं रह गये थे। अपनी ‘आवारा मसीहा’ छवि से मुक्त हो कर वे गुरुदेव की तरह सामाजिक स्वीकृति और सम्मान चाहते थे।
इसी खींचतान का नतीजा है, ‘अंतिम परिचय’।
एक किस्सा सुनाने का मन हो आया है। एक ग्रामीण भारतभ्रमण पर निकला। एक जगह उसने हाथी देखा। उसने पूछा कि यह क्या है और डायरी में ‘हाथी’ नोट कर लिया। एक और शहर में उसने अमरूद देखे और नाम नोट कर लिया। आगरा में उसने ताजमहल देखा और नाम नोट कर लिया।
महीनों बाद, जब वो घर पहुँच चुका था, एक हाथी गाँव के पास से गुजरा। गाँव वालों ने हाथी कभी देखा नहीं था सो अपने इन हाउस एक्सपर्ट से पूछा। आदमी ने डायरी खोली तो तीन नाम लिखे हुए।
उसने ठंडी साँस ली और बोला, “भाइयों, ये ताज है,हाथी है या फिर अमरूद है।”
तो इस उपन्यास पर लेखक का नाम न दिया हो तो पाठक पढने के बाद यही कहेगा कि, “भाइयों, ये या तो बंकिम ने लिखा है, या शरत ने लिखा है या फिर टैगोर ने लिखा है।”
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बहुत ख़ूब! मैं तो पाथेर दाबी को शरत की अंतिम रचना समझता था। अंतिम परिचय अब तक पढ़ा नहीं है। पढ़ने के उपरांत ही इस समीक्षा का भी मूल्यांकन होगा।
जी आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी….