स्रोत : कथादेश , अप्रैल २०१५
पहला वाक्य :
शशांक आज तीन दिन कि दिल्ली यात्रा के बाद घर लौट रहा था।
शशांक एक उपन्यासकार है। वो एक उपन्यास पे काम कर रहा है जो कि संवेदनशील मुद्दे पर है। इस उपन्यास पर काम करते करते वो इतना खो जाता है कि इस उपन्यास के किरदारों से बात करने लगता है। उन किरदारों के कुछ सवाल हैं जो वो अपने रचयिता से करना चाहते हैं। क्या शशांक के पास उन सवालों के उत्तर हैं? और क्या हैं वो सवाल?
लेखक का क्या कर्तव्य होता है। अक्सर कहा जाता है कि लेखक का कर्तव्य समाज के सच्चे चेहरे को उजागर करना होता है। उसे समाज कि वो तस्वीर पेश करनी चाहिए जिसपे कोई लीपा पोती नहीं कि गयी हो, फिर चाहे वो तस्वीर कितनी घृणित ही क्यों न हो ? लेकिन फिर क्या यहीं एक लेखक कि जिम्मेदारियों का अंत हो जाता है ? या इसके आगे भी उसकी जिम्मेदारियाँ हैं। इन्हीं सब विषयों को उठाती है ये कहानी। एक बेहतरीन कहानी जो हर किसी को पढ़नी चाहिए।
२)वो जो भी है मुझे पसंद है – स्वाति तिवारी ३.५/५
स्रोत : शब्दांकन
पहला वाक्य :
“कब आ रही हैं आप?”
स्वाति तिवारी जी कि कहानी एक ऐसे विषय को छूती है जिससे समाज ने खासकर भारतीय समाज ने किनारा ही किया है। आज भी कई लोग सम्लेंगिगता को एक मानसिक विकृति ही मानते हैं जबकि ये प्रमाणित हो चुका है ऐसा नहीं है। फिर भी लोग सम्लेंगिग लोगों को तिरस्कृत करते हैं। कहानी का ये वाक्य बेहद खूबसूरत लगा जब कहानी कि नैरेटर को अपनी गलती का एहसास होता है:
अमिता से मिलने के बाद समलैंगिकों के प्रति मेरी धारणा कि वे व्याभिचारी होते हैं। बदलने लगी। वे भी उतने ही भले, मिलनसार, ऊर्जावान और स्नेही होते हैं। मुझे लगा एक रूझान के कारण किसी को खारिज नहीं करना चाहिए।
अमिता भी तो रोज हमारी तरह ही उठकर स्नान, पूजा ध्यान, व्रत, आस्था सबमें विश्वास करती है। वही खाती है जो सब खाते हैं। वही जीवन है, वही प्रखरता ।
एक बेहद संवेदनशील मुद्दे पे ये कहानी लिखी गयी है और बेहद अच्छे तरीके से लिखी गयी है। जरूर पढ़ें।
३) बदला – मोहम्मद इस्माइल खान २.५/५
स्रोत : रचनाकार
पहला वाक्य :
आज हरीराम अपनी जेल की कोठरी में हमेशा से कुछ ज्यादा ही परेशान है।
हरिराम एक अपराधी था जो कि जेल में अपने सजा भुगत रहा था। अपनी सजा के बीस साल में से १५ साल काट चुका था और एक मॉडल कैदी था। लेकिन फिर भी अपने किये अपराध कि ग्लानि उसके मन को कचोट रही थी। वह अपने को माफ़ नहीं कर पाया था और ये भावना तब उग्र रूप धारण कर लेती थी जब उसकी बेटी गोमती उससे मिलने आती थी। ऐसा क्योंकर होता था? क्या था उसका अपराध ?
क्या क्षमा का ये असर भी हो सकता है? ये कहानी इस विषय को सोचने पर मजबूर कर देता है। अक्सर व्यक्ति अपने ही बनाये गये करान्ग्रह का बंदी होता है , वो खुद ही अपने पाप निर्धारित करता है और अंत में खुद को ही सजा सुनाता है। हरिराम के साथ भी यही हुआ। लेकिन जो सजा उसने सोचा था उसे उस व्यक्ति के घरवाले देंगे जिसके खिलाफ उसने अपराध किया, उसे नहीं मिली तो उसका अपराधबोध बढ़ता ही गया। एक अच्छी कहानी है।
इस हफ्ते में केवल तीन ही कहानियाँ पढ़ पाया। खैर, इनका आनंद लीजिये और अपनी राय देना न भूलियेगा।