अच्छा भूत बनने का प्रशिक्षण भी देती है ‘भूतिया मास्साब’; ‘भूतिया मास्साब’ के लेखक प्रांजल सक्सेना से बातचीत

‘भूतिया मास्साब’ के लेखक प्रांजल सक्सेना से बातचीत

‘महानपुर के नेता’, ‘गाँव वाला अंग्रेजी स्कूल’ और ‘हाथिस्थान’ के बाद लेखक प्रांजल सक्सेना का किशोर उपन्यास ‘भूतिया मास्साब’ फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशन से प्रकाशित होकर आया है। इस उपलक्ष्य में उन्होंने एक बुक जर्नल से उनके लेखन, उनकी नवीन पुस्तक और आने वाली पुस्तकों पर बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।


नमस्कार प्रांजल जी, सर्वप्रथम तो आपको आपकी नवीन पुस्तक के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ। पुस्तक पर बात करने से पूर्व पाठकों को अपने विषय में कुछ बताएँ।

नमस्कार विकास जी और बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरा पूरा नाम प्रांजल सक्सेना है। मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जनपद में हुआ था लेकिन छह माह की आयु में ही मैं बरेली जनपद में बस गया था और तब से यहीं हूँ। सारी शिक्षा बरेली में ही हुई। अभी भी बरेली की तहसील आँवला में एक गाँव के परिषदीय जूनियर हाईस्कूल में शिक्षक के पद पर हूँ। मैं कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को पढ़ाता हूँ। पिछले कुछ वर्षों से लिखने लगा हूँ और थोड़ा-बहुत एनिमेशन बनाना सीखा है तो बच्चों के लिए एनिमेटिड वीडियो भी बनाने लगा हूँ।

साहित्य से आपका प्रथम परिचय कब हुआ?

वैसे ही जैसे 80-90 के दशक के हिन्दी पट्टी के अधिकतर बच्चों का हुआ है- कॉमिक्स से। पाठयक्रम के अतिरिक्त उस समय कॉमिक्स बहुत पढ़ता था। यहाँ तक कि परीक्षाओं के दिनों में भी। बचपन में ‘चंपक’ के भी कई अंक पढ़े हैं। कभी रेल यात्रा करता था तो ‘नंदन’ पढ़ता था। विद्यालय के पुस्तकालय से कभी-कभी ही पुस्तक मिलती थी लेकिन जब भी मिलती थी तो घर लाकर अवश्य पढ़ता था। धीरे-धीरे बड़ा हुआ तो शिक्षकों के प्रेरित करने पर राष्ट्रीय पर्वों पर सुनाने के लिए कविता लिखना आरंभ किया।

वह कौन से लेखक हैं जिन्होंने साहित्य के प्रति आपकी रुचि को जागृत किया? इन लेखकों की कौन कौन सी कृतियाँ आपने पढ़ीं?

हँसना-हँसाना मुझे बहुत पसंद है। समाचार-पत्रों में संपादकीय आदि में व्यंग्य लेख पढ़ने में मेरी बहुत रुचि थी। पुस्तकों की बात करूँ तो श्रीलाल शुक्ल की ‘रागदरबारी’ वो प्रथम पुस्तक थी जो मैंने पढ़ी थी। हरिशंकर परसाईं जी की रचनाएँ तो अद्भुत हैं ही। ‘रानी नागफनी की कहानी’ और ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ मैंने पढ़ी हैं। समकालीन लेखकों में सुभाष चंदर जी मेरे परमप्रिय लेखक हैं। ‘अक्कड़-बक्कड़’ पुस्तक से उनके बारे में जाना था। फिर उनका व्यंग्य संग्रह ‘माफ कीजिए श्रीमान’ और ‘दाने अनार के’ मैंने पढ़ी हैं।

लेखन का विचार कब मन में आया? क्या आपको अपनी पहली रचना याद है?

जी बिल्कुल। 2011 के आसपास जब व्हाट्सएप्प चलाना आरंभ किया था तब कुछ समूहों में बात-बात में चुटीली बातें कह दिया करता था। लोगों को पसंद आने लगा तो फेसबुक पर पहला व्यंग्य लेख लिखा ‘शांति कबूतर की पीड़ा’ उसे पाठकों ने पसंद किया फिर कुछ और लेख लिखे, कविताएँ भी। एक पोस्ट के तो फेसबुक पर 1000 से भी ऊपर शेयर हुए जोकि उस समय के अनुसार बड़ी बात थी। तब सोचा कि अब पुस्तक भी लिखी जा सकती है।

आपकी नवीनतम पुस्तक ‘भूतिया मास्साब‘ है। अपनी इस पुस्तक के विषय में कुछ बताएँ?

आपने दलित विमर्श सुना होगा, स्त्री विमर्श सुना होगा। भूतिया मास्साब की बात करें तो ये सच्चे अर्थों में भूत विमर्श की किताब है। भूतों, चुड़ैलों के भी अपने दर्द होते हैं। इसमें भूतों की भावनाओं, उनके दर्द, उनकी मजबूरियों को भी भूतिया दृष्टिकोण से देखा गया है विशेषकर ‘जाहिर’ नाम के अध्याय में। कहानी की बात करें तो ये एक ऐसे शिक्षक की कहानी है जो मरने के बाद भी अपने विद्यालय का मोह नहीं छोड़ पाता और भूत बनने के बाद भी विद्यार्थियों की सहायता करता है। इस विद्यालय में और भी भूत हैं जिनकी सबकी अपनी कहानी है। कुछ की तो बहुत करुण। इन भूतों को अपना साथी बनाते हुए विद्यालय को नुकसान पहुँचाने वाले अराजक तत्वों से भी भूतिया मास्साब लड़ते हैं।

भूतिया मास्साब - प्रांजल सक्सेना | फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन
भूतिया मास्साब – प्रांजल सक्सेना

आपने इससे पूर्व एक फंतासी ‘हाथिस्तान’ लिखी थी। ऐसे में अब ऐसे पारलौकिक या यूँ कहूँ कि भूतिया विषय पर लिखने की कैसे सूझी? क्या कोई विशेष घटना जिसने लिखने के लिए आपको प्रेरित किया?

आपको जानकर आश्चर्य हो सकता है लेकिन सच तो ये है कि इसके बैककवर पर जिन भी भूतिया घटनाओं का उल्लेख है वो सभी मेरे विद्यालय में घट चुकी हैं। जैसे एक कनेर के पेड़ के पास दो बार बच्चे बेहोश हो चुके हैं, एक गैलरी है उसके बारे में कई बार बच्चे शिकायत कर चुके हैं कि यहाँ सफेद कपड़ों में भागता हुआ कोई दिखाई देता है। एक पेड़ को मैंने स्वयं देखा है कि आज हरा-भरा था और अगले दिन सूखा हुआ। तब स्थानीय लोगों ने बताया था कि कभी किसी पेड़ को ‘हवा’ लग जाती है तो ऐसा हो जाता है। एक बार एक लड़की को बैठे-बैठे ऐसा एहसास हुआ था कि किसी ने उसका गला दबाया हो जबकि वो सीट पर अकेले बैठी थी। उस समय उस लड़की का स्वर और आँखें बहुत बदल गयी थीं जो मैंने अपनी आँखों से देखा था और आज तक नहीं भूल पाया हूँ। ऐसी ही कई घटनाओं का पुस्तक में उल्लेख है।

क्या आप पारलौकिक शक्तियों पर विश्वास करते हैं? क्या कोई ऐसा अन्य अनुभव भी आपको हुआ है जो आप पाठकों के साथ साझा करना चाहेंगे?

जैसा कि ऊपर बताया है कि मैंने कुछ घटनाएँ स्वयं अपने विद्यालय में घटते हुए देखी हैं। इसके अतिरिक्त एक बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति का उल्लेख करना चाहूँगा कि तुलसीदास जी के बारे में ये तो सब जानते हैं कि उन्हें श्रीराम से हनुमान जी ने मिलाया लेकिन हनुमान जी से तुलसीदास जी को किसने मिलाया तो उत्तर है कि एक प्रेत ने जिसे अनजाने में ही तुलसीदास जी ने जल अर्पित कर दिया था और वरदानस्वरूप उसने हनुमान जी का पता बताया था। कइयों के ऐसे अनुभव हैं तो कहीं न कहीं पारलौकिक शक्तियों के अस्तित्व को मानने को व्यक्ति मजबूर हो ही जाता है।

पुस्तक लिखते हुए आपके लिए शीर्षक कितना महत्वपूर्ण होता है? क्या आप शीर्षक पहले ही निर्धारित करते हैं या बाद में यह निर्धारित होता है? प्रस्तुत पुस्तक के शीर्षक की क्या कहानी है?

हाँ, आज तक ऐसा ही हुआ है कि प्रत्येक पुस्तक का शीर्षक पहले निर्धारित हुआ है लिखना बाद में आरंभ हुआ है। भूतिया मास्साब की बात करें तो इस कहानी का विचार अनायास ही एक उपहास से उपजा था। हुआ कुछ ऐसा था कि लेखक ने 2022 में अपना शरीर एक मेडिकल कॉलेज को दान दिया था। मेरे विद्यालय में बच्चे कई बार भूत-प्रेत से डरने की बात करते हैं तो मैंने एक दिन उनसे कहा था कि जब मैं मरूँगा तो मेरी मृतदेह मेडिकल कॉलेज में जब तक रहेगी तब तक मैं भूत बनकर विद्यालय में ही घूमूँगा और बाकी भूतों को भगा दूँगा। बस यही इस उपन्यास का आधार बना। अब जब भूत को विद्यालय में घूमना है और भूत शिक्षक है जिसे गाँव में मास्साब कहते हैं तो दोनों बातों को मिलाकर भूतिया मास्साब नाम रखा।

पुस्तक में हास्य भी मौजूद है। आप हास्य को किस तरह देखते हैं? किस तरह का हास्य आपको पसंद है और किस तरह का हास्य आप अपने पाठकों को देना चाहते हैं?

मैंने अब तक चार पुस्तकें लिखी हैं और सभी में हास्य-व्यंग्य उपस्थित है। कारण एक तो मेरे सामान्य तौर से बात करने की भी यही शैली है। दूसरे मैं मानता हूँ कि पुस्तक को पढ़कर लोग आनंद विभोर हो जाएँ। हास्य किसी बात को कहने का एक नया दृष्टिकोण देता है। हास्य से बात बहुत रोचक हो जाती है। मैं पाठकों को ऐसा ही हास्य देना चाहता हूँ जो साफ-सुथरा हो और पढ़ने में आनंददायी लगे।

पुस्तक के मुख्य किरदारों बंटी और भूतिया मास्साब को छोड़कर वह कौन सा किरदार है जो आपको सबसे अधिक पसंद है और वह कौन सा किरदार है जिसे आप अपने असल जीवन में मिलना नहीं चाहोगे?

मुझे बुढ़ऊ भूत का किरदार बहुत पसंद है। बुढ़ऊ भूत एक ऐसे किरदार हैं जिन्हें भूत होने का दशकों का अनुभव है। नए भूतों को मार्गदर्शन देते हैं और उनका लोगों को आत्महत्या से बचाने का अलग ही तरीका है। जेलर वो किरदार है जिससे मैं कभी भी मिलना नहीं चाहूँगा। जेलर के अन्दर स्वार्थ बहुत है। उसे अपने गाँव के बच्चों से कोई प्यार नहीं है। उन्हें पढ़ने भी नहीं देना चाहता और विद्यालय का बुरा भी चाहता है। इनके विषय में अधिक तो आप पुस्तक पढ़कर ही जान पाएँगे।

पुस्तक लिखते हुए कभी कोई ऐसा प्रसंग आया जो लिखने में आपको दिक्कत पेश आयी हो? किस तरह से उसे शब्दों में ढाला जाए यह तय करना मुश्किल हो रहा हो? फिर आप उस परेशानी से कैसे उभरे?

हाँ, कहानी में कई बार रुकावट तो आ ही जाती है। लेकिन तब भी मैं कोई तनाव नहीं लेता हूँ। ऐसे में मैं कभी कॉमिक्स पढ़ता हूँ कभी कविता लिखने लग जाता हूँ तो कभी अगली पुस्तक के बारे में सोचने लगता हूँ। लेकिन अपने ऊपर कोई दबाव नहीं डालता कि ये आज ही पूरा करना है। ‘भूतिया मास्साब’ में सबसे अधिक दिक्कत आई भूतिया मास्साब को बंटी का मित्र बनाने में। गाँव के बच्चे माता-पिता, शिक्षक किसी से डरें न डरें लेकिन भूतों से बहुत डरते हैं। ऐसे में एक भूत का बच्चे से मित्रता कराना अटपटा न लगे ये लिखने में पसीने छूट गए लेकिन बाद में प्रादेशिक परिस्थितियों का सहारा लेकर इस मुश्किल को हल किया। कैसे किया ये जानने के लिए पाठकों को पुस्तक की ओर जाना पड़ेगा।

आप निरंतर लेखन कर रहे हैं। आपका लेखन प्रक्रिया क्या रहती है? दिनचर्या में लेखन का क्या स्थान है?

मेरी हर पुस्तक की लेखन प्रक्रिया अलग रही है। ‘महानपुर के नेता’ मैंने आधी कागज पर लिखी थी। फिर उसे टाइप किया बाद में लैपटॉप पर टाइप करके पुस्तक पूरी की। इस पुस्तक का एक दिन में लगभग एक पृष्ठ ही लिख पाता था। ‘गाँव वाला अंग्रेजी स्कूल’ पूरी तरह से मोबाइल पर टाइप करके लिखी है। विद्यालय से लौटकर कभी लेटकर, कभी बैठकर मैं लिखता था।

हाथिस्तान’ मैंने आधी लिखी है प्रतिदिन लिखकर, फिर बाद में रविवार या अन्य छुट्टियों को सुबह ही 5 बजे उठकर लैपटॉप लेकर बैठ जाता था और पूरे दिन में 3000-4000 शब्द लिखता था। ‘भूतिया मास्साब’ केवल 25 दिन में लिखी गई कहानी है। इसका खाका मस्तिष्क में तैयार कर लिया था। फिर जब ग्रीष्मावकाश हुआ तब मई-जून में लगातार लिखा।

कोई विषय सूझने पर आप लेखन की शुरुआत कैसे करते हैं? क्या आप पहले ही सारा खाका बना लेते हैं या फिर लिखते हुए जैसे सूझता चला जाता है वैसे वैसे लिखते जाते हैं?

कोई विषय सूझने पर क्रम निर्धारित करता हूँ कि इसे कब लिखना है। मसलन विषय तो मन में आते रहते हैं पर ये निर्धारित करता हूँ कि इसे अभी लिखना है, वर्तमान लिखी जा रही पुस्तक के बाद या दो-चार पुस्तकों के बाद। उसके बाद उस विचार पर खाका बनाता रहता हूँ कि कौन-कौन से पात्र होंगे, क्या घटनाएँ हो सकती हैं। इन सबके मोबाइल पर नोट्स बनाते चलता हूँ फिर पूरी तैयारी से लिखने बैठता हूँ। सब कुछ पहले नहीं सोचा जा सकता इसलिए लिखते समय कई बार नए-नए पात्र, घटनाएँ आदि जुड़ते चले जाते हैं।

एक पुस्तक के अमूमन कितने ड्राफ्ट आप तैयार करते हैं? पुस्तकों के इन ड्राफ्टों में यह बदलाव लेखन के किन किन चरणों में होते हैं?

अभी तक सभी पुस्तकों का एक ही ड्राफ्ट तैयार किया है। जब पूरी पुस्तक लिख लेता हूँ तब स्वतः संपादित करने बैठता हूँ। जब प्रकाशक की ओर से कोई सुझाव आता है तो उसे भी घटाया-बढ़ाया जाता है।

आप एक अच्छी पुस्तक को किस तरह देखते हैं। वह कौन से तत्व हैं जिनका आप लिखते समय अपनी पुस्तक में समावेश करना जरूरी समझते हैं? इसके लिए आप क्या करते हैं?

एक अच्छी पुस्तक ऐसी होनी चाहिए जो सपाट न हो, उसमें पाठकों को चौंकाने वाले मोड़ आते रहने चाहिए और सभी के सभी तार्किक हों। ऐसा न हो कि चौंकाने के चक्कर में हम पाठक को अतार्किक घटनाएँ या संवाद दे दें। संवादों में एक लय होनी चाहिए और पात्र की समझ, भाषा, परिवेश, आयु के अनुसार संवाद होने चाहिए। पुस्तक की भाषा निःसन्देह रोचक होनी चाहिए और पुस्तक समाप्त करने के बाद पाठक को कुछ मिलना चाहिए ऐसा न हो कि पुस्तक पूरी पढ़ने के बाद भी पाठक खाली हाथ रह जाए।

कहते हैं लेखक अपने आस पास के किरदारों को ही अपनी कथाओं में ढालता है। आप शिक्षक हैं। बच्चों के आस पास रहते हैं और आपकी पुस्तकें भी उनसे संबंधित होती हैं। इस पुस्तक में भी क्या ऐसे किरदार मौजूद हैं जो आपने अपने आस पास के लोगों या बच्चों से लिए हों? अगर हाँ, उनकी वह क्या खूबी थी जिसके चलते उन्हें आपने यहाँ स्थान दिया? एक लेखक के लिए अपनी आसपास की दुनिया को देखना, जाँचना, परखना कितना जरूरी होता है?

जी बिल्कुल, मेरे तो कई किरदार और घटनाएँ वास्तविक जीवन से जुड़ी होती हैं। ‘गाँव वाला अंग्रेजी स्कूल’ में जैसे निजी विद्यालयों का उल्लेख है वो मैंने अपने सामने देखे हैं। उसके रतनवीर और महाराज जैसे चरित्र मेरे प्रथम विद्यालय के छात्रों के ही नाम हैं। भूतिया मास्साब की शुरुआत जिस घटना से हुई है वो मेरे विद्यालय में घट ही चुकी है। भूतिया मास्साब का तेजपाल हेडमास्टर का चरित्र एक शिक्षक के वास्तविक चरित्र से लिया गया है। अभी भी कोई रोचक घटना मेरे सामने घटती है तो मैं उसे मोबाइल में तुरंत नोट कर लेता हूँ और यथोचित पुस्तक में स्थान देता हूँ। शिक्षक होना बच्चों के लिए पुस्तक लिखने में बहुत सहायता करता है।

पाठकों को आपकी यह पुस्तक क्यों पढ़नी चाहिए और आपके अनुसार वो कौन से पाठक हैं जिन्हें यह पसंद आएगी?

यदि पाठक हॉरर में कुछ नया पढ़ना चाहें जिसमें वास्तविक घटनाओं का भी उल्लेख हो तो उन्हें ‘भूतिया मास्साब’ अवश्य पढ़नी चाहिए। ‘भूतिया मास्साब’ भूत विमर्श की ऐसी पुस्तक है जो भूतों की मजबूरियों को भी सामने रखती है और जैसा कि मैंने पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि मृत्यु का सामना एक दिन सभी को करना है। हो सकता है कि लिखने वाला या पढ़ने वाला भी भूत बने। ऐसे में ये पुस्तक एक प्रकार से अच्छा भूत बनने का प्रशिक्षण भी देती है। पुस्तक आपको हँसाती भी है और बच्चों को भी बहुत पसंद आएगी। यहाँ तक कि यदि किसी को हॉरर से बहुत डर लगता है और जीवन में पहली हॉरर की पुस्तक कोई पढ़ना चाहता है तो उसे ‘भूतिया मास्साब’ पढ़नी चाहिए।

आपके आने वाले प्रोजेक्ट्स कौन कौन से हैं? क्या किसी अन्य विषय पर आप कार्य कर रहे हैं? अब तक आपने तीन किशोर या बाल साहित्य और एक व्यंग्य उपन्यास लिखा है? क्या अगली रचना भी बच्चों के लिए ही होने वाली है या प्रौढ़ साहित्य में कुछ देख रहे हैं?

जी पूरी संभावना है कि अगली पुस्तक भी किशोर साहित्य की होगी। इस समय मैं हाथिस्तान के अगले भाग पर कार्य कर रहा हूँ। इसके बाद प्रेमकथा या व्यंग्य संग्रह आने की संभावना है।

अंत में एक बुक जर्नल को समय देने के लिए हार्दिक आभार प्रांजल जी। हम आशा करते हैं कि आपकी पुस्तक ‘भूतिया मास्साब’ को भी उतना ही अधिक प्यार पाठकों द्वारा मिलेगा जितना कि आपकी दूसरी पुस्तकों को मिला है।


भूतिया मास्साब

भूतिया मास्साब - प्रांजल सक्सेना | फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन

एक विद्यालय जिसमें है भूतों का डेरा। कभी कोई सफेद कपड़ों में भागता दिखाई देता है, तो कोई पेड़ों को खराब कर देता है, कोई किसी बच्चे का गला दबा देता है तो कोई किसी बच्चे को बेहोश कर देता है।

एक दिन वहाँ के हेडमास्टर मर जाते हैं और भूत बनकर विद्यालय में ही भटकने लगते हैं।

अब बाकी भूत मास्टर जी पर भारी पड़ेंगे या मास्टर जी उन भूतों को भगा देंगे।

क्या होगा जब बंटी भूतिया मास्साब से दोस्ती करने की कोशिश करेगा या जेलर सफल होगा अपने कुत्सित प्रयासों में।

पुस्तक लिंक: अमेज़न


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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