‘खरीदी कौड़ियों के मोल’ एक विरल ढंग का उपन्यास है। नायक दीपंकर के पिता संपन्न किसान थे। उनकी हत्या होने के बाद जमीन हड़पने के लिए दीपंकर और उसकी माँ पर भी हमला हुआ ।
अकेली, असहाय माँ ने सब छोड़ छाड़, भाग कर अपनी एकमात्र संतान की जान बचाने का फैसला किया और कलकत्ता पहुँची।
यहाँ उसकी भेंट वृद्ध पुरोहित अघोर मुखर्जी से हुई । उसने अघोर के विशाल, पुराने मकान में किराए पर एक कमरा ले लिया। समृद्ध, किंतु महाकृपण अघोर का माँ बाप जो था, पैसा था। उन्होंने अपने आवारा नातियों, छिटे और फोंटा तक को निकाल बाहर किया था।
यह एक चमत्कार था या दीपंकर की माँ के चरित्र की मजबूती और उनके पैसे के लिये उसकी पूर्ण निस्पृहता, लेकिन अघोर इस विधवा को बेटी की तरह और दीपंकर को नाती की तरह प्यार करने लगे।
अघोर ने हैरानी के साथ देखा कि दिन रात खट कर खाने वाली एक औरत उनके प्रचुर धन में कोई रुचि नहीं लेती थी। उसको तो उनके शाल, दुशाले, लोटे बाल्टी, किसी को लेने का लोभ नहीं था। वो आत्मसम्मानी औरत ऐसा कुछ नहीं लेना चाहती थी, जिसका दाम अपनी मेहनत के पैसे से न चुकाया हो।
अघोर नाना बार बार दीपंकर को समझाते कि दुनिया में जो है वो पैसा है। पैसा सुख, प्रेम, संबंध, सब खरीद देता है । यह नहीं तो आदमी मरा समान है।
दीपंकर की माँ यह मानने से साफ इनकार करती है और बेटे को बताती है कि पैसा बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ न है, न कभी हो सकता है ।
बड़ा होने पर दीपंकर समय, समय पर जगह जगह अघोर नाना की बात सही होते पाता है लेकिन क्या अघोर सचमुच सही थे ?
क्या दीपंकर की माँ की दृढ़ धारणा, जिससे उसे न पति की हत्या डिगा पाई थी, न कठोर जीवनसंघर्ष, न ही साधनहीन जीवन,गलत थी ?
नहीं, अंत में भौचक्का खड़ा दीपंकर पाता है कि जिस जिस को उसने पैसे के पीछे पागलों की तरह भागते पाया था, कि सुख खरीद लेंगे, उन सबकी तमन्नायें, इरादे और मंसूबे ताश के पत्तों से बने घर की तरह बिखर गये थे।
परम समृद्ध अघोर नाना आखिर में हार गये थे, दीपंकर की निर्धन माँ जीत गयी थी।
अंग्रेजी के लेखक सिडनी शेल्डन एंटी क्लाइमेक्स रचने के आदी थे। पाठक जब जो होने के लिये निश्चितमना हो जाये, तब शेल्डन उलट पलट कर देते।
हमारे यहाँ यह करने के विशेषज्ञ विमल मित्र हैं । यही उपन्यास पढ़कर देखिये।
किताब लिंक: अमेज़न
बिमल मित्र ने जीवन को बहुत निकट से देखा था। इसीलिए उनकी प्रत्येक कृति चाहे वह कहानी हो अथवा उपन्यास, श्रेष्ठ है। उनके इस उपन्यास-अंश को साझा करने के लिए आभार।
जी आभार….