अमावस अनटोल्ड | फिक्शन कॉमिक्स | आशुतोष सिंह राजपूत

संस्करण विवरण

फॉर्मैट: पेपरबैक | प्रकाशक: फिक्शन कॉमिक्स | पृष्ठ संख्या: 28 | शृंखला: अमावस 

टीम

 लेखक: आशुतोष सिंह राजपूत | चित्रांकन/इंकिंग: बिकास सतपथी | कलर्स: मनमीत, बसंत पंडा | फ्लैट कलर्स एवं कैलीग्राफी: हरीशदास मानिकपुरी | संपादक:  बसंत पंडा, सुशांत पंडा 

  

कहानी 

भैरोगढ़ में हो रहे कत्लों से सभी डरे हुए थे। एक के बाद एक कई परिवारों के कत्ल उधर हो चुके थे। न किसी केघर के भीतर आने का सुराग मिलता था और न ही किसी लड़ाई झगड़े की ही कोई खबर आती थी। 

दिखती थी तो बस परिवार के लोगों की लाशें और जमीन पर लिखा एक शब्द अमावस। 

लोगों की माने तो गाँव पर एक शैतानी आत्मा का साया था। 

क्या गाँव वालों की मान्यता सही थी?

आखिर कौन था ये अमावस? 

क्यों पड़ा था वो भैरोगढ़ के लोगों के पीछे? 

मेरे विचार

‘अमावस अनटोल्ड’ फिक्शन कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित अमावस शृंखला का कॉमिक बुक है। यह इस शृंखला का छठवाँ कॉमिक है। 

अमावस शृंखला की वैसे तो शुरुआत ‘अमावस’ से होती है और अंत अमावस टर्मिनेशन से होता है परंतु ‘अमावस अनटोल्ड’ में पाठकों को अमावस के बनने की कहानी का पता चलता है। यह इस शृंखला का प्रीक्वेल है जहाँ आपको पता लगता है कि भैरोगढ नामक गाँव, जहाँ अमावस की दहशत थी, में यह घटनाएँ शुरू कैसे हुई। 

कहानी की शुरुआत बालभद्र से होती है जो अपनी बहन पायल के लिए चिंतित है। वह क्यों चिंतित है, उसकी चिंता  का कारण क्या होता है और फिर आगे क्या होता है यह कहानी की शुरुआत बनती है। इसके बाद कहानी डेढ़ साल आगे बढ़ती है जिसमें पाठकों को पता लगता है कि गाँव दहशत के साए में है। यहाँ से कहानी उस स्थान तक पहुँचती है जहाँ पर शृंखला के पहले कॉमिक्स ‘अमावस’ का कथानक घटित हुआ था। 

जिन पाठकों ने अमावस शृंखला पढ़ी होगी वह यह जानना चाहेंगे कि इस सब की शुरुआत कहाँ से हुई। एक पाठक के रूप में मैं इस चीज को जानने के लिए उत्सुक था और यह कॉमिक इस उत्सुकता को पूरा करती है। यह  अच्छाई और बुराई के बीच द्वन्द की कहानी है। कई बार बुराई अधिक शक्तिशाली होती है और उसे हराना कितना कठिन होता है यह दर्शाती है। 

कहानी के बात करूँ तो कहानी एक आम बदले की कहानी है जो सीधे सादे रूप से घटित होती है। यह कहानी का कमजोर बिन्दु भी है। लेखक चाहते तो कहानी में ट्विस्ट रख सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा किया नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि रहस्य का कोई तत्व कहानी में मौजूद नहीं है। आपको काफी पहले पता चल जाता है कि गाँव में क्या हो रहा है और आप बस यह देखने के लिए कॉमिक पढ़ते चले जाते हैं कि इसका अंत कैसे होगा। अगर कॉमिक में रहस्य का तत्व भी समाहित होता तो मुझे लगता है कहानी बेहतर बन सकती थी। 

कहानी 27 पृष्ठों की है जो कि शृंखला के पिछले कॉमिक बुकों से ज्यादा है लेकिन जो कहानी लेखक कहना चाह रहे हैं उसके हिसाब से यह कम ही महसूस होती है। पृष्ठ संख्या कम है तो काफी चीजें रह जाती हैं या जल्द बाजी में बताकर उनकी इतिश्री कर दी जाती है जो कि एक असंतुष्टि का भाव मन में जगाते हैं।  

जैसे कॉमिक में दिखाया गया है कि पायल के परिवार पर अमावस कब्जा कर लेता है लेकिन सुरक्षा सूत्र होते हुए वह बाकी सदस्यों को काबू कैसे कर पाता है इसका कोई कारण नहीं दिखाया जाता। अगर परिवार वालों ने सुरक्षा सूत्र हटा दिया था तो क्यों हटाया यह नहीं बताया जाता है। 

वहीं अमावस को यह ताकतें कैसे मिली वह भी नहीं बताया जाता। बस हल्का सा विवरण दिया जाता है कि वह किसी के पास जाता है जो उसे कुछ करने को कहती है। यह कुछ क्या है इसे लेकर लेखक चुप्पी साध जाते हैं। इसके अलावा अमावस हर पंद्रह दिन बाद ही क्यों गाँव वालों की हत्याएँ कर रहा था यह भी नहीं दिखाया गया है।   अगर ये बातें बताई जाती तो शायद कहानी में एक दो पृष्ठ ही बढ़ते लेकिन पाठकों को उसमें मज़ा आता। 

ऐसे ही कॉमिक में हमें पता लगता है कि गाँव वाले एक अघोरी बाबा के पास गए हैं। वह अघोरी बाबा कहते हुए भी दिखता है कि उसने कई ऐसी शैतानी शक्तियों का सामना किया है परंतु अघोरी बाबा के विषय में गाँव वालों को कैसे पता लगा और किस तरह से आगे बात बढ़ी यह भी नहीं बताया है। अघोरी बाबा के विषय में शिखा और पायल बात करती हैं। उसी बातचीत में अघोरी के विषय में यह जानकारी लेखक देते तो व्यक्तिगत तौर पर मुझे अच्छा लगता। 

कॉमिक बुक में पायल नाम की किरदार के सम्मुख काली बिल्लियाँ आती हैं। अमावस शृंखला के आखिरी कॉमिक बुक में ‘अमावस टर्मिनेशन’ में भी ऐसी काली बिल्ली देखी गई थी और अब इस कॉमिक में भी बिल्लियों का संबंध अमावस से दिखता है। यह चीज रोचकता पैदा कर देती है और एक सवाल मन में छोड़ देती है कि क्या अमावस की कहानी असल में समाप्त हुई है? अगर हाँ, तो यह बिल्ली किसका द्योतक है? 

कॉमिक बुक में शिखा नाम का किरदार भी है। उस किरदार का अन्य कॉमिक बुकों में कोई जिक्र नहीं था और अगर था तो मुझे अभी याद नहीं है। मैं ये देखने के लिए जरूर वापस बाकी कॉमिक पढ़ूँगा। शिखा का किरदार इस शृंखला में आगे होना चाहिए था। 

टेक्स्ट की बात करें तो कई जगह प्रूफ की गलतियाँ हैं। विशेषकर बहुवचन दर्शाते हुए कई बार एँ पर चंद्रबिन्दु की मात्रा नहीं लगी हैं और कई बार सही शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। एक अच्छा प्रूफ रीडर इन गलतियों को मिटा सकता है। 

कॉमिक बुक की आर्ट की बात करूँ तो आर्ट अच्छी है। क्योंकि परिपक्व पाठकों के लिए बनी है तो कुछ कामुक दृश्य भी इसमें मौजूद हैं तो अगर इन चीजों से आप असहज हो जाते हैं तो आपको इसका दूसरा वर्ज़न लेना चाहिए जो कि सभी उम्र के पाठकों के लिए होगी। कलाकारों ने कहानी को उभारने के लिए गहरे स्याह रंगों का प्रयोग किया है जिससे कथानक उभर कर आता है। 

हाँ, कॉमिक बुक में कोई स्प्लैश पेज नहीं है। होता तो अच्छा रहता। शैतान अमावस और साध्वी का एक सीन स्प्लैश पृष्ठ में दर्शाया जा सकता था। मज़ा आता। 

आर्टवर्क में इक्का दुक्का जगह थोड़ा गलती भी मुझे दिखी। यह हैं तो छोटी ही लेकिन अगले संस्करण में सुधारी जाएँ तो बेहतर रहेगा। 

मसलन पृष्ठ 7 में नीता का पति जब दिखता है तो उसके हाथ में एक सोने का कड़ा या पीले रंग का कोई बैंड होता है जो कि आगे के पैनलों में नदारद रहता है। इसी पैनल में नीता के पति के शरीर पर जो वस्त्र है वो कॉलर के कट से  टी शर्ट दिखती है लेकिन आगे के पैनलों में वह कुर्ता हो जाता है। 

ऐसे ही पृष्ठ 16 में शिखा चमेली नाटक का शो देखने घाघरा चोली में जाती है लेकिन उसके कुछ पैनल बाद जब वह घर लौटती है उसके शरीर पर साड़ी मौजूद होती है। ये घाघरा का साड़ी में तब्दील हो जाना थोड़ा खटकता है फिर भले ही इससे शिखा की खूबसूरती में चार चाँद ही क्यों न लगे। 

कपड़ों की बात चली है तो एक और बात है जो मुझे खटकी है।  कॉमिक में स्त्री पात्रों को जिस तरह के कपड़े पहनाए गए हैं वह थोड़ा ओवर हैं। चूँकि कहानी गाँव में बसाई गई है तो ये कपड़े गाँव के लोगों के नहीं लगते। हाँ, शहरी किरदार होते तो भी थोड़ा जायज लगता क्योंकि उधर डीप नेक का फैशन होता है लेकिन मुझे लगता है शहरी लोग भी गाँव देहात में आएँगे तो वो भी डीप नेक पहनने से बचेंगे। मुझे लगता है कि इस कॉमिक में अगर गाँव के लोगों जैसे कपड़े बनाए जाते तो बेहतर होता। सेन्शूअल किरदार दिखाने के लिए डीप गले  या छोटे आकार के कपड़ों की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। हाव भाव ही उसके लिए काफी होते हैं। गाँव में बिना इसके भी सेंशुएस लोग दिख जाते हैं। 

ऊपर चमेली के नाटक की बात चली है तो इस नाटक को देखने के लिए अमावस शृंखला के पहले कॉमिक अमावस के किरदार भी आए हुए थे। ऐसा मुझे याद आता है। अगर एक पैनल में शिखा और पायल की मुलाकात देव, प्रियंका, विश्वास, अनुजा से होती दिखती तो रोचक रहता।
अंत में यही कहूँगा कि अमावस शृंखला का यह कॉमिक अमावस की कहानी के प्रति पाठकों की उत्सुकता को शांत तो करता ही है लेकिन कई सवाल और एक असंतुष्टि का भाव भी मन में छोड़ जाता है। ऐसा भी लगता है कि जितनी अच्छी यह कॉमिक बुक बन सकती थी उतनी अभी नहीं बन पाई है। मैं यहाँ ये नहीं कह रहा हूँ कि कॉमिक बुक बुरी है। यह पठनीय कॉमिक बुक है लेकिन जितना इसका सामर्थ्य था वहाँ तक यह पहुँच नहीं पायी। हो सकता है पृष्ठों की सीमा के कारण यह हुआ हो। खैर, शृंखला का यह कॉमिक एक बार तो पढ़ा ही जा सकता है। 
मेरे पास इस शृंखला का उपन्यास भी है तो उम्मीद है उसमें काफी विवरण होगा। मैं जल्द से जल्द उसे पढ़ने की कोशिश करूँगा। 

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “अमावस अनटोल्ड | फिक्शन कॉमिक्स | आशुतोष सिंह राजपूत”

  1. गहन समीक्षा । बहुत समय के बाद इस तरह की समीक्षा पढ़ने को मिली । बेहतरीन पोस्ट ।

    1. जी कॉमिक बुक पर लिखा ये लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा।आभार।

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