प्यादा – सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग : ४/५
संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : ३१७
प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स
सीरीज : सुधीर कोहली #१९

पहला वाक्य :
रौनक खुराना मेरा दोस्त था  ।

प्यादा सुधीर कोहली सीरीज का १९ वाँ कारनामा है । सुधीर कोहली एक प्राइवेट डिटेक्टिव है जो यूनिवर्सल इन्वेस्टीगेशन नामक डिटेक्टिव एजेंसी का मालिक भी है । उसका एक दोस्त है रौनक खुराना जो कि पहाडगंज में रौनक बार एंड रेस्टोरेंट का मालिक भी है । रौनक के बेटे लकी खुराना का जब क़त्ल हो जाता है तो रौनक सुधीर को क़त्ल की वजह को जानने के लिए कहता है । लकी एक रियल एस्टेट फर्म में कार्यरत था और उसका ऐसा रेहन सेहन था की ऐसा लगता था की वो काफी अच्छे ओहदे में था । खोजबीन के दौरान सुधीर को पता लगता है कि लकी के बैंक खाते में एक मुश्त ९० लाख रूपये जमा कराये गये थे। जब वो उसकी फर्म में पता करता है तो पाता है कि वो तो वहाँ केवल एक मामूली सेल्समेन था और चार महीने की नौकरी के पश्चात निकाला जा चुका था । तो ये नब्बे लाख की क्या गुत्थी थी ??

वहीँ दूसरी और पुलिस वालों ने लकी के खून के इल्जाम में बालकिशन ठक्कर उर्फ़ बल्ली ,जो कि एक सटोरिया था , को गिरफ्तार कर दिया था । पुलिस के मुताबिक़ लकी सट्टे की रकम जमा नहीं कर पाया था तो आवेश में आकर उसने उसका क़त्ल कर दिया । इस बाबत उन्हें एक कॉल भी आई थी जिसने ये सुना था कि बल्ली क़त्ल के वक़्त मौकायवार्दात में मौजूद था। लेकिन बल्ली इन सब बातों को झुटला रहा है, वो कहता है उस फंसाया जा रहा है  । कौन था ये मिस्टीरियस कॉलर ??

जब रौनक को बल्ली गिरफ्तार होने की खबर मिलती है तो वो संतुष्ट हो जाता है और सुधीर का शुक्रियादा कर केस बंद करने को कहता है । वहीँ बल्ली सुधीर को रिटेन कर लेता है । बल्ली कहता है कि वो बेगुनाह है और सुधीर ही उसे बेगुनाह साबित कर सकता है । सुधीर अपने हंच पे ये केस ले लेता है । अगर बल्ली बेगुनाह है तो फिर क़त्ल किसने किया या करवाया ? ये सवाल आपके ही नहीं मेरे मन में भी कौंधा था ?? क्या सुधीर कोहली – दा ओनली वन,दा लकी बास्टर्ड इस केस कि गुत्थी सुलझा पायेगा ? या वो भी इस शतरंज कि बिसात में एक प्यादा बनकर रह जायेगा?

प्यादा मुझे बहुत पसंद आया । ये एक तेज कथानक वाला उपन्यास है जिसने मुझे अंत तक बांधे रखा । केस काफी उलझा हुआ था और अंत तक मैं ये ही सोचता रहा कि क़त्ल क्यूँ हुआ है ? केस की पेचीदगी ने तो मुझे उलझा के रखा लेकिन सुधीर कोहली ने भी अपने जुमलों और लड़कियों के प्रति अपने आशिक मिजाजी से एंटरटेन किया ।

ये सुधीर सीरीज का दूसरा उपन्यास है जिससे में रूबरू हुआ था । इससे पहले मैंने चोरों की बारात पढ़ा था जो कि ऐसा ही एंटरटेनिंग उपन्यास था । उसके विषय में आप इधर  पढ़ सकते हैं ।  क्या आपको ये उपन्यास पढ़ना चाहिए ? अगर आप एक मर्डर मिस्ट्री के शौक़ीन हैं तो आपको ये उपन्यास ज़रूर पढ़ना चाहिए ।  

हमशकल ४/५

पहला वाक्य :
मकरंद पाटिल और शोभना पांच साल से विवाहित दंपति थे जो विरार के एक शांत बंगले में पूरे ठाट बाट से रहते थे क्यूंकि मकरंद का भविष्य  के लिए बचत करने का कोई प्रोग्राम नहीं था।



इस पुस्तक में उपन्यास के इलावा सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की कहानी ‘हमशकल‘ भी संकलित है। मकरंद पाटिल और उसकी बीवी शोभना विरार में ऐशो आराम से ज़िन्दगी गुजर बसर कर रहे हैं। मकरंद पैसे बचाने में विशवास नहीं रखता है क्यूंकि वो अपने मामा की वसीयत का एक लौता वारिस है । लेकिन कुछ दिनों से मकरंद की जान पहचान वाले उससे तब मोलने का दावा कर रहे हैं जब वो उनसे रूबरू नही   हुआ  था।  ये क्या माजरा था ? उसका एक जुडवा भाई तो था लेकिन उसके अभिभावकों ने बताया था कि वो मृत पैदा हुआ था ? तो क्या ये वही था ? आखिर कौन था ये व्यक्ति जो मकरंद बनकर घूम रहा था ??क्या ये उसका हमशकल था,या उसका जुड़वाँ भाई  या कोई प्रैक्टिकल जोक??

हमशकल सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की पहली लघु कथा है जो मैंने पड़ी है ।कहानी शुरू से अंत तक रोचक थी और पाठक को पन्ने पलटने पे विवश करती है। पढ़कर मज़ा आ गया। आपको भी पढने का मौका मिले तो पढियेगा ज़रूर।


उपन्यास के कुछ अंश :


बहरहाल बाज लोगों की बेहतर जानकारी आपको तभी होती है जबकि वो इस फानी दुनिया से रुखसत हो चुके होते हैं , आपको तभी पता चलता है कि बहुत सी खूबियाँ थी मरने वाले में । खूबियों के बखान का असल वक़्त ही तभी आता है । खोद-खोदकर, ढूँढ-ढूँढकर खूबियाँ निकाली जाती हैं, उनको चमका कर, पोलिश कर नोक पलक सवार कर पेश किया जाता है – उन लोगों के द्वारा भी जिनको मरने वाले की ज़िन्दगी में उसकी जात से नफरत होती है, जिनको उनके वजूद को कबूल करते फाँसी लगती होती है । 



मैं औरत से खता खाया मर्द था इसलिए प्यार के ऐसे इजहार का रोब खाना मेरी फितरत में नहीं था । मेरी निगाह में प्यार उस जज्बे को कहते हैं जो औरत के मन में कुत्ते के लिए हमेशा होता है और कभी कभार किसी मर्द के लिए भी होता है ।
सभ्य समाज में कुत्ते के प्यार की बड़ी महिमा है, वो बस सिर्फ माँ के प्यार से उन्नीस है । इस ग्रेडेशन के लिहाज से माशूक – स्थायी या अन्स्थायी – तीसरे नंबर पर आती है । तीसरे दर्जे के आइटम का क्या रौब खाना !

“स्मार्ट मैन!”-कंसल व्यंगपूर्ण लहजे से बोला ।
“समझ नही पा रहा हूँ कि जवाब में मैं तुम्हे कौन से अलंकार से नवजूं । तुम्हे अपने बाप का पता न हो तो ये काम आसान है । बोलो , है ऐसा ?”
” यू सन ऑफ़ अ बिच! “
“ओरिजनल। वैरी फर्स्ट! थैंक यू”

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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