पुस्तक अंश: विस्फोट

पुस्तक अंश: विस्फोट - अनिल मोहन | रवि पॉकेट बुक्स

अनिल मोहन द्वारा लिखित ‘विस्फोट’ देवराज चौहान शृंखला का उपन्यास है।

वो चाहते थे कि देवराज चौहान उनके लिए एक प्लेन हाइजैक करे। वो इसके लिए उसे मुँह माँगी कीमत देने को तैयार थे। पर क्या देवराज इसके लिए माना? वो क्यों चाहते थे कि विमान हाइजैक किया जाए? ये लोग कौन थे? इन सब प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए तो आपको पूरा उपन्यास पढ़ना पड़ेगा।

फिलहाल एक बुक जर्नल पर आप इस उपन्यास का यह रोमांचक अंश पढ़िए।


प्लेन के यात्री, जो कि अभी तक विमान स्टाफ की मुसीबतों और खून-खराबे से पूरी तरह अनजान थे। तब एकाएक वह हड़बड़ा उठे, जब जगत खन्ना अपने पाँच साथियों के साथ सबको नजर आने लगा। सब अलग अलग जगहों पर फैल गए थे। सबके हाथों में रिवॉल्वरें थीं और उनके चेहरे कपड़ों से ढक चुके थे।

प्लेन के यात्री, जो कि अभी तक विमान स्टाफ की मुसीबतों और खून-खराबे से पूरी तरह अनजान थे। तब एकाएक वह हड़बड़ा उठे, जब जगत खन्ना अपने पाँच साथियों के साथ सबको नजर आने लगा। सब अलग अलग जगहों पर फैल गए थे। सबके हाथों में रिवॉल्वरें थीं और उनके चेहरे कपड़ों से ढक चुके थे।

जगत खन्ना पैसेंजर डैक पर पहुँचकर रिवॉल्वर वाला हाथ ऊपर करते हुए चिल्लाया –

“कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा। यह प्लेन अब हमारे कब्जे में है।”

देवराज चौहान के मस्तिष्क को झटका लगा।

“क्या?” एक बूढ़ा चीखकर कह उठा – “तुम प्लेन पर कब्जा कैसे कर सकता है। यह प्लेन तो हवा में है। चुपचाप अपनी सीट पर जाकर बैठ जाओ।”

“हम प्लेन को हाईजैक कर रहे हैं।” जगत खन्ना पुनः चिल्लाया।

“तुम इस प्लेन को हाइजैक नहीं कर सकते।” बूढ़ा फिर चिल्लाया – “क्योंकि मैं इस प्लेन – ।”

“इस बूढ़े को सम्भाल।” खन्ना ने गुर्राकर अपने आदमी से कहा। फिर दूसरे को साथ आने का इशारा करते हुए पलटकर फ्लाइट डैक पर आगे बढ़ गया।

सामने डोर नजर आ रहा था। उसके डोर तक पहुँचने से पहले ही वह दरवाजा खुला और एयर होस्टेस सविता बाहर निकली। परंतु खन्ना के चेहरे पर कपड़ा और हाथों में रिवॉल्वर देखकर भय से वह चीखने को हुई कि खन्ना का रिवॉल्वर उसके पेट से सट गया।

सविता का मुँह भय से बंद हो गया।

तभी पीछे से जगत खन्ना का साथी वहाँ पहुँचा।

“सभी एयर होस्टेसेज को इकट्ठे कर इस फ्लाइट डैक पर बिठा लो।” खतरनाक स्वर में कहते हुए जगत खन्ना ने फ्लाइट डैक का दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश कर गया।

“नीचे बैठ जाओ।” खन्ना का साथी सविता को रिवॉल्वर दिखाकर गुर्राया।

सविता फ़ौरन नीचे बैठ गयी।

एकाएक यह सब हो जाने की वजह से हर कोई स्तब्ध था।

वह सविता के पास ही खड़े दूसरे साथी से बोला –

“तुम एयर होस्टेसेज को बुलाने के लिए बेल का स्विच दबाओ।”

उसके साथी ने ऐसा ही किया।

दो पलों बाद ही दरवाजा खोलकर फ्लाइट डैक पर सूर्या पहुँची तो वह भी रिवॉल्वर के निशाने पर आ गयी। उसके बाद कपिला, अंजना और वंदना को भी इसी तरह रिवॉल्वर के दबाव में बंदी बनाकर फ्लाइट डैक पर ही बिठा लिया गया।

बाकी के चार ऐसी चुनिंदा दिशाओं में खड़े थे कि ठीक प्रकार से यात्रियों पर नजर रख सकें कि कोई हरकत करने की चेष्टा करें तो फौरन नजर में आ जाए।

हर कोई खौफ और भय से भरे चेहरों से एक दूसरे को देखने का प्रयत्न कर रहा था। पैना सन्नाटा वहाँ छा चुका था।


देवराज चौहान की आँखों में सख्ती उभरी पड़ी थी। जगत खन्ना वक्त से पहले हरकत में आ गया था। ताकि वह पहले ही प्लेन पर कब्जा जमा ले और बाद में वह या कोई अपनी कोशिश में कामयाब न हो सके।

देवराज चौहान बगल में बैठी औरत को देखकर धीरे से बोला –

“आपके पास पेन है मैडम?”

सहमी-सी औरत ने जल्दी से बैग में से पेन निकालकर उसे दे दिया। देवराज चौहान ने जेब से उस औरत का दिया कार्ड निकाला और उसके पीछे कुछ लिखा। फिर आगे वाली सीट की पुश्त की तरफ देखा, जिसके पार रुस्तम राव बैठा था।

देवराज चौहान सीट पर सीधा हुआ और दूसरे ही पल फुर्ती के साथ सीट की पुश्त से वह कार्ड उस पार फेंक दिया जो कि रुस्तम राव की गोदी में जा गिरा।

“यह क्या किया!” औरत फुसफुसा उठी– “वह मेरा कार्ड था। मैंने काजोल से मिलना – । ”

“एक कार्ड और देना मैडम।” देवराज चौहान धीमे स्वर में कह उठा।

औरत ने एक कार्ड और दिया और देवराज चौहान ने उस पर भी कुछ लिखा। लेकिन अब दिक्कत थी, इसे सोहनलाल तक कैसे पहुँचाये। और कोई रास्ता न पाकर, कार्ड थामे देवराज चौहान ने बालों पर हाथ फेरा और कार्ड पीछे की तरफ गिरा दिया। देवराज चौहान को पूरा विश्वास था कि कार्ड सोहनलाल की निगाहों में आ गया होगा और वह उसे उठा भी लेगा।

“मिस्टर सुरेंद्र पाल!” औरत दबे स्वर में कह उठी – “आपने मेरा दूसरा कार्ड भी फेंक दिया।”

“वापस आ जाएगा।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

“क्या?”

“आपका कार्ड।”

और कुछ कहने को हुई कि खामोश होकर, ठिठकर पुनः बोली – “मेरा पेन।”

देवराज चौहान ने हाथ में थमा पेन उसकी तरफ बढ़ा दिया। उसकी पैनी निगाह प्लेन में रिवॉल्वरों सहित खड़े जगत खन्ना के पाँचों आदमियों पर फिर रही थी।

“यह लोग क्या चाहते हैं?” औरत ने पूछा।

“प्लेन हाइजैक कर रहे हैं।”

“क्यों?”

“इन्हीं से पूछ लीजिए।”

औरत ने फिर कुछ नहीं कहा।

देवराज चौहान ने दूसरी बगल में बैठे युवक को देखा जो बेहद आराम की मुद्रा में सीट से सिर टिकाए बैठा था। उसके चेहरे पर किसी तरह की चिंता, तनाव या उत्सुकता नहीं थी। हर इंसान अपनी आदत का मालिक था। कोई बिना बात पर चिंता करने लगता था तो कोई चिंता वाली बात पर भी चिंता नहीं करता था।



डैक का दरवाजा खोलकर प्रवेश करते ही जगत खन्ना का रास्ता साफ था। उसे कोई भी एअर होस्टेस नजर नहीं आयी। रास्ता पार करते हुए वह कॉकपिट तक पहुँचा। उसकी दरिंदगी भरी नजरें जोरों से चमक रही थीं।

खन्ना ने आहिस्ता से कॉकपिट के स्लाइडिंग डोर का मुट्ठा पकड़कर डोर को एक तरफ सरकाया। उसका तो खयाल था कि दरवाजा बंद होगा। परंतु वह खुलता चला गया।

जगत खन्ना रिवॉल्वर थामे सावधानी से भीतर प्रवेश कर गया।

कॉकपिट खाली था। सिर्फ दस फीट आगे कुर्सी पर गोपाल कौशिक बैठा था, जिसकी पीठ दिखाई दे रही थी। डोर खुलने की आवाज सुनकर भी उसने पीछे नहीं देखा।

कौशिक के हाथों की उंगलियाँ कंट्रोल से खेल रही थीं। डायलों और स्विचों की तरफ उसका पूरा ध्यान था। खुद को अकेला पाकर वह अपने सिर पर ढेर सारी जिम्मेदारी महसूस कर रहा था। लेकिन उसे पूरा विश्वास था कि हिंदुस्तान के विशाल एअरपोर्ट पर वह सुरक्षित प्लेन उतार लेगा। कॉकपिट के दरवाजा खुलने की आवाज सुनकर भी उसने पीछे नहीं देखा।

यही सोचा कि सूर्या या अन्य कोई एयर होस्टेस होगी।

परंतु चंद सैकंडों के पश्चात ही उसे गर्दन में ठंडे लोहे का अहसास हुआ।

कौशिक के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा। उसने पीछे देखना चाहा।

“ऐसे ही बैठे रहो।” जगत खन्ना गुर्राया।

कौशिक के होंठ भिंच गए।

“कौन हो तुम?” कौशिक के होंठों से निकला।
“शटअप! यह हाईजैकिंग है।” जगत खन्ना ने दाँत भींचकर कहा – “कोई चालाकी करने की कोशिश न करना। वरना, जान से हाथ धो बैठोगे।”

कौशिक कुछ पलों के लिए सन्न रह गया।

“मेरी बात सुनी।” कौशिक का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। महात्रे और कक्कड़ के न रहने की वजह से वह तो पहले ही खुद को अकेला महसूस कर रहा था और अब हाइजैकिंग के बारे में सुनकर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे?

“ऐसे ही प्लेन उड़ाते रहो।” जगत खन्ना ने खतरनाक स्वर में कहा – “जब प्लेन हिंदुस्तान की सीमा में प्रवेश कर जाए तो बात करना। तब बताऊँगा।”

“क्या बताओगे?”

“कि प्लेन कहां लैंड करना है।”

“पागल मत बनो।” कौशिक तेज स्वर में कह उठा – “यह बेवकूफी वाली हरकत छोड़ दो। यहाँ से वापस जाओ और जाकर अपनी सीट पर बैठ जाओ।” कहने के साथ ही कौशिक ने गर्दन घुमाकर पीछे देखा। कौशिक को सिर्फ कपड़ा लपेटे खन्ना नजर आया। नजर आती आँखों में दरिंदगी झलक रही थी।

“आगे देख, आगे।” खन्ना ने सुलगते स्वर में कहा।

बेचैनी में घिरे कौशिक ने चेहरा आगे घुमा लिया।

“पूरे प्लेन पर मेरा कब्जा है। मेरे साथियों ने हर किसी पर काबू पा रखा है।” खन्ना ने रिवॉल्वर की नाल का दबाव उसकी गर्दन पर बढ़ाते हुए कहा – “मेरी बात मानने के अलावा तुम्हारे पास और कोई रास्ता नहीं। चुपचाप मेरी बात मानते जाओ।”

गोपाल कौशिक के होंठ भिंच गए।

“मुझे लगता है, तुम पागल हो या फिर पागल हो गए हो।” कौशिक ने दाँत भींचकर कहा – “मैं अकेला हूँ और तुमने कभी सुना है यात्री विमान को अकेला पायलट चलाता हो।”

जगत खन्ना के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा।

‘यह ठीक ही तो कह रहा है।’ उसने सोचा।

“क्या कहना चाहते हो?” खन्ना ने शब्दों को चबाकर कहा।

“यात्री प्लेन के चालक दल में कम से कम तीन पायलट तो हर हाल में होते हैं। लेकिन मैं अकेला हूँ। यह नहीं देख तुमने। आ गए प्लेन को हाइजैक –”

“शटअप!” जगत खन्ना गुर्राया।

कौशिक खामोश हो गया। चेहरे पर सख्ती उभर आयी थी।

“बातों में लगाकर अगर तुम यह सोचो कि तुम्हारी हेल्प के लिए कोई आ –”

“कोई नहीं आएगा।” कौशिक ने उखड़े स्वर में कहा – ” तुम रिवॉल्वर लेकर यहाँ तक आ गए हो तो मैं समझ सकता हूँ, अब इस तरह तुम्हारा ही कोई आदमी आ सकता है। दूसरा कोई नहीं।”

खन्ना ने रिवॉल्वर का दबाव बढ़ाया।

“बाकी के पायलट कहाँ हैं?”

“इस वक्त प्लेन में, मैं अकेला ही हूँ प्लेन हैंडल करने वाला। फ्लाइट का कप्तान और उसका अस्सिटेंट मर चुके हैं। उनकी लाशें विमान के किचन में पड़ी हैं। मैं सेकंड असिस्टेंट पायलट हूँ जो अभी…”

“शटअप!” खन्ना दाँत भींचकर गुर्रा उठा – “बकवास मत करो। तुम… ।”

“मैं बकवास नहीं कर रहा। सच कह रहा हूँ।” कौशिक ने दाँत भींचकर कहा और अपना हाथ बढ़ाकर वह ऑटोमेटिक पायलट पैनल के स्विच ऑन करने लगा।

स्विच ऑन करने के साथ-साथ वह कुछ क्षणों के लिए वह ठिठका, यह देखने के लिए कंट्रोल ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं। जब इंडिकेटर लाइट ऑन होकर अगली स्टेज स्विच ऑन करने की सूचना देती तो, वह अगला स्विच दबा देता। एलेरॉन्स के कम्पनसेटिंग डायल को थोड़ा एडजस्ट दिया ताकि उसे ठीक तरह से इलेक्ट्रानिक्स कंट्रोल में लाया जा सके। फिर राडार और एलीवेटर्स को तब तक दबाए ऑपरेट किया जब तक कि छह की छह लाइटें पैनल पर सही ढंग से सेट नहीं हो गयी।

“क्या कर रहे हो?” खन्ना गुर्राया।

“खामोश रहो!” कौशिक ने दाँत भींचकर कहा।

उसके बाद कौशिक ने पी डी आई डायल को देखा।

सब ठीक था। अब विमान ऑटोमैटिक कंट्रोल के हवाले हो गया था। वह इसी ऊँचाई और इसी एंगल पर तब तक उड़ता रहेगा जब तक उसे ऑटोमेटिक कंट्रोल से न हटाया जाए या फिर उसका फ्यूल न समाप्त हो जाए।

सीटों के सामने के दोनों कंट्रोल कॉलम खुद ब खुद आगे पीछे हो रहे थे, जैसे कोई बैठा उन्हें हिला रहा हो। तेज हवा के विमान से टकराने पर रडार की सुई बार-बार हिलने लगती थी। दोनों इंस्ट्रूमेंट पैनलों पर दसियों सुइयाँ अपना अपना काम करने में व्यस्त थीं।

इस सारे काम से निपटकर कौशिक ने माइक्रोफोन और हेडफोन उतारकर एक तरफ रखा और कुर्सी छोड़कर खड़ा होने लगा तो खन्ना उसकी गर्दन पर नाल का दबाव बढ़ाकर गुर्रा उठा।

“बैठो रहो। उठने की कोशिश मत करो।”

“जुबान बंद रखो।” कौशिक कठोर स्वर में कहते हुए उठा और मुड़ते हुए बोला – “कम अक्ल के इंसान इतना जान लो कि इस वक्त मैं फ्लाइट में अकेला हूँ जो प्लेन को एयरपोर्ट पर लैंड कर सकता हूँ। जरा उस वक्त की सोचो कि प्लेन इसी तरह ऑटोमैटिक सिस्टम पर मीलों ऊँचाई पर उड़ रहा हो और प्लेन में कोई ऐसा इंसान न हो, जिसे प्लेन को लैंड करना आता हो, जानते हो तब क्या होगा, तब प्लेन किसी ऊँची पहाड़ी से टकरा जाएगा। जबरदस्त विस्फोट होगा। या प्लेन का फ्यूल समाप्त हो जाएगा तो नीचे गिरते हुए किसी से टकराकर सब कुछ समाप्त हो जाएगा।”

जगत खन्ना होंठ भींचे कौशिक को घूरता रहा।

“आओ। पहले मैं तुम्हें अपने ऑफिसर पायलटों के हाल दिखा दूँ।” कौशिक ने कड़वे स्वर में कहा – “बाकी की बातें उसके बाद कर लेंगे।”

“तुम कोई चाल –।”

“बेवकूफ! मैं तुम्हें जो समझाने की कोशिश कर रहा हूँ, वह समझो। प्लेन में इस वक्त ऐसे हालात पैदा हो चुके हैं कि अगर तुममें जरा भी अक्ल होगी तो वापस जाकर अपनी सीट पर बैठ जाओगे।”


जगत खन्ना ने विमान के किचन में तीनों लाशें देखीं। लाशें ताजा थीं। वह तो सोच भी नहीं सकता था कि जमीन से तीन चार मील ऊपर आसमान में इस तरह का खून खराबा हो सकता है।

रोमा को खन्ना ने पहचाना कि जब प्लेन रोम एयरपोर्ट से उड़ा था तो वह यात्रियों को उसकी जरूरत की चीजें सर्व कर रही थी। तब मन ही मन उसने रोमा की खूबसूरती की तारीफ की थी और महात्रे और कक्कड़ के जिस्म पर वर्दियों से स्पष्ट मालूम हो रहा था कि चालक दल के सदस्य हैं।

“देख लिया!”

“कैसे हुआ ये सब?” जगत खन्ना के होंठों से निकला।

“तुम्हें इस बात से क्या मतलब?” कहने के साथ कौशिक पलटा और कॉकपिट की तरफ बढ़ता हुआ उखड़े अंदाज में बड़बड़ा उठा –”एक मुसीबत टली नहीं की दूसरी आ गयी!” कॉकपिट में प्रवेश करने के बाद सिटकनी लगाने के लिए कौशिक दरवाजा बंद कर रहा था कि दरवाजे में जगत खन्ना ने जूता फँसा दिया।

उसे देखते भी कौशिक के माथे पर बल पड़ गए।

“तुम?”

“हाँ।” दरवाजा धकेलते हुए जगत खन्ना रिवॉल्वर थामे भीतर आ गया – “तुमने जो दिखाया वो मैंने देख लिया।” खन्ना के स्वर में क्रूरता आ गयी थी – “अब मैं जो कह रहा हूँ, वह करो। इस विमान को उतारने के लिए हिंदुस्तान में खास जगह पर हवाई पट्टी तैयार कर रखी थी। जरा सी सावधानी का इस्तेमाल करते हुए वहाँ प्लेन उतारा जा सकता है। कोई दिक्कत नहीं आएगी। मैं तुमसे वायदा करता हूँ कि किसी भी यात्री को परेशान नहीं किया जायेगा। हमें विमान से कुछ लेना…”

गोपाल कौशिक का पूरा शरीर गुस्से से भर उठा।

“बेवकूफ! तुम पागलखाने से भागकर तो नहीं आए। मैं तुम्हें विमान के दोनों पायलट की लाशें दिखा चुका हूँ और मैं अभी ट्रेनिंग पर हूँ। इतना बड़ा प्लेन सम्भालना मेरे अकेले के बस का नहीं है। मुझे तो इस बात की चिंता हो रही है कि प्लेन को ठीक-ठाक एयरपोर्ट पर कैसे उतारूँगा – और तुम किसी मामूली सी हवाई पट्टी पर प्लेन उतारने की बात कर रहे हो? दिल तो चाहता है, तुम्हें उठाकर प्लेन से नीचे फेंक दूँ।”

जगत खन्ना के जबड़ों पर कसाव आ गया।

“ज्यादा तमाशा मत करो। तुम सब कुछ कर सकते हो। यहाँ पर मेरा कब्जा है। जो मैं कहता हूँ, वो करो। वरना जानते हो क्या होगा।” क्रूर स्वर में कहते हुए खन्ना ने रिवॉल्वर की नाल कौशिक की छाती पर रख दी।

कौशिक तो पहले से ही परेशान और चिंतित था, जगत खन्ना की बात पर और सड़ गया। अपनी छाती पर रखे रिवॉलवर को एक तरफ करता हुआ गुर्राया–

“क्या कर लोगे तुम?” बोलो– क्या कर लोगे। गोली मार दोगे। मारो गोली मुझे। उल्लू के पट्ठे, मैं मर गया तो प्लेन या तेरा बाप नीचे उतारेगा? याद रख, इस प्लेन में मैं इकलौता इंसान हूँ जो इस प्लेन को जैसे भी हो, ठीक ठाक नीचे उतार सकता है। नहीं तो प्लेन में मौजूद इंसानों के चीथड़े मिलेंगे, नीचे वालों को देखने को। दफा हो यहाँ से। मैं… ।”

“तुम मेरी कही जगह पर प्लेन उतारोगे।” जगत खन्ना दाँत भींचकर कह उठा।

“तेरी तो…।” दाँत भींचे गोपाल कौशिक, जगत खन्ना पर झपट पड़ा और उसकी रिवॉल्वर छीनने की चेष्टा करने लगा– “कमीने, तेरे को बोला कि मैं अभी एक्सपर्ट पायलट नहीं बना कि जैसे भी हवाई पट्टी पर प्लेन उतार लूँ। विशाल एयरपोर्ट पर भी प्लेन उतारने के लिए मुझे हज़ारों बार भगवान का नाम लेना पड़ेगा – और तू साले टाट की पट्टी पर प्लेन उतारने…”

“होश में आ।” खन्ना गुर्राया– “मेरी कलाई छोड़ दे। नहीं तो गोली चल जाएगी।”

“तो चला दे। मैं मरा तो तुममें से कोई भी जिंदा नहीं बचेगा।” कौशिक के कड़े स्वर में कहा– “यहाँ दो तीन पायलट होते तो तू एक-आध को मारकर दूसरों में दहशत फैला सकता था। अब– ।”

खन्ना ने अपनी कलाई छुड़ाकर कौशिक को धक्का दिया।

कौशिक लड़खड़ाकर दो-तीन कदम पीछे हो गया। चेहरे पर गुस्सा भरा हुआ था।

“बोल – मेरे कहने पर प्लेन लैंड करेगा!”

“नहीं। मैं एयरपोर्ट के अलावा कहीं भी विमान को नहीं उतार सकता।”

“मैं तुझे गोली मार दूँगा।” खन्ना ने दरिंदगी-भरे स्वर में कहा।

“मारे दे। लेकिन इतना सोच ले कि मेरी मौत के साथ तुम सबको मौत होगी और मेरी ज़िंदगी के साथ ही तुम लोगों की ज़िंदगी बँधी है।” कौशिक ने कड़वे स्वर में कहा।

दाँत किटकिटाकर खन्ना ने झपट्टा मारा और रिवॉल्वर की नाल कौशिक के गाल पर मारी। कौशिक के होंठों से चीख निकली। गाल कट जाने से मुँह में खून भर आया।

“अब बोल– ।”

“पागल कुत्ते!” कौशिक जग खन्ना पर झपट पड़ा – “तेरे को बोला कि मैं प्लेन को कहीं भी लैंड करने की काबिलियत नहीं रखता। एयरपोर्ट जैसी बड़ी हवाई पट्टी पर ही, ढेर कोशिशों के बाद कामयाब हो सकता हूँ।” इसके साथ ही वह खन्ना के साथ गुत्थमगुत्था हो गया। खन्ना के हाथ में दबी रिवॉल्वर छीनने की वह पूरी कोशिश कर रहा था।

और खन्ना को जब लगा कि रिवॉल्वर उसके हाथ से निकलकर कौशिक के हाथ में जा रही है तो बेवकूफ ने और कोई रास्ता न पाकर ट्रिगर दबा दिया। फायर का तेज धमाका हुआ। गोली चलते समय रिवॉल्वर की नाल ऊपर की तरफ थी। जिसकी वजह से गोली कौशिक के पेट में प्रवेश करके छोटी की पसलियों में जा फँसी।

गोपाल कौशिक के शरीर को तीव्र झटका लगा और वह वहीं कॉकपिट के फ्लोर पर ही गिरता चला गया। यह सब देखकर जगत खन्ना हक्का बक्का रह गया। गोली चलाने का उसका कोई इरादा नहीं था, फिर भी जाने कैसे ट्रिगर दब गया। हड़बड़ाया-सा वह जल्दी से नीचे झुका।

“तुम ठीक हो। सुनो, तुम ठीक –।”

“यह तुमने क्या कर दिया … ।”

कौशिक की आँखें न खुल पा रही थीं। पेट से खून निकल कर बहे जा रहे था – “मैं प्लेन उतार लेता। तुम सबको बचा लेता। अब कोई नहीं बच सकता। तुमने मेरी नहीं स… सबकी जान ले ली। त… तुम सब मरोगे।” इसके साथ ही कौशिक के शरीर में तीव्र कंपन हुआ और उसका शरीर ढीला पड़ता चला गया।

जगत खन्ना का चेहरा सफेद हो चुका था।

“सुनो… सुनो।” खन्ना पागलों की तरफ कौशिक की लाश को हिलाने लगा।

कॉकपिट में मरघट-सा सन्नाटा छा गया।

खन्ना ने जल्दी से नजरें उठाकर प्लेन की विंड शील्ड की तरफ देखा। अब बाहर कोहरा नहीं था। तारे चमकते दिखायी दे रहे थे। चंद्रमा की भी झलक मिली। लेकिन उसका चेहरा हल्दी की तरह पीला पड़ चुका था। आँखों में दशहत नाचने लगी थी। उसे इस बात पर विश्वास नहीं आ रहा था कि तेज रफ्तार से जा रह वह एक ऐसे प्लेन में सवार था, जिसे सम्भालने के लिए कोई पायलट जिंदा नहीं बचा था।

जगत खन्ना ने चेहरे पर बँधा कपड़ा उतारा और काँपती टाँगों से बाहर की तरफ भागा।


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