आलोक सिंह खालौरी पेशे से वकील हैं। उन्होंने छोटे से ही वक्फे में अपने लेखन द्वारा अपने पाठकों पर एक अमिट छाप छोड़ी है जिसके कारण उनके पाठकों को उनके उपन्यासों की प्रतीक्षा रहती है।
हाल ही में शब्दगाथा प्रकाशन से उनका नवीनतम उपन्यास ‘प्रेम गली अति सांकरी’ आया है। इसके साथ-साथ उनका पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘राजमुनि’ भी शब्दगाथा प्रकाशन द्वारा नवीन साज सज्जा के साथ प्रकाशित किया गया है।
आज एक बुक जर्नल पर हमने उनसे उनके लेखन और उनके नवीनतम उपन्यास पर बात की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।
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नमस्कार आलोक जी, सर्वप्रथम तो आपको अपने नवीन उपन्यास प्रेम गली आती सांकरी के प्रकाशन हेतु हार्दिक बधाई।
पाठकों को उपन्यास के विषय में कुछ बताएँ।
सर्वप्रथम तो आपका बहुत बहुत धन्यवाद विकास जी। प्रस्तुत उपन्यास एक क्राइम थ्रिलर है और जैसा कि नाम से जाहिर है प्रेम त्रिकोण भी कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं , इससे अधिक बताना अभी उचित नहीं होगा।
उपन्यास को लिखने का ख्याल कैसे आया? क्या कोई विशेष वाक्या या ख्याल जिसने आपको इस कथानक को बुनने पर मजबूर किया हो?
उपन्यास को लिखने का विचार अपने पूर्वप्रकाशित उपन्यास तरकीब को लिखते समय ही आ गया था पर ये प्रसंग तरकीब के कथानक में एडजस्ट करना मुश्किल था अतः ये सोचा कि इसके लिए अलग से एक उपन्यास लिखा जाना सही रहेगा।
इस पुस्तक का कथानक किस जगह पर घटित होता है। क्या आप उस जगह पर रह चुके हैं? उस जगह की क्या खास बातें हैं जो आपको पसंद हैं और वो कौन सी बातें हैं जिन्हें आपने उपन्यास में भी जगह दी है?
प्रस्तुत किताब में नायक नायिका तरकीब वाले नायक नायिका अर्जुन पूजा ही है इस कारण घटनास्थल तो मेरठ ही रखना था। , मैं मेरठ में ही रहता हूँ तो मेरठ मेरे लिए महत्वपूर्ण तो है ही पसंदीदा जगह भी हैं किंतु इस उपन्यास में स्थान का कोई विशेष महत्त्व नहीं हैं कोई भी स्थान हो सकता था , तरकीब में मेरठ था तो इसमें भी मेरठ ही रखना पड़ा।
आपके कथानकों के लिए वह जगह कितनी महत्वपूर्ण होती है जहां आपने उन्हें बसाया है। आप अक्सर जगह का चुनाव किस प्रकार करते हैं?
कथानक में यदि हम उस स्थान से भली भाँति परिचित होते है तो उस जगह का वर्णन बहुत सहजता से कर लेते हैं , इसी कारण मैंने स्थानों में मेरठ ,आगरा , बुलंदशहर आदि शहर लिए जिनसे मैं भलीभांति परिचित हूँ। सिर्फ शहर के नक़्शे को जानना ही पर्याप्त नहीं होता , वहाँ के लोगो के रहन सहन , खान पान और रुचियों की जानकारी होना भी आवश्यक है। सही तथ्य कहानी की विश्वसनीयता को बढ़ा देते है। वैसे ज्यादा आसान तो काल्पनिक शहर का वर्णन होता है जैसे राजनगर, विशालगढ़ आदि पर अब उसका चलन नहीं रहा।
आप पेशे से वकील हैं। अपराध और अपराधियों से आपका वास्ता पड़ता रहता होगा। एक अपराध कथा लिखने में वह कौन सी चीजें हैं जिसमे आपके पेशे ने आपकी मदद की है?
जी अपराधियों से वार्ता उनकी मनोस्थिति ,उनकी कार्यशैली आदि को जानने में सहायक होती है , जिससे कहानी में अपराधी का चरित्रचित्रण बेहतर ढंग से किया जा सकता हैं। इसके अतिरिक्त अदालतों का प्रोसीजर ज्ञात हो तो उससे भी बहुत मदद मिलती हैं। मैंने आज तक जितने भी उपन्यास पढ़े हैं या फिल्मे देखी है सभी में अदालत की कार्यवाही गलत दिखाई गई है। चार्ज फेम होते समय और जजमेंट के समय के आलावा मुल्जिम कभी किसी अदालती कार्यवाही के दौरान अदालत में नहीं रहता , उससे जिरह का तो सवाल ही नहीं। पर सबमें वकील को अभियुक्त से सवाल करते दिखाया जाता है। ‘प्रेम गली अति सांकरी’ में भी कोर्ट सीन हैं, जिन्हें आप पढ़ेंगे तो अंतर आपको स्पष्ट नजर आएगा।
भविष्य में एक कोर्टरूम ड्रामा भी लिखने का विचार है।
असल अपराध के वह कौन से पहलू हैं जिन्हें आप कथानक में जगह देते हैं। वह कौन से पहलू हैं जिन्हें उपन्यास लेखन करते वक्त आप हटा देते हैं या जिनमें लेखकीय आजादी ले लेते हैं?
ऐसा तो कभी सोचा नहीं कि क्या छोड़ना है या क्या लेना है , जैसी कहानी की मांग होती है वैसा लिखता हूँ। हाँ, विचलित कर देने वाले अपराधों के विस्तृत वर्णन से यथासंभव बचने का प्रयास करता हूँ।
प्रस्तुत उपन्यास पर आए तो आपको इसका कौन सा किरदार पसंद है? उपन्यास का कौन सा ऐसा किरदार है जो आपको पसंद नहीं है?
क्षमा चाहूँगा विकास जी पर मुझे कौन सा पात्र पसंद है और कौन सा नापसंद है ये बताना कहानी का काफी हद तक रहस्य खोल सकता हैं।
आपके लिए एक अच्छी अपराध कथा या रहस्य कथा की क्या परिभाषा है?
मेरे विचार से अपराधकथा में यथार्थ का अधिकाधिक और फिक्शन का कम से कम वर्णन हो वही बेहतर अपराध कथा हैं और रहस्य कथा वो जो पूरी किताब के अध्यन के दौरान बार बार आपको किताब का आखिरी पृष्ठ पहले पढ़ लेने के लिए उकसाये। बाकि समृद्ध भाषा और रोचक भाषा शैली तो हर किताब का मूल होती ही हैं।
आपके उपन्यासों के शीर्षक बड़े रोचक रहते हैं। क्या आप पहले ही शीर्षक सोच लेते हैं या फिर कथानक पूरा होने के बाद शीर्षक रखते हैं। ‘प्रेम गली अति सांकरी’ के विषय में बताइए। इसका शीर्षक कब रखा गया? क्या इसके पीछे कोई कथा है?
कहानी का मोटी मोटी रूपरेखा तो लिखने से पहले ही स्पष्ट होती है तो शीर्षक तो मैं पहले ही सोच लेता हूँ , इससे सुविधा ये रहती हैं कि मैं कहानी को उसके मूल से भटकने नहीं देता। फिर भी यदा कदा शीर्षक बदलने भी पड़ जाते हैं।
‘प्रेम गली अति सांकरी’ का शीर्षक तो मैंने ‘तरकीब’ लिखते समय ही निर्धारित कर लिया था , बाकि बची इस शीर्षक के पीछे की कथा की बात तो ऐसी कोई कथा नहीं हैं , होती तब भी यही कहता।
आखिरी पंक्ति कहकर आपने पाठक और मेरी दोनों की जिज्ञासा जागृत कर दी है। खैर, हम उपन्यास से लेखन पर आते हैं। आपने लेखन बहुत देर में शुरू किया। इसके पीछे कोई विशेष कारण?
बस कभी विचार ही नहीं आया लेखन का, कभी लगा ही नहीं कि मैं कहानी भी लिख सकता हूँ। हाँ, कभी कभार गीत गजल जरूर लिख लिया करता था। जिंदगी अर्थोपार्जन में ही व्यस्त रही। हँसी मजाक में मित्रो के ऊपर छोटी छोटी हास्य व्यंग की रचना कर लिया करता था फिर मित्रो के ही अनुरोध पर एक कहानी लिखने का विचार किया तो परिणाम 400 पेज की किताब ‘राजमुनि’ के रूप में सामने आया जो सभी को पसंद आई , आज भी आश्चर्य होता है कि मैंने कैसे लिख ली इतनी बड़ी कहानी।
क्या जब आप किशोर थे तो लेखन के विषय में सोचते थे? अगर आपको अपने किशोर रूप से मिलने का मौका मिले तो उसे क्या सलाह देना चाहेंगे? विशेषकर लेखन को लेकर?
किशोरावस्था में मैंने कभी कुछ लिखने के बारे में नहीं सोचा। आज यदि अपने किशोर रूप से मिलने और सुझाव देने का अवसर मिले तो कई सुझाव है जो देना चाहूँगा लेकिन जितना जिद्दी मैं हूँ लगता नहीं कि खुद अपना दिया भी कोई सुझाव मानता , पर फिर भी सिगरेट ना शुरू करने का सुझाव देता। जीवन में कभी विवाह ना करने का सुझाव देता, कुछ ख़ास लेखकों को पढ़ने का सुझाव देता, लेखन के टिप्स तो देता ही देता।
आपने टिप्स देने की बात की है। कई नवयुवा लेखन कार्य में सक्रिय होना चाहते हैं। उन्हें आप क्या कुछ टिप्स देना चाहेंगे? अगर हाँ तो वो क्या होंगी?
हालाँकि अभी तो मैं खुद ही नया लेखक हूँ पर फिर भी पाठकीय अनुभव के आधार पर नवोदित लेखकों को यही राय दूँगा कि यथासंभव अधिक से अधिक पढ़ें। अलग-अलग जेनर (विधाएँ जैसे विज्ञान-गल्प, सामाजिक, हॉरर, ऐतिहासिक इत्यादि) के लेखकों को पढ़ें। कल्पना शक्ति तो बाय बर्थ मिलती है लेकिन उसे लिपिबद्ध करने के लिए समृद्ध भाषा की आवश्यकता होगी और वो केवल अध्यन से होगी।
इसके अतिरिक्त कहानी का बेस सोच लीजिए और लिखना शुरू कर दीजिए। सीन दर सीन लिखिए। बहुत जल्दी आप पाएँगे कि आप साक्षी मात्र रह गए है और कहानी अपना मार्ग स्वयं निर्मित कर रही है।
मुझे उम्मीद है उभरते हुए लेखकों को इन सुझावों से जरूर लाभ होगा। आपके लेखन पर वापस लौटते हैं। आपका लेखकीय रूटीन अमूमन कैसा रहता है? क्या आप रोज लिखते हैं? मसलन आपकी लेखकीय दिनचर्या कैसी रहती है?
लेखकीय रूटीन कोई फिक्स नहीं है , वैसे अमूनन देर रात को ही होता हैं। मुझे जो प्रसंग लिखना होता है उसे दिमाग में चलने देता हूँ , जब काफी बार दिमाग में उसका रिवीजन हो जाता है तब उसे लिखने बैठता हूँ , कुल मिलाकर कुछ भी पूर्वनिर्धारित नहीं हैं लेकिन अधिकांशतः लिखता प्रतिदिन हूँ।
आलोक जी आप अपनी रचनाओं के कितने ड्राफ्ट लिखते हैं? क्या पहले ही ड्राफ्ट में सब सही से लिखा जाता है या पहला ड्राफ्ट लिखने के बाद भी उसमें बदलाव होता है? क्या कभी ऐसा हुआ कि एक ही रचना के दो ड्राफ्ट बिलकुल बदल देने पड़े हों?
एक ही ड्राफ्ट लिखता हूँ जो आज लिखता हूँ कल नया लिखने से पहले एक बार पढ़ लेता हूँ फिर नया लिखना शुरू करता हूँ।
अभी तक तो किसी कहानी में कोई बदलाव नहीं किया। हाँ, हाल-फिलहाल में लिखी जा रही एक कहानी से एक पूरा चैप्टर डिलीट अवश्य किया हैं क्योंकि कहानी आगे बढ़ने के साथ वो अप्रासंगिक लगने लगा था । बाकी तो कभी कोई बदलाव नहीं करना पड़ा।
आपके प्रस्तुत उपन्यास पर आते हैं। क्या उपन्यास का कोई ऐसा हिस्सा भी था जहां पर आपको लेखकीय अवरोध( राइटर्स ब्लॉक) का सामना करना पड़ा हो?आप राइटर्स ब्लॉक से कैसे खुद को निकालते हैं?
लेखकीय अवरोध तो आ जाता है प्रथम पुस्तक के समय तो कई महीने तक ऐसी स्थिति रही थी , अब भी यदा कदा ऐसा हो जाता है। उस स्थिति में मैं लेखन से पूर्ण किनारा कर लेता हूँ। फिल्म देखता हूँ , कहीं घूमने चला जाता हूँ , टीवी अधिक देखने लगता हूँ कुछ ही दिनों में अवरोध स्वतः हट जाता हैं। प्रस्तुत किताब को लिखते समय ऐसी स्थिति नहीं आई।
‘प्रेम गली अति सांकरी’ के साथ साथ आपका एक उपन्यास राजमुनि पुनः प्रकाशित हो रहा है। अपने इस उपन्यास के विषय में बताइए? इस नवीन संस्करण में पाठकों को क्या अलग मिलेगा?
राजमुनि मेरा पहला उपन्यास तो है ही साथ ही सर्वाधिक सराहा जाने वाला उपन्यास भी हैं। लंबे समय से अनुपलब्ध था अब रीप्रिंट हो रहा हैं। उपन्यास के मूल में कुछ जोड़ा तो नहीं हैं पर भाषाई त्रुटियों और व्याकरण संबंधी गलतियों को सुधार दिया गया है। प्रथम उपन्यास था अनुभवहीनता थी जिस कारण गलतियाँ तो थी ही साथ ही सेल्फपब्लिशिंग के कारण प्रूफ रीडिंग भी नहीं हुई थी। अब वाले संस्करण में प्रूफ रीडिंग हुई हैं और शब्दगाथा के काम के बारे में मैं खुद से क्या कहूं पाठक पढ़ेंगे तो स्वयं जान जायेंगे।
आपकी आने वाली पुस्तकें कौन सी हैं? पाठको को उनके विषय में बताइए।
मेरी आने वाली किताब है ‘शठे शाठ्यम समाचरेत’। ये एक पोलिटिकल क्राइम थ्रिलर हैं। जिन पाठको ने तरकीब पढ़ी है वो रणविजय से परिचित होंगे। ‘शठे शाठ्यम समाचरेत’ रणविजय की वापिसी की कहानी हैं। ये कहानी है हिंदुस्तान पर मंडराते खतरे की , भारतीय राजनीति के पतन की , कश्मीर की और ख़ुफ़िया एजेंसी के उन नायको की जो हमेशा गुमनाम ही रहते हैं साथ ही अरुषा की छोटी सी प्रेमकहानी तो है ही।
कहानी रोचक लग रही है। मुझे यकीन है पाठक रणविजय से दोबारा मिलना चाहेंगे।
हमसे बात करने के लिए शुक्रिया। उम्मीद है पाठकों को प्रेम गली अति सांकरी भी उसी तरह पसंद आएगा जैसे बाकी के उपन्यास आए थे। आखिर में पाठकों से अगर आप कुछ कहना चाहें तो कहिए।
बहुत बहुत धन्यवाद विकास जी। बाकि पाठको से मेरा कहना यही है कि पढ़ने के बाद सुझाव अवश्य दिया करें। जैसा भी अनुभव हो निसंकोच बातएँ। आपके सुझाव ही मेरे लेखन के सुधार का मार्ग प्रशस्त करते हैं। आप का प्रेम ही मेरी पूंजी है।
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आलोक सिंह ‘खालौरी’ की पुस्तकें अमेज़न पर उपलब्ध हैं। आप निम्न लिंक पर जाकर उन्हें मँगवा सकते हैं:
राजमुनि | प्रेम गली अति सांकरी
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अत्यंत सुंदर साक्षात्कार।
साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।
रोचक बातचीत
बातचीत आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा। आभार। वेबसाईट पर आते रहिएगा।