बाँकेलाल और चींटाघाटी

 कॉमिक बुक नवम्बर 9 2020 को पढ़ी गयी

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | श्रृंखला: बाँकेलाल | चित्रांकन: बेदी | लेखक: तरुण कुमार वाही | सम्पादन: मनीष गुप्ता

बाँकेलाल और चींटाघाटी रिव्यु

कहानी:

मनहूस नगर के राजा ठेंगा सिंह की दो ही परेशानियाँ थीं – पहली उसकी बिमारी जिससे वह अब तक ग्रसित रहा था और आगे भी रहने की सम्भावना थी और दूसरा दैत्य चामुण्डा जिससे उसने रोज एक मानव भोजन स्वरूप देने का वादा किया था।

उसकी इन दोनों ही परेशानियों का हल निकलता उसे नहीं लग रहा था। उसकी बिमारी केवल चींटों के अंडे का आमलेट खाकर ही दूर हो सकती थी लेकिन चींटाघाटी के नर भक्षी चींटों के अण्डों को लाना कोई मजाक काम नहीं था। वहीं मनहूस नगर में ऐसा कोई नहीं था जो कि चामुण्डा से मनहूस नगर को बचा सके।

आखिर क्यों ठेंगासिंह को चामुण्डा को अपने नागरिकों को भोजन स्वरूप देना पड़ा? 

क्या ठेंगा सिंह की बिमारी का हल निकल पाया?

ऐसे में जब बाँकेलाल और राजा विक्रम सिंह अपनी जान बचाते हुए किसी तरह मनहूस नगर पहुँचे तो कुछ ऐसा हुआ कि बाँकेलाल ने राजा ठेंगा सिंह से बदला लेने की ठान ली। उसने फैसला कर लिया कि वह राजा ठेंगा सिंह को बर्बाद कर देगा।

आखिर बाँकेलाल ने क्यों ठेंगासिंह को बर्बाद करने का मन बनाया? 

क्या वह अपने उद्देश्य में कामयाब हो पाया?

मेरे विचार:

बाँकेलाल और चींटाघाटी बाँकेलाल डाइजेस्ट 11 में मौजूद पहला कॉमिक बुक है। राज कॉमिकस द्वारा प्रकाशित यह डाइजेस्ट मुझे पसंद आते हैं क्योंकि एक साथ काफी कॉमिक पढ़ने को मिल जाते हैं। फिर अक्सर इन डाइजेस्ट में पार्ट्स के कॉमिक बुक संकलित किये रहते हैं तो एक फायदा यह होता है कि कहानी के सभी भाग एक साथ पढ़ने को मिल जाते हैं, वरना मैंने तो कई कॉमिक बुक ऐसे पढ़े हैं जिनका एक ही भाग मुझे मिला है और दूसरा नदारद रहता है। डाइजेस्ट में ऐसी परेशानी नहीं होती है। साथ ही मेरे लिए इन्हें सम्भालकर रखना ज्यादा सरल होता है।

कॉमिक बुक पर आयें तो बाँकेलाल को पढ़ना हमेशा ही अच्छा अनुभव रहता है। हास्य से भरे ये कॉमिक बुक आपको तरोताजा कर देते हैं। इससे पहले मैंने सोने की लीद और गधाधारी नाम के कॉमिक बुक पढ़े थे, जो कि मैं अपने मामाजी से माँग कर लाया था, जिन्होंने मेरा भरपूर मनोरंजन किया था। बाँकेलाल और चींटाघाटी के विषय में भी यही कहूँगा कि यह कॉमिक बुक मुझे पसंद आया। 

कॉमिक बुक की शुरुआत ठेंगा सिंह से होती है जहाँ उसकी दोनों परेशानियों से हम वाकिफ होते हैं। इसके बाद जब चींटा घाटी में बाँकेलाल और विक्रम सिंह नज़र आते हैं तो पाठक के रूप में यह अंदाजा लगाना सरल हो जाता है कि आगे क्या होने वाला है। आपको पता होता है क्या होना है लेकिन यह होगा कैसे यह देखने के लिए आप कॉमिक पढ़ते चले जाते हो। यह सफर मनोरंजक रहता है और हँसाता गुदगुदाता रहता है। बाँकेलाल के मन में आते विचार पढ़कर बरबस ही हँसी आ जाती है।

अगर आप बाँकेलाल को जानते हैं तो इतना तो समझ ही चुके होंगे कि कॉमिक बुक का अंत बाँके को एक पुच्ची मिलने से ही होता है। कथानक मुझे पसंद आया।  इस बार बाँके विक्रम सिंह की जगह ठेंगासिंह के खिलाफ कुटिल बुद्धि चलाता है तो यह मुझे अच्छा लगा।

क्या आप ऐसे और कॉमिकों के विषय में जानते हैं जिनमें बाँकेलाल विक्रम सिंह के बजाय किसी दूसरे व्यक्ति के खिलाफ अपनी कुटिल बुद्धि चला रहा है? अगर हाँ तो बताइयेगा जरूर।

कथानक में उसकी कुटिल बुद्धि के और भी उदाहरण मिलते हैं जो हँसी भी पैदा करते हैं और ये सोचने पर भी विवश करते हैं कि बाँके जैसा कोई दोस्त न हो तो बेहतर।

इस कॉमिक बुक का आर्टवर्क बेदी जी द्वारा किया गया है। आर्टवर्क मुझे तो अच्छा लगा। वहीं कॉमिक बुक ग्लॉसी पेपर पर न होकर साधारण पेपर पर है जो कि मेरे लिए तो परेशानी की बात नहीं है।

कथानक में कमी तो कोई नहीं है लेकिन एक दो बातें थी जिन पर ध्यान देते तो कॉमिक बुक बेहतर होता। 

जैसे कहानी की शुरुआत में दिखाया गया है कि बाँकेलाल और राजा विक्रम सिंह चींटाघाटी में मौजूद रहते हैं। वो उधर क्यों गये? इसका कोई कारण नहीं दिया गया है। चींटा घाटी जहाँ आदमखोर चींटे रहते हैं कोई पर्यटक स्थल तो है नहीं। ऐसे में उनके उधर जाने के पीछे का कारण दिया होता तो बेहतर होता। हो सकता है पहले के कॉमिक बुक्स में दिया हो लेकिन इधर उसका रिफरेन्स देते तो मेरे नजर में सही रहता।

दूसरा बात जो मुझे लगी वह थी कि कॉमिक बुक पढ़ते हुए लगता है कि इसे जल्दबाजी में निपटाया गया है। यह इसलिए भी है क्योंकि कथानक 32 पृष्ठ का ही है। मुझे लगता है कि अगर कथानक वृहद होता तो और मजेदार हो सकता था। कई हिस्से थे जहाँ और हास्य पैदा करने वाली परिस्थितियाँ लाई जा सकती थी जो कथानक को और मनोरंजक बना सकती थी। 

अंत में यही कहूँगा कि अगर आप बाँकेलाल या हास्य कॉमिक बुक्स के फैन हैं तो यह कॉमिक बुक एक बार पढ़ी जा सकती है। मुझे तो यह पसंद आई। हो सकता है आपको भी यह मनोरंजक लगे।

रेटिंग: 3/5

किताब निम्न लिंक पर जाकर खरीदी जा सकती है:
बाँकेलाल डाइजेस्ट 11 | बाँकेलाल के अन्य कॉमिक

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बाँकेलाल

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© विकास  नैनवाल ‘अंजान’


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “बाँकेलाल और चींटाघाटी”

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