साक्षात्कार: ‘टिक टॉक टिक टॉक’ के लेखक आनंद कुमार सिंह से बातचीत

साक्षात्कार: 'टिक टॉक टिक टॉक' के लेखक आनंद के. सिंह से बातचीत

आनंद कुमार सिंह पेशे से पत्रकार हैं। करीब दो दशक के अपने पत्रकारिता कैरियर में उन्होंने कई राष्ट्रीय टीवी चैनल व समाचार पत्रों में कार्य किया है। फिलहाल वह एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक के साथ जुड़े हैं। ‘टिक टॉक टिक टॉक’ उनकी नवीनतम पुस्तक है। अपनी पुस्तक को लेकर उन्होंने ‘एक बुक जर्नल’ से यह बातचीत की है। आप भी पढ़ें:


नवीन पुस्तक के लिए हार्दिक बधाई। सर्वप्रथम तो पुस्तक के विषय में कुछ बताएँ

टिक टॉक टिक टॉक, एक रहस्यकथा सह साइंस फिक्शन है। इसमें एक ऐसे पात्र की कहानी है जो तीन साल पहले अपना सबकुछ खो चुका है। वह ज़िंदगी से बेज़ार है। पल-पल उसे अपने खालीपन का अहसास होता है। फिर उसके सामने आता है एक मौका। विज्ञान के जरिये उसे अपनी क्षति को दुरुस्त करने का अवसर हासिल होता है। लेकिन क्या वह इसमें सफल हो सकेगा, यह बड़ा सवाल है क्योंकि उसे असम्भव को सम्भव करना है। इस उपन्यास के बारे में यह जरूर कहना चाहूँगा कि पाठकों ने इस तरह की कहानी कम से कम हिंदी लेखन में नहीं ही पढ़ी होगी। मिस्ट्री और साइंस फिक्शन होने के अलावा इसका अंडरटोन अथाह प्रेम है।

इस पुस्तक को लिखने का विचार कब आया?

मेरे एक अजीज मित्र के सामने भी कुछ वर्ष पहले ऐसा ही संकट आया था जब उनकी दुनिया ही मानो उजड़ गयी थी। उन्हें हो रहे दुख से बाकी हम सभी मित्र भी गमगीन थे। उसी वक्त इस कहानी के अंकुर फूटे कि क्या हो एक मौका फिर से मिल जाये और वह मित्र अपनी हुई क्षति को रोक सके। यह एक असम्भव कल्पना थी क्योंकि उन्हें वह क्षति हो चुकी थी। जो हो चुका है उसे कैसे बदला जा सकता है। लेकिन असम्भव होने पर भी कहानी अपना रास्ता खुद बनाती गयी।

आपकी पहली पुस्तक एक रहस्यकथा, फिर एक समसामयिक प्रेम कहानी आपने लिखी। अक्सर देखा जाता है कि लेखक एक विधा की पुस्तक लिखता है तो कुछ समय तक उसी विधा की कहानियाँ लिखता है। ऐसे में इस नये क्षेत्र में हाथ आजमाने का निर्णय कैसे लिया। क्या यह जानबूझ कर लिया गया था। इसमें कोई तकलीफ आपको आयी?

आपने सही कहा कि मेरा पहला उपन्यास, ‘हीरोइन की हत्या’ एक मिस्ट्री थी। जबकि दूसरा नॉवेला, ‘रुक जा ओ जानेवाली’, एक समसामयिक प्रेम कहानी। लेकिन मौजूदा उपन्यास एक पारम्परिक मिस्ट्री होने के साथ-साथ साइंस फिक्शन भी है। जहाँ तक नये क्षेत्र में हाथ आजमाने की बात है तो मेरा मानना है कि एक पाठक एक अच्छी कहानी की तलाश करता है। ऐसा कहानी जो उसे शुरू से आखिर तक बाँधे रखे। मैं खुद ऐसा हूँ। मुझे अच्छी तरह से लिखी गयी मर्डर मिस्ट्री भी पसंद आती है। साइंस फिक्शन भी, हॉरर भी या फिर माइथोलॉजिकल फिक्शन भी रास आती है। शर्त यही है कि वह मुझे बाँधे रखे। जॉनर की सीमा में खुद को बाँध कर पाठक अच्छी कहानी से क्यों महरूम रहे। इस उपन्यास को लिखने का फैसला एकाएक आया क्योंकि कहानी के अंकुर भी एकाएक ही फूटे थे। इसमें तकलीफ कोई खास नहीं आयी। कहानी ने अपना रास्ता खुद तलाश लिया था।

पुस्तक में विज्ञान गल्प के तत्व भी हैं। इसे लेकर आपने कोई रिसर्च की थी। अगर हाँ, तो कैसे?

जी हाँ इस उपन्यास में विज्ञान गल्प के तत्व हैं। इसे लिखने के लिए जो जानकारी चाहिए थी वह इंटरनेट में आसानी से उपलब्ध है। रिसर्च की गयी जानकारी का खुलासा करने से परहेज रखूँगा क्योंकि इससे पाठकों के सामने स्पॉयलर की समस्या आ सकती है।

पुस्तक का घटनाक्रम मुम्बई में बसाया गया है। आप खुद कलकत्ता में रहते हैं। ऐसा किसी विशेष कारण से किया गया। आप मुम्बई गये हैं या इसके लिए कोई रिसर्च की है?

मैं मुम्बई नहीं गया। लेकिन इसके बारे में जानकारी जरूर इकट्ठा की है। वैसे भी यह पुस्तक मुम्बई का गाइड मैप तो नहीं है। मुम्बई के बारे में जो जानकारी चाहिए वह आसानी से उपलब्ध है।

क्या यह एकल पुस्तक (स्टैंड अलोन) है या आगे इस किरदार से पाठकों को फिर से मिलने का मौका मिलेगा?

ऐसे तो यह उपन्यास स्टैंड अलोन है। लेकिन अगर मुख्य पात्र पाठकों को पसंद आता है तो इसे आगे बढ़ाने की भरपूर गुंजाइश है। सबकुछ निर्भर करता है कि यह पाठकों को कितना पसंद आता है।

उपन्यास लिखते हुए आपका रूटीन क्या था। क्या कभी राइटर्स ब्लॉक का सामना भी करना पड़ा। अगर हाँ तो उससे कैसे उबरे?

आमतौर पर मैं इस पर सुबह-सबेरे काम करता था। रोजाना 1000-1500 शब्द लिखने का टारगेट मैं रखता था। राइटर्स ब्लॉक का सामना कुछ खास नहीं करना पड़ा क्योंकि मुझे शुरू से इसके अंत का पता था। जैसा कि मैंने पहले कहा कि कहानी अपना रास्ता खुद तलाशती गयी। अगर मैं उपन्यास लेखन के बारे में अपना अनुभव बताऊँ तो मैं पात्र के साथ खुद भी उन अनुभवों से गुजरने लगता हूँ जिससे पात्र गुजर रहा है। यानी कहानी को मानो अपनी आँखों के सामने देखने लगता हूँ। मुझे लगता है कि सभी लेखकों के साथ ऐसा ही होता होगा।

मुख्य किरदार को छोड़कर पुस्तक का आपका पसंदीदा किरदार कौन है और क्यों?

मुख्य किरदार के अलावा मेरा इस उपन्यास में पसंदीदा किरदार, विकी है। यह किरदार एक जेबकतरा जरूर है लेकिन अपने परिवार की इज्जत के लिए बेहद सजग भी है। अत्यंत स्मार्ट इस किरदार के बेहद-बेहद पसंद आने की उम्मीद है। सबसे खास बात इस किरदार का नाम मेरे एक दिवंगत दोस्त के नाम पर रखा गया है।

पुस्तक में अंडरवर्ल्ड के किरदार भी आते हैं। उनके लिए आपने कोई रिसर्च की है?

विकास जी, मेरा खुद का बैकग्राउंड पत्रकारिता है। आज भी मैं इस पेशे में हूँ। लिहाजा अंडरवर्ल्ड के कामकाज के तरीके से अपने पेशे की वजह से वाकिफ हूँ।

अच्छा, पाठकों को यह पुस्तक पाठकों को क्यों पढ़नी चाहिए अगर आपको पाठकों को बताना पड़े तो क्या कहेंगे?

अगर आपको मिस्ट्री या साइंस फिक्शन पसंद है। अगर आपको ऐसी कहानी पढ़नी पसंद है जो शुरू से अंत तक आपको बाँधे रखे। अगर आपको एक ऐसी कहानी चाहिए जो रटे-रटाये ढर्रे की बजाय तेज रफ्तार और कसी हुई हो, तो यह पुस्तक आपको जरूर पढ़नी चाहिए। आप बिलकुल भी निराश नहीं होंगे। वह कहते हैं न कि टेस्ट ऑफ द पुडिंग इज़ इन ईटिंग, तो उसी तरह जब आप इस उपन्यास को पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि अब तक आपने क्या मिस किया है।

अच्छा एक मेरा व्यक्तिगत सवाल है। यश खांडेकर (लेखक के प्रथम उपन्यास ‘हीरोइन की हत्या’ का नायक)आजकल क्या कर रहा है। क्या पाठकों को उससे दोबारा मिलवाने का विचार है?

यश खांडेकर को लेकर एक कहानी काफी समय से मेरे मन में है। मैं जरूर पाठकों को उससे दोबारा मिलवाऊँगा।

आजकल आप क्या लिख रहे हैं। कौन सी विधा में हाथ आजमा रहे हैं?

आजकल मैं एक हॉरर कहानी लिख रहा हूँ। यह मेरे लिए एक चुनौती है। मेरा मानना है कि कहानी को किसी विधा में बाँधना सही नहीं है। कहानी या तो अच्छी होती है या बुरी। विधा के खाँचे में बाँधकर एक अच्छी कहानी से भला हम क्यों वंचित रहें।

आप कोलकाता में रहते हैं। इस शहर का अपना एक अलग चार्म है। ‘रुक जा ओ जाने वाली’ कोलकाता और इसके इर्द गिर्द बसायी गयी थी। क्या कोलकाता को लेकर कोई रहस्यकथा या रोमांच कथा लिखने का विचार है?

शायद पाठकों को पता न हो कि मैंने जो पहली कहानी लिखी थी, ‘गर्लफ्रेंड की हत्या’, वह भी कोलकाता की पृष्ठभूमि में ही थी। कोलकाता को लेकर मैं जरूर लिखूँगा क्योंकि मेरा जीवन ही इसकी गलियों या सड़कों पर गुजरा है। बस पेंडिंग प्रोजेक्ट खत्म हो जाये फिर इस पर लगता हूँ।


तो यह थी लेखक आनंद कुमार सिंह के साथ हमारी बातचीत। आनंद कुमार सिंह का नवीनतम उपन्यास ‘टिक टॉक टिक टॉक’ साहित्य विमर्श प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है।

पुस्तक परिचय

टिक टॉक टिक टॉक
टिक टॉक टिक टॉक - आनंद कुमार सिंह | साहित्य विमर्श प्रकाशन

कहते हैं, गुजरा वक्त लौटकर नहीं आता …लेकिन क्या हो अगर आपके पास मौका हो अपने साथ हुए एक हादसे को रोक देने और अपनी तकदीर बदल देने का? …कुछ ऐसा ही होता है आशुतोष रोहिल्ला के साथ… अपनी पत्नी की हत्या के बाद जिंदगी से बेजार हुआ आशुतोष क्या उस मौके का फायदा उठा सकेगा? …या फिर असंभव को संभव बनाने का उसका इरादा नाकाम हो जायेगा…? इस अभियान में पल-पल है मौत का खतरा… उसकी रेस समय के साथ है… घड़ी की सुइयाँ तेजी से बढ़ रही हैं… टिक टॉक टिक टॉक…

पुस्तक लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श प्रकाशन

(अगर आप लेखक हैं, प्रकाशक हैं, अनुवादक हैं और एक बुक जर्नल के माध्यम से अपनी बात पाठकों तक पहुँचाना चाहते हैं तो आप हमसे contactekbookjournal@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं।)


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Author

  • विकास नैनवाल

    विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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