दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ: एक किताब, जिसे एकाग्र होकर पढ़ना है मुश्किल

नोट: ओंकार प्रसाद नय्यर (16 जनवरी 1926 – 27 जनवरी 2007), अपने नाम के संक्षिप्त रूप ओ॰ पी॰ नय्यर से लोकप्रिय हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे जो लाहौर में पैदा हुए थे तथा अपने चुलबुले संगीत के लिये जाने जाते थे। 2018 में पराग डिमरी जी द्वारा लिखित ओ पी नैय्यर जी की जीवनी दुनिया से निराला हूँ,जादूगर मतवाला हूँ प्रकाशित हुई थी।

‘दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ’ के ऊपर राशीद शेख जी ने यह लेख लिखा है।
 

दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ - पराग डिमरी
दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ – पराग डिमरी

राग डिमरी द्वारा लिखित “दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ” महान संगीतकार स्व. ओ.पी. नैय्यर के जीवन का, उनके संघर्षों का, उनकी संगीत के प्रति समझ का लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है । यह ऐसी किताब है जिसे आप एकाग्र होकर नहीं पढ़ सकते, आपका ध्यान बार-बार किताब में उल्लेखित मधुर गीतों की ओर जाएगा और आप ना चाहते हुए भी उन गीतों को गुनगुनाने लगेंगे या यूट्यूब जैसे माध्यमों में सुनने लगेंगे । हो सकता है ये किसी को खामी लगे, पर मुझे ये किताब की खूबी लगी, यू एस पी लगी । इतने शोध और मेहनत के लिए लेखक बधाई के पात्र हैं, हालाँकि उन्होंने स्वयं को लेखक ना मानते हुए, खुद को संग्रहकर्ता कहा है, पर एक सधे हुए उपन्यास की रवानगी लेखन में नज़र आती है ।

मैं आमतौर पर तीन-चार घँटों में एक उपन्यास खतम कर लेता हूँ लेकिन इसे खत्म करने में मुझे लगभग एक सप्ताह लग गया । वजह मैंने बयान की ही है । मैं पशोपेश में हूँ कि इसे क्या कहूँ ? आत्मकथा ये है नहीं, लेख भी नहीं है, एक वृहद लेख कहा जा सकता है, लेकिन शब्द संयोजन, रवानगी, अंदाज़े बयां आदि से इसे उपन्यास कहना बेहतर मालूम होता है । हो सकता है तकनीकी रूप से मैं गलत होऊँ पर मैं उपन्यास ही कहूँगा। 
यदि किताब में प्रस्तुत सामग्री और ओ पी नैय्यर साहब की बात की जाए तो इस बात ने मुझे बहुत हैरत में डाला कि नैय्यर साहब ने कभी संगीत की विधिवत शिक्षा प्राप्त नहीं की थी । बिना तालीम लिए कैसे कोई संगीतकार इतने विभिन्न रागों का इस्तेमाल अपने संगीत में करता था और वो भी इस तरह की आज भी उन गानों में एक ताज़गी होती है, बरबस ही मुँह से निकल जाता है “पुराने गानों की बात ही अलग है” । लेकिन पुराने गाने ? क्या वाक़ई ? नैय्यर साहब सहित उनके समकालीनों ने जो संगीत रचा, उसे नए-पुराने के पैमाने पर रखा जाना दरअसल संगीत से गद्दारी होगी । क्या कोई ऐसी भी बारात होगी, जिसका बैंड “मेरा नाम चिन चिन चू” बजाए बिना बंद होता हो (अजीब इत्तेफ़ाक़ है या संगीत का जादू कहिए, इन पंक्तियों को लिखते समय पारले जी बिस्कुट के विज्ञापन में बैकग्राउंड में यही धुन बज रही है), फिर कैसे इन गानों को पुराना कहा जा सकता है ? ये तो हर दौर के गाने हैं, हर समय नए, ताज़गी से भरपूर, मन को अवसाद से आल्हाद की ओर ले जाने वाले । इन गीतों के लिए नैय्यर साहब और उनके समकालीनों का हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए । बहरहाल बात चल रही थी नैय्यर साहब की सांगीतिक तालीम की, जो कि कभी हुई ही नहीं । लेखक ने ऐसा ही एक वाकया किताब में उद्धृत किया है, लिखते हैं

“संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा ना मिलने के बाद भी नैय्यर साहब द्वारा रचित फ़िल्म ‘फाल्गुन’ के संगीत और खासकर फ़िल्म के गीत ‘मैं सोया अंखिया मीचे’ को सुनकर उस्ताद अमीर अली खान ने नैय्यर साहब को टेलीफोन किया और बधाई देते हुए पूछा ‘कि कैसे उन्होंने ये संभव किया कि फ़िल्म के सारे गाने एक ही राग “पीलू” पर आधारित हों।’ नैय्यर साहब ने उस्तादजी को यह जवाब देकर चौंका दिया कि ‘उस्तादजी, शुक्रिया, पर आपके द्वारा ही मुझे ये मालूम पड़ रहा है कि फाल्गुन के सारे गाने एक ही राग पर आधारित हैं, अजीब संयोग की बात है, क्योंकि मुझे तो संगीत का क ख ग भी नहीं आता । मैंने तो संगीत कभी सीखा ही नहीं।’

फिल्मी गायन की तत्कालीन हस्तियों, समकालीन संगीतकारों, फ़िल्म निर्माता-निर्देशकों के साथ ओ पी के रिश्तों का भी लेखक ने अच्छा बयान किया है । ये एक अद्भुत बात पता चली कि ओपी ने अपना अधिकांश संगीत महान गायिका लता मंगेशकर के बिना ही दिया है । लता की जगह उन्होंने उनकी छोटी बहन आशा भोंसले को तरजीह दी, एक तरह से आशा का पूरा कैरियर ही तत्समय ओपी के इर्दगिर्द रहा । अगर ये कहा जाए कि ओपी ही वो थे जिन्होंने आशा भोंसले को आशा भोंसले बनाया तो अतिशयोक्ति ना होगी । गायकों में मुहम्मद रफी, ओपी के पसंदीदा गायक रहे, दोनों के बीच व्यवसायिक रिश्ते से ज्यादा याराना था, जिसको दोनों ने अंत समय तक निभाया । हालांकि ओपी के अक्खड़ रवैये और समझौता ना करने वाले मिजाज़ की वजह से एक वक्त ऐसा भी आया जब दोनों के रिश्तों में दरार आई । लेखक ने इस वाकये को कुछ यूँ बयान किया है ।
“एक बार जब मुहम्मद रफी फ़िल्म लव एंड मर्डर की रिकार्डिंग के लिए बम्बई लैब्स में तकरीबन एक घंटा देर से पहुंचे, अब चूंकि रिकार्डिंग का समय रफी से पूछ कर ही निश्चित किया गया था, और रफी द्वारा यह सफाई देने पर कि शंकर जयकिशन की रिकॉर्डिंग के कारण उन्हें देर हो गई तो ओपी का पारा आसमान पर चढ़ गया, उन्हें लगा कि रफी उनसे ज्यादा शंकर जयकिशन को महत्वपूर्ण समझता या मानने लगा है और गुस्से में यह भी कह दिया कि यदि शंकर जयकिशन के कारण रफी के पास ओपी के लिए समय नहीं है तो आज से ओपी के पास भी रफी के लिए समय नहीं रहेगा । इसके बाद दो साल से ज्यादा समय तक दो सबसे अच्छे मित्र एक दूसरे के साथ काम नहीं कर सके । रफी साहब ने ओपी को ईद की सिवइयां भी भिजवाई किंतु नैय्यर साहब ने उसे स्वीकार नहीं किया । फिर एक दिन रफी साहब खुद ही फल करके ओपी के घर पहुंच गए, दोनों दोस्त गले मिलकर रोने लगे और ओपी ने कहा कि ‘आज रफी मुझसे बड़ा साबित हो गया क्योंकि रफी के अंदर अपने अहम को पीने की क्षमता है।’ यहां ये भी गौरतलब है कि दोनों ही दोस्तों का सर्वश्रेष्ठ काम एक दूसरे के साथ ही नज़र आता है । रफी के गाए और ओपी के संगीतबद्ध किए गए “है दुनिया उसी की”, “आना है तो आ”, “आँचल में सजा लेना कलियां”, “बंदा परवर, थाम लो जिगर”, “दिल की आवाज़ भी सुन”, “मुझे देखकर आपका मुस्कुराना” जैसे सदाबहार गीत भला कौन भूल सकता है । आज भी जब किसी नौजवान को किसी नाज़नीन से मुहब्बत होती है तो वो इन्हीं में से कोई एक गाना गुनगुनाने लगता है ।
ऐसे गुणी संगीतकार में कुछ खामियां भी थीं, जिनका उल्लेख लेखक ने किया है और जिनकी वजह से ओपी अपने अंतिम समय में अपने परिवार के साथ नहीं रह सके । 
1995 में वे पेइंग गेस्ट के रूप में थाणे के नखवा परिवार के सम्पर्क में आए और उनके ही होकर रह गए । एक ऐसा परिवार, जिसका संगीत से कोई लेना-देना नहीं था, ने संगीत के जादूगर को उसके अंतिम समय में साथ दिया । ऐसे में ही 28 जनवरी, 2007 को नखवा परिवार के घर में ही संगीत का ये जादूगर चिरनिद्रा में लीन हो गया । नखवा परिवार को ओपी द्वारा दी गई हिदायत के मुताबिक उनकी मौत की खबर उनके परिवार को नहीं दी गई । अफसोस की बात है कि नैय्यर साहब को श्रद्धांजलि देने में फ़िल्म जगत बड़ा कंजूस साबित हुआ । नैय्यर साहब के शब्दों में “आदमी नहीं चलता, आदमी का वक़्त चलता है । अब मेरा वक़्त नहीं है किंतु यह ध्यान रखिएगा कि नैय्यर का केवल वक़्त बदला है, ओपी नैय्यर अभी भी पहले जैसा ही है।”
संगीत के वास्तविक जादूगर को यह किताब एक सच्ची श्रद्धांजलि है, लेखक अपने प्रिय संगीतकार के लिए अपने मन के भावों को छुपा नहीं पाया है और भावाभिव्यक्ति में बिल्कुल भी कंजूसी नहीं बरती है, लेकिन लेखक होने का फर्ज़ अदा करते हुए ओपी के जीवन के स्याह पहलुओं पर भी कलम चलाई है। 
संगीत में रुचि रखने वालों को यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए और संगीत में रुचि ना रखने वालों को अनिवार्य रूप से पढ़नी चाहिए क्योंकि इससे उनकी संगीत के प्रति या ये कहें अच्छे, ग्राह्य संगीत के प्रति रुचि परिमार्जित होगी। 
किताब आप निम्न लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं:


लेखक परिचय:
राशीद शेख
राशीद शेख
शेख राशीद, रायपुर छत्तीसगढ़ निवासी हैं । श्री शेख छत्तीसगढ़ में शासकीय सेवा में हैं । अमूमन संस्मरणों पर हाथ आजमाने वाले शेख राशीद ने इस बार पुस्तक समीक्षा की है, लेखक से amaanrashid3@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।
उनके संस्मरण आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

4 Comments on “दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँ: एक किताब, जिसे एकाग्र होकर पढ़ना है मुश्किल”

  1. बहुत पहले जब किताब आई तब भी पढ़ा था और बहुत बढ़िया लगा था
    आज फिर पढ़के मजा आगया। ये किताब मेरे पास नही पर कोसिस करूँगा जल्द से जल्द मेरे पास हो।

    रशीद भैया हमेशा की तरह शानदार लिखते
    लव यु

    1. जी आभार, पोस्ट में किताब का लिंक दिया है.. उधर से ले सकते हैं….

  2. बहुत अच्छा लिखा राशिद जी
    फिल्मी दुनिया की ऐसी ही नई जानकारी वाले लेख प्रकाशित करते रहिए

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *