पुस्तक अंश: तू है भ्रष्टाचार की माँ

 ‘तू है भ्रष्ट्राचार की माँ’ रीमा भारती श्रृंखला का उपन्यास है। नशे के कारोबार के इर्द गिर्द लिखा गया यह उपन्यास धीरज पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया था। 
आज एक बुक जर्नल पर पढ़िए रीमा भारती के इसी उपन्यास तू है भ्रष्टाचार की माँ का एक छोटा सा अंश:

*****

पुस्तक अंश: तू है भ्रष्टाचार की माँ - रीमा भारती

विनोद जायसवाल को होश आया तो उसने खुद को एक आधुनिक टॉर्चररूम में इलेक्ट्रॉनिक चेयर पर पाया।

टॉर्चर रूम में उस समय दो सी एफ एल रोशन थे और वो जिस इलेक्ट्रॉनिक चेयर पर था, उसमें उसके दोनों हाथ हत्थों से जुड़े स्टील के मजबूत कड़ों की गिरफ्त में थे। ऐसे ही उसके दोनों पाँव कुर्सी के दोनो पाँवों से जुड़े स्टील के कड़ों की गिरफ्त में थे।

ये देख उसके हाथ पाँव फूल गये।

फिर बेहोश होने से पूर्व की घटना उसके दिमाग में घूम गई। वह चिंतित भाव से बड़बड़ाया -“कौन हैं ये लोग और इन्होने मेरा अपहरण क्यों किया? क्या चाहते हैं ये मुझसे?”

….

अगले ही पल वो गला फाड़कर चिल्लाया – “कोई है..कोई है…”

रुक-रूककर कई बार चिल्लाने पर सामने वाला दरवाजा खुला और उसमें से जिसने कमरे के अंदर कदम रखा उसे देखकर उसकी आँखें मारे हैरत के फट सी पड़ीं।

“त…तुम?” उसकी तरफ फटी-फटी सी निगाहें देखते हुए बोला।

“हाँ बे मैं।” रीमा भारती उसकी तरफ बढ़ते हुए विषभरे लहजे में बोली,”दिमाग की चकरी बन गई न मुझे यहाँ देखकर?”

“तुमने ये ठीक नहीं किया रीमा भारती!” वो तिलमिलाते हुए बोला, “इसके लिए तुम्हें गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे। मैं पूरे प्रांत के स्टूडेंट्स को एकजुट करके सरकार पर.. तुम्हारे विभाग के चीफ ऑफ़ डायरेक्टर पर हमला बोलूँगा। तुम्हारी नौकरी हर लूँगा।”

“तू कुछ नहीं कर सकेगा,” रीमा उसे कहर भरी नजरों से घूरते हुए गुर्राई, “तेरा काम तमाम करने के लिए ही मैंने तुझे उठवाया है।”

“क्या मतलब?”

“मतलब बताया तो अभी-अभी। नहीं समझा तो फिर से सुन ले। तुझे एक योजना के तहत उठवाया है मैंने…”

“कैसी योजना?”

“इस बारे में कल बताऊँगी तुझे।” कहते हुए रीमा ने सिगरेट सुलगाई।

तभी वहाँ एक अधेड़ पहुँचा जिसके गले में कैमरा था। उसके वहाँ पहुँचते ही रीमा ने उसे इशारा किया तो वो विनोद जायसवाल की फोटो खींचने लगा।

“य..ये मेरी फोटोएं क्यों खींच रहा है?” हकलाकर बोला विनोद।

“मिस्टर छात्र नेता।” रीमा उसकी तरफ उसका मजाक उड़ाने वाले अंदाज में देखते हुये व्यंग्य भरे लहजे में बोली, “इतना तो तुम्हें पता ही होगा कि मरने के बाद मरने वाले की फोटो, फोटो पर हार डालने के लिए चाहिए होती है।”

“तुम मुझे मार नहीं सकती हो।”

“क्यों? तुमने अमृत पिया हुआ है क्या?”

“मेरी मौत के बाद इस शहर में वो तूफ़ान उठेगा कि प्रशासन से संभाला नहीं जायेगा।”

“कुछ नहीं होगा। कोई तूफ़ान-सूफान नहीं उठेगा। तुम्हारी मौत के बाद होगा ये कि लोग तुम्हारी याद करके तुम्हें हजार-हजार गालियाँ दिया करेंगे। कॉलेज के तुम्हारे संगी-साथी तुम्हें नफरत से याद करेंगे। तुम्हारे माता-पिता भी यही कहेंगे कि अच्छा हुआ जो कपूत मारा गया। हाँ बे, ऐसी मौत मारने वाली हूँ मैं तुझे।”

“ऐसे कैसे हो सकता है? ये इम्पोसिबल है…।”

“इस दुनिया में कुछ भी इम्पोसिबल नहीं है। मैंने जो कहा, वो होगा। कैसे होगा, ये कल बताऊँगी।” फिर वो फोटोग्राफर से मुखातिब हुई, “हो गया काम तो चलें?”

“यस मैडम – हो गया।”

फिर विनोद को गहरे संस्पैंस, और दहशत में छोड़कर रीमा उस अधेड़ फोटोग्राफर के साथ वहाँ से रुखसत हुई।

*****

विनोद जायसवाल को  रीमा ने टॉर्चररूम में क्यों डाला था?
वह उसकी तस्वीरों से क्या करना चाहती थी? क्या वह अपनी योजना में कामयाब हो पाई?
ऐसे ही कई सवालों के जवाब आपको इस उपन्यास को पढकर मिलेंगे।

उपन्यास की समीक्षा: तू है भ्रष्टाचार की माँ

© विकास नैनवाल ‘अंजान’


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

2 Comments on “पुस्तक अंश: तू है भ्रष्टाचार की माँ”

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-12-2020) को "हाड़ कँपाता शीत"  (चर्चा अंक-3917)   पर भी होगी। 
    — 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    — 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर…! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

    1. जी, चर्चा अंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *