पुस्तक के विषय में
ये सच है कि साँप ही वह जंगली जीव है जिसके काटने से सबसे ज्यादा लोग मरते हैं फिर सबसे ज्यादा इंसानों की हत्या का जिम्मेदार जीव इंसान के संरक्षण का हकदार कैसे बन गया? क्योंकि साँप ही वह जंगली प्राणी भी है जिसने सबसे ज्यादा लोगों की जान बचायी है। ‘बनकिस्सा’ और ‘बात बनेचर’ की अपार सफलता के बाद लेखक सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’ लौटे हैं उस नायक को लेकर जिसे हमारी एकपक्षीय सोच ने खलनायक बना दिया है। यह स्नेक फोबिया को फिलिया में बदल देनेवाली किताब है।
‘Something सर्पीला’ में एकत्रित किए 26 लेखों के माध्यम से लेखक ने साँप को लेकर जनमानस में फैली भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया है। यह लेख हैं:
1. हे पादोदर 2. साँप नायक या खलनायक 3. कौन है साँप 4. पहला साँप 5. साँप का सफर है ये कैसा सफर 6. बूझ मेरा क्या नाँव रे 7. साँप की पीठ पर लिखा है उसका नाम 8. अरे दीवानो मुझे पहचानो 9. साँप का विष घातांक 10. विष कहाँ से पाया साँप 11. साँप का डर 12. आप का घर कब साँप का घर 13. साँप! है कहाँ रे तू 14. साँप न आए क्या है उपाय 15. घर में साँप क्या करें आप 16. साँप कब काटता है 17. साँप की धमकी 18. काटे न साँप क्या करें आप 19. साँप ने काटा कैसे करें पता 20. तन डोले मेरा मन डोले 21. अंगुरी में डँसले बिया नगिनिया रे 22. सर्प दर्द है सर्प दवा है 23. धरतीपुत्र साँपों का संरक्षण 24. मिथ नहीं मिथ-बस्टर है साँप 25. साँप: फोबिया से फिलिया तक 26. हम यार हैं तुम्हारे
पुस्तक लिंक: साहित्य विमर्श प्रकाशन | अमेज़न
पुस्तक अंश
साँप का डर
अमेरिका में एक कहावत है, “The only good snake is a dead snake.” मतलब अच्छा साँप सिर्फ एक मरा साँप होता है। पर क्या सचमुच ऐसा है? क्या जिन्दा साँप हमारा दुश्मन है। वह हर घड़ी इंसान को काटने की फ़िराक में रहता है? हमें मौत की नींद सुलाना चाहता है? क्या सचमुच इंसान को साँपों से डरना चाहिए? प्रश्न बड़ा माकूल है, क्योंकि यह उस प्राणी के बारे में है, जिसने सदियों से सबसे ज्यादा इंसानों की जान ली है। (मच्छरों, वायरस, बैक्टीरिया इत्यादि को छोड़कर)। दुनिया के सारे हिंसक पशुओं यथा बाघ, शेर, हाथी, साँड़ इत्यादि ने मिलकर भी उतने लोगों की जान नहीं ली होगी जितनों को साँपों ने अकेले मारा है। तो क्या साँप सचमुच इतने खतरनाक जीव हैं?
भारत हालाँकि साँपों का देश है, पर साँपों के देश में साँप एक टैबू है। विचित्र बात है पर शायद ही कोई असहमति जताए। यहाँ सपने में भी साँप दिख जाये तो उसका अर्थ निकालने के लिए पंडित और ज्योतिषी की सेवाएँ ली जाती हैं। 50% यानी दुनिया की आधी आबादी को साँप के डरावने सपने आते हैं। ज्योतिष में काल सर्पदोष जैसे शब्द भी प्रचलन में हैं। नया घर बनवाते समय भूमि की खुदाई करते वक्त यदि साँप निकले तो दुर्घटना का सूचक माना जाता है। सर्प-शांति यज्ञ कराकर निर्माण कार्य आगे बढ़ाया जाता है। साँप कई स्थानों पर कुलदेवता भी माने जाते हैं, जहाँ उनकी पूजा होती है। भारत के कई इलाकों में साँप का नाम तक लेने से लोग कतराते हैं। रात में तो इनका नाम लेना बिल्कुल वर्जित है। अगर रात में साँप का जिक्र करना आवश्यक हो तो उसका नाम ‘रस्सी’ से रिप्लेस कर लिया जाता है।
मुझे याद है बचपन में माँ या दीदी की कहानी में साँप आ जाये तो उसे किस तरह कीड़ा या रस्सी कहकर काम चला लिया जाता था और रात में साँप की कहानी नहीं सुनाई जाती थी। रात में अगर हम में से कोई भूल से ‘साँप’ कह दे तो नाम मत लो की सख्त हिदायत मिलती थी। कई लोग तो मानते हैं कि साँप का नाम लेने से साँप आ जाएगा। साँप पर आधारित फिल्मों का खौफ किसी भूतिया फिल्म से कम नहीं होता। आज भी नगीना हर कोई रात में नहीं देख सकता। ‘स्नेक ऑन अ प्लेन’ और ‘एनाकोंडा’ जैसी फिल्मों ने साँप से डर की इंसानी फितरत को भुनाकर करोड़ों का कारोबार किया है।
आदिमानव जमीन पर सोता था, फिर वो खाट पर क्यों सोने लगा? कितनी सरल बात है, पर आपने कभी सोचा? साँप के कारण। खाट, चौकी, पलंग का अस्तित्व साँप के कारण है। आवश्यकता जरूर आविष्कार की जननी है, पर जमीन से ऊपर उठकर सोने के लिए आविष्कृत खाट की जननी आवश्यकता नहीं, साँप का डर है। आप रात में कहीं साँप की बात करके देखिए, अधिकांश लोग आपको ऐसा करने से मना कर देंगे। साँप क्या साँप अपनी केंचुली भी कहीं छोड़ कर चला जाए तो लोग परेशान हो उठते हैं। मोबाइल पर किसी को साँप की फोटो भेज कर देखें, जरूर कह उठेगा कि साँप से डरा कर कैसी दुश्मनी निकाल रहे हो? यह है हमारे जनमानस में साँप का डर।
यह डर इंसान के भीतर कुछ इस तरह रच-बस गया है कि जल्द निकाला नहीं जा सकता। साँप का नाम सुनते ही हमारे अंदर सिहरन और सनसनी पैदा हो जाती है। हमारा जीन कुछ इस तरह विकसित हुआ है कि इंसान साँपों का स्वतः संज्ञान लेता है। जैसे बच्चा गिरने से डरता है, तेज आवाज से डरता है, उसी तरह हमारे भीतर समझ विकसित होते ही साँप का डर स्वतः घुस आता है। ऐसा प्रागैतिहासिक समय में मनुष्य के सर्वाइवल के लिए जरूरी भी था। यह डर कुछ तो फोबिक है और शेष अज्ञानतावश। साँपों का अतिशय भय ‘ओफिडियोफोबिया’ कहलाता है। ओफिडियोफोबिक व्यक्ति साँप के नाम से या सपने से या सामने देख कर अतिशय डर जाता है। यह जानते हुए भी कि यह बेवजह और गैरजरूरी है। ऐसे लोगों को मनोवैज्ञानिक से सलाह लेनी चाहिए और साँपों के स्वभाव से ज्यादा से ज्यादा परिचय प्राप्त करना चाहिए। साँप की जानकारी जितनी ज्यादा होगी, साँप का डर उतना ही कम होगा। सर्प-ज्ञान, सर्प-भय से मुक्त करता है।
ओफिडियोफोबिक लोगों को छोड़ आम लोगों की बात करें तो 100 में 90 लोग नहीं जानते कि साँप बिना विष के भी होते हैं, जिनके काटने से कुछ नहीं होता। जबकि 99 प्रतिशत लोग साँप को नहीं पहचानते। आम आदमी सिर्फ नाग साँप को पहचानता है, वह भी यदि साँप फन काढ़े खड़ा हो तब। लोग किसी भी साँप के काटने पर देसी इलाज (झाड़-फूँक, जड़ी-बूटी, स्नेक-स्टोन इत्यादि का इलाज) कराते हैं। विषहीन साँप की काट या विषैले साँप की विषरहित काट में जान बच जाती है और लोग उसे विषैले साँप की काट समझ बचाने का क्रेडिट ओझा को देते हैं। लेकिन विषाक्तीकरण (Envenomation) होने पर जान चली जाती है, तब कोई समझ नहीं पाता कि ऐसा क्यों हुआ। ऐसी स्थिति में किस्मत का खेल समझ मृत्यु स्वीकार कर लेते हैं। आज मेडिकल साइंस के युग में साँपों का मेडिकल इलाज मौजूद होते हुए देश के अंदर लोगों का सर्पदंश से मरना अनवरत जारी है। यह आश्चर्यजनक भी है और निराशाजनक भी। इसका बड़ा कारण साँप को पहचानने की काबिलियत न होना भी है।
आदमी में सर्प-भय का सबसे आम कारण जो मैंने देखा, जो कि सरल प्रकृति का है पर बहुत व्यापक रूप से प्रचलित हैं; यह धारणा कि साँप पीछा करके काटता है। वो किसी आदमी को टारगेट पर ले लेता है और उसे डँस लेता है। साँप भागते व्यक्ति को खदेड़कर काटता है। अगर किसी कमरे में साँप छुपा है तो उस कमरे में किसी आदमी के प्रवेश करते ही साँप बाहर निकलकर उसे काट लेगा। यदि हमारा पैर नीचे लटक रहा है और वहाँ साँप छुपा है तो वह काटने के लिए बाहर निकल आएगा। अगर कोई साँप मारा गया है तो कोई साथी साँप बदला लेगा। दुश्मन की पहचान मारे गए साँप की आँख में क्लिक्ड फोटो से करेगा।
साँपों पर उपरोक्त सारे तोहमत बेबुनियाद हैं, बल्कि मैं कहूँगा कि ये एक निरपराध को बदनाम करने जैसा है। कई बार साँप वर्षों घर में रह लेता है और घर के मालिक को पता ही नहीं होता कि उसके घर में कोई साँप भी रहता है। आदमी से इतना विरक्त और वैरागी होता है साँप। उस जीव को जो अकेला रहना चाहता है, जहर जैसा घातक शस्त्र मुँह में बंद किये छुपता फिरता है, जिसकी आदमी को देखकर पहली से लेकर आखिरी कोशिश भागने की होती है; उसे दंश का दोष देना कितना उचित है?
साँप से डर की सबसे बड़ी वजह है साँप का स्वभाव न जानना। साँप एक बेहद शर्मीला जीव है। शांत और एकांतप्रिय जीव है। वह छुप कर जीना पसंद करता है। मनुष्य को देखकर कोई भी साँप हो, भागने या छुपने का ही प्रयास करता है। यही साँप का स्वभाव है। अगर उसे ऐसा करने से रोका गया तो फिर वह खतरनाक भंगिमाएँ बनाता है और हद पार की जाए यानि उसे घेरने, छूने, पकड़ने, दबाने, कुचलने या मारने का प्रयास किया जाए तभी डँसता है।
[अस्प-दिलचस्प] इरादतन काटनेवाले साँप:- कुछ खास साँप जिसमें भारत का कॉमन करैत और बैंडेड करैत, अफ्रीका का मोजाम्बिक स्पिटिंग कोबरा और ऑस्ट्रेलिया का मुलगा साँप शामिल है, इरादतन बाइट करते हैं। हालाँकि यह दीगर बात है कि यह बाइट इरादतन होकर भी भ्रमवश ही होती है, जिसके लिए साँप को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
यहाँ फिर से दुहरा दिया जाए कि ‘साँप’ आदमी का कभी पीछा नहीं करते। साँप सिर्फ शिकार का पीछा करता है। वह शिकार कोई चूहा, मेंढक, छिपकली या दूसरा साँप हो सकता है। साँप फेरमोन छोड़ते हैं, जिसे दूसरा साँप टेस्ट करते हुए ट्रैक करता है। यही कारण है कि जहाँ कोई साँप मरा हो वहाँ दूसरा साँप बहुधा चला आता है। जिसे आप समझ लेते हैं कि साँप मेरे पीछे पड़ा है और बदला लेने आया है। साँप की नजर कमजोर होती है, इसलिए वह देखकर पीछा नहीं कर सकता। नजर कमजोर होने का कारण उसकी रेटिना का अर्ध-विकसित होना है। इसलिए यह सोचना भी निराधार ही है कि उसके आँख में कोई पर्दा है, जिसपर फोटो क्लिक होती है। साँप का दिमाग भी ज्यादा विकसित नहीं होता क्योंकि साँप कोई ममेलियन नहीं है, जिनके मस्तिष्क सुविकसित होते हैं। साँप एक सरीसृप है। सरीसृपों के ब्रेन बहुत छोटे और अपरिपक्व होते हैं। बड़े से बड़े अजगर का दिमाग भी मटर के दाने जितना छोटा होता है। वह भी ज्यादातर गंध का विश्लेषण करने के लिए ढला होता है। साँप में ज्यादा सोचने-समझने की क्षमता नहीं होती। साँप शरीर से सक्षम होता है, मस्तक से अक्षम। वह सामने पड़ने वाले किसी भी जीव को सिर्फ दो ही वर्ग में रखता है। भोजन या खतरा? और दोनों ही परिस्थितयों में काटता है। ऐसे जीव में बदले की भावना जैसी जटिल सोच भला कैसे उत्पन्न होगी? उसमें प्रेम, दया, अहसान जैसे जटिल भाव उत्पन्न नहीं होते। आपने देखा होगा, पिटारे में बंद कोबरा उस सँपेरे का भी, जो रात-दिन उसके साथ रहता है, भोजन देता है; पिटारा खोलने के बाद पहला स्वागत फुफकार और दंश की चोट से करता है। साँप ऐसे ही बने हैं। उनके पास आपके हर एक्शन का एक ही रिएक्शन है… फुफकार भरी फ्लाइंग किस्स। उसका हिस्स वाला किस्स जगत प्रसिद्ध है। अगर स्पर्श मिला तो झट लाल कर देनेवाला चुंबन रसीद कर देता है। चूमने के चक्कर में बेचारा इतना बदनाम हो गया कि न कोई इसे चुंबन देना चाहता है न कोई इसकी चुम्मी लेना चाहता है।
साँप के दिखने, सामने पड़ने, छू जाने से कोई खतरा नहीं है। कितना भी विषैला या बड़ा साँप सामने हो, तब तक मनुष्य के लिए खतरा नहीं है, जब तक आप खुद उसके पास नहीं जाते; क्योंकि वो आपके पास कभी नहीं आएगा। वो हमेशा वहाँ से भागने या छुपने की फिराक में रहेगा। साँप के मामले में सिर्फ एक ही साँप है, जो इंसान के लिए बहुत खतरनाक है… डरा हुआ साँप। साँप स्वयं एक डरपोक जीव है। जरा सी आहट हुई और भाग खड़ा होता है। अगर भागने का मौका न मिला तो स्ट्रेस में आ जाता है। तब वह कुछ भी कर सकता है। जान ले भी सकता है, दे भी सकता है। जैसे डरा हुआ आदमी दूसरे को भी डरा देता है, उसी तरह डरा हुआ साँप इंसान को डराने की हरसंभव कोशिश करता है। साँप को कभी डराएँ नहीं। साँप को कभी पकड़ें नहीं। साँप के पास कभी जाएँ नहीं। साँप को हमेशा सेफ पैसेज दें। उसे जाने दें। वह कभी हमला नहीं करेगा। लेकिन पकड़ने की कोशिश की तो कभी फाल्स बाइट (विषरहित बाइट) नहीं करेगा। अगर विषैला हुआ तो सारा जहर उड़ेल देगा, जैसे कोई डरा हुआ गनमैन पूरी की पूरी मैगजीन खाली कर देता है।
[अस्प-दिलचस्प] हम तुम एक कमरे में बंद हों:- अगर ऐसा करने की बाध्यता हो और पसंद का जहरीला साँप चुनने की छूट हो तो किस साँप के साथ एक रात के लिए बाथरूम में बंद रहना पसंद करेंगे? मुझ से पूछा जाए तो मैं कहूँगा इनलैंड ताइपन। ठीक सुना आपने! दुनिया के सबसे विषैले साँप के साथ मैं बंद रहना पसंद करूँगा। क्योंकि यह एक शर्मीला साँप है। जल्द नहीं काटता। कोई साँप इंसान से थ्रेट फील नहीं करने पर नहीं काटता। अगर भारतीय साँपों में चुनना हो तो बैंडेड करैत को चूज करूँगा, जबकि यह भी महा विषैला है। असल में सारे साँप शर्मीले और डरपोक होते हैं। जानबूझकर इंसान पर हमला नहीं करते। साँप की पहली प्राथमिकता बच निकलना है न कि काटना।
फिर विषैले साँप हैं ही कितने? दुनिया भर में साँपों की लगभग 3500 प्रजातियाँ हैं, जिनमें मात्र 200 साँप ही जान ले सकते हैं। मतलब सिर्फ 6% प्रतिशत साँप ही मौत की धमकी दे सकते हैं, जबकि एक आम आदमी सभी साँपों से नफरत करता है। उसके लिए साँप का मतलब ही प्राणघाती है। शेष 94% गैर-जहरीले साँप इसलिए डर का कारण बने हुए हैं, क्योंकि हम उन 6% साँपों को नहीं पहचानते जो जहरीले हैं। यह साँप का डर है या सर्प-अज्ञानता की त्रासदी? मैं तो यही कहूँगा कि अगर कोई साँप से डरता है तो समझिये कि वो साँप को नहीं जानता है।
समाप्त
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पुस्तक लिंक: साहित्य विमर्श प्रकाशन | अमेज़न
लेखक परिचय
सुनील कुमार सिंक्रेटिक (स्रोत: लेखक की फेसबुक प्रोफाइल) |
सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’ मूल रूप से भोजपुर, बिहार के रहनेवाले। वर्तमान में राज्य सरकार में पदाधिकारी। बचपन से जीव-जंतुओं, वन्य प्राणियों में रुचि रही। वर्तमान हिन्दी में अपनी विधा के एक मात्र लेखक हैं।
अब तक इनकी तीन किताबें ‘बन किस्सा’, ‘बात बनेचर’ और ‘समथिंग सर्पीला’ प्रकाशित हो चुकी हैं।
नोट: ‘किताब परिचय’ एक बुक जर्नल की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं।
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बहुत ही शानदार जानकारी, सभी को जरूर पढ़ना चाहिए, सच कहूं तो यह बात बिल्कुल सच है कि सांप से डर, उनके विषय मे अज्ञानता की वजह से ही है, वरना तो सांप को डरते, भागते, छिपते मैंने भी बहुत देखा है पर किसी को दौड़ाते हुए नहीं😄
लेख आपको पसंद आया जानकर अच्छा लगा। किताब में ऐसी ही रोचक जानकारियाँ मौजूद हैं।