कुम्भ के मेले में मंगलवासी |
पहला वाक्य
मगंल ग्रह में जीवन कभी पृथ्वी से ही गया था। पर अब हालात दूसरे थे। मंगल ग्रह के वासियों ने तरक्की कर हर मामले में पृथ्वी को पीछे छोड़ दिया था। हालात यह थे कि मंगल की उन्नत तकनीक पृथ्वी की समस्याओं का हल करने के लिए इस्तेमाल हो रही थी। यही काम मंगल की गुप्तचर संस्था मंगलपो कर रही थी। धरती में अपराधिक मामलों को सुलझाने में उसका कोई सानी नहीं। लेकिन धरती पर मंगल वासियों के बढ़ते हस्तक्षेप से भी धरतीवासी परेशान थे। ऐसे में जब मंगल के एक प्रोफेसर सी दास और उनका शोध छात्र नवीन गिरनार की पर्वत श्रृंखलाओं में मौजूद एक गुप्त प्रयोगशाला में पहुँचे तो उधर काम करने वाले प्रोफेसर राघवन का हैरान होना लाजमी था।
आखिर प्रोफेसर सी दास और नवीन गुप्त प्रयोगशाला में क्यों पहुँचे थे?
प्रोफेसर राघवन उस प्रयोगशाला में ऐसे कौन से गुप्त प्रयोग कर रहे थे?
जैसे जैसे हम विकास कर रहे है वैसे वैसे परिवार संस्था टूटती जा रही है। पहले सब मिलकर संयुक्त परिवार में रहते थे और अब एकल परिवार का ही चलन है। माँ बाप और बच्चे। इससे कई परेशानियाँ भी लोगों को होती हैं। पहले जब संयुक्त परिवार थे तो बच्चों की परवरिश के लिए लोग मौजूद थे। माँ बाप के ऊपर इतना दबाव नहीं रहता था। परन्तु अब ऐसा नहीं है।
फिर अब इच्छाएं भी मनुष्य में इतनी हैं कि वह उन्ही की जुगत में रहता है और इसलिए बच्चों को बढ़ा करने की जिम्मेदारी उसे भारी लगने लगती है। इसलिए विकसित देशों में ऐसा देखा जा रहा है कि वो लोग बच्चे पैदा करने के प्रति इतने उत्साहित नहीं है। उन्हें लगता है वह उनके आम जीवन में रुकावट पैदा करेगा।उपभोगतावाद जैसे जैसे बढ़ेगा यह हालात और बद से बदतर होते चले जाएँगे।
इसी सोच को लेकर कहानी लिखी गई है। इस जिम्मेदारी को विज्ञान के माध्यम से कैसे कम किया जाए इसी के ऊपर प्रोफेसर राघवन काम करते रहते हैं। कहानी का विचार (concept) मुझे पसंद आया। हाँ, यह जरूर है कि हालत इतने बदतर हो जायेंगे यह सोचकर दुःख हुआ। मंगल पुलिस के गुप्तचर,साजिश यह सब कुछ इसमें है। परन्तु कहानी का अंत थोड़ा संशय पैदा करता है। जैसा की शीर्षक है कि एक किरदार दूसरे को अलविदा कहता है। यहाँ प्रश्न यह है कि अगर मुझे लगता है कि आपके ग्रह के लोग मेरे ग्रह के काम में हस्तक्षेप कर रहे हैं और मैं आपके ग्रह से आये किसी व्यक्ति को अपने गुप्त शोध के विषय में क्यों बताऊंगा। अब चलो बताया भी लेकिन फिर उधर से आये एक व्यक्ति को अपनी गुप्त प्रयोगशाला में क्यों रखूंगा। यह सब बातें मुझे जमी थी और मेरी नज़र में इन्होने कहानी को कमजोर किया।
इधर लेखक का फोकस विज्ञान के ऊपर ज्यादा था और गल्प के ऊपर कम। तकनीक उन्होंने अच्छे से समझाई लेकिन मूल कहानी पर इतना काम न कर पाए। संग्रह की कुछ कमजोर कहानियों में से एक लगी मुझे जबकि इसमें काफी सम्भावना थी।
पहला वाक्य
कहानी एक अपराध कथा की तरह चलती है। कैसे भविष्य में पुलिस की जरूरत खत्म हो जाएगी इसका भी चित्रण करती है। हम कितनी भी व्यवस्था कर लें लेकिन समाज में अपराध का न होना असम्भव है। कुछ न कुछ ऐसा होगा जिससे अपराध होगा ही। यह भी कहानी दर्शाती है। इसके अलावा भविष्य में कैसे आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस से लदे कंप्यूटर अपने डाटा को खंगाल कर अपराध को सोल्व करने के काबिल होंगे यह भी दिखलाती है। हाँ,अंत थोड़ा मुझे कमजोर लगा। लेकिन फिर भी पठनीय कहानी है।
पहला वाक्य
… और यह रहे उनके नितांत निजी क्षणों के कुछ दृश्य जिसके तत्क्षण बाद ही हमारा सम्पर्क नोरा से टूट गया है….
नोरा साइमन ग्रह की आखिरी मानव थी। थी इसलिए क्योंकि अब वह नहीं रही थी। कुछ देर पहले ही उसकी इहलीला समाप्त हो गई थी। साइमन ग्रह में अब केवल यंत्रमानव बचे थे। अपने ग्रह के आखिरी मानव को खोकर वह दुखी थे।
आखिर नोरा की मृत्यु कैसे हुई? इस बात की तफ्तीश वह कर रहे थे।
तफ्तीश का नतीजा क्या निकला? यह तो तो आपको कहानी पढ़कर ही पता चलेगा।
अपनी जाति,अपने धर्म और उसकी पवित्रता बरकरार रखने की धारणा मनुष्यों में काफी पुरानी है। यहाँ हमे यह यदा कदा देखने को मिलती है। लोग अंतर्जातीय विवाह के साथ अभी भी इतने सहज नहीं हैं तो फिर विजातीय विवाह के प्रति क्या धारणा होगी उसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती है। लोग चाहते हैं कि दूसरी जाती के साथ विवाह न हो। न कोई प्रेम सम्बन्ध हो। यही साइमन ग्रह के लोग भी चाहते थे। उनके ग्रह ने काफी उन्नति कर ली थी। अलग अलग ग्रहों में जीवन का अंदेशा उन्हें था और उनकी धारणा थी कि उनके ग्रह के मानव किसी दूसरे ग्रह के मानव के साथ संसर्ग न कर पाएं। इस धारणा को उन्होंने कुछ ऐसा रंग दिया कि वही उनके सफाए का कारण बना।
यह एक भयावह कांसेप्ट था। असल में होना मुमकिन है और अगर हुआ तो न जाने क्या होगा। कहानी का कांसेप्ट और कहानी दोनों ही मुझे अच्छी लगी।
4) कुम्भ के मेले में मंगलवासी 2/5
पहला वाक्य
इक्कीसवीं सदी का आखिरी महाकुम्भ का आयोजन हुआ तो इसकी चर्चा होनी लाज़मी थी। सारे सौर मंडल में इसकी चर्चा चल रही थी। मंगल ग्रह, जहाँ मानव सभ्यता को को बसे हुए काफी समय नहीं हुआ था, में भी लोग इसे देखने के लिए लालायित थे। ऐसे ही एक व्यक्ति ने मंगल से धरती पर सफ़र करने का फैसला किया था। वह मंगल में ही जन्मा और पला बढ़ा था परन्तु धरती के प्रति उसका अकर्षण कम नहीं हुआ था। और धरती पर घूमने की इच्छा पूरी करने का महा कुम्भ से बढ़िया मौका क्या हो सकता था।
उस अन्तरिक्ष सैलानी के क्या अनुभव रहे? यही इस कहानी को पढ़कर आपको पता लगेगा।
यह कहानी एक डायरी शैली में लिखी गई है। एक तरह का यात्रा वृत्तांत भी इसे मान सकते हैं। वृत्तान्त के रूप में लेखक ने भविष्य में किस तरह यात्राएं होंगी, धरती की क्या स्थिति होगी और गंगा की क्या हालत हो सकती है सब पर अपने विचार रखे हैं। कहानी मुझे ठीक ठाक लगी।
पहला वाक्य
भारत चन्द्र एअर बस सेवा की उस उड़ान में मून टाइम्स का वेब पत्रकार निपुण भी था।
निपुण मून टाइम्स का वेब पत्रकार था। वो कुछ देर पहले ही चन्द्रमा में पहुँचा था। उसके आने का मकसद धरती के सबसे महान तकनीकविद प्रोफेसर सुरेन्द्र कुमार से एक साक्षात्कार करना था। उसके मन में कई प्रश्न थे जो वह प्रोफेसर से पूछना चाहता था।
मोहभंग मुझे पसंद आई। जैसे जैसे तकनीक में विकास हुआ है वैसे वैसे आदमी आत्मकेन्द्रीत होता गया है। आज कल भी लोग अपने फोन से इतने आदि हो चुके हैं और आप कही भी जाओ सब फोन पर झुके मिलते हैं। इसी प्रवृत्ति को लेकर ही कहानी लिखी गयी है। हम किस तरह तकनीक के प्रति झुकाव के कारण मानवीय संवेदनाओं से दूर जा रहे हैं यही इधर दिखाया गया है। कहानी काफी कुछ सोचने पर मजबूर करती है।
पहला वाक्य
प्रोफेसर कृष्ण कुमार देश के महान तंत्रिका विशेषज्ञों(न्यूरोसाइंटिस्ट) में से एक थे। आज ललित विज्ञान अकादेमी में वह एक व्याख्यान देने वाले थे। जब व्यक्ति समाधि लेता है तो उसके मस्तिष्क पर क्या असर पड़ता है यही इस व्याख्यान में वह दर्शाने वाले थे। परन्तु फिर इस व्याख्यान के दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी।
आखिर प्रोफेसर कृष्ण कुमार के साथ ऐसा क्या हुआ था?
समाधि को योग का अंतिम चरण माना गया है। वहीं ध्यान जो योग का महत्वपूर्ण हिस्सा है वह भी समाधि तक जाने का मार्ग है। अब तो यह बात अनुसन्धान से भी प्रमाणित हो चुकी है कि ध्यान लगाने से हमें और हमारे मष्तिष्क को फायदा होता है। आखिर समाधि के दौरान क्या होता है? यह प्रश्न हमारे मन मष्तिष्क पर हावी रहा है और इसको जानने के लिए अनुसन्धान चल ही रहे हैं। इसी विषय से कहानी की शुरुआत होती है लेकिन बीच में वह एक मोड़ ले लेती है। आखिर इनसानों का विकास कैसे हुआ इसके पीछे कई मत हैं। उन्हीं में से एक मत यह है कि किसी परग्रही प्रजाति ने आकर इस विकास को गति दी और आधुनिक इनसानों को पैदा किया। इसी दिशा में यह कहानी बढती है। इसमें भी एक तरह के परग्रही हैं।
कहानी की संकल्पना मुझे पसंद आई। एक अच्छा और रोचक कांसेप्ट है।
पहला वाक्य
यह चौतीस्वी शताब्दी है। हिन्द महासागर में स्थित एक छोटा सा राष्ट्र कृष्णदीप है। कृष्णदीप आज फिर शोकग्रस्त है। राष्ट्र के राष्ट्रपति की छटी सन्तान का जन्म हुआ है और यह सन्तान भी विकृत पैदा हुई है। अब तक पैदा हुई संतानों की तरह इसकी भी तीन आँखें हैं, जननांग नहीं हैं और आन्तरिक भिन्नताएं भी हैं। चिकित्सकों ने राष्ट्रपति और उनकी पत्नी के काफी परीक्षण किये लेकिन कहीं भी कुछ खराबी नहीं दिखी। आखिर ऐसा क्यों हुआ है? क्या कारण है कि राष्ट्रपति की संताने ऐसी पैदा हुई हैं ? इन सब प्रश्नों के उत्तर तो आपको इस कहानी को पड़कर ही पता चलेंगे।
अमरा वयं इस संग्रह की सातवीं कहानी है। कहानी मुझे पसंद आई। अन्तरिक्ष यात्रा और समय की यात्रा करने जैसे विचारों को लेकर यह कहानी लिखी गई है। इसमें एक परग्रही है जो अपनी सभ्यता को बचाने के लिए एक तरीका अपनाते हैं, ऐसे मानव है तो भविष्य की गर्त में होने वाली घटनाओं को देखकर उन्हें बदलने की कोशिश करते हैं और आखिर में ऐसा भविष्य है जो कोशिशों के बाद भी वैसा ही रहता है जैसा उसे होना चाहिए था। कहते हैं होनी को कौन टाल सकता है। वही इस कहानी का अंत भी होता है।
क्रिपी नामक ग्रह में जो परेशानियाँ दिखती हैं वो हमारे ग्रह में भी हैं और इस कारण इसे पढ़ते हुए हमे सचेत रहना चाहिए कि कहीं क्रिपी जैसी हालत हमारी भी न हो। उनके पास विकल्प था लेकिन हमारे पास अभी तक वो भी नहीं है।
हाँ, बस एक हल्की सी चूक लगी। कृष्णदीप देश के लोग समय की यात्रा करके एक बड़ी घटना टालने जाते हैं। इस यात्रा का कुछ तो दस्तावेज रहा होगा। यह यात्रा क्यों की गई और किस व्यक्ति के लिए की गई यह उस दस्तावेज में दर्ज होगा। इस दस्तावेज से पता चल जाता कि आखिर जो हो रहा है क्यों हो रहा है। अब क्योंकि भविष्य बदला नहीं था तो उस व्यक्ति को इस बात का एहसास हो जाना चाहिए था कि जिस मिशन को सफल मान रहे थे वो सफल नहीं था। कारण आसानी से पता लग सकता था। आखिर में थोड़ा सा लॉजिक गड़बड़ाया था। यही लॉजिक का गड़बड़ाना मुझे खला।
पहला वाक्य
चुनाव जीतने के पुराने हथकंडे इस बार बैमानी हो जायेंगे
चुनावी माहौल गर्म है। इस बार विपक्षी पार्टी ने सत्तारूढ़ पार्टी को पस्त करने के लिए एक योजना तैयार की है। उन्हें पता लग गया है कि पुराने मुद्दों में अब वह बात नहीं रही है। वोटर घाघ हो चुका है। उसे जीतना है तो पुराने मुद्दों को छोड़ नये मुद्दों पर बात करनी होगी।
आखिर क्या मुद्दे थे विपक्ष के पास? क्या उनका सोचना सही था?चुनाव का क्या नतीजा निकला?
वैसे तो यह कहानी विज्ञान गल्प के अंतर्गत नहीं आती है परन्तु कहानी में विज्ञान की जरूरत और लोगो का उसके प्रति रुझान दिखाया गया है। तकनीक से ही विकास सम्भव है। तकनीक लोगों को जोड़ती है और काम आसान करती है। यह बात लोगों को पता है और जो पार्टी उन्हें इस तकनीक के नजदीक लाने की बात करेगी वह उनकी आँख का तारा बन जाएगी। उन वादों को पूरा करे न करे यह जुदा बात है। यही इस कहानी में दिखाया गया है।
वैसे इसमें २००५ के बात चल रही है पर अब २०१८ है और अगर आप २०१४ के चुनाव देखें को उस वक्त की विपक्षी पार्टी ने ऐसे ही बात की थी। तो यह बात सच्चाई के करीब ही है। अच्छी कहानी है पर विज्ञान गल्प संग्रह में क्या कर रही है यह मुझे समझ नही आया।
पहला वाक्य
धरती के लोग आज संकट में हैं। उनके पास न खाने को अनाज है और न बोने को बीज। जिन बायोटेक बीजों को उन्होंने अच्छी फसल के लिए चुना था वो भी उनकी पहुँच से दूर जा चुके हैं।
सब जगह परेशानियों के बादल मंडरा रहे हैं और सरकार भी खुद को असाहय महसूस कर रही है।
मनुष्यों की यह दुर्गति कहीं और भी परेशानी का सबब बनी है। आखिर क्यों हुयी उनके पास बीजों की कमी? और आखिर कौन बनेगा उनका अन्नदाता।
कुछ दिनों पहले मैंने एक खबर पढ़ी थी कि किसानो को कहा जा रहा है कि वो एक कंपनी द्वारा जेनेटिकली मॉडिफाइड बीजों से अपनी फसले उगायें। कई लोग इस बात का विरोध कर रहे थे और यह कहानी भी मूल रूप से इसी विरोध के इर्द गिर्द घूमती है। कंपनी केवल अपने स्वार्थ देखती है। उसका एक ही ध्येय होता है मुनाफा और मुनाफे के लिए वो चाहेगी कि हर बार किसान को उसके ही बीज खरीदने पड़े। मेरा कहने का मलतब है जो चीज इस कहानी में दर्शाई है उसका एक हिस्सा तो आने वाले भविष्य में होना मुमकिन है।
हाँ, कहानी का एक हिस्सा दूसरे पहलू को छूता है। कई लोगो का मानना है कि मानव के विकास में परग्रही ताकतों का हाथ रहा है। उन्होंने ही मानव को यह सोचने समझने की ताकत दी है और हमारे पुराणों में जिन देवताओं का जिक्र है वो यही परग्रही मानव रहे है। कहानी में यह बिंदु भी है। यह विचार रोचक है और जिस तरह कहानी में प्रस्तुत किया है वो मुझे पसंद आया। रोचक कहानी जो पाठक को सोचने पर मजबूर करती है। हम भले ही आधुनिक तकनीक अपना लें लेकिन हमे पारम्परिक चीजों को भी विलुप्त होने से बचाना होगा। एक को खोकर दूसरे को पाने में बुद्धिमता नहीं है।
कहानी के कुछ अंश
विज्ञान दुधारी तलवार है, एक और जहाँ वह शिव के कल्याणकारी रूप में सहज भोलेपन से जनता जनार्धन की सेवा करता है, वहीं वह अपने तांडवी रूप में समग्र मानवता को क्षण भर में भस्मीभूत भी कर सकता है- परमाणु ऊर्चा के मंगलमय और विध्वंसकारी इन दोनों रूपों को हम देख चुके हैं….
पहला वाक्य
पहाड़ी के उस निर्जन शिखर पर जब यमराज उस व्यक्ति के सामने प्रगट हुए तो उसका हैरान होना लाजमी था।परन्तु फिर भी उसके मन में कहीं डर नहीं था। यमराज के आने से वह विचलित नहीं हुआ था।
आखिर कौन था वह इनसान? यमराज उसके सामने क्यों आये थे? वह उनसे डर क्यों नहीं रहा था?
रोचक एवं पठनीय कहानी। यमराज और इनसान के वार्तालाप के माध्यम से समय से जुड़ी कई थ्योरी और पैरेलल यूनिवर्स के विषय में भी बात की है।
पहला वाक्य
आशुतोष निगम एक शल्यचिकित्सक थे। उनकी दिली इच्छा थी कि उनकी होने वाली संतान भी एक होनहार शल्य चिकित्सक बने। वह भाग्यवान थे कि ऐसे वक्त में जी रहे थे जब विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली थी कि शिशु के जीन में कुछ बदलाव करके यह निश्चित कर लिया जाता था कि उसका भविष्य क्या होगा। इसी कारण वह जेनटिक कंपनी के मुख्यालय पहुँचे थे।
क्या उनका स्वप्न पूरा हो सका?
मनुष्य जब बच्चा पैदा करता है तो उसको लेकर कई स्वप्न संजो लेता है। यह स्वप्न उसके खुद के होते हैं और चूँकि उसने बच्चे का निर्माण किया होता है तो वह सोचता है कि बच्चा उसकी ही सोच के मुताबिक चलेगा। परन्तु कितनी भी कोशिश कर लो बच्चा अक्सर वही करता है जो वो करना चाहता है। यह चीज सदियों से होती आ रही है और आगे सदियों तक चलती रहेगी। भले ही आगत अतीत कहानी की पृष्ठभूमि ऐसे वक्त की है जब कि विज्ञान ने इतनी प्रगति कर दी है कि काफी हद तक बच्चे में क्या गुण होंगे यह निर्धारित किया जा सकता है लेकिन फिर भी कहानी दर्शाती है कि बच्चा के अंदर का मैं ही उसका भविष्य का निर्माण करेगा। वह ख़ुशी तभी पायेगा जब ऐसा काम करे जो उसकी रूचि का हो। वहीं कहानी का अंत बेहतरीन है। कहते हैं भले ही हम बचपन में कितना सोचे कि हम अपने अभिभावकों से अलग होंगे, उनके जैसे अपने विचारों को नहीं थोपेंगे लेकिन बच्चे के होते ही हम उनमें तब्दील हो जाते हैं। हमे ख्याल तक नहीं आता और हम अपने अभिभावकों के जैसे बन जाते हैं।
आगत अतीत एक रोचक एवं पठनीय कहानी है जो एक ऐसे विषय पर लिखी जिस पर सोचना जरूरी है। आज भी बच्चे के ऊपर माँ बाप के सपने पूरा करने का दबाव डाला जाता है। उन्हें वही करने की आजादी देनी चाहिए जिसकी उन्हें इच्छा है।
आखिर में यही कहूँगा कि ‘कुम्भ के मेले में मंगलवासी’ एक कहानी संग्रह के रूप में मुझे पसंद आया। यह 11 कहानियों का संग्रह है जिसमें लेखक ने कहानियों के माध्यम से अलग अलग वैज्ञानिक कॉन्सेप्ट्स पर बात की है। जब भी हम विज्ञान गल्प सुनते हैं तो हमारे अंदर जो ख्याल उत्पन्न होता है वह रोमांच से भरी कहानी का होता है। परन्तु विज्ञान गल्प का अर्थ है भविष्य में हो सकने वाली चीजों या किसी ऐसे वैज्ञानिक कांसेप्ट को कहानी के रूप में दर्शाना जिसकी अभी कल्पना ही हो सकती है। जैसे समय यात्रा,अन्तरिक्ष यात्रा, मानव जीन में बदलाव,उम्र को बढ़ाना,घटाना, यंत्र मानवों का विकास,आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस,दूसरे ग्रह में जीवन इत्यादि। लेखक ने ऐसे ही विचारों को लेकर इन कहानियों की रचना की है। कुछ कहानियाँ रोमांचक है और कुछ में लेखक ने उन परेशानियों को इंगित करने की कोशिश की है जो हमारा आधुनिक जीवन हमारे समक्ष प्रस्तुत कर रहा है या आगे चलकर करेगा।संग्रह की ज्यादतर कहानियाँ मुझे पसंद आई।
अगर आपने यह संग्रह पढ़ा है तो संग्रह के प्रति अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा। अगर आपने संग्रह नहीं पढ़ा है तो आप निम्न लिंक से इसे प्राप्त कर सकते हैं:
निष्पक्ष समीक्षा के लिये आभार। बहुत खुशी हुई जानकर कि आप विज्ञान कथा प्रेमी हैं। भविष्य में मिलना चाहूंगा ।
सस्नेह
अरविंद मिश्र
meghdootmishra@gmail.com
जी,शुक्रिया। आपकी दूसरी कृतियों का इंतजार रहेगा।
बढ़िया समीक्षा। पढ़ते रहिए और समीक्षा लिखते रहिए।
जी आभार। ऐसे ही हौसला बढ़ाते रहिये।