आलोक सिंह खालौरी पेशे से वकील हैं। उन्होंने छोटे से ही वक्फे में अपने लेखन द्वारा अपने पाठकों पर एक अमिट छाप छोड़ी है जिसके कारण उनके पाठकों को उनके उपन्यासों की प्रतीक्षा रहती है। पारलौकिक घटनाओं से डर और अपराध कथाओं से पाठक के अंदर रोमांच पैदा करने में वह पारंगत है।
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प्रश्न: नमस्कार सर, सर्वप्रथम तो आपको एस 3 की बधाई। एस 3 के विषय में जो जानकारी मिली है उससे वो हॉरर उपन्यास लगता है। पाठकों को उसके विषय में कुछ बताएँ?
उत्तर: नमस्कार विकास जी , बधाई हेतु धन्यवाद। एस 3 हॉरर उपन्यास ही है किंतु सामान्य भूतप्रेत की कहानी ना होकर इसकी कहानी उस शैतानी शक्ति की है जो दुनिया में ईश्वर के स्थान पर शैतान की हुकूमत कायम करना चाहती है। अपराजेय दिखने वाली उस ताकत के विरुद्ध सत्य के संघर्ष की कहानी है एस3।
प्रश्न: एस 3 लिखने का ख्याल आपके मन में कैसे आया? कोई विशेष घटना या बिंदु जिसने उपन्यास लिखने पर् मजबूर किया हो?
उत्तर: मैं जब भी कोई कहानी लिखना शुरू करता हूँ तो प्रारंभ से अंत तक की कोई रूपरेखा मेरे दिमाग में नहीं होती बस इतना पता होता है कि किस विधा में लिखने जा रहा हूँ। एक बार प्रारंभ हो जाए तो कहानी अपना मार्ग खुद तलाश लेती है, मुझे नहीं पता अन्य लेखकों के साथ कैसे होता है पर मेरे साथ तो हर किताब में यही होता है इसलिए विचार कहाँ से आया ये कह पाना मुश्किल है। वैसे कहानी के दौरान विचार आते रहते है और उसी हिसाब से कहानी अपना मार्ग तय करती जाती है। मध्य के बाद ही कहीं जाकर मेरा नियंत्रण कहानी पर होता है। अजीब है पर ऐसा ही है मेरे साथ।
प्रश्न: रोचक बात है। अच्छा, आपके लिए एक रचना का शीर्षक कितना जरूरी होता है। आप अमूमन कितना वक्त किसी रचना के शीर्षक को तय करने में लगाते हैं।
उत्तर: मेरे विचार से शीर्षक का बहुत महत्व है। शीर्षक और किताब का कवर यही होते है जो पाठक की उत्सुकता किताब के प्रति जगाते है। दोनों को ही कहानी के अनुरूप होना चाहिए। जहाँ तक मेरा प्रश्न है मैं कहानी की शीर्षक पहले ही लिख लेता हूँ, क्या लिखने जा रहा हूँ इतना तो पता होता ही है बाकी यदाकदा कहानी पूरी होने पर और भी सार्थक शीर्षक सूझ जाए तो बदल भी जाता है जैसे एस 3 का शीर्षक प्रारंभ में काल रखा था, कहानी पूरी होने पर एस 3 बेहतर लगा तो ये रख दिया।
प्रश्न: एस 3 का शीर्षक रोचक है। उत्सुकता जगाता। क्या इसके पीछे कोई कहानी है? क्या उपन्यास का शीर्षक शुरू से ही यही था? या बाद में बदला?
उत्तर: कॉलेज टाइम में मेरे तीन घनिष्ट मित्र थे तीनों का नाम संजय था और तीनों के बड़े भाई का नाम दीपक था ।
बस इसी से विचार आया कि मैं भी तीन नायकों को लेकर कहानी लिखूँ और तीनों का नाम संजय रखूँ । कहानी पूरी होने पर इसी आधार पर शीर्षक भी एस 3 रख दिया। शीर्षक रखते समय मैं यह भी ध्यान रखता हूँ कि शीर्षक यथासंभव कुछ अलग हो यह भी कारण था काल बदल कर एस 3 रखने का ।
प्रश्न: वाह! शीर्षक के पीछे की यह कहानी तो रोचक थी। अच्छा, उपन्यास अपने विवरण से पारलौकिक तत्व लिए हॉरर उपन्यास लग रहा है। आप हॉरर और अपराध कथाएँ लिखते हैं। दोनों विधाओं में आप क्या साम्य और क्या फर्क पाते हैं? अपराध कथाओं में किन बातों का ध्यान रखते हैं और हॉरर लिखते समय किसका?
उत्तर: अपराध कथा और हॉरर कथा इन दोनो ही विधाओं में लिखते समय मैं खुद को सहज पाता हूँ। मुझे इन दोनो के लिखने में कोई फर्क महसूस नहीं होता।
कहानी कोई भी हो जब एक बार शुरू हो जाती है तो अपना एक अलग ही संसार निर्मित कर लेती है , लेखक भी उसी संसार में पहुँच जाता है, उसके सभी पात्र उसे हकीकत लगने लगते है, मस्तिष्क में वही सब घूमते रहते हैं,जो जो घटता रहता है कागज पर उतरता जाता है और कहानी बन जाती है ।
बाकी अपराध कथा हो या हॉरर कथा, कहानी की तार्किकता और लूप होल्स का ध्यान रखना पड़ता है बाकी तो सब सेम ही है।
प्रश्न: ‘एस 3′ में मौजूद किरदारों में से कौन से किरदार आपको पसंद हैं और कौन सा किरदार आपको पसंद नहीं है?
उत्तर: एस 3 का काल का किरदार मुझे पसंद आया , नापसंद आने जैसा तो कोई किरदार नहीं है ।
प्रश्न: क्या यह एकल उपन्यास है या इससे पूर्व का कोई भाग है?
उत्तर: यह एकल उपन्यास है अपने आप में संपूर्ण उपन्यास ।
प्रश्न: क्या इस उपन्यास के किरदार पाठकों को आगे भी ही देखने को मिल सकते हैं?
उत्तर: जैसा कि मैं बहुदा करता हूं इस उपन्यास में भी एक लिंक छोड़ दिया है जिसके सहारे कहानी आगे जा सकती है। सब कुछ पाठको को पसंद आने पर है यदि माँग होती है तो आगे इसका सीक्वल आ सकता हैं।
प्रश्न: उपन्यास का कोई ऐसा हिस्सा जिसे लिखने में आपको अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ी हो?
उत्तर: शक्ति माँ के आश्रम के दृश्य लिखते समय बहुत अधिक ध्यान रखना पड़ा। कहीं किसी की भावनाएँ आहत ना हो जाए। ऐसे ही काल – जिसकी परिकल्पना मैने यजीद के तौर पर की – का चरित्र लिखते समय ध्यान रखा । बाकी सब लिखना कदरन आसान था।
प्रश्न: आपने यहाँ भावनाओं का जिक्र किया है। कला का एक काम व्यक्ति को झकझोरना भी होता है। इस काम में भावनाएँ आहत होने का खतरा भी रहता है।
आप लोकप्रिय साहित्य में लेखन करते हैं लेकिन अब गंभीर और लोकप्रिय का फर्क कम हो रहा है। ऐसे में आप आप कितना सेल्फ सेंसरशिप करते हैं। अगर कोई चीज सच्चाई के निकट है और कहानी के लिए भी जरूरी है लेकिन आपको उससे लगता है कि भावनाएँ आहत हो सकती हैं तो आपका क्या करेंगे?
एक और प्रश्न इससे उभरता है। क्या आज के समय में लेखक को सचेत रहने की जरूरत है। और खुद के लेखन को इस तरह ढालने की जरूरत है कि वह किसी को आहत न करे। लेकिन अगर वो ऐसा करता है तो क्या वो अपनी कला के प्रति ईमानदार होगा?
उत्तर: भावनाएँ आहत होने से मेरा आशय उन लोगो से था जिनकी भावनाएँ जल्दी आहत होती है किसी रंग के कथित ग़लत चित्रण से , किसी आश्रम में आपराधिक गतिविधि दिखाने से, किसी कार्टून से या किसी सवाल से भी और हालफ़िलहाल नये भारत में मेरा किसी विवाद में उलझने का इरादा नहीं है।
हाँ, समाज के हित में कभी किसी भी मुद्दे पर लिखने से कोई गुरेज़ नहीं करूँगा , ना गुरेज करूँगा और ना शब्दों को विनम्र करूँगा।
बस व्यर्थ ही किसी की आस्थाओं और मान्यताओं पर चोट नहीं पहुँचाऊँगा।
अपने कथन के पक्ष में अपने उपन्यास डेड एंड के एक अंश को उद्धृत करना चाहूँगा
गाँव में तो गोत्र आदि का बड़ा विचार किया जाता है, लेकिन इस पर भी गाँव की भी बहुत सी लड़कियाँ मरती थी उस पर।
वैसे भी एक गोत्र या गाँव के होने के नाते सिर्फ विवाह होने पर पाबंदी है, बाकी सब चलता है।
बड़ी अजीब बात है गाँव के बड़े बुजुर्ग कुदरत को ही नकार देते है, एक उम्र होती है जब विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण चरम पर होता है, आप कितना भी ढोल बजाओ कि गाँव कि सब लड़कियाँ बहन बेटी है, पर विपरीत लिंग के प्रति उत्सुकता और आकर्षण प्राकृतिक है तो वो तो होगा ही और जो दिखेगा उसी से होगा।
ये सोचा भी कैसे जा सकता है कि उम्र के उस नाजुक मोड़ पर किशोर किशोरी गोत्र का विचार करेंगे।
पर पाप से किसी को अधिक दिक्कत नहीं, दिक्कत तो पाप को कानूनी जामा पहनाने से होती है यानी शादी करने से।
खेत खलिहान में पकड़े गए तो डाँट खा कर या अधिक से अधिक एक दो थप्पड़ खाकर छुटकारा मिल सकता है, लेकिन अगर भागे या शादी की बात की तो पेड़ से लटकाकर फाँसी भी दी जा सकती है।
प्रश्न: इससे एक और प्रश्न इससे उभरता है। क्या आज के समय में लेखक को सचेत रहने की जरूरत है। और खुद के लेखन को इस तरह ढालने की जरूरत है कि वह किसी को आहत न करे। लेकिन अगर वो ऐसा करता है तो क्या वो अपनी कला के प्रति ईमानदार होगा?
उत्तर: यदि लेखक कोई एजेंडा नहीं चला रहा तो उसे सचेत रहने की क्या आवश्यकता है बस जो भी लिखे पूर्ण ईमानदारी से लिखे ।
किसी भी तथ्य के लिखे जाने में सबसे महत्वपूर्ण बात है लेखक की नीयत, यदि नीयत सही है तो उसे खुले दिल से स्वीकार करता है समाज, उदाहरण के तौर पर कबीरदास जी के दोहे कांकड़ पाथर जोड़ कर मस्जिद लई बनाय ता चढ़ मुल्ला बाग दे क्या बहरा हुवा ख़ुदाय और पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहार ताते तो चाकी भली पीस खाय संसार। इन दोहो पर किसी ने कबीर पर ईशनिंदा का अथवा सांप्रदायिकता का आरोप नहीं लगाया ना उनके विरुद्ध कोई फ़तवा निकला, वजह एक ही थी कबीरदास जी की नीयत साफ़ थी।
प्रश्न: जी ये तो सही कहा। नियत महत्वपूर्ण होती है। आखिर में एक पाठक को क्यों एस 3 पढ़ना चाहिए? और आप फिलहाल कौन सी रचनाओं पर् कार्य कर रहे हैं?
उत्तर: जिन्हे रहस्य रोमांच और हॉरर कहानियाँ पढ़ना पसंद है वो पढ़े मेरा वादा है निराश नहीं होंगे।
हालफिलहाल अतीत नामक उपन्यास को पूरा किया है जो मेरी प्रथम किताब राजमुनि का सीक्वल है और एक हॉरर कॉमेडी उपन्यास ‘रात’ को लिखना प्रारंभ किया है। ‘द होस्ट’ नामक हॉरर उपन्यास प्रेस में है जो इसी माह आने की संभावना है।
वह यह तो पाठकों के लिए रोचक खबर है। उम्मीद है एस3 और आपके आने वाले उपन्यास भी पाठकों का मनोरंजन करने में सफल होंगे। धन्यवाद।
धन्यवाद विकास जी।
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तो यह थी शब्दगाथा द्वारा प्रकाशित एस-3 के लेखक आलोक सिंह खालौरी से हमारी बातचीत। बातचीत के प्रति अपने विचार आप टिप्पणियों के माध्यम से हमें दे सकते हैं।
एस 3 के विषय में अधिक जानकारी
एस 3
तीन हमनाम, हमपेशा प्रगाढ़ मित्र जो मिल कर एक क्लब चलाते हैं, क्लब में एक लाइव हॉरर शो का आयोजन करते हैं, जिसके दौरान वो जाने अनजाने एक नकारात्मक शक्ति का आह्वान कर बैठते हैं और चौदह सौ साल से सोए काल के पृथ्वी पर आगमन का द्वार खोल देते हैं।
काल जो शैतान का प्रधान सेवक है, शैतान की तरफ से ईश्वर की सत्ता के विरुद्ध युद्ध छेड़ देता है।
और फिर होती है ऐसी तबाही, जो अकल्पनीय होती है, मुर्दे कब्रों से उठकर खड़े हो जाते हैं, ईश्वर के भक्त ईश्वर की भक्ति छोड़ काल के गुलाम बन जाते हैं। काल जिसकी सत्ता का एकमात्र सूत्र था ताकतवर लोग उसकी दासता स्वीकारें और समाज के कमजोर लाचार लोगो का सफाया कर दें, जिससे एक बेहद ताकतवर समाज का गठन हो जो उसके राज को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में स्थापित करने में अहम् भूमिका निभाए। सब कुछ काल के पक्ष में था, बस इस बात को छोड़कर कि जब से इस ब्रह्माण्ड की रचना हुई है, कभी भी बुराई अच्छाई से जीत नहीं पाई है।
तो क्या इस बार भी?…………पर कैसे?
पुस्तक लिंक: अमेज़न
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लेखक परिचय
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रोचक साक्षात्कार…. Dilshad dilse
साक्षात्कार आपको रोचक लगा यह जानकर अच्छा लगा। आभार।