असली केशव पंडित और उसका बेटा – योगेश मित्तल

असली केशव पंडित और उसका बेटा - योगेश मित्तल

वेद प्रकाश शर्मा के औपन्यासिक चरित्र केशव पंडित को लेकर बहुत से विवाद चर्चा में हैं।

विगत 27 सितम्बर को जाने माने पत्रकार यशवंत व्यास जी का फोन आया तो मुझे इसका ज्ञान हुआ। ऐसा नहीं है कि इस विवाद की मुझे पहले जानकारी नहीं थी, पर मेरे मस्तिष्क से यह विषय गुम सा ही था।

यशवंत व्यास जी से फोन पर काफी लम्बी बातें हुईं और उसका नतीजा यह रहा कि मुझे इस विषय पर भी कलम उठाने की जरूरत महसूस हुई।

दरअसल अरविंद जैन ने जब खतौली के राकेश पाठक उर्फ राकेश गुप्ता से केशव पंडित के चरित्र पर उपन्यास लिखवाने आरम्भ किये, तब तक वेद प्रकाश शर्मा ने केशव पंडित पर शायद इक्का-दुक्का उपन्यास ही लिखे थे। मुझे याद नहीं, कितने या कितने नहीं, पर केशव पंडित चरित्र पहली बार बहुत ज्यादा चर्चित हुआ राजा पॉकेट बुक्स में प्रकाशित होने वाले वेद प्रकाश शर्मा के सबसे पहले उपन्यास ‘केशव पंडित’ से।

उपन्यास का नाम ही केशव पंडित था तो केशव पंडित लोगों की जुबान पर चढ़ना ही था।

दरअसल यह नाम रखना भी वेद प्रकाश शर्मा की स्ट्रेटजी से अधिक राजा पॉकेट बुक्स के सर्वेसर्वा राज कुमार गुप्ता की स्ट्रेटजी का एक भाग था। इस बारे में एक बार राजकुमार गुप्ता जी की मुझसे काफी लम्बी बातचीत हुई थी।

राजकुमार गुप्ता चाहते थे कि वेद भविष्य में केशव पंडित पर ही ज्यादा फोकस करें और राजा पॉकेट बुक्स के लिए केशव पंडित सीरीज़ के ही उपन्यास लिखें।

राजकुमार गुप्ता ने अपनी इसी स्ट्रेटजी के चलते ‘केशव पंडित’ के दूसरे और अंतिम भाग ‘कानून का बेटा’ की धुआँधार पब्लिसिटी की और केशव पंडित को कानून का विशेषज्ञ जताने और कानून का बेटा कहलवाने पर विशेष इच्छा जतायी।

वेद प्रकाश शर्मा ने केशव पंडित को कानून का विशेषज्ञ और कानून का बेटा तो साबित किया, किंतु केशव पंडित सीरीज़ के उपन्यास निरंतर लिखने का उपक्रम नहीं किया।

दरअसल वेद प्रकाश शर्मा भी अपने मन के राजा थे। उन्हें अपने द्वारा रचित चरित्रों में विकास सबसे ज्यादा प्यारा था और विजय-विकास सीरीज़ की ‘सेल’ पॉकेट बुक्स मार्केट में अपनी साख और जगह बना चुकी थी।

वेद प्रकाश शर्मा ने बेशक केशव पंडित पर विशेष फोकस नहीं किया, लेकिन कानून का बेटा की धुआँधार पब्लिसिटी ने मेरठ के ईश्वरपुरी क्षेत्र की आखिरी सीधी पंक्ति में एक किराये के कमरे में ऑफिस बनाकर पूजा पॉकेट बुक्स द्वारा नामी लेखकों के रिप्रिंट नये कलेवर में छाप रहे अरविंद जैन के दिमाग में हलचल मचा दी। वह वेद प्रकाश शर्मा का बहुत तगड़ा फैन था, उसका हर उपन्यास पढ़ता था, लेकिन उस समय वेद प्रकाश शर्मा का उपन्यास प्रकाशित करना उसके सामर्थ्य में नहीं था।

अरविंद जैन उस समय आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत कमज़ोर स्थिति में तो था, लेकिन उसके ख्वाब बड़े ऊँचे थे। कुछ कर गुजरने और एक बार पूजा पॉकेट बुक्स का डंका बजाने की चाह उसमें बहुत बलवती थी। अपनी आकांक्षाओं का उसने सबसे पहले मेरे सामने ही पर्दाफाश किया।

इस सिलसिले में उसने अमर पॉकेट बुक्स में ‘प्रणय’ नाम से छपे मेरे उपन्यासों ‘पापी’ और ‘कलियुग’ के बारे में पूछा, “योगेश, तेरे पास प्रणय नाम से छपे तेरे नॉवल हैं….?”

“हाँ हैं।” मैंने कहा। दोनों उपन्यासों की एक-एक कॉपी उस समय मेरे पास थी।

“यार, उनमें मैटर बढ़ाकर बारह बारह फॉर्म का बनाकर मुझे दे, मैं तेरे नाम से छापूँगा। खूब पब्लिसिटी भी करूँगा।”

उस समय मुझे अरविंद की दयनीय आर्थिक स्थिति की कोई खबर नहीं थी।

मैंने दोनों उपन्यासों में मैटर बढ़ा कर अरविंद जैन को दे दिये। उपन्यास हाथ में आते ही उसने कहा, “यार, इसके मैं तुझे अभी कोई पैसे नहीं दूँगा। वैसे तो अमर पॉकेट बुक्स भी हमारी ही थी। उसमें तूने कॉपीराइट भी हमें दे रखा था। पर फिर भी किताब छपने के बाद तुझे कुछ न कुछ जरूर दूँगा।”

मैंने कोई ऐतराज़ नहीं किया। उसके बाद अरविंद ने मुझसे वेद प्रकाश शर्मा के बाद मार्केट में तेजी से उभरे–वेद प्रकाश वर्मा और कुमार कश्यप के कुछ पुराने उपन्यासों में दो-दो फॉर्म मैटर (बत्तीस पेज) बढ़ाने का काम मुझे सौंपा। उसने मुझे बताया कि दोनों लेखकों ने इसी शर्त पर उपन्यासों में मैटर बढ़वा कर छापने की इजाज़त दी है कि मैटर योगेश मित्तल से बढ़वाया जायेगा। उसके बाद उसने परशुराम शर्मा जी के एक उपन्यास में भी मैटर बढ़वाया। मैंने हर काम बेहद फुर्ती से जल्द से जल्द करके दिया, लेकिन पारिश्रमिक देने के समय अरविंद की पतली आर्थिक दशा की पोल मेरे सामने खुल गयी। दो बार उसने मुझे नूतन पॉकेट बुक्स के स्वामी सुमत प्रसाद जैन उर्फ एसपी साहब से दो-दो सौ रुपये उधार माँगकर पारिश्रमिक अदा किया था। तब मैं एक फॉर्म (सोलह पेज) के सौ रूपये ही लेता था।

अरविंद जैन के यहाँ के छोटे-छोटे काम करने के कारण मेरी उससे निकटता व दोस्ती बढ़ती गयी। अक्सर वह मुझे चाय पीने के बहाने अपने ऑफिस में बुला लेता था और तब कभी-कभी किसी उपन्यास का कोई फॉर्म प्रूफरीडिंग के लिए सामने रख देता था तो मैं गप्पें मारते-मारते मुफ्त में प्रूफरीडिंग भी कर देता।

अरविंद जैन के बच्चे और उनकी पत्नी गवाह हैं कि गौरी पॉकेट बुक्स के अंतर्गत केशव पंडित के उपन्यास प्रकाशित करने की योजना मार्च के आस-पास पड़ने वाले नवरात्रि के पर्व के नवमी के दिन अरविंद ने मेरे सामने ही फाइनल की थी और केशव पंडित खतौली के राकेश गुप्ता उर्फ राकेश पाठक से लिखवाने का सुझाव उसे मैंने ही दिया था।

वास्तव में अरविंद केशव पंडित के उपन्यास मुझसे लिखवाना चाहता था, पर वेद प्रकाश शर्मा से मैत्री के कारण मैंने उससे तबियत खराब रहने का बहाना बनाकर असमर्थता जता दी थी, परंतु जब वह राकेश के लिखे आरम्भिक उपन्यास एडिटिंग के लिए मेरे पास लाया, मैं इनकार नहीं कर सका। इसका एक कारण शायद यह भी था कि जब पहला उपन्यास वह उत्तमनगर मेरे घर लेकर आया तो उसने बतौर पारिश्रमिक दो सौ रुपये एडवांस में ही मेरी जेब में डाल दिये।

शायद उसे मेरी यह कमजोरी पता थी कि पैसा एडवांस में मिलते ही मै काम के प्रति अधिक गम्भीर हो जाता हूँ और सिर चढ़ा एडवांस जल्द से जल्द उतारने के लिए एडवांस देने वाले का काम बहुत जल्दी निपटा देता हूँ।

आरम्भिक सात उपन्यास एडीटिंग करवाने के लिए अरविंद एक बार उपन्यास देने उत्तमनगर मेरे घर आता और एक बार एडिट हुए उपन्यास को लेने आता। हर उपन्यास का पारिश्रमिक वह दो सौ रुपये देता था, जो कि मुझे उन दिनों बहुत ठीक लगता था, क्योंकि अधिकांशतः मैं एक-डेढ़ दिन में ही उपन्यास एडिट कर देता था। हाँ, वह हमेशा मुझे एक हफ्ते का समय देता था। उसका दिल्ली आने का एक निश्चित दिन था, उसी दिन वह दिल्ली आता था और सबसे पहले मेरे यहाँ आता। फिर दरीबा कलाँ और अन्य जगहों के अपने जरूरी काम निपटाता। मूसलाधार बारिश के दिनों में जब उत्तमनगर की सड़कों में पानी भर जाता था, तब भी अपनी पैंट को ऊपर घुटनों तक मोड़कर चप्पल एक हाथ में ले, नंगे पाँव पानी में चलते हुए भी वह मेरे घर आया। एक बार तो बारिश में थोड़ा सा भीग भी गया और कपड़े सुखाने के लिए देर तक फुल स्पीड पंखे में भी बैठा रहा, पर बारिश रुकी होने पर पूरी तरह कपड़े सूखने से पहले ही एडिटिंग के लिए उपन्यास देकर लौट गया।

केशव पंडित की एक पत्नी भी होनी चाहिए। यह आइडिया गौरी पॉकेट बुक्स में केशव पंडित लिखने वाले राकेश का था और उसने केशव की प्रेमिका और पत्नी सोफी का चरित्र केशव पंडित के उपन्यासों में डाला। फिर केशव का बेटा आशीर्वाद भी उसी ने गौरी पॉकेट बुक्स के उपन्यासों में उत्पन्न किया।

वेद प्रकाश शर्मा गौरी पॉकेट बुक्स के केशव पंडित के उपन्यास नहीं पढ़ता था। वह केशव पंडित सीरीज़ के उपन्यास उस स्पीड से भी नहीं लिख रहा था, जिस स्पीड से गौरी पॉकेट बुक्स में नये-नये उपन्यास आ रहे थे। वेद प्रकाश शर्मा को गौरी पॉकेट बुक्स के केशव पंडित के उपन्यासों में केशव पंडित की पत्नी और बेटे के बारे में अपने किसी पाठक के द्वारा पता चला।

तब उसने भी केशव पंडित की पत्नी सोनू और बेटे विजेता का चरित्र गढ़ा, लेकिन बात नहीं बनी।

गौरी पॉकेट बुक्स के केशव पंडित की बिक्री दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी।

यही कारण था तुलसी पेपर बुक्स में उसने सोनू पंडित और विजेता पंडित नाम खड़े किये और अपने पत्रों द्वारा पाठकों को संदेश दिया कि सोनू पंडित ही केशव पंडित की पत्नी है और विजेता ही उसका बेटा है, लेकिन केशव पंडित नाम के साथ गौरी पॉकेट बुक्स का नाम तब तक पाठकों में इतना पापुलर हो चुका था कि पाठकों ने सोनू पंडित और विजेता पंडित को विशेष महत्व नहीं दिया। अत: जैसे यह नाम उपन्यासकार के रूप में वेद ने खड़े किये, वैसे ही बंद भी करने पड़े।

केशव पंडित बेशक वेद प्रकाश शर्मा का चरित्र था, पर सच्चाई यह है कि यह लोगों की जुबान पर गौरी पॉकेट बुक्स से अधिक चढ़ा और विख्यात भी गौरी पॉकेट बुक्स से ही अधिक हुआ। सच्चाई तो यह थी – अधिकांश पाठक गौरी पॉकेट बुक्स के केशव पंडित को ही असली मानते थे।

ऐसे ही गौरी पॉकेट बुक्स के केशव पंडित के लिए पागल एक पाठक से मेरी बात हुई तो वह बोला, “आपको नहीं मालूम योगेश जी, गौरी पॉकेट बुक्स का केशव पंडित ही असली केशव पंडित है और इसे वेद प्रकाश शर्मा खुद लिखता है।”

“पागल हो क्या?” मैंने कहा –”वेद अपने पात्र केशव पंडित को केशव पंडित लेखक के नाम से क्यों लिखेगा? जबकि उसका अपना नाम ज्यादा मशहूर है।”

“आप नहीं जानते योगेश जी, वेद बहुत मोटी कमाई कर रहा है और इनकम टैक्स बचाने के लिए उसने यह नया नाम रखा है।”

मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की ऐसा नहीं है। वेद एक ईमानदार शख्स है, इनकम टैक्स बचाने के लिए वह केशव पंडित नाम से नहीं लिखता।

लेकिन उस पाठक को मैं यकीन नहीं दिला सका। संयोगवश वह पाठक भी कोई ‘शर्मा’ ही था, बोला, “आप कुछ नहीं जानते योगेश जी। मुझे सब पता है। मैं सालों से वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास पढ़ रहा हूँ और दावे के साथ कह सकता हूँ, गौरी पॉकेट बुक्स में केशव पंडित वेद प्रकाश शर्मा ही लिख रहा है।”

अब केशव पंडित की असली पत्नी सोफी थी या सोनू और बेटा आशीर्वाद था या विजेता, यह फैसला आप खुद कीजिये, लेकिन सच्चाई यह है कि वेद ने केशव पंडित के उतने उपन्यास नहीं लिखे, जितने गौरी पॉकेट बुक्स में केशव पंडित के प्रकाशित किये गये।


(4 अक्टूबर 2022 को लेखक द्वारा उनके फेसबुक वॉल पर प्रकाशित। )


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