साहित्य की बात, साहित्य से मुलाकात
अनुपमा नौडियाल उत्तराखंड की दून घाटी में पली-बढ़ी और यहीं से उन्होंने पढ़ाई भी पूरी की है।
केमिस्ट्री में पोस्टग्रेजुएशन के उपरांत वह शिक्षण कार्य से जुड़ी रही हैं। उनको पढ़ने का शौक बचपन से ही रहा है। वह हर तरह की पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ आदि पढ़तीं, किंतु साहित्य के प्रति लगाव विकसित होने में इनकी मम्मी श्रीमति शकुंतला डोभाल की ही प्रमुख भूमिका है।
अनुपमा ने विवाहोपरांत अपनी शिक्षा पुनः आरंभ की। हिंदी और संस्कृत साहित्य में एम.ए. किया। उच्च कोटि का हिंदी साहित्य घर में प्रचुरता में उपलब्ध था। शायद यही समय था जब अपनी पाठ्यपुस्तकों से अधिक इन्हें अपनी माताजी का सिलेबस अधिक लुभाने लगा था। विज्ञान शिक्षण से एक अरसा जुड़ी रहीं और इस दौरान न केवल इन्होंने सिखाया बल्कि बहुत सीखा भी। केमिस्ट्री में विभिन्न पदार्थों के एक्शन-रिएक्शन के इक्वेशंस लिखते-लिखाते कब अनुपमा की कलम अनदेखे-अनजाने पात्रों के समीकरण गढ़ने लगी, इसका इन्हें आभास तक न हुआ।
पुस्तकें:
अपने-अपने प्रतिबिम्ब (कहानी संग्रह), अज्ञातवास (लघु-उपन्यास), शेष-पन्ने (कहानी संग्रह)