पुस्तक अंश: चाल पे चाल

 चाल पे चाल लेखक अमित खान द्वारा लिखा गया कमांडर करण सक्सेना श्रृंखला का उपन्यास है। यह उपन्यास रवि पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया था। आज एक बुक जर्नल पर पढ़िए इसका एक छोटा सा अंश। 

********************

पुस्तक अंश: चाल पे चाल

“पीछे घूमो।” उसी क्षण करण सक्सेना ने ड्राइवर के ऊपर अपना अगला आदेश दनदनाया। 

ड्राइवर पीछे घूम गया।

यही वो क्षण था… जब करण सक्सेना ने अपनी हरकत दिखा दी। उसने कारबाइन की शक्तिशाली मूठ का बड़ा प्रचण्ड प्रहार ड्राइवर की खोपड़ी पर किया। ड्राइवर के मुँह से ऐसी सिसकारी छूटी …जैसे गुब्बारे में से हवा खारिज हुई हो। फिर वह दोनों हाथों से अपनी खोपड़ी पकड़े-पकड़े वहीं नीचे ढेर हो गया। 

यही शुक्र था…इतनी शक्तिशाली मूठ के खोपड़ी पर पड़ने से उसकी खोपड़ी खुल नहीं गई थी। वह सिर्फ बेहोश ही हुआ था। 

“ब्रिगेडियर!” करण सक्सेना, धरम सिंह से बोला -“दरवाजा खोलो।”

ब्रिगेडियर धरम सिंह ने फौरन दौड़कर पिकअप वैन का पिछ्ला दरवाजा खोला।

जब तक दरवाजा खुला … तब तक करण सक्सेना ड्राइवर के बेहोश शरीर को घसीटता हुआ दरवाजे तक ले गया था। 

“यह क्या कर रहे हो कमाण्डर?”

“इन सबको उठा-उठाकर पिकअप वैन से बाहर निकालो तथा नजदीक की झाड़ियों में फेंक दो और यह काम थोड़ा जल्दी होना चाहिए। यह सड़क फौजी छावनी की तरफ जाती है..इसलिए कभी भी, कोई भी मिलिट्री की गाड़ी यहाँ नमूदार हो सकती है। इतना ही नहीं..मिलिट्री की जो गाड़ियाँ आगे गई हैं, उन्हें भी इस बात का शक हो सकता है कि हमारी एक पिकअप वैन कहाँ रह गई। ऐसी परिस्थिति में वह गाड़ियाँ भी पिकअप वैन की तलाश में वापिस लौट सकती हैं। फिर हमारे लिए यहाँ से भागना दुश्वारी का काम हो जायेगा।”

करण सक्सेना अब ड्राइवर के बेहोश शरीर को लेकर वैन से नीचे उतर गया था..फिर उसने उसे नजदीक की झाड़ियों में ले जाकर फेंक दिया।

फिर आनन-फानन में करण सक्सेना और धरम सिंह ने उन सबके बेहोश शरीर की पिकअप वैन से बाहर निकाला तथा झाड़ियों में ले जाकर फेंका। 

*******

पिकअप वैन में अब दोनों के अलावा कोई न था। 

करण सक्सेना वैन की ड्राइविंग सीट पर जा बैठा….ब्रिगेडियर धरम सिंह भी उसके बराबर में ही बैठ गया। एक कारबाइन उस वक्त धरम सिंह के हाथ में थी.. जिसे वो बड़ी मजबूती के साथ पकड़े था और किसी भी खतरे का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार था। 

तभी करण सक्सेना ने पिकअप वैन स्टार्ट कर दी।

फिर वो पिकअप वैन को उस आड़ी-तिरछी सड़क पर यू-टर्न देकर वापस कस्बे की तरफ घुमाने की कोशिश करने लगा।

अभी वो वैन को घुमाने की कोशिश ही कर रहा था.. तभी एकाएक फ़ौजी छावनी की तरफ से मिलिट्री की एक गाड़ी आती दिखाई दी।

“यह क्या आफत आ गई!”, उन दोनों के बुरी तरह छक्के छूट गये।

करण सक्सेना ने तो हड़बड़ाकर पिकअप वैन को इतनी तेजी से और इतना ज्यादा बैक कर दिया था कि वैन का पिछ्ला हिस्सा धड़ाक की तेज आवाज़ के साथ एक पेड़ से जा टकराया।

फिर उसने गियर बदला।

पिकअप वैन पुनः आगे बढ़ी। अब करण सक्सेना अपनी पूरी ताकत से स्टेयरिंग को जल्दी-जल्दी बायीं तरफ घुमा रहा था।

छावनी की तरफ से आती मिलिट्री की गाड़ी की हेडलाइटों का प्रकाश अब सीधे पिकअप वैन पर पड़ रहा था। जो गाड़ी आ रही थी.. वह पाकिस्तानी फौजियों से भरी एक मिनी वैगन थी। इस बीच पिकअप वैन घूम गई और सड़क पर सीधी हो गई।

वैन के घूमते ही करण सक्सेना ने एक्सीलेटर दबाया। तत्काल वैन द्रुतगति के साथ सड़क पर भागी।

“रोको…वैन रोको।” पीछे आ रही गाड़ी में से कोई पाकिस्तानी फौजी बुलंद आवाज़ में चिल्लाया। 

परन्तु वैन रोकने का कोई प्रश्न ही  नहीं था। वह अपनी फुल स्पीड से सड़क पर दौड़ी जा रही थी। 

पीछे आती गाड़ी की स्पीड भी तेज हो गई।

तभी एक घटना और घटी। पिछली गाड़ी में से पिकअप वैन का निशाना साधकर मशीनगन से गोलियाँ चलाई जाने लगीं।

“यह एक नया झंझट और…” ब्रिगेडियर धरम सिंह के शरीर में खौफ की लहर दौड़ी – “लगता है.. आज तो फँसे ही समझो।”

“कुछ नहीं होगा। तुम इन गोलियों का जवाब गोलियों से दो, बाकी सब मैं सम्भाल लूँगा।”

ब्रिगेडियर धरम सिंह अब अपनी कारबाइन लेकर भागती पिकअप वैन के दूसरे कोने पर जा बैठा और फिर वह कारबाइन के पीछे की तरफ पलटकर फौजी गाड़ी पर गोलियाँ चलाने लगा। 

दोनों तरफ से गोलियाँ चलने लगीं। 

करण सक्सेना को बस एक ही बात का डर था…पिछली गाड़ी से जो गोलियाँ चलाई जा रही थीं, उनमें से कोई गोली पिकअप वैन के किसी टायर में न आ लगे। 

किस्मत उनके साथ थीं।

वैसा कुछ भी न हुआ। 

तभी करण सक्सेना को एक संकरी-सी सड़क दिखाई दी …जो मुख्य सड़क से कटकर बायीं तरफ मुड़ गई थी। करण सक्सेना ने बिलकुल एकाएक..बिना ब्रेक लगाये उस पिकअप वैन को इतनी द्रुतगति के साथ उस संकरी सड़क की दिशा में मोड़ा कि वैन के दायीं तरफ वाले दोनों पहिये हवा में उठ गये और पिकअप वैन बड़े भयंकर अंदाज में पलटते-पलटते बची।

ब्रिगेडियर धरम सिंह .. जो उस वक्त खिड़की से थोड़ा आगे झुककर पीछे की तरफ धुआँधार गोलियाँ चला रहा था..करण सक्सेना के उस अप्रत्याशित एक्शन से इतनी जोर से उछला कि वह बस गिरने से बाल बाल बचा। अलबत्ता कारबाइन जरूर उसके हाथ से छूटकर बाहर सड़क पर जा गिरी।

“लो..कारबाइन तो गयी।” ब्रिगेडियर धरम सिंह बोला।

“कोई बात नहीं.. तुम पिछले पोर्शन में जाकर जल्दी से दूसरी कारबाइन ले आओ या फिर जब तक हो सके..अपने रिवॉल्वर से ही हालात को सम्भालो।”

“ओके कमाण्डर!”

ब्रिगेडियर धरम सिंह ने फौरन रिवॉल्वर निकालकर अपने हाथ में ले ली।

कारबाइन चलाने के बाद अब रिवॉल्वर चलाना उसे ऐसा लग रहा था..जैसे कोई बच्चा उसके हाथ में आ गया हो। हालात वाकई नाजुक थे। करण सक्सेना ने चूँकि पिकअप वैन एकदम से मोड़ी थी..इसलिए पीछे आ रही फौजी गाड़ी का चालक कुछ पल के लिए तो सकपकाया था..परन्तु फिर उसने भी अपनी गाड़ी उसी संकरी-सी सड़क पर डाल दी।

करण सक्सेना तूफानी गति से वैन को भगाए लिए जा रहा था।

वह खतरनाक पहाड़ी रास्ता था। 

एक तरफ ऊँचे-ऊँचे पहाड़ थे और दूसरी तरफ कई सौ फुट गहरी खाई में जाकर बहती रावी नदी का पानी था।

सड़क इतनी डेंजर थी कि थोड़े थोड़े फासले पर कई-कई मोड़ थे। हर पल एक्सीडेंट का खतरा था। मोड़ काटते समय जरा सी असावधानी होते भी वह पिकअप वैन या तो किसी पहाड़ से टकरा सकती थी या फिर गहरी खाई जैसे पानी ने जाकर गिर सकती थी। 

करण सक्सेना उस समय कुछ ड्राइवर होने का बेहतरीन परिचय दे रहा था। 

तभी पिकअप वैन ने एक और मोड़ काटा तथा अब वैन पहले के मुकाबले कुछ ज्यादा चौड़ी सड़क पर आ गई। 

सड़क के एक तरफ जहाँ पहाड़ थे..वहीं दूसरी तरफ बैरिकेड्स लगी थीं।

“ब्रिगेडियर!” करण सक्सेना एकाएक बेहद तीखे स्वर में बोला – “सावधान हो जाओ। जैसे ही मैं कहूँ …फौरन वैन में से छलाँग लगा देना। एक मिनट की देर न होने पाये।”

“ठीक है।” धरम सिंह बोला।

परन्तु ब्रिगेडियर की समझ में नहीं आ रहा था..करण सक्सेना वास्तव में क्या करने वाला है? उसका अगला एक्शन क्या होना था?

***********

किताब आप रवि पॉकेट बुक्स के माध्यम से सीधे आर्डर कर मँगवा सकते हैं या उनकी साईट बुक मदारी से मँगवा सकते हैं।

रवि पॉकेट बुक्स


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *