संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 109 | प्रकाशक: रेमाधव पब्लिकेशनस | मूल भाषा: बांग्ला | अनुवादक: नरेन्द्र राय
कैलास में गोलमाल – सत्यजित राय |
पहला वाक्य:
जून के महीने का मध्य।
कहानी
भुवनेश्वर के राजा रानी मंदिर में मौजूद यक्षिणी की मूर्ती के सिर को जब सिद्धेश्वर बोस ने एक होटल में देखा तो उनका माथा ठनका। उन्हें इस बात का अहसास हो गया था कि हो न हो वह सिर मंदिर से चुराया गया था और यह काम एक ऐसे गिरोह का था जो भारत की प्राचीन धरोहर को विदेशियों के हाथ में बेचना चाहती थी। ऐसे कई दल सक्रिय थे जो पुराने मन्दिरों से मूर्तियाँ बेचा करती थीं। सिद्धेश्वर बोस जानते थे कि यह भारत की संस्कृति, उसकी धरोहर के साथ किया गया जघन्य अपराध था। कला में रूचि वो रखते थे और इसलिए तिलमिलाते हुए फेलूदा के पास पहुँचे थे।
वो चाहते थे कि फेलूदा इस विषय में कुछ करे। इस गिरोह का पता लगाए। इन्हें सजा दिलवाये।
फेलूदा भी मूर्ती की चोरी को एक जघन्य अपराध मानता था और यही कारण है कि उसने इस मामले को अपने हाथ लेने का फैसला किया।
लेकिन मामला इतना सीधा नहीं था जितना की दिख रहा था। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी हो गयी कि फेलूदा , तोपशे और जटायू को महाराष्ट्र में मौजूद एलोरा की गुफाओं में जाना पड़ा।
उन्हें क्या पता था कि गुफाओं में मौजूद कैलास मंदिर ही उनके रोमांचक कारनामों का गवाह बनेगा।
आखिर क्यों फेलूदा को महाराष्ट्र जाना पड़ा?
क्या वो लोग यक्षिणी के सिर को हासिल कर पाये ?
क्या वे लोग मूर्ती की तस्करी करने वाले गिरोह से लड़ पाए? आखिर कौन लोग थे इन सबके पीछे?
ऐसे ही कई प्रश्नों के उत्तर आपको इस उपन्यास को पढ़कर पता चलेंगे।
मुख्य किरदार
प्रोदोष मित्तर उर्फ़ फेलूदा – एक जासूस
तोपशे उर्फ़ तपेश रंजन मित्तर – फेलूदा का भाई
श्रीनाथ – तोपशे और फेलूदा का नौकर
साल सिल्वरस्टाइन – एक अमेरिकी युवक जिसने यक्षिणी की मूर्ती का सिर खरीदा था
सिद्धेश्वर बोस उर्फ़ सिद्धू ताऊ – फेलूदा और तोपशे के ताऊ जी
बलराम घोष – टैक्सी चालक
पानू – सिदिकपुर नामक गाँव में रहने वाला एक लड़का
हरेन मुत्सुद्दी – पार्क स्ट्रीट थाने के ओ सी
जयंत मल्लिक – नीली गाड़ी में सवार व्यक्ति जिसका पीछा फेलूदा कर रहा था
अधिकारी – मल्लिक का दोस्त जिसके फ्लैट में वो रह रहा था
लाल मोहन गाँगुली उर्फ़ जटायू – बांग्ला का प्रसिद्ध थ्रिलर के लेखक और फेलूदा के मित्र
शुभंकर बोस – एक प्रोफेसर जो एलोरा देखने आया था और औरंगाबाद में उसी होटल में ठहरा था जहाँ फेलूदा और पार्टी ठहरे थे
आर एन रक्षित – एलोरा गुफा के नजदीक डाक बंगले में रहने वाला एक सैलानी जो कि इलाहबाद का बंगाली था
सैम लुईसन – न्यू यॉर्क में एक आर्ट गैलरी का मालिक
रूपा, अर्जुन मेहरोत्रा और बलवंत चोपड़ा – बम्बई से फिल्म शूटिंग करने आये कलाकार
अप्पा राव – फिल्म में फाइट मास्टर
कुलकर्णी – डाक बंगले के बगल में मौजूद गेस्ट हाउस का मेनेजर
सब इंस्पेक्टर छोटे – एक इंस्पेक्टर जो कि कैलास में मिली लाश का मुआयना कर रहे थे
मेरे विचार
‘कैलास में गोलमाल’ सत्यजित राय जी का फेलूदा श्रृंखला का एक उपन्यास है। उपन्यास पढ़ते हुए आपको पता लगता है यह सोने का किले और अटेची रहस्य के उपन्यास के घटनाक्रम के बाद घटित होता है। वैसे तो उन उपन्यासों को पढ़े बिना भी इस उपन्यास को पढ़ा जा सकता है लेकिन चूँकि इस उपन्यास में उनका जिक्र आता है तो पढ़ने के बाद आपको उन उपन्यासों को पढ़ने का मन जरूर करेगा। अगर आपने अभी तक कैलास में गोलमाल नहीं पढ़ा है तो मेरी यही राय होगी पहले सोने का किला पढ़े(क्योंकि जटायू इसी उपन्यास में फेलूदा और तोपशे से मिलते हैं), फिर अटेची रहस्य और फिर इसे। मैंने खुद अटेची रहस्य नहीं पढ़ा है और अब सत्यजित राय के अगले उपन्यास के तौर पर मैं उसी को पढ़ने का विचार कर रहा हूँ।
खैर, अगर इस उपन्यास की बात करूँ तो उपन्यास में रहस्य और रोमांच दोनों मौजूद हैं। उपन्यास का कथानक मूर्ती चोरी के ऊपर लिखा गया है। आज भी यह काम धड़ल्ले से जारी है। कई बार ऐसी खबरे सुनने को मिलती हैं। उस वक्त भी रहा होगा ये पढ़कर हैरत नहीं होती है। इसलिए उपन्यास का कथानक आज भी प्रासंगिक लगता है।
फेलूदा के उपन्यास अगर आप पढ़ते हैं तो आपको पता होगा कि इन उपन्यासों के चलते पाठक को फेलूदा और पार्टी के साथ भारत के विभिन्न हिस्सों में घूमने को मिलता है। कैलास में गोलमाल में भी ऐसा ही है। जब मैंने कैलास में गोलमाल शीर्षक सुना था तो मुझे लगा था कि इस बार फेलूदा कैलाश पर्वत ही पहुँच चुका है लेकिन ऐसा है नहीं। कैलास में गोलमाल का घटनाक्रम होता तो बंगाल में शुरू है लेकिन फिर इसका पटाक्षेप एलोरा की गुफा में मौजूद कैलास मंदिर में होता है। 2014-15 के करीब मैं भी अपने दोस्तों के साथ इधर गया था। उपन्यास में जितने पर्यटक स्थलों का जिक्र है वो भी मैंने देखे थे। इसलिए उपन्यास में जब उनके विषय में पढ़ रहा था तो वो याद ताज़ा हो गयी। हाँ, उस वक्त मुझे ये नहीं पता था कि जिस मंदिर को मैं देख रहा हूँ उसका नाम कैलास है। इस उपन्यास से ये पता लग गया है। एक और बात उपन्यास पढ़ने के बाद मेरे मन में उठी है। क्या फेलूदा और पार्टी किसी मामले की तहकीकात करते हुए दक्षिण भारत भी पहुँचे थे? अगर आपको इस विषय में पता है तो मुझे जरूर बताइयेगा।
इस उपन्यास में रेड हेरिंग नाम की जासूसी तकनीक का बखूबी से इस्तेमाल किया गया है। इस तकनीक के अंतर्गत लेखक एक ऐसे संदिग्ध चरित्र की रचना करता है जिस पर पाठक का पूरा ध्यान चला जाता है और इस कारण जब असली कातिल या गुनाहगार उजागर होता है तो उसकी हैरानी की सीमा नहीं रहती है। मुझे ऐसे उपन्यास पसंद हैं तो यह भी पसंद आया।
कैलास में गोलमाल में फेलूदा की जासूसी देखने में मज़ा आता है क्योंकि इसमें वो बहुरूप धारण करते हुए दिखता है। लाल मोहन गाँगुली उर्फ़ जटायू भी इस उपन्यास में मौजूद हैं तो कॉमेडी तो होनी ही है। वो कॉमेडी का तड़का लगाते हैं। उपन्यास में उनके द्वारा लिखे गये उपन्यास का जिक्र भी आता है। जब भी ऐसा होता है तब ही मुझे मन करने लगता है कि काश उनके लिखे उपन्यास पढ़ पाता क्योंकि विषय वस्तु और किरदारों के नाम ही इतने रोचक होते हैं। जैसे इसी में वो कहते हैं कि जिस उपन्यास में वो काम कर रहे हैं उस उपन्यास में खलनायक का नाम घनश्याम कर्कट है। यह नाम मुझे रोचक लगा और मैं यही सोचता रहा कि बाकि का उपन्यास कैसा होगा?
‘कैलास में गोलमाल’ का कथानक कसा हुआ है। कथानक में ट्विस्ट्स भी आते हैं और रोमांच अंत तक बरकरार रहता है। मुझे तो उपन्यास काफी पसंद आया। लेखक कातिल के मामले में मुझे भी धोखा देने में कामयाब हो गये।
कैलास में गोलमाल एक अच्छा रोमांचक जासूसी उपन्यास है। अगर आप जासूसी उपन्यासों के शौक़ीन हैं तो यह आपको निराश नहीं करेगा।
रेटिंग: 4/5
अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है और पढ़ने की इच्छा रखते हैं और आप इसे निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:
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सत्यजित राय के मैंने दूसरी किताबें भी पढ़ी हैं। उनके प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
सत्यजित राय
बांग्ला से हिन्दी में अनूदित दूसरी रचनाओं के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
बांग्ला से हिन्दी
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
बहत सुन्दर समीक्षा विकास जी । आप की समीक्षा ने तीनों उपन्यासों को पढ़ने के लिए उत्सुकता जगा दी ।
जी आभार। फेलूदा श्रृंखला के उपन्यास मुझे हमेशा से पसंद आये हैं। और इनकी सबसे अच्छी बात ये है कि किशोरों के लिए भी यह उपन्यास काफी रोमांचक पठनीय सामग्री हैं।यह बच्चों को ये जरूर पसंद आएंगे क्योंकि उपन्यासों को तोपशे के नजरिये से हम देखते हैं जो कि खुद तेरह चौदह साल का बच्चा है।
इतनी अच्छी जानकारी साझा करने के लिए आभार विकास जी ।
जी आभार।