सुरेन्द्र मोहन पाठक हिन्दी के अग्रणी लेखकों में से एक हैं। अपराध गल्प लेखन में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। जितना सुरेन्द्र मोहन पाठक अपने लेखन के लिए जाने जाते हैं, उतना ही अपनी बेबाकी के लिए भी जाने जाते हैं। उनकी यह बेबाकी उनकी आत्मकथा के पूर्व प्रकाशित दो भागों- ‘ना बैरी न कोई बेगाना’ और ‘हम नहीं चंगे… बुरा न कोय’ में भी दिखाई देती है। लेखन और बेबाकी का यह संगम ही शायद वह कारण है जिसके चलते उनकी आत्मकथा के पहले दो भागों को पाठको ने भरपूर सराहा था और उनकी आत्मकथा के तीसरे भाग का वो बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे।
अब उनकी आत्मकथा का तीसरा भाग ‘निंदक नियरे राखिये’ राजकमल द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है। जहाँ उनकी आत्मकथा के पहले भाग ‘ना बैरी न कोई बैगाना‘ और दूसरे भाग ‘हम नहीं चंगे… बुरा न कोय‘ में उनके बचपन से लेकर लेखन के शुरूआती दिनों का लेखा जोखा था वहीं आत्मकथा के इस भाग में लेखक ने अपने उन दिनों का जिक्र किया है जब उन्होंने अपना एक व्यापक पाठक वर्ग तैयार कर लिया था और वो लेखन की दुनिया में प्रसिद्ध हो चुके थे। ऐसे में उनके प्रकाशकों और पाठकों से किस तरह के रिश्ते थे यह उन्होंने इधर दर्शाया है जिसे जानना न केवल उनके प्रशसंकों बल्कि साहित्य में रूचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए रोचक रहेगा।
किताब निम्न लिंक पर खरीदी जा सकती है
निंदक नियारे राखिये
आत्मकथा के अन्य दो भाग निम्न लिंक से खरीदे जा सकते हैं:
ना बैरी न कोई बैगाना
हम नहीं चंगे… बुरा न कोय
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
किताब का बेसब्री से इंतजार है
जी, मुझे भी इन्तजार है।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-12-2020) को "रवींद्र सिंह यादव जी को बिटिया के शुभ विवाह की हार्दिक बधाई" (चर्चा अंक-3903) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी चर्चाअंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-12-2020) को "रवींद्र सिंह यादव जी को बिटिया के शुभ विवाह की हार्दिक बधाई" (चर्चा अंक-3903) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुरेंद्र के उपन्यास बहुत ही लाजबाब रहते है।
जी सही कहा आपने। उनकी आत्मकथा के पहले दो भाग भी उतने ही रोचक हैं।