चट्टानों में आग मशहूर लेखक इब्ने सफ़ी की अली इमरान श्रृंखला का दूसरा उपन्यास है। अली इमरान एक तेज तर्रार नौजवान है जो जटिल से जटिल मामलों को सुलझाने की कूव्वत रखता है लेकिन अक्सर वह लोगों के समक्ष खुद को बेवकूफ दर्शाता रहता है। इससे उसके दुश्मन उसे कम आँकने लगते हैं और वह अपने मिशन में अक्सर कामयाब हो जाता है। उसकी यही बेवकूफियाँ कथानक में भरपूर हास्य पैदा करती हैं। हाँ , कई बार यह बेवकूफियाँ जरूरत से ज्यादा होने पर किरदारों के साथ पाठक के झल्लाने का खतरा भी रहता है।
प्रस्तुत उपन्यास में कैप्टेन फ़ैयाज़ के कहने पर अली इमरान सोनागिरी पहुँच चुका था। यहाँ वह कर्नल ज़रग़ाम को किसी मुसीबत से निजाद दिलाने वाला था। लेकिन जब वह कर्नल से पहली बार मिला तो क्या हुआ यह आप नीचे दिए गये अंश में देखिये।
उम्मीद है यह अंश आपको पसंद आएगा।
**********
कर्नल ने इमरान को ऊपर से नीचे तक तौलने वाली नजरों से देखा। फिर मुस्करा कर बोला-
“कैप्टेन फ़ैयाज़ तो अच्छे हैं?”
“अजी तौबा कीजिये! नियाहत नामाकूल आदमी हैं!” इमरान ने सोफे पर बैठते हुए कहा। उसने कंधे से बंदूक उतार कर सोफे के हत्थे से लटका दी।
“क्यों नामाकूल क्यों?” कर्नल ने हैरत से कहा।
“बस यूँ ही।” इमरान संजीदगी से बोला, “मेरा ख्याल है कि नामाकूलियत की कोई वजह नहीं होती।”
“खूब!” कर्नल उसे घूरने लगा। “आपकी तारीफ़?”
“अजी ही…ही…ही, अब अपने मुँह से अपनी तारीफ़ क्या करूँ।” इमरान शर्मा कर बोला।
अनवर किसी तरह जब्त न कर सका। उसे हँसी आ गयी और उसके फूटते ही आरिफ भी हँसने लगा।
“यह क्या बदतमीजी है!” कर्नल उनकी तरफ मुड़ा।
दोनों यकायक खामोश होकर बगले झाँकने लगे। सोफिया अजीब नजरों से इमरान को देख रही थी।
“मैंने आपका नाम पूछा था।” कर्नल ने खंखार कर कहा।
“कब पूछा था?” इमरान चौंक कर बोला।
“अभी,” कर्नल के मुँह से बेसाख्ता निकला और वे दोनों भाई अपने मुँह से रुमाल ठूँसते हुए बाहर निकल गये।
“इन दोनों की शामत आ गयी है।” कर्नल ने गुस्सायी आवाज़ में कहा और वह भी तेजी से कमरे से निकल गया। ऐसा मालूम हो रहा था जैसे वह उन दोनों को दौड़ कर मारेगा।
इमरान बेवकूफों की तरफ बैठा रहा। बिल्कुल ऐसे ही निर्विकार भाव से जैसे उसने कुछ देखा-सुना ही न हो। सोफिया कमरे में ही रह गयी थी और उसकी आँखों में शरारती चमक लहराने लगी थी।
“आपने अपना नाम नहीं बताया।” सोफिया बोली।
इस पर इमरान ने अपना नाम डिग्रियों समेत दुहरा दिया। सोफिया के अंदाज से ऐसा मालूम हो रहा था जैसे उस इस पर यकीन न आया हो।
“क्या आपको अपने यहाँ आने का मकसद मालूम है?”, सोफिया ने पूछा।
“मकसद?” इमरान चौंक कर बोला, “जी हाँ, मकसद मुझे मालूम है, इसीलिए मैं अपनी एयरगन साथ लाया हूँ।”
“एयरगन!” सोफिया ने हैरत से दुहराया।
“जी हाँ।” इमरान ने संजीदगी से कहा, “मैं हाथ से मक्खियाँ नहीं मारता।”
कर्नल, जो पिछले दरवाजे में खड़ा उनकी गुफ्तगू सुन रहा था, झल्ला कर आगे बढ़ा।
“मैं नहीं समझ सकता कि फ़ैयाज़ ने बेहूदगी क्यों की?” उसने सख्त लहजे में कहा और इमरान को घूरता रहा।
“देखिये, है न…नामाकूल आदमी! मैंने तो पहले ही कहा था!” इमरान चहक कर बोला।
“आप कल पहली गाड़ी से वापस जायेंगे!” कर्नल ने कहा।
“नहीं!” इमरान ने संजीदगी से कहा, “मैं एक हफ्ते का प्रोग्राम बना कर आया हूँ।”
“जी नहीं, शुक्रिया!”कर्नल खिन्न हो कर बोला, “मैं आधा मुआवज़ा दे कर आपको विदा करने पर तैयार हूँ। आधा मुआवज़ा कितना होगा?”
“यह तो मक्खियों की तादाद पर है।” इमरान ने सर हिलाकर कहा, “वैसे एक घण्टे में डेढ़ दर्जन मक्खियाँ मारता हूँ…और…”
“बस…बस।” कर्नल हाथ उठा कर बोला, “मेरे पास बेकार बातों के लिए वक्त नहीं!”
“डैडी…प्लीज़!” सोफिया ने जल्दी से कहा, “क्या आपको तार का मजमून याद नहीं।”
“हूँ!” कर्नल कुछ सोचने लगा। उसकी नजरें इमरान के चेहरे पर थीं जो मूर्खों की तरह बैठा पलकें झपका रहा था।
“हूँ…तुम ठीक कहती हो।” कर्नल बोला। अब उसकी नजरें इमरान के चेहरे से हट कर बंदूक पर जम गयीं।
उसने आगे बढ़ कर बंदूक उठा ली और फिर उसे गिलाफ से निकालते ही बुरी तरह बिफर गया।
“क्या बेहूदगी है!” वह हलक फाड़ कर चीखा, “यह तो सचमुच एयरगन है।”
इमरान के इत्मीनान में ज़र्रा बराबर भी फर्क नहीं आया।
उसने सिर हिलाकर कहा, “मैं कभी झूठ नहीं बोलता।”
कर्नल का पारा इतना चढा कि उसकी लड़की उसे धकेलती हुई कमरे के बाहर निकाल ले गयी। कर्नल सोफिया के अलावा और किसी को खातिर में न लाता था। अगर उसकी बजाय किसी दूसरे ने यह हरकत की होती तो वह उसका गला घोंट देता। उनके जाते ही इमरान इस तरह मुस्कराने लगा जैसे यह बड़ी सुखद घटना हो।
************
किताब लिंक: अमेज़न