संस्करण विवरण
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 208 | प्रकाशक: हिन्द पॉकेट बुक्स
पुस्तक लिंक: अमेज़न
‘लौट आयी छाया’ में लेखक अमित खान का एक लघु-उपन्यास और तीन कहानियाँ संकलित हैं। यह संग्रह हिंद पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस संग्रह में शामिल सभी रचनाओं की खास बात यह है कि इन सभी में पारलौकिक तत्व मौजूद हैं और सभी रचनाएँ प्रथम पुरुष में लिखी गई हैं।
लौट आयी छाया
कहानी
परिमल घोष एक नामचीन लेखक था जिसकी किताबों ने पूरी दुनिया में धूम मचायी हुई थी। छाया परिमल का प्यार और उसकी पत्नी थी जिसे वो बेइंतिहा चाहता था। वह अपनी शादी शुदा जिंदगी में खुश भी थे लेकिन फिर किस्मत ने करवट बदली और किस्मत ने छाया को परिमल से छीन लिया।
लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जैसा कभी नहीं हुआ था।
छाया मरकर भी लौट आयी थी।
क्या ऐसा मुमकिन था? था तो कैसे?
क्या किस्मत ने परिमल और छाया को यह दूसरा मौका दिया था?
किरदार
परिमल घोष – एक नामचीन लेखक
छाया – परिमल की पत्नी
बृंदा – परिमल और छाया की सहायिका
कायरा – छाया की दोस्त
रॉबिन – एक युवक जो कायरा को ढूँढते हुए लंदन पहुँचा था
मेरे विचार
‘लौट आई छाया’ लेखक अमित खान का लिखा लघु उपन्यास है। हिंद पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित यह लघु-उपन्यास लेखक परिमल घोष और छाया की कहानी है जिसे लेखक परिमल घोष पाठको को सुना रहा है।
छाया और परिमल कैसे मिले? उनके बीच रिश्ता कैसे पहले प्यार और फिर शादी में कैसे बदला? इसके बाद उनके शादी शुदा जीवन में क्या बदलाव आए और फिर छाया के जाने और फिर लौट आने के कारण इनकी जिंदगी में क्या बदलाव हुआ यही सब उपन्यास का कथानक बनता है।
चूँकि उपन्यास में छाया मरकर लौटकर आती है तो कहानी में पारलौकिक तत्व (सुपरनैचुरल एलिमेंट्स) मौजूद हैं। पर यह प्रसंग खौफ पैदा नहीं करते हैं। हाँ, इनसे कहानी में रोमांच जरूर बढ़ जाता है।
कथानक में छाया और परिमल के साथ चीजें ऐसी होती रहती है जिससे कथानक में रुचि बनी रहती है। कथानक में नए लोगों की एंट्री होने के कारण यह होता है और आगे क्या होगा ये जानने के लिए आप लघु उपन्यास पढ़ते चले जाते है।
छोटे छोटे अध्यायों में विभाजित यह कथानक पाठक पर अपनी पकड़ बनाकर रखता है।
किरदारों की बात करूँ तो उपन्यास में सीमित किरदार हैं। चूँकि उपन्यास में प्रथम पुरुष में है और हम सब कुछ परिमल के नजरिए से देखते हैं। ऐसे में बाकी किरदारों के विषय में हमें उतना ही पता लगता है जितना परिमल बताता है। इसके कारण किरदार उतने विकसित नहीं हो पाए हैं और उनके दृष्टिकोण देखने को नहीं मिलते हैं। ऐसे में पढ़ते हुए लग रहा था कि अगर छाया, बृंदा या रोबिन के नजरिए से भी पाठक वाकिफ हो पाते तो बेहतर होता।
उपन्यास की कमजोरी की बात करूँ तो उपन्यास के दो तीन बिंदु थे जो मुझे लगता है बेहतर हो सकते थे। मसलन छाया की आत्मा जिस शरीर को चुनती है उसको चुनने के पीछे इतना कोई मजबूत कारण नहीं दिया है। अगर कोई मजबूत कारण नहीं था तो वह ऐसा शरीर चुन सकती थी जिससे कोई वाकिफ न था। एक आत्मा के लिए ऐसे शरीर को चुनना इतना कठिन न होता। इससे आगे चलकर उन्हें कम परेशानी होती। लेकिन अगर जिस शरीर को चुना उसे ही चुनना जरूरी था तो उस शरीर को चुनने का मजबूत कारण दिया होता तो बेहतर होता।
छाया और कायरा बचपन के दोस्त थे। कायरा की मौत का दुख प्रकट करने वह विशेष रूप से लंदन आती है। यह पढ़कर मैं सोच रहा था कि अगर ये लोग इतने पक्के दोस्त थे तो इस बात की संभावना अधिक थी कि
यह लोग छाया की मौत से पहले भी संपर्क में थे। ऐसे में कायरा किस लड़के से शादी करना चाह रही है इसकी जानकारी छाया को होना लाजमी था। दोस्त ऐसी बातें आपस में साझा करते ही हैं। विशेष रूप से लड़कियाँ। पर इधर ऐसा नहीं होता है। ऐसे में जब लेखक ने भी नहीं बताया कि उनके बीच संपर्क टूटा हुआ था तो ये चीज खलती है कि छाया कायरा के विषय में इतनी जरूरी चीज नहीं पता थी।
छाया और परिमल जिस तरह से रॉबिन से पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं वो भी बचकाना लगता है। मुझे लगता है अगर छाया सीधे सीधे रॉबिन से कह देती कि वह अब उससे मोहब्बत नहीं करती है तो रॉबिन लंदन जैसे शहर में कुछ कर नहीं पाता। अभी जिस तरह से रॉबिन से पीछा छुड़ाने की कोशिश वो करते हैं वो करना बेफिजूल लगता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि परिमल एक बड़ा लेखक था। ऐसे में अगर उसकी शादी होती तो शादी की तस्वीरें अखबारों में आती ही। अगर वो रॉबिन से पीछा छुड़ाने में सफल हो जाते तो भी उसे आगे चलकर ये बात पता लगती ही। ऐसे में बाद में भी परेशानी खड़ी कर सकता था। यह छोटी सी बात ये समझ नहीं पाते हैं।
मुझे व्यक्तिगत तौर पर वो उपन्यास पसंद आते हैं जिनका मुख्य किरदार लेखक हो। इससे एक लेखक के जीवन, लेखन प्रक्रियाँ इत्यादि को जानने का मौका मिल सकता है। लेकिन इधर लेखक यह मौका गँवा देते हैं। उसके रूटीन के विषय में हल्के फुल्के तरीके से तो बताया गया है लेकिन जितना गहराई से बताया जा सकता था उतना नहीं बताया गया है। अगर लेखन की प्रक्रिया, लेखन की समस्याएँ, प्रकाशन व्यवसाय से परिमल के रिश्तों इत्यादि को दर्शाया जाता तो मुझे व्यक्तिगत तौर पर और अधिक मज़ा आता। हाँ, अन्य पाठकों के लिए हो सकता है यह चीज इतनी मायने न रखती हों।
अंत में यही कहूँगा कि ‘लौट आयी छाया’ (Laut Aayi Chhaya) एक पठनीय लघु-उपन्यास है। अगर आप हॉरर की अपेक्षा लेकर इसे पढ़ेंगे तो शायद निराश हों लेकिन एक पठनीय कहानी के तौर पर यह आपका मनोरंजन करने में सफल होती है।
कहानियाँ
‘द लास्ट डे’ ( The Last Day) पुस्तक में मौजूद पहली कहानी है जिसमें कथावाचक एक प्राइवेट नौकरी करने वाला युवक है जिसे सुबह से ही एक बुरी भावना परेशान कर रही है। जब भी उसे ऐसा कुछ महसूस होता है उसे लगता है कि उसके किसी अपने की मौत होनी तय है। यह व्यक्ति कौन है? उसके जीवन में इस दिन क्या होता है? यही सब कहानी बनती है।
ई एम आई के बोझ से दबे और घर के दबाव के चलते चादर से लंबे पैर फैलाने वाले व्यक्ति के जीवन का यह कहानी चित्रण करती है। वहीं शादी और प्रेम में काफी फर्क होता है। प्रेम आप किसी से भी कर सकते हैं लेकिन शादी व्यक्ति को ऐसे ही व्यक्ति से करनी है जिसका ज़िंदगी के प्रति नजरिया उसके जैसे ही होता है। अगर ऐसा न हो तो कैसे प्यार होते हुए भी ज़िंदगी दुश्वार हो जाती है यह इस कहानी में देखा जा सकता है।
कहानी रोचक है और इसमें ट्विस्ट भी मौजूद हैं जिसका अंदाजा हो जाता है। हाँ, कहानी में आगे जाकर उस ट्विस्ट को एक्सप्लेन किया जाता है जिससे बचा जा सकता था। उसकी कोई जरूरत मुझे नहीं लगी।
अक्सर स्त्रीवाद की परिभाषा को लोग गलत समझ लेते हैं। स्त्रीवाद स्त्री और पुरुष को एक समान मानने पर निर्भर करता है जिसमें अधिकार और जिम्मेदारी बराबर तरीके से साझा की जाती हैं। कई स्त्रियाँ खुद को स्त्रीवादी तो कहती हैं लेकिन वह अधिकार ही बराबर का चाहती हैं और जिम्मेदारियों से बचती हैं। यहाँ पर भी एक ऐसी स्त्री के लिए स्त्रीवादी शब्द प्रयोग किया गया है जो कि स्त्रीवादी है नहीं। अभी किरदार द्वारा लेखक ने एक स्त्री को स्त्रीवड़ी दर्शाया है लेकिन सही परिभाषा भी वह दर्शाते तो बेहतर होता।
दूसरी कहानी की बात करें तो इसका नाम मोक्ष (Moksha) है। प्रथम पुरुष में लिखी गई यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति सैंडी की है जिसे फोटोग्राफी से बहुत प्यार है। अपने इस प्यार के चलते उसे घर भी छोड़ देना पड़ता है और उसका ये प्यार उसे सपनों की नगरी मुंबई ले आता है। यहाँ उसके साथ क्या होता है और कैसे वो एक व्यक्ति को मोक्ष दिलाने का कार्य करता है यही कहानी बनती है। कहानी रोचक है। अक्सर जब आप कला की दुनिया में कैरियर बनाना चाहें तो अभिभावकों का जो व्यवहार होता है वह इसमें दिखता है। जिंदगी में मुश्किलें कितनी भी आए लेकिन जिंदगी का अंत करना इसका समाधान (सॉल्यूशन) नहीं होता है। अक्सर मुसीबत का सामना कर उससे उभरें तो जिंदगी फिर से परेशानियों के दलदल से निकल कर खुशियों की खुशबू से महक सकती है। यह भी इधर दिखता है। कहानी में पारलौकिक तत्व हैं जो कहानी में रोमांच भी ला देते हैं। कहानी में कैमरा वाला प्रसंग मुझे पसंद आया।
पुस्तक में शामिल तीसरी कहानी मखीचा महल का चौकीदार (Makheeja Mahal Ka Chowkidar) है। कहानी एक लेखक द्वारा सुनाई जा रही है। यह लेखक भूत प्रेत पर विश्वास नहीं करता है पर लेखक का एक मित्र भूत प्रेत पर विश्वास करता है और उसकी यह चाह है कि वह लेखक को इन शक्तियों पर विश्वास दिला सके।
लेखक का यह मित्र परिमल घोष हुआ है जिसे घूमने फिरने का शौक था और उसने फॉरेस्ट विभाग में कार्य कर इस शौक को पूरा किया था। अब उसकी पोस्टिंग अंडमान निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के जंगलों के बीच हो रखी थी। यहीं मखीचा नाम की जनजाति रहती है जिनका एक महल है जिसके विषय में कहा जाता है कि वहाँ आत्माएँ देखी जा सकती है।
ऐसे में परिमल कुछ ऐसा करता है कि लेखक एक रात उस महल में बिताने के लिए मजबूर हो जाता है। महल में उसके साथ क्या होता है यही कहानी बनती है।
यह कहानी इस पुस्तक में मौजूद तीनों कहानियों में से मुझे सबसे ज्यादा पसंद आयी। कहानी रोचक है और इसमें मौजूद ट्विस्ट कहानी को पठनीय बना देते हैं।
हाँ इधर मैं ये जरूर बताना चाहूँगा कि अगर आप साहित्य में हमेशा कुछ नया खोजते हैं तो हो सकता है आपको यह कहानियाँ उतनी डरावनी, उतना नयापन लिए न लगें। लेकिन आप मेरी तरह मनोरंजन के लिए पढ़ते हैं तो कहानियाँ शुरू से आखिर तक पढ़ते चले जाएँगे। यह मनोरंजन करने में सफल होती हैं।
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शुभ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
जी आपको भी शुभकामनाएं…