संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 20 | प्रकाशक: फिक्शन कॉमिक्स | लेखक: आशुतोष सिंह राजपूत | चित्रांकन: बिकास सथपथी | कलर इफेक्टस: अमित शर्मा | कैलीग्राफी: विकास सिंह ठाकुर | शृंखला: अमावस #1
कॉमिक बुक लिंक: फिक्शन कॉमिक्स
कहानी
देव और प्रियंका अपने दोस्त विश्वास और अनुजा के गाँव घूमने फिरने आए थे। उन्होंने वहाँ पर बहुत तफरी की थी लेकिन जब उनकी छुट्टी का आखिरी दिन आया तो वो गाँव के ऐसे चरित्र से वाकिफ हुए जिसने उनके होश उड़ा दिया।
गाँव वालों ने एक घर को आग के सुपुर्द कर दिया था। उनका कहना था कि घर में मौजूद सदस्यों में प्रेतात्मा का साया था जो कि उन्हें जलाकर ही दूर हो सकता था।
इन चारों आधुनिक विचारों के लोगों के लिए ये हैरत की बात थी कि आज भी कोई ऐसी बातों पर विश्वास करता था।
पर वो क्या जानते थे कि इस घटना से उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदलने वाली थी?
आखिर किसे जलाया था गाँव वालों ने?
इन चारों से आगे क्या किया?
आखिर ऐसा क्या था जिसने गाँव वालों को इतनी बुरी तरह भयभीत कर दिया था?
मेरे विचार
कहते हैं कि कई बार चीजों का असल रूप छुपा होता है। हम कहीं जाते हैं तो उसके उजले पक्ष को ही देख पाते हैं। वहीं कई बार जो हम देखते हैं वो सच नहीं होता हैं। हम भले ही उसे सच समझ लें। फिर सब सच्चाई हमारे सामने आती है तो वह हमारे पैरों से जमीन खिसकाने की कुव्वत रखती है।
फिक्शन कॉमिक्स (Fiction Comics) की अमावस शृंखला (Amavas Series) का कॉमिक बुक अमावस इसी सोच के इर्द गिर्द लिखा हुआ है। यह एक जवान युगल (देव और प्रियंका) की कहानी है जो कि अपने दोस्तों विश्वास और अनुजा के घर घूमने फिरने आते हैं। विश्वास और अनुजा का घर गाँव में है और उन्हें मस्ती करते हुए पता ही नहीं लगता है कि कब उनके दो दिन गुजर जाते हैं। लेकिन छुट्टी के आखिरी दिन वो गाँव में कुछ ऐसा देखते हैं कि उनके होश फाख्ता हो जाते है। वो क्या देखते हैं और इसका इन चारों की जिंदगी में क्या असर पड़ता है ये कॉमिक बुक में दिखता है।
बीस पेज के पृष्ठ की यह कहानी विश्वास अंधविश्वास के फर्क की कहानी है और सच दिखने और सच होने के बीच फर्क की कहानी भी है। यह दोस्ती की कहानी भी है और दोस्ती के लिए कुछ करने की कहानी भी है।
कथानक की बात करें तो चूँकि कथा 20 पृष्ठों की है तो कथानक तेज रफ्तार है। सब कुछ तेजी से घटित होता लगता है। यह अच्छा भी है क्योंकि एक तरह यह आपको साँस भी नहीं लेने देता हैं वहीं कुछ जगह ऐसा लगता है जैसे कथानक को विस्तार न देकर कथानक के साथ अन्याय किया है। मसलन कथानक में अमावस नाम का किरदार है जो कि मुझे रोचक लगा। पर उसकी बैक स्टोरी यहाँ चलती चाल में खत्म कर दी गई है। उम्मीद है कभी इस बैक स्टोरी को प्रकाशक और लेखक एक अलग कॉमिक बुक के रूप में लाएँगे। वहीं विश्वास जो छानबीन करता है उस दौरान कुछ और रोमांचक होता दर्शाया जा सकता था लेकिन ऐसा होता नहीं है। उसका अघोरी से सामना भी और बेहतर हो सकता था।
कथानक की कुछ बातें और थीं जो मुझे खटकी। जैसे गाँव में जब भी कुछ होता है वह सबको पता लग ही जाता है। ऐसे में विश्वास को गाँव में हो रहे खूनों के विषय में न पता हो ये पचना मुश्किल है। लेकिन वह और अनुजा गाँव में हो रही इन घटनाओं से अपरिचित लगते हैं। कहानी में एक ट्विस्ट भी है लेकिन अगर आप हॉरर फिल्में देखते आए हैं तो यह ट्विस्ट आपको चौकाएगा नहीं। हाँ, कुछ अतिरिक्त पृष्ठ अगर इस ट्विस्ट को लाने से पहले खर्च किए होते तो बेहतर होता।
कहानी में कुछ बोल्ड दृश्य भी रखे हैं लेकिन वो ऐसे हैं जो उधर न भी होते तो चलते। कहानी में एक दृश्य है जब एक युवा युगल बच्चे को देखने जाता है कि वह कमरे में क्या कर रहा है। अब ऐसे वक्त में कोई भी युगल (चाहे वो पहले कुछ भी कर रहा हो) ठीक ठाक कपड़े पहकर ही जाएगा लेकिन यहाँ पर लड़की जो पहनकर जाती है वह दिखने में चाहे युवा दिलों की धड़कन बढ़ा दे लेकिन तर्क संगत नहीं लगता है। एक टी शर्ट वो पहने दिखा देते तो बेहतर होता। हाँ, बाद में जो उस टी शर्ट के साथ होता वो अलग बात होती और वो तर्कसंगत होता।
मुझे लगता है हमें समझना होगा कि जब हम लोग वयस्क सामग्री( मैच्योर कंटेंट) की बात करते हैं तो उसका अर्थ बोल्डनेस नहीं होता बल्कि विषय वस्तु की परिपक्वता होती है। यानी किरदार शेड्स में होते हैं, मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर बातचीत होती है, विषय वस्तु और ट्रीटमेंट ऐसा होता है जो बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं होता है। बोल्डनेस इसका बहुत ही छोटा हिस्सा रहता है।
कॉमिक बुक के आर्टवर्क की बात करूँ तो जितना सुंदर कवर चित्र बना है उतना ही सुंदर अंदर के पृष्ठ भी बने है। महिला पात्रों पर की गई मेहनत दिखती है। अमावस का लुक भी बेहतरीन है। अगर वैसा कुछ अपने घर में मुझे दिखे तो मुझे यकीन है डर से मेरी घिग्घी जरूर बंध जाएगी।
अंत में यही कहूँगा कि अमावस का कंसेप्ट मुझे पसंद आया। कहानी भले ही थोड़ा छोटी है लेकिन रोचक है। कुछ पृष्ठ अधिक होते तो बेहतर होता।
कॉमिक बुक लिंक: फिक्शन कॉमिक्स
यह भी पढ़ें
- डोगा की कॉमिक बुक ‘8:36’ और ‘मातृभूमि’ की समीक्षा
- विराट शृंखला के कॉमिक बुक ‘विराट 9’ की समीक्षा
- तुलसी कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित कॉमिक बुक ‘भूत’ की समीक्षा
- राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित थ्रिल हॉरर सस्पेंस सीरीज के कॉमिक ‘जहरीली दौलत’ की समीक्षा
- राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित बाँकेलाल और चींटाघाटी की समीक्षा