चोरों की बारात – सुरेन्द्र मोहन पाठक(सुधीर सीरीज #२०)

रेटिंग :3/5
दिनांक जिस दिन उपन्यास ख़त्म किया: 22 ,अक्टूबर 2014

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट:पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 285
प्रकाशक:राजा पॉकेट बुक्स
सीरीज : सुधीर सीरीज-#20

पहला वाक्य:
मेरी नींद खुली।

‘चोरों की बारात’ वैसे तो सुधीर कोहली सीरीज का बीसवाँ उपन्यास  है  लेकिन ये पहली बार है जब मैं सुधीर साहब से  रूबरू  हुआ ।  सुधीर कोहली दिल्ली में एक प्राइवेट डिटेक्टिव है और ‘यूनिवर्सल इन्वेस्टीगेशन’ नाम  की एजेंसी चलाता है । अपने शब्दों में वो एक लकी बास्टर्ड और दिल्ली का सबसे बड़ा हरामी है । जब उसे केस मिलने कम हुए तो उसने विवश होकर परमजीत लाल बसरा , जो कि दिल्ली का नामचीन रईस था, की लड़की को वापस लाने का केस लिया। इसी सिलसिले में उसे पहले बैंकाक और फिर  नेपाल जाना पड़ा । और सुधीर कोहली ‘द लकी बास्टर्ड‘ उस समय ‘द अनलकी बास्टर्ड‘ में तब्दील हो गया जब उसे उसके कमरे में लाश मिली। ये लाश किसकी थी और अंजाने मुल्क में सुधीर के होटल के कमरे में क्या कर रही थी??और इस लाश का सुधीर के कमरे में मिलना उसके लिए किन मुसीबत भरे दिनों कि शुरुआत थी, इसका पता तो आपको उपन्यास को पढ़कर ही मिलेगा।

बहरहाल,उपन्यास मुझे काफी पसंद आया । ये एक डिटेक्टिव फिक्शन के साथ साथ थ्रिलर भी है। पहले तो ये सोचकर हमारा सर चकराता है कि सुधीर के कमरे में लाश क्या कर रही थी ,लेकिन बाद में राज जब परत दर परत खुलते हैं तो हम दिल थमकार उपन्यास को पढने से अपने को नहीं रोक पाते हैं कि कैसे सुधीर अपने को इस मुसीबत से निजात दिला पायेगा। उपन्यास कि गति काफी तेज है। इसी कारण ये काफी जल्दी ख़त्म होता है। मैंने ये तीन sittings में ही ख़त्म कर दिया था। उपन्यास की भाषा हिंदी ,उर्दू और अंग्रेजी का मिश्रण है और मैं इसमें कोई खराबी नहीं देखता। आजकल हम सबकी भाषा ऐसे ही मिश्रित हो चुकी है और इससे किरदार यथार्थ के नज़दीक आते हैं । कुछ एक उर्दू शब्दों  को पढने में मुझे दिक्कत हुई लेकिन डिक्शनरी का इस्तेमाल करके मैंने उन्हें समझ लिया । इस बात का उल्लेख मैं इसलिए कर रहा हूँ क्यूंकि कई लोगों को इन शब्दों से परेशानी आ सकती है तो  कृपया जिस प्रकार अंग्रेजी के शब्दों को देखने के लिए डिक्शनरी इस्तेमाल करते हैं उसी प्रकार इन शब्दों को जानने के लिए भी उसका प्रयोग करने से न चूकें । बाकी कथानक का उपन्यास काफी कसा हुआ है। सुधीर कोहली रंगीन मिजाज़ आदमी हैं ,तो अब उनसे मुलाकातें बड़ाने का मन बना लिया है मैंने अब। यानि इनके बाकि उपन्यासों को भी पढ़ने का इरादा कर लिया है । आप भी इस उपन्यास को पढ़ सकते हैं । ये एक टिपिकल डिटेक्टिव थ्रिलर है और जो इनका काम होता है यानी कि आपका मनोरंजन करना , वो काम ये बखूबी करता है । मैंने इसमें जानबूझ कर उपन्यास के किरदारों के विषय में  नहीं बताया क्यूंकि उससे कथानक उजागर होने का डर रहता है । आप इस उपन्यास को किसी भी रेलवे स्टाल से खरीद सकते हैं । अगर अपने इस उपन्यास को पढ़ा है  या पढेंगे तो इस विषय में अपनी राय देना न भूलियेगा ।

उपन्यास के कुछ अंश:

एकाएक जज्बात के उसके इस इजहार  को ब्रेक लगी। वो कान खड़े करके कुछ सुनने लगी। 
जो उसने सुना वो मैंने भी सुना। 
बाहर गलियारे में आहाट हुई थी। 
एकाएक वो मेरे करीब पहुंची और मेरे ऊपर झुकी। 
टू किस एंड मेक अप!
नाइस !नाइस !

जिंदगी को एक सिग्रेट की तरह एंजाय करो, वरना सुलग तो रही ही है, एक दिन वैसे ही खत्म हो जानी है।








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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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