जलसाघर में दिन भर लगी रही पुस्तक प्रेमियों की जमघट, पाठकों को भा रही नई किताबें
02 फरवरी, 2025 (रविवार): नई दिल्ली
शनिवार से शुरू हुए नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला का पुस्तक प्रेमियों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। राजकमल प्रकाशन समूह के जलसाघर में दिनभर सप्ताहांत में बड़ी संख्या में पाठक पहुँचे। पाठकों में अपनी पसंदीदा किताबें खरीदने के साथ-साथ लेखकों से मिलने को लेकर भी उत्साह देखा गया। मेले में पाठकों को नई किताबें विशेष रूप से आकर्षित कर रहीं है।
इस बार विश्व पुस्तक मेला में राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित जावेद अख़्तर की ‘सीपीयाँ’, कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा ‘दियासलाई’, गुलज़ार के गीतों का मजमूआ ‘गुनगुनाइए’, मेय मस्क की आत्मकथा का हिन्दी संस्करण ‘जब औरत सोचती है’, गीतकार शैलेन्द्र के गीतों पर केन्द्रित यूनुस ख़ान की किताब ‘उम्मीदों के गीतकार : शैलेन्द्र’, ज्यां द्रेज़ संग लुक लेरुथ का उपन्यास लाइन पार, अपूर्वानंद की किताब ‘कविता में जनतंत्र’, रोमिला थापर की किताब ‘असहमति की आवाज़ें’ जलसाघर के मुख्य आकर्षण है।
जलसाघर को विश्व पुस्तक मेला की थीम गणतंत्र@75 को ध्यान में रखते हुए देश की गणतांत्रिक यात्रा से संबंधित पुस्तकों, भारतीय संविधान की प्रस्तावना और अनेक भारतीय भाषाओं में लिखी गई राजकमल प्रकाशन समूह की टैगलाइन ‘साथ जुड़ें साथ पढ़ें’ से सजाया गया है। साथ ही, 21वीं सदी के 25 वर्षों में राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित विविध विधाओं की 25 किताबों को जलसाघर की एक दीवार पर विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया है।
राजकमल प्रकाशन के कार्यकारी निदेशक आमोद महेश्वरी ने बताया कि मेले में युवाओं की संख्या को देखते हुए सहज ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि नि:सन्देह युवा पीढ़ी की किताबों में रूचि बढ़ रही है। पिछले कुछ वर्षों में हमने यह गौर किया है कि मेले में आने वाले लोगों में युवाओं की संख्या सबसे अधिक होती है। इसी को ध्यान में रखते हुए हमने इस बार राजकमल प्रकाशन समूह का एक और स्टॉल केवल युवा पीढ़ी की पसन्द के अनुसार तैयार किया है। इसे हमने ‘किताब उत्सव’ नाम दिया है। यहाँ युवाओं को पसन्द आनेवाली किताबों को रखा गया है। हमने इस स्टॉल में पाठकों की लेखकों, प्रकाशकों और इन्फ्लुएंसर्स के साथ दोस्ताना बातचीत के लिए एक मंच भी तैयार किया है।
विश्व पुस्तक मेला के दौरान राजकमल प्रकाशन समूह के जलसाघर में हर वर्ष की भाँति नई पुस्तकों का लोकार्पण, पुस्तक चर्चा और लेखक से मिलिए कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। रविवार को कार्यक्रम के पहले सत्र में दोपहर 2 बजे प्रज्ञा के कहानी संग्रह ‘काठ के पुतले’ का लोकार्पण हुआ। इस दौरान नासिरा शर्मा, प्रियदर्शन, हरियश राय, साधना अग्रवाल उपस्थित रहे। वहीं कार्यक्रम का संचालन राकेश कुमार ने किया। बातचीत के दौरान नासिरा शर्मा ने कहा कि प्रज्ञा जी की कहानियाँ पाठकों को बहा ले जाती हैं। वह बिना विमर्श के अपने पाठकों को दुःख से रूबरू कराती हैं। इनकी कहानियों में नए समाज की आहट है और इसके साथ ही इनमें काफी विविधता भी है। प्रियदर्शन ने कहा कि प्रज्ञा अतिरिक्त नाटकीय होने से बचती हैं और रचना को पाठकों के विवेक के हवाले करती हैं। हरियश राय ने कहा कि प्रज्ञा कि कहानियों में वैचारिक गहराई है।
दूसरे सत्र में 3 बजे से एक विशेष सत्र आयोजित हुआ जिसमें ‘इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ किताब से चर्चित यूथ कल्चर विशेषज्ञ विनीत कुमार रील कल्चर और रील वाली किताबों पर पाठकों के साथ संवाद किया। उन्होंने कहा कि रील वाली बातें हमारी वास्तविक ज़िन्दगी से बहुत अलग है। रील आज के समय के लिए एक डिजिटल हुकअप हो गया है। उन्होंने बताया कि आज बच्चे कहते हैं कि रील देखते नहीं स्क्रोल करते हैं। बहुत सारे पाठकों ने यह भी बताया कि दुष्यंत कुमार को मैंने रील के जरिए जाना। इस पर विनीत कुमार ने कहा कि एक गुलजार मुम्बई में रहते हैं और एक इंस्टाग्राम पर। एक श्रोता ने संवाद करते वक़्त बताया कि किसी भी काम को मिशन, फैशन और प्रोफेशनल के लक्ष्य से किया जाता है और उन्होंने रील के लक्ष्य को लेकर प्रश्नचिह्न खड़ा किया।
तीसरे सत्र में विनय कुमार की काव्य पुस्तक ‘श्रेयसी’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में गगन गिल, मदन कश्यप, के. के. नारायण और ज्योतिष जोशी मौजूद रहे। किताब पर बातचीत के दौरान विनय कुमार ने कहा कि अगर भारत की ज्ञान-सम्पदा और लोकव्यापी परम्पराओं में सरस्वती और संसार के विभिन्न भागों में विकसित संस्कृतियों में उसकी समरूपाएँ न होतीं तो ‘श्रेयसी’ सम्भव न होती।
कार्यक्रम के अंतिम सत्र में प्रदीप गर्ग की किताब ‘क्रान्ति-पथ का पथिक’ का लोकार्पण हुआ। मनोज कुमार पांडेय के साथ बातचीत में लेखक ने बताया कि भारत के नौजवानों में क्रान्ति के प्रति जागृति और कटिबद्धता पैदा करने के उद्देश्य से शहादत देना ही भगत सिंह के जीवन का लक्ष्य था। उसके आखिरी दिनों के पत्र और सन्देश साफ़ बताते हैं। अगर उनकी सजा कालापानी में तब्दील हो जाती तो भगतसिंह कभी जन-नायक नहीं बन पाते।
जलसाघर में सोमवार को दोपहर 2 बजे से आयोजित कार्यक्रम के पहले सत्र में आयशा आरफ़ीन के कहानी संग्रह ‘मिर्र’ का लोकार्पण होगा। दूसरे सत्र में 3 बजे गौतम चौबे के उपन्यास ‘चक्का जाम’ पर बातचीत होगी। तीसरे सत्र में 4 बजे मदन कश्यप के कविता संग्रह ‘बस चाँद रोएगा’ का लोकार्पण होगा। अंतिम सत्र में 5 बजे जावेद अख़्तर पाठकों से रूबरू होंगे।