कॉमिक बुक दिसम्बर 20, 2020 को पढ़ी गयी
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | लेखक: तरुण कुमार वाही | आवरण चित्र: मालती वर्मा | चित्रांकन: मनु | श्रृंखला: डोगा
समीक्षा: डोगा जिंदाबाद |
कहानी:
कमीश्नर त्रिपाठी ने बस्ती वालों के दबाव में आकर इंस्पेक्टर चीता को तो गिरफ्तार करवा दिया था लेकिन वह कहाँ जानते थे कि उनके इस निर्णय का खामियाजा पूरे मुंबई को चुकाना पड़ेगा।
इंस्पेक्टर चीता की गिफ्तारी के कारण पूरे मुंबई की पुलिस फोर्स हड़ताल पर चली गयी थी। इस हड़ताल का नतीजा यह था कि गुण्डे बदमाशों की चांदी हो गयी थी। उनके मन से पुलिस का खौफ चला गया था और इस कारण शहर में अपराधों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी।
ऐसे में केवल एक ही व्यक्ति था जो अपराधियों और मासूमों के बीच में ढाल बनकर खड़ा था। और वह था डोगा। वह जानता था कि इंस्पेक्टर चीता निर्दोष है और इस कारण उसने असल कसूरवारों का पता लगाने का फैसला कर लिया था।
आखिर डोगा इंस्पेक्टर चीता को कसूरवार क्यों नहीं मानता था?
चीता अगर निर्दोष था तो उसे क्यों फँसाया जा रहा था?
कौन था इस साजिश के पीछे और उनका असल मकसद क्या था?
मेरे विचार:
डोगा जिंदाबाद राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित डोगा डाइजेस्ट पाँच में मौजूद दूसरा कॉमिक बुक है। हड़ताल कॉमिक से जो कहानी शुरू हुई थी वह कहानी डोगा जिंदाबाद में आगे बढती है।
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डोगा जिंदाबाद की कहानी की शुरुआत में ही डोगा इंस्पेक्टर चीता से मिलते हुए दर्शाया जाता है। डोगा और चीता की बातचीत से पाठकों को यह पता चल जाता है कि चीता क्यों बेगुनाह है। ऐसे में यह प्रश्न पाठकों के मन में उठाना लाजमी है कि इस साजिश के पीछे कौन है और वह इस साजिश को क्यों कर रहा है? यह दोनों प्रश्न ही पाठकों को कॉमिक के पन्ने पलटते जाने के लिए प्रेरित करते हैं।
जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है पाठक डोगा को हड़ताल होने के प्रभावों से जूझता हुआ पाते हैं। वहीं पाठकों पर इस बात का खुलासा भी होता है कि चीता को फँसाने के पीछे क्या कारण थे।
जहाँ हड़ताल में पाठकों के सामने काला और फौजी नामक दो किरदार आये थे वहीं डोगा जिंदाबाद में फौजी के साथ डैंग नामक किरदार दिखाई देता है। डैंग फौजी का बॉस है और वही इस सारी योजना का सूत्रधार भी है। कॉमिक बुक में वह एक तगड़ा खलनायक बनकर उभरा है। देखना है आखिर के भाग में उसके साथ क्या होगा?
इस गैंग और इन नई परिस्थियों से चीता और डोगा कैसे जूझते हैं यह देखना रोचक रहता है। कहानी तेज है और इसमें ट्विस्टस भरपूर हैं। कहानी के अंत तक योजना क्यों बनी इसका अंदाजा तो हो जाता है लेकिन कुछ राज फिर भी रह जाते हैं।
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हड़ताल में भी काला ने चीता को अपना दोस्त कुंदन कहा था। वहीं इसमें भी फौजी और डैंग चीता को कुंदन कहते हैं। यह सब बातें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या यह चीता का पुराना नाम है और क्या इन अपराधियों का चीता से कोई सम्बन्ध है?
अगर ऐसा है तो वह क्या सम्बन्ध है? फिर हड़ताल और डोगा जिंदाबाद में बिच्छू का भी जिक्र है। बिच्छू को देखकर मोनिका जिस तरह घबराती है वह यह सोचने पर मजबूर करता है कि बिच्छू का इस भाई बहन के जीवन से क्या नाता है और क्यों वह घबरा रहे हैं?
यह सब बातें मिलकर पाठकों को अगला और आखिरी भाग बिच्छू पढ़ने के लिए जरूर प्रेरित करेंगी। मैं खुद बहुत उत्साहित हूँ।
कॉमिक बुक की आर्टवर्क की बात करूँ तो इसका आवरण चित्र मालती वर्मा द्वारा बनाया गया है। इसमें डोगा टैंक की नाल को तोड़ते हुए दिखता है। यह अतिश्योकतिपूर्ण लगता है लेकिन एक प्रश्न मन में जरूर जगता है कि इस टैंक का कथानक से क्या रिश्ता है? इधर मैं इतना ही कहूँगा कि कहानी में टैंक की भी भूमिका है। आप पढ़ेंगे तो जानेंगे।
कॉमिक बुक के अंदर का चित्रांकन मनु द्वारा किया गया है जो कि संतुष्ट करता है।
अंत में यही कहूँगा कि डोगा जिंदाबाद मुझे पसंद आया। इसमें रोमांच और तेजी दोनों ही है। इस कॉमिक बुक में न केवल हड़ताल की कहानी को बाखूबी आगे बढ़ाया गया है बल्कि पुराने रहस्य उजागर करने के बाद कुछ ऐसे नये रहस्य भी रखे गये हैं जो कि पाठक के मन में श्रृंखला के आखिरी भाग बिच्छू के लिए उत्सुकता जगाते हैं।
रेटिंग: 3.5/5
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© विकास नैनवाल ‘अंजान’
शानदार समीक्षा विकास भाई। ये कॉमिकसें बहुत पहले पढ़ी थीं। डोगा की कॉमिकसें बहुत अच्छी होती हैं।
जी डोगा मेरे भी पसंदीदा किरदारों में से एक है। लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा।आभार।
बेहतरीन समीक्षा.. डोगा सीरीज और अन्य कई कॉमिक्स पढ़ी हैं जिनकी पुनरावृति हो जाती है आपके ब्लॉग पर आ कर । आपका किंडल से पढ़ने का सुझाव बहुत बढ़िया रहा । कई ऐसी बुक्स जो अमेजॉन और फ्लिपकार्ट पर नहीं मिली उनको वहाँ पा कर बेहद खुशी हुई । बहुत बहुत धन्यवाद ।
जी आभार। मैं भी अपने पुराने संकलन से इन्हें दोहराता रहता हूँ। किंडल में आपको अपनी पसंद की किताबें मिल गयीं यह जानकर अच्छा लगा। आभार।
बहुत सुन्दर पुस्तक समीक्षा।
जी आभार सर….