ह्यूमन 2.0 – सोम जायसवाल |
“उसके सीने में गोली लगी है आदर्श । वह मर चुका है । उसकी साँसें थम चुकी हैं । क्यों लाये हो इसे यहाँ ?”
“बताया तो । जिंदा करने के लिए ।”
“यह असम्भव है । मैं भी डॉक्टर हूँ । मुझे तुम मूर्ख नहीं बना सकते । अब तक उसका ब्रेन, ऑक्सीजन की कमी से डेड हो चुका होगा और खून भी शरीर में जम चुका होगा ।”
“ठहरो, बताता हूँ !” आदर्श ने हाथ से इशारा किया, “पहले इसके सीने से गोली तो निकाल दूँ ।”
आदर्श के हाथ में चाकू सहित कुछ इंस्ट्रूमेंट थे जिन्हें वह किचन से लाया था ।
वह उस लाश के पास पहुँचा और सीने की तरफ झुककर चाकू का एक सिरा उसके जख्म पर डालकर गोली निकालने का प्रयास करने लगा ।
“मैं कुछ मदद करूँ ?” जाह्नवी ने आदर्श की तरफ देखा ।
“ओह ! मैं तो भूल ही गया था कि तुम डॉक्टर हो ।” आदर्श ने मुस्कुराते हुए चाकू और ब्लेड जाह्नवी के हाथ में दे दिया ।
थोड़ी ही देर में जाह्नवी ने उसके सीने से वह बुलेट निकाल दी ।
“गुड ! अब मेरे पास दो इजेक्शन हैं । उसे तुम्हें एक इसके गले में और दूसरा सिर के पास ऐसे लगाना है कि उसका अधिकतर असर सिर पर हो ।”
“कैसा इंजेक्शन है यह ?” जाह्नवी, आदर्श के हाथ में वह इंजेक्शन देखकर बोली ।
“एक जो खून को पतला करेगा और दूसरा जो इसका ब्रेन पूरी तरह डेड नहीं होने देगा ।
इसके अलावा इसमें मौजूद लाखों सुपर एडवांस माइक्रोस्कोपिक नैनो बोट्स इसके अंदर रक्त कोशिकाओं की तरह काम करेंगे ।
यह शरीर के अंदर मौजूद रक्त कोशिकाओं से कई गुना बेहतर तरीके से काम करते हैं । इसे कोई बीमारी नहीं होने देंगे और क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को तुरंत रिपेयर भी कर देंगे ।”
जाह्नवी की आँखें फटी की फटी रह गयी ।
“क्या कर रहे हो तुम यह सब ?”
“सुना है न इसके बारे में ?” आदर्श मजे लेते हुए बोला ।
“हाँ, सुना है ! लेकिन अभी इस पर रिसर्च चल रहा है । ऐसा अभी आने वाले 25-30 सालों में शायद ही मुमकिन हो पाए ।”
“बहुत कुछ हो चुका है मेरी जान । बस दुनिया के सामने आना बाकी रह गया है । तुम्हें और झटका लगेगा जब मैं तुम्हें सब कुछ बताऊँगा ।
इंसानों पर इस तरह का एक्सपेरिमेंट करना सही नहीं है । इसीलिए सरकार मुझे कभी इसकी इजाजत नहीं देती । पर यहाँ मैं अब तक पाँच लोगों को नया जीवन दे चुका हूँ ।”
“व्हाट ?” जाह्नवी का मुँह खुला का खुला रह गया ।
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यह था सोम जायसवाल के नवप्रकाशित उपन्यास ह्यूमन 2.0 का पुस्तक अंश। पुस्तक आप सूरज पॉकेट बुक्स की साईट से निम्न लिंक पर जाकर मँगवा सकते हैं:
ह्यूमन 2.0
लेखक परिचय:
सोम जायसवाल |
उत्कृष्ट संकल्पना के लिए लेखक को साधुवाद प्रणाम
बहुत शुक्रिया
पुस्तक रोचक लग रही है…
जी सही कहा….
बहुत शुक्रिया
'विज्ञान गल्प' विज्ञान प्रगति में ही पढे थे, रोचक होते हैं। उपन्यास रूपें देख कर अच्छा लगा।
वैसे गोली निकालने का यह दृश्य 'चाकू द्वारा' कुछ अलग होता तो अच्छा था।
अच्छी जानकारी दी, धन्यवाद।
-गुरप्रीत सिंह
– http://www.svnlibrary.blogspot.com
जी कुछ चीज़ें वक्त के साथ भी नहीं बदलती हैं। वैसे देखना ये है कि यह दृश्य कहाँ घटित हो रहा है। जहाँ तक बातचीत से पता लग रहा है वो ऐसी जगह है जहाँ ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। जानकरी आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा। आभार।
अत्यंत रोचक कथानक।
जी सही कहा।