Finished On : २७ मार्च २०१४
फॉरमेट – पेपरबैक
प्रकाशक – हिन्द पॉकेट बुक्स
पृष्ट संख्या – १२१
अमृता जी एक खासियत रही है, उनके female पात्र बहुत स्ट्रोंग होते हैं। अभी तक उनके जितने भी उपन्यास मैंने पढ़े हैं उनके नारी पात्र बेहद खूबसूरती के साथ लिखे होते हैं। और अलका भी एक ऐसा पात्र है। वो अपने को किसी पर थोपना नहीं चाहती है, उसे पता है की उसे क्या चाहिए और इस्पे वो समझोता नहीं करती है।
इसी के सामने कुमार है जो अलका को चाहता भी है लेकिन उसको ये जताने को तैयार नहीं है। उसे लगता है कि अगर वो इश्क़-मोहब्बत के चक्कर में पड़ेगा तो उसे अपनी कला से समझोता करना पड़ेगा और ये उसे मंजूर नहीं होगा। और अन्त तक इसी पशोपेश में रहता है ।
कहानी काफी खूबसूरती के साथ लिखी गयी है। कहानी पढ़ते हुए आप अलका को admire करे बिना नहीं रह सकते हैं । और दूसरी तरफ आप ये सोचने पे मजबूर होते हैं कि क्यूँ कुमार दुनिया से इतना कटा कटा रहता है। प्रेम को अक्सर खुदा कहा जाता है लेकिन हम ये सोचने पर मजबूर होते हैं कि क्यूँ कुमार प्रेम को ऐसे देवता कि तरह देखता है जो उसे सुख तो देगा लेकिन बदले में उससे उसकी कला कि आहुति भी मांगेगा।
उपन्यास कि कुछ पंक्तियाँ –
कुमार
के माथे पर पसीने की बूंदे उभर आईं। उसे लगा कि अलका की मोटी-मोटी और
चुपचाप आँखें पारदर्शिनी हैं। उन्होंने कुमार के मन में रेंगते सारे
ख्यालों को देख लिया था। उसे अलका की आँखों पर भी गुस्सा आया, पर ज्यादा
गुस्सा उसे अपने खयालों पर आया जो केंचुए की तरह उसके मन में रेंग रहे थे।
केंचुए की तरह, जो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ते, पर उनकी सुस्ताई चाल से चिढ़ आ
जाती है। कुमार को खुद ही अपने ख्यालों से चिढ़ आने लगी।
इस उपन्यास को आप निम्न लिंकों से मंगा सकते हैं –
अमेज़न
मैंने कहानी को काफी एन्जॉय किया और आशा है आप भी इसे एन्जॉय करेंगे । और अगर आपने इसे पढ़ा है तो अपनी प्रतिक्रिया लिखने में हिचकिचाएगा नहीं । इन्ही शब्दो के साथ में इस पोस्ट को समाप्त करना चाहूंगा , धन्यवाद।