राजन इकबाल एस सी बेदी जी के सबसे मकबूल किरदार हैं। राजन और इकबाल दोनों ही बाल सीक्रेट एजेंट हैं जो कि अपने मिशन के चलते कई खतरनाक मामलों से उलझते रहते हैं और देश के दुश्मनों के दाँत खट्टे करते रहते हैं।
आज हम राजन इकबाल शृंखला के बाल उपन्यास ‘लकड़ी का रहस्य’ का एक छोटा सा अंश आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। उम्मीद है यह अंश आपको पसंद आयेगा।

सारी कहानी सुनने के बाद राजन सिर्फ उसे घूरकर रह गया।
“इस तरह मत घूरो, मेरे फेफड़ों को कुछ होता है।
मुँह से कुछ बोलो, मेरा नन्हा सा दिल रोता है।”
राजन इस बार भी खामोश रहा तो इकबाल झल्लाए स्वर में बोला – ‘यार! तुम्हें इतनी शानदार कहानी सुनाई है – तब भी तुम्हारी बोलती अभी तक बंद है।’
“तुमने काम ही बोलती बंद वाला किया है।” राजन मुस्कराता हुआ बोला।
“क्या?”
“तुमने एक भूल की है।”
“ठीक कह रहे हो- मैंने पैदा होकर बहुत बड़ी भूल की है।”
“वह भूल तुम्हारी नहीं है। क्योंकि पैदा तो तुम्हें होना ही था।”
“मैं पैदा होने से इनकार कर देता तो?”
“पैदा होना या मरना ऊपर वाले के हाथ में है। इस मामले में तुम्हारी कोई औकात नहीं।”
“अब भूल भी बता दो।”
“जब वह दोनों व्यक्ति उस इमारत में दाखिल हो गये थे तो तुम्हें उसी समय वापस लौट आना चाहिए था। क्योंकि वह इमारत वही है, जिसमें कुछ दिन पहले पी .एल. गुप्ता का कत्ल हुआ था।”
“तो यही बात पहले क्यों नहीं बताई?”
“अपनी बुद्धि से काम लेना सीखो।”
“बुद्धि से काम लेते हुए मैं तुम्हें सलाह देता हूँ कि तुरंत उस इमारत पर छापा मार देना चाहिये, क्योंकि वह इमारत अपराधियों का अड्डा है।”
“अब कोई फायदा नहीं, तुम्हारे इमारत के अंदर जाने से सावधान हो गये होंगे और अब तक अपना तामझाम समेटकर वहाँ से जा चुके होंगे।”
“लेकिन ब्यूटी नाईट क्लब का हंगामा मेरी समझ में नहीं आया।”
“हंगामा, हंगामा ही होता है।”
“तो यही बता दो- फायरिंग के समय जिस लड़की को तुमने खींचा था — वह कौन थी?”
“क्या तुम उसे जानते हो?”
“हाँ! वह नसीम बानो है। तुम्हारे जाने से कुछ देर पहले ही मेरी उससे प्यारी सी मुलाकत हुई थी।”
“उसके बारे में क्या जानते हो?”
“बहुत सुन्दर व स्मार्ट है। जब मुस्कराती है तो ऐसा लगता है – पूरे बगीचे के फूल खिल उठे हों।”
“इसके सिवाय तुम और जान भी क्या सकते हो। वैसे परिचय कैसे हुआ था?”
इकबाल ने आँख मारने वाली सारी घटना बयान कर दी।
राजन कुछ क्षण खामोशी से सोचता रहा, फिर बोला – “तुम नसीम से दोबारा मिलने की कोशिश करो।”
“यार! क्यों मरवाना चाहते हो?”
“क्या मतलब?”
“जब सलमा को मालूम होगा- उसकी गैरहाजिरी में मैं गैर लड़कियों के पीछे भागता रहा हूँ तो वह थप्पड़ प्लस चप्पल से मेरी मरम्मत कर देगी।”
“इसके अलावा अगर तुम्हें डंडे से भी मार खानी पड़े लेकिन तुम्हें नसीम बानो की तलाश करनी ही है।”
इकबाल कुछ कहता – उससे पहले ही फोन की घंटी बज उठी। इकबाल ने रिसीवर उठाया। दूसरी तरफ इंस्पेक्टर बलवीर था।
वह तुरंत बोला – “सत श्री अकाल जी, पंजाब तो कद आये, की हाल है ओथे दा?”
“ठीक है।”
“साडी परजाई ने मक्की दी रोटी व सरसों दा साग खिलाया या सिर्फ मूच्छा नूं मक्खन लाके ही भेज दीता है?”
“इकबाल! राजन को बहुत जरूरी खबर देनी है। पार्क लेन वाली इमारत में फिर किसी का कत्ल हो गया है।”
“हूलिया बताइये।”
“लम्बा तगड़ा आदमी है। घनी दाढ़ी मूंछे हैं, माथे पर जख्म का निशान है।”
“ठीक है! मैं राजन को बता देता हूँ।”
दूसरी तरफ से सम्बन्ध विच्छेद होते ही इकबाल ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया फिर राजन को सारी बात बता दी। सुनने के बाद वह बोला- “अवश्य वह वही व्यक्ति है, जिसे घायल करके तुम भाग आये थे।”
“मुझे भी ऐसा ही लगता है।”
“तुम जाकर देखो, लेकिन बलबीर अंकल को इस बात का पता नहीं लगना चाहिए कि तुम उससे टकरा चुके हो।”
“यार, तुम डालडा हो।”
“कैसे?”
“मैं तो नसीम की खोज में जा रहा हूँ। फिर वहाँ कैसे जा सकता हूँ?”
“पहले वहाँ जाओ।”
“एक शर्त पर जाऊँगा – पहले मेरी ताजा-तरीन नई दुल्हन की तरह सजी हुई झख सुनो।”
राजन ने हाथ को जैसे ही घूँसे की शक्ल दी, इकबाल दरवाजे की तरफ छलाँग लगाता हुआ बोला – “एटम बम रहने दो, जाता हूँ- नमस्ते।”
राजन मुस्करा दिया।
उम्मीद है कि यह पुस्तक अंश आपको पसंद आया होगा।