रेटिंग : 3/5
7 अक्टूबर 2017 को पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 36 | प्रकाशक: राघव पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्युटर्स | आईएसबीएन: 9788192007083
पहला वाक्य :
राकेश तथा दिव्य अपने दल के साथ रेमजेट अंतरिक्ष यान में अज्ञात क्षुद्र-ग्रह ‘एक्स’ की ओर एक अद्भुत पदार्थ की खोज में बढ़ रहे थे।
राकेश और दिव्य अपने दल के साथ एक महत्वपूर्ण अभियान पर निकले थे। उनका मिशन एक अज्ञात क्षुद्रग्रह (एस्टेरोइड) से एक चमत्कारिक पदार्थ को लाना था। वैज्ञानिकों के अनुसार इस पदार्थ के मदद से वो काल के चौथे आयाम में पहुँच सकते थे। यानी इस पदार्थ की मदद से वैज्ञानिक एक काल-यंत्र (टाइम मशीन) बनाने में सफल हो सकते थे जिससे की भविष्यकाल और भूतकाल में आसानी से सफ़र किया जा सकता था।
लेकिन इस पदार्थ को पाना इतना आसान नहीं था। कई परेशानियाँ थी जो मुँह बाये उनका इंतजार कर रही थी।
क्या राकेश और दिव्य अपने अभियान में सफलता हासिल कर पाए? इस अभियान के दौरान उन्हें किन किन मुश्किलात का सामना करना पड़ा?
ये सब बातें आपको इस लम्बी कहानी को पढ़ने के बाद ही पता चलेगा।
विचार:
रचनाकार में राजीव रंजन उपाध्याय जी द्वारा प्रकाशित विज्ञान कथा नामक पत्रिका के अंक की सामग्री प्रकाशित की जा रही थी और उसी के माध्यम से मैं हरीश गोयल जी कि कहानी फीनिक्स से परिचित हुआ। मैंने वो कहानी पढ़ी और मुझे बहुत पसंद आयी। मैं वैसे भी हिंदी विज्ञान गल्प कई दिनों से ढूँढ रहा था और ऐसे में विज्ञान कथा के रूप में मुझे रचनाकार ने एक अनमोल निधि से परिचित करवाया। गोयल जी की कहानी पढ़ने के साथ मैंने उनकी लिखी किताबें अमेज़न पर सर्च करनी शुरू की तो मुझे ये पुस्तक मिली और मैंने बिना कोई वक्त गवाएँ इसे मँगवा लिया।
जब मैंने ये पुस्तक मँगवायी थी तो मुझे लगा था कि ये कोई लघु उपन्यास होगा। किताब के विषय में अमेज़न में भी कोई विशेष जानकारी न थी इसलिए जब मैंने अमेज़न का पैकेज को खोला तो मुझे एक झटका सा लगा। ये एक ३६ पृष्ठों की लम्बी कहानी थी। ऐसे में इसकी कीमत ७९ रूपये (79 रूपये) मुझे तो बहुत ज्यादा लगी। इसके साथ अगर दो तीन लघु कथायें जोड़कर इसके पृष्ठों की संख्या १०० के करीब लायी जाती तो किताब की कीमित को उचित ठहराया जा सकता था। लेकिन केवल एक कहानी के ८० रूपये देने में पाठक अपने को थोड़ा तो ठगा महसूस करता ही है। और मैंने भी किया। अगर प्रकाशन ने अमेज़न में पृष्ठ संख्या दी होती तो शायद ही मैं इसे खरीदता। लेकिन एक बार मंगवाने के बाद मैंने इसे वापिस भेजना भी सही नहीं समझा। आज के समय में जब लोग बाग़ साहित्य कम पढ़ रहे हैं तब अगर इतनी ऊँची कीमतें रखी जाएँगी तो जो पढ़ रहे हैं वो भी इससे विमुख हो ही जायेंगे। प्रकाशन को इस बात का ध्यान रखते हुए कीमत निर्धारित करनी चाहिए। अगर कीमत वाजिब होगी तो पाठक बढ़ेंगे ही वरना वो कम तो हो ही रहे हैं।
अब इस किताब में मौजूद कृति के ऊपर आते हैं। कहानी एक अन्तरिक्ष अभियान की है। कहानी रोमांचक है। इसमें दर्शाए अन्तरिक्ष युद्ध और दूसरे क्षुद्र ग्रह में दर्शाए खतरनाक जीवन (पेड़ पौधे और जानवर) से मुख्य किरदारों की भिड़ंत कहानी में थ्रिल पैदा करते हैं।.कहानी के बीच में ही हमारे सौर्यमंडल के दसवें ग्रह और प्लूटो के उपग्रह चिरोन के विषय में जानकारी किरदारों के संवाद के रूप में दी है जो कि ज्ञानवर्धक है। वैज्ञानिक नियमों और वैज्ञानिक जानकारी को ऐसे संवादों के रूप में देना उन्हें ज्यादा रुचिकर और आसानी से समझ में आने वाला बना देता है जो कि अच्छी बात है और लेखक इसके लिए बधाई के पात्र हैं।
कहानी के शुरूआत में ही हम मुख्य किरदारों को उस चीज के निकट पाते हैं जिसकी उन्हें तलाश है। और फिर ये भी देखते हैं कि जल्द ही उन्होंने उस पदार्थ हो हासिल कर दिया है जिसे वो पाना चाहते हैं। बस अब उसे वापस ले जाना ही रह गया है। और यही वापसी के सफ़र की ही ये कहानी है। इसलिए शीर्षक अज्ञात ग्रह की ओर मुझे इस पर ठीक बैठता नहीं लगा। इधर अज्ञात ग्रह से धरती की ओर शीर्षक ही फिट बैठता है। हाँ, अगर अज्ञात ग्रह की ओर जाने का विवरण ज्यादा होता और इधर जाने में हुई परेशानियों को विस्तृत तौर से दर्शाया जाता तो मेरे हिसाब से ज्यादा सही रहता। अभी तो खाली इसे एक दो पंक्ति में निपटा दिया गया है।
राकेश तथा दिव्य अपने दल के साथ रेमजेट अंतरिक्ष यान में अज्ञात क्षुद्र-ग्रह ‘एक्स’ की ओर एक अद्भुत पदार्थ की खोज में बढ़ रहे थे। यह एक जोखिम भरा कार्य था।
ये जोखिम क्या थे? इनसे भी मुख्य किरदारों को दो चार होते हुए दर्शाते तो कहानी लम्बी और रोचक बन सकती थी।
इसके इलावा कहानी में एक जगह रहस्य पैदा करने की कोशिश की गयी है। यान के विषय में जानकारी दुश्मनों को जाती रहती है। मुख्य किरदार इसे समझ चुके हैं लेकिन ये काम कौन कर रहा है वो इससे वाकिफ नहीं है। पाठक के लिए भी ये रहस्य रहना चाहिए था लेकिन एक लाइन से ये उजागर हो जाता है। कहानी में एक वाक्य है – ‘* ने धूर्ततापूर्वक कहा।'(यहाँ * एक किरदार का नाम है जिसे मैं इस लेख में देना नहीं चाहता।) लेकिन ये वाक्य पढ़कर ही पता लग जाता है कि वो ही गद्दार है इसलिए जब आगे चलकर उसकी गद्दारी उजागर होती है तो भले ही मुख्य किरदारों के लिए वो विस्मित करने वाला हो लेकिन पाठक के लिए ऐसा नही होता। इस बिंदु को भी और अच्छे तरीके से दर्शाया जा सकता था। मुख्य किरदारों द्वारा गद्दार का नकाब फाश करने के लिए जासूसी इधर दिखाई जा सकती थी। कुछ क़त्ल इधर दिखाए जा सकते थे जो अपने राज को राज रखने के लिए किये गए और इससे कहानी का विस्तार तो होता ही बल्कि उसमे रोचकता भी आ जाती।
ऊपर लिखे बिन्दुओं को भी कहानी में समाहित किया होता तो कहानी और ज्यादा रोमांचक बन सकती थी। मेरे हिसाब से कहानी एक बार पढ़ी जा सकती है। हाँ, कीमत वाले बिंदु पर प्रकाशक और लेखक दोनों को एक बार सोचना चाहिए।
बाकी मैंने ऑनलाइन हरीश जी के काफी किताबें देखी हैं जिन्हें मैं जल्द ही पढूँगा। वे अच्छे कहानीकार हैं और उनकी रचनाओं के प्रति मेरी रूचि जागृत हो ही चुकी है।
अगर आपने इसे पढ़ा है तो इस किताब के विषय में अपनी राय देना न भूलियेगा।
अगर आप इसे पढ़ने के लिए उत्सुक हैं तो इसे निम्न लिंक से मँगवाया जा सकता है:
अमेज़न-पेपरबैक
बहुत बढ़िया जानकारी विकास जी। जल्द निपटाता हूँ मैं भी। कोई और किताब ऐसी आये तो बताईयेगा। 😊
जरूर। अभी तलाश जारी है। जैसे जैसे पढ़ते जाऊँगा ब्लॉग पर उनके विषय में लिखते जाऊँगा। बने रहियेगा।