उपन्यासकार अनिल गर्ग से एक बातचीत

उपन्यासकार अनिल गर्ग से एक बातचीत

उपन्यासकार अनिल गर्ग मूलतः दिल्ली के रहने वाले हैं। अब तक अनिल गर्ग बीस से ऊपर पुस्तकें प्रकाशित कर चुके हैं। जासूस अनुज और बलमा सीरीज नाम से वह दो श्रृंखलाएँ लिखते हैं जिनके अंतर्गत वह जासूसी और थ्रिलर उपन्यास लिखते हैं। यदा कदा वह सामाजिक कहानियाँ और उपन्यासों पर भी हाथ आजमाते रहते हैं।

उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत प्रतिलिपि प्लेटफार्म से की जहाँ पर उनकी प्रकाशित रचनाओं को 28 लाख से ज्यादा बार पढ़ा जा चुका है। प्रतिलिपि के पश्चात अब उन्होंने अपने उपन्यास अमेज़न किंडल प्लेटफार्म पर प्रकाशित किये हैं। हाल ही में उनके उपन्यासों के पेपरबैक संस्करण भी प्रकाशित हुए हैं। अनिल गर्ग के उपन्यासों को जितना लोग पढ़ना पसंद करते हैं उतना ही उनके उपन्यासों की ऑडियो बुक्स भी श्रोताओं के बीच प्रसिद्ध हैं। कुकू एफ एम में प्रकाशित उनके उपन्यासों पर बनी ऑडियो सीरीज को हजारों लोगों द्वारा सुना जा चुका है।

आज ‘एक बुक जर्नल’ में हम आपके सामने अनिल गर्ग से हुई बातचीत लेकर प्रस्तुत हुए हैं। इस बातचीत में हमने उनसे लेखन, उनके जीवन और उनके किरदारों के विषय में जानना चाहा। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।  

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उपन्यासकार अनिल गर्ग से बातचीत

प्रश्न: नमस्कार अनिल जी, एक बुक जर्नल में आपका स्वागत है। सबसे पहले तो पाठकों को आप अपने विषय में बताइए। आप कहाँ के रहने वाले हैं? आपकी शिक्षा दीक्षा कहाँ हुई? फिलहाल कहाँ पर रह रहे हैं?

उत्तर: आपका बहुत बहुत धन्यवाद महोदय ! मैं दिल्ली का निवासी हूँ और यही मेरी शिक्षा दीक्षा हुई है….मैं वर्तमान मे भी दिल्ली मे ही निवास करता हूँ। 

प्रश्न: शब्दों का अपनी दुनिया होती है जो कि हर लेखक या पाठक को आकर्षित करती है। आपका जुड़ाव इस दुनिया से कैसे हुआ?

उत्तर: मेरे एक भाई को उपन्यास पढ़ने का बहुत शौक था…उन्ही के लाये हुए उपन्यासों को मैं भी चोरी छुपे पढ़ता था….ये समझ लीजिये की छोटी उम्र मे ही मैं वेद प्रकाश शर्मा,कुमार कश्यप, ओमप्रकाश शर्मा के जासूसी नॉवेल बड़े शौक से पढ़ा करता था….मेरी ये तलाश सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासो पर जाकर खत्म हुई….ये समझ लीजिए की मैं पाठक साहब का घोर प्रशंसक रहा हूँ….

प्रश्न: आपको लिखने का ख्याल कब और कैसे आया? क्या आपको अपनी लिखी पहली रचना याद है? 

उत्तर: हमारे परिवार मे बड़े भाई साहब पेशे से पत्रकार थे….उन्ही के सानिध्य में बारह वर्ष की उम्र ने ही मैं शुरू शुरू मे अखबारो में अपनी मोहल्ले की समस्याओ को लिख कर भेजा करता था….बस उन्ही समस्याओ को लिखते लिखते मैं उनके समाचार पत्र के लिए लेख इत्यादि लिखने का कार्य करने लगा….समझ लीजिये की अल्प आयु में ही मेरा लिखने के प्रति झुकाव हो गया था। 

उन्हीं दिनों सत्रह साल की उम्र मे मैंने एक जासूसी कहानी,  ‘मुर्दे की जान खतरे में’, लिखना शुरू किया लेकिन वो कहानी मैं उस समय पूरी नहीं कर पाया। उस कहानी को मैं तीस साल के बाद तब पूरी कर पाया जब मैं प्रतिलिपि पर लिखने लगा था। 

प्रश्न: प्रतिलिपि पर आपकी काफी रचनाएँ प्रकाशित हैं। उसमें आपने कविता, कहानी, श्रृंखला और लेख भी प्रकाशित किये हैं। प्रतिलिपि के विषय में आपको कब पता चला? इस प्लेटफार्म पर आपके क्या अनुभव हुए?

उत्तर: प्रतिलिपि के बारे मे मुझे 2017 मे पता चला था और मैंने तभी प्रतिलिपि एप्प को अपने मोबाइल में डाउनलोड कर लिया था….लेकिन एक साल तक मैंने प्रतिलिपि की उस एप्प को कभी खोल कर नहीं देखा…उसके एक साल के बाद सितम्बर 2018 में एक दिन अचानक ऐसे ही मैंने प्रतिलिपि को खोला और उसमें मौजूद ‘लिखिए’ सेक्शन को देखकर उसे जब खोला तो मुझे वहाँ कहानी लिखने का ऑप्शन दिखाई दिया….उस दिन मैंने प्रतिलिपि पर अपनी पहली कहानी ‘आज़ादी’ का पहला भाग लिखा था….उसके बाद प्रातिलिपि पर मेरी लेखन यात्रा लगभग सवा साल तक जारी रही….21 दिसम्बर 2019 को मैंने प्रतिलिपि को अलविदा कह दिया।

पाठकों के नजरिए से प्रतिलिपि पर मुझे पाठको का बेशुमार प्यार मिला….लाखों लोगों ने मेरी कहानियों को वहाँ पर पढ़ा…लेकिन वहाँ के संचालको के साथ मेरे अनुभव ज्यादा अच्छे नहीं रहे….इसी वजह से मैंने वहाँ पर लिखना बंद कर दिया था। 

प्रश्न: आपके ज्यादातर उपन्यास और कहानियाँ किंडल में प्रकाशित किये गये हैं। अपनी किताबों को ई बुक में प्रकाशित करने का ख्याल कैसे आया?

उत्तर: किंडल पर मेरे उपन्यास को प्रकाशित करने में मेरे एक सहयोगी कमल शर्मा जी का बहुत सहयोग रहा है…उन्होंने ही मुझे किंडल के बारे में बताया और मेरी कहानियों को वहाँ पर प्रकाशित किया….प्रतिलिपि छोड़ने बाद मैंने अपने सभी उपन्यासो को किंडल पर ही प्रकाशित करना उचित समझा। 

प्रश्न: क्या आपने कभी किसी प्रकाशन से अपनी किताब प्रकाशित करने के विषय में नहीं सोचा? अगर सोचा तो इसमें क्या अड़चने आई?

उत्तर: अन्य प्रकाशन से प्रकाशित करवाने के लिए सोचा तो कई बार….एक बार एक प्रकाशक को अपनी पाण्डुलिपि मैंने भेजी भी थी…लेकिन उन्होने मुझ से एक महीने मे प्रकाशित करने का वादा करके चार महीने तक भी कोई संज्ञान नही लिया तो मैंने उन्हे उपन्यास प्रकाशित करने के लिए मना कर दिया….और फिर स्वयं के ‘कहानी जंक्शन प्रकाशन’ से अपना पहला पेपरबैक उपन्यास ‘एक लाश और सौ दुश्मन’ को प्रकाशित किया। 

प्रश्न: आपकी कहानियाँ ई-बुक के साथ साथ पेपरबैक में भी उपलब्ध हैं और ऑडियो बुक के रूप में भी में सुनी जा सकती हैं। आप लेखक के तौर पर इन माध्यमों को किस तरह देखते हैं? और एक पाठक के तौर आप आपको कौन सा माध्यम भाता है?

उत्तर: सभी माध्यमों की अपनी अपनी जगह पर उपयोगिता है….क्योंकि हर माध्यम का पाठक वर्ग अलग है….जिसे ई बुक मे कहानियाँ पढ़ना पसंद है वो ई बुक ही पढ़ेगा….जिसे आडियो मे कहानी को सुनना पसंद है…वो आडियो मे ही सुनेगा… हार्ड कॉपी मे पढ़ने वाले पाठको की संख्या आज भी इस ऑनलाइन जमाने मे कम नहीं हुई है….दीवानगी की हद तक पाठक अभी भी उपन्यास को हार्ड कॉपी मे ही पढ़ना पसंद करते है। 

प्रश्न: प्रकाशन से जुड़ी तो काफी बातें हो गयी अब लेखन पर बात करते हैं। आपने सोशल कहानियाँ भी लिखी हैं और जासूसी उपन्यास भी लिखे हैं। आपको व्यक्तिगत तौर पर लिखने में क्या अच्छा लगता है- सोशल या एक थ्रिल्लिंग सस्पेंसफुल रहस्यकथा?

उत्तर: थ्रिलर और जासूसी उपन्यास लिखना मेरा सबसे पसंदीदा शगल है…..लव स्टोरी लिखना मेरे लिए सबसे कठिन काम है….एक दो बार लव स्टोरी लिखने के कोशिश भी की लेकिन आखिरकार हर लव स्टोरी भी सस्पेन्स और थ्रिलर के साथ ही खत्म हुई। 

प्रश्न: आपकी मुख्यतः दो श्रृंखलाएँ हैं – जासूस अनुज और बलमा श्रृंखला। इन दो श्रृंखलाओं के विषय में बताइए। इन दो श्रृंखलाओं को रचने का ख्याल कहाँ से आया? किस चीज ने इन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया।

उत्तर: जासूस अनुज का पहला उपन्यास मैंने ‘मुर्दे की जान खतरे में’  लिखा था….ये उपन्यास और इसका किरदार जासूस अनुज प्रतिलिपि पर इतने मशहूर हुए की मुझे प्रतिलिपि का उस समय का हर वर्ग में नंबर एक लेखक बना दिया था…उस समय पाठको ने जासूस अनुज के और भी उपन्यास मुझे लिखने के लिए बोला….इस तरीके से जासूस अनुज सिरीज़ की शुरुआत हुई….आपको एक राज की बात बता दूँ …जिस तरह से फिल्म इंडस्ट्रीज़ में सलमान खान चिर प्रतीक्षित कुँवारा है वैसे ही जासूस अनुज जासूसी की दुनिया में चिर प्रतीक्षित कुँवारा है….और अभी तक मेरे पास जासूस अनुज से शादी करवाने के लिए एक हजार से भी ज्यादा लड़कियों के प्रस्ताव आ चुके है….हाहाहा। 

बलमा सिरीज़ को शुरू करने के पीछे एक ही उद्देश्य था की एक ही प्रकार की कहानियाँ बार बार न लिखनी पड़े और कुछ नया पाठको को पढ़ने के लिए मिले….. इसी कारण से बलमा सिरीज़ का प्रारम्भ किया….पाठको ने इस सिरीज़ को भी अपने बेइंतेहा प्यार से नवाजा है। 

प्रश्न: एक रहस्यकथा लिखना बड़ी टेढ़ी खीर होती है। विशेषकर प्लाट पर काफी काम करना होता है। फिर रिसर्च भी करना होता है। आपकी लेखन प्रक्रिया क्या है? मसलन आपकी सबसे नवीन रचना एक लाश सौ दुश्मन का ख्याल आपको कैसे आया? इसको लिखने के लिए आपको क्या क्या तैयारी करनी पड़ी? कोई विशेष बिंदु जिस पर आप अटके हों और बड़ी जद्दोजहद के बाद जिसे लिख पाए हों?

उत्तर: इस सवाल का जवाब हर लेखक के पास अलग अलग ही मिलेगा….मैं उन लेखकों में से शामिल हूँ जो सिर्फ कहानी के पहले पेज के बारे में सोचते हैं और फिर कहानी अपने आप आगे बढ़ती चली जाती है….लिखते हुए  ही मन में विचार उत्पन्न होते हैैं….जैसे जब दो व्यक्ति आपस मे बात करते हैं तो बातों में से बात निकलती है….उसी प्रकार से जब आपके उपन्यास के चरित्र आपस में बात और व्यवहार करते हैं तो कहानी अपने आप आगे बढ़ती है….’एक लाश और सौ दुश्मन’ भी मेरी अन्य कहानियों की तरह से ही आगे बढ़ी। माँ सरस्वती की कृपया से आज तक किसी कहानी को लिखने के लिए कोई जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी। 

प्रश्न:वह सुबह फिर नहीं आएगी’ और ‘मोहल्ला मोहब्बत वाला’ के विषय में बताइए। इन्हें लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली और क्या भविष्य में ऐसी अन्य कथाएँ भी  लिखने का विचार है?

उत्तर:  ‘वह सुबह फिर नहीं आएगी‘ एक तरीके से मेरे संस्मरण हैैं और मोहल्ला मोहब्बत वाला एक लव स्टोरी थी…..और लव स्टोरी लिखने मे अपनी असफलता को मैं पहले ही स्वीकार कर चुका हूँ। 

प्रश्न: लेखन एक वक्त खाऊ कार्य रहा है। ऐसे में कई लेखकों को लेखन से जुड़ी चीजों से इतर पढ़ने के लिए वक्त कम मिलता है। क्या आप साहित्य पढ़ते हैं? आपको किस तरह का साहित्य पढ़ना पसंद है? कौन कौन से लेखक आपको पसंद है?

उत्तर: मैं समझता हूँ की एक पाठक ही एक बेहतरीन लेखक के रूप मे परिवर्तित हो सकता है….इसलिए मैं आज भी पढ़ना पसंद करता हूँ….पाठक जी (सुरेन्द्र मोहन पाठक) और दिव्य प्रकाश दुबे जी को ही आजकल ज्यादा पढ़ रहा हूँ। 

प्रश्न: आपके आगे आने वाले प्रोजेक्ट्स क्या हैं? क्या पाठकों को उनके विषय में कुछ बताना चाहेंगे?

उत्तर: इसी माह मेंं मेरा आगामी उपन्यास ‘क़त्लोगारत’  जो कि एक सस्पेन्स और थ्रिलर कहानी है हमारे ‘कहानी जंक्शन प्रकाशन’ से प्रकाशित होने जा रहा है…इसके बाद अगले माह जासूस अनुज सिरीज़ का उपन्यास प्रकाशित होगा…जिसके नाम की घोषणा मैं अभी नहीं करूंगा। 

प्रश्न: ‘एक बुक जर्नल’ के साथ अपने विचार साझा करने के लिए हार्दिक आभार अनिल जी। अंत में आप क्या पाठकों को कोई संदेश देना चाहेंगे?

उत्तर: आपका बहुत बहुत आभार विकास जी जो आपने मुझे अपने बारे मे बताने का अवसर और एक बुक जर्नल जैसा प्लेटफार्म उपलब्ध करवाया….अपने पाठकों का भी मैं बहुत आभारी हूँ जिनका असीम प्यार और स्नेह मुझे हमेशा मिलता रहा है….आशा है मेरी आने वाली रचनाओं पर भी आप लोग अपना ऐसा ही सहयोग बनाये रखेंगे।

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तो यह थी उपन्यासकार अनिल गर्ग से एक बुक जर्नल की बातचीत। यह बातचीत आपको कैसी लगी? यह हमें जरूर बताइयेगा। 

अनिल गर्ग के उपन्यास अमेज़न में उपलब्ध हैं। आप उन्हें निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
अनिल गर्ग

‘एक बुक जर्नल’ में मौजूद अन्य साक्षात्कार आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
साक्षात्कार

© विकास नैनवाल ‘अंजान’


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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18 Comments on “उपन्यासकार अनिल गर्ग से एक बातचीत”

  1. प्रतिलिपि पर अनुज सीरीज़ पढ़ चुका है और मेरी राय उसके लिए नकारात्मक ही थी।
    उस सीरीज़ मे प्लॉट हॉल्स और कुछ नॉन सेंस बातें थी, जिनपर काम की जरूरत है। जैसे अनुज सीरीज़ की एक कहानी मे फुटप्रिंट के आधार पर ही कातिल को पकड़ा जा सकता था पर नही! उस कहानी मे पुलिस इतनी नाकारा थी कि फुटप्रिंट्स की जाँच उन्होंने करवाई ही नही या लेखक महोदय को उसका ख्याल आया ही नही।

    मैने तब भी उन्हें यही सलाह दी थी और अब भी यही सलाह दूँगा कि रिसर्च करके लिखा करे। फायदा आपका ही है।

    1. मुझे व्यक्तिगत तौर पर यह लगता है कि प्रतिलिपि पर हर लेखक शायद इतनी संजीदगी के साथ लिखता नहीं हैं। फिर चूँकि लेखन श्रृंखलाबद्ध होता है तो कई बार कहानी में कुछ होल्स रहना स्वभाविक है। इसीलिए मेरी अपेक्षा रहती है कि जब रचना प्रतिलिपि से किताब की शक्ल में लाई जाए तो उसमें ढंग का सम्पादन किया जाए। उम्मीद है लेखक ने इधर भी ऐसा ही किया होगा।

      बाकी आपकी बात से सहमत हूँ कि अच्छी और दमदार कहानी के लिए रिसर्च बहुत आवश्यक है।

    2. अमन जी क्या आप मुझे उस सीरीज के बारे में अवगत करवा सकते है जिसमें आपको उपरोक्त कमी नजर आई…क्योकि अमूमन मैं ऐसी ब्लंडर गलती करता नही हूँ…अगर लेखक की फिंगर प्रिंट के आधार पर किसी कातिल को नही पकड़वाना होता है तो उसके पास हजार रास्ते होते है ये दिखाने के लिए की पुलिस को घटनास्थल से कोई फिंगरप्रिन्ट मिले ही नही। अगर आपको उस सीरीज की याद हो तो उसका नाम मुझे जरूर बताये…मैं उसका जवाब यही पर दूँगा।

  2. प्रतिलिपि से काफी चर्चा प्राप्त कर चुके अनिल जी की रचनाएँ अब हार्ड काॅपी में आना सुखद संदेश है। इनकी कुछ रचनाएँ पढी हैं, जो काफी तेजरफ्तार हैं।
    अच्छा साक्षात्कार, धन्यवाद ।
    – गुरप्रीत सिंह, राजस्थान

    1. जी, मैं भी पढ़ने के लिए उत्सुक हूँ..साक्षात्कार आपको पसन्द आया यह जानकर अच्छा लगा.

    1. साक्षात्कार आपको पसन्द आया यह जानकर अच्छा लगा आनन्द जी।

  3. उपयोगी और अच्छा रहा साक्षात्कार।

    1. जी साक्षात्कार आपको पसन्द आया यह जानकर अच्छा लगा…

    1. साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

  4. Office me bulakar interview liya tha ya mobile par hi baatchit record ki thi?

    1. यह मौखिक नहीं लिखित थी। अच्छा लगा जानकर कि इस साक्षात्कार में सबसे जरूरी बिंदु आपको यही लगा।

    2. लिखित मतलब आपने सारे सवाल लिखकर इनको मेल किए होंगे फिर इन्होने सारे सवालो के उत्तर लिखकर रीमेल किए।
      यही न,या कुछ और?

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