संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | प्रकाशन: तुलसी कॉमिक्स | प्लैटफॉर्म: प्रतिलिपि | लेखक: शीशकांत | चित्रकार: भालचंद्र मांडके
कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि
कहानी
शांता अपार्टमेंट में रहने वाली शैली नाम की युवती का किसी ने कत्ल कर दिया था। पुलिस को लगता था कि यह कत्ल सुधीर द्वारा किया गया था। सुधीर शैली का प्रेमी था जिसे पुलिस ने मौका ए वारदात पर पकड़ा था।
लेकिन पुलिस भी तब हैरान रह गयी जब शैली के फ्लैट में शैली का प्रेत दिखाई देने लगा।
शैली के प्रेत की माने तो सुधीर निर्दोष था। वहीं शैली के चाचा सूरजभान को शैली का प्रेत सुधीर की एक चाल ही लगती थी।
आखिर शैली का खून क्यों हुआ था?
क्या फ्लैट में शैली के प्रेत का साया था? अगर यह किसी की चाल थी तो यह किसकी चाल थी?
क्या शैली का कातिल पकड़ा गया?
किरदार
सुधीर – शैली का प्रेमी
सूरजभान – शैली का चाचा
रमा – शैली की दोस्त
इंस्पेकटर नेगी – वह इंस्पेकटर जो शैली के कत्ल की तफतीश कर रहा था
पीटर – एक अपराधी
मेरे विचार
कई बार आप किसी ऐसी रचना को पढ़ते हैं जिसका आइडिया तो कमाल होता है लेकिन जिसे क्रियान्वित इस तरह से किया गया होता है वह वैसा प्रभाव नहीं छोड़ पाती है जितना कि तब छोड़ पाती जब एक अच्छे लेखक ने उस पर कार्य किया होता। ऐसी रचनाओं को पढ़कर आपको थोड़ा दुख भी होता है क्योंकि यह एक ऐसा मौका रहता है जो कि बेकार चला गया होता है।
तुलसी कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित ज़िंदा लाश भी ऐसा ही एक आइडिया है जिसे एक अच्छे लेखक द्वारा लिखा जाता तो शायद यह काफी अच्छी रचना बन सकती थी।
कहानी की शुरुआत एक लड़की के कत्ल से होती है। वहाँ पर बताया जाता है कि लड़की के दवराजे की बेल बजाने वाला एक नकाबपोश है लेकिन जितने पैनल में वह व्यक्ति दिखता है उसके चेहरे से नकाब नदारद (गायब) ही रहता है।
खैर, कत्ल के बाद कहानी में कत्ल होने वाली लड़की का प्रेमी आता है और पुलिस उसे केवल उसे इसलिए गिरफ्तार कर लेती है क्योंकि वह वहाँ पर मौजूद रहता है। पुलिस का ऐसा करना उसका नाकारापन दर्शाता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि उस वक्त इमारत में गोली चली थी। कई लोग इमारत में बाहर निकल आए थे। इमारत के लोग किसी वाचमैन के होने की बात भी करते एक पैनल में दिखते हैं। ऐसे में पुलिस वाले आसानी से पता लगा सकते थे कि गोली कब चली, गोली चलने के बाद कौन बाहर निकला और कौन अंदर आया। ऐसा वो करते तो उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने का तुक नहीं रहता। लेकिन जैसा पुलिस को अक्सर दर्शाया जाता है वह सबसे पहले व्यक्ति को संदिग्ध मानकर अपने कर्तव्य की इतिश्री से करती दिखती है। ऐसा नहीं है नेगी को सुधीर के बेगुनाह होने का शक नहीं होता है लेकिन वह इस विषय में कुछ कर रहा हो ऐसा कुछ दर्शाया नहीं गया है।
इसके पश्चात कहानी एक नया मोड़ लेती है क्योंकि कहानी में मृत युवती की आत्मा की एंट्री होती है। आत्मा देखते ही आप समझ जाते हैं कि यह क्या खेल हो रहा है। यह खेल रोमांचक हो सकता था लेकिन हस्यासपद बनकर रह जाता है। हाँ, जिस व्यक्ति को आत्मा प्रताड़ित करती है वह काफी घाघ रहता है और इसलिए एक बार को मुझे लगा था कहानी में ट्विस्ट रहेगा लेकिन जिस तरह कहानी आगे बढ़ती है उसकी रू में आखिर के ट्विस्ट का पता लगाना काफी आसान हो जाता है।
कहानी में पीटर भी एक किरदार है। वह एक अपराधी है जिसका इस मामले से गहरा नाता रहता है। कहानी में शैली की दोस्त पीटर को जानती है लेकिन वह उसे कैसे जानती है इस पर कोई रोशनी नहीं डाली गयी है।
कहानी ऐसे ही झोलझाल तरीके से आगे बढ़ती है। लगता है लेखक को एक अच्छा विचार आया लेकिन फिर उस विचार पर ज्यादा कार्य नहीं कर पाया। एक के बाद उसने घटना जोड़ी और उन्हें ठोंकने पीटने की जरूरत महसूस न करते हुए ऐसे ही आगे चित्रांकन करने के लिए भेज दी। शायद अगर इसका सम्पादन किया तो तो यह एक अच्छा कथानक बन सकता था जिसमें रहस्य रोमांच और हॉरर का तड़का सा लग सकता था। अभी तो ये एक खानापूर्ति सी बन कर रह गयी है।
कहानी में चित्रांकन भालचंद्र मांडके का है। चित्र औसत ही हैं। देखकर लगता है जैसे कथानक पढ़कर चित्र बनाने वाले का मन भी खराब हो गया था और उन्होंने आधे मन से ही इस चित्र कथा के चित्र बनाए हैं। अगर कथानक अच्छा होता तो शायद यह चित्र इतने बुरे नहीं लगते लेकिन कथानक बुरा होने के चलते ये औसत चित्र औसत से कम प्रतीत होते हैं।
कॉमिक्स चूँकि मुफ़्त है तो एक बार पढ़ी जा सकती है लेकिन अगर किसी ने पैसे देकर यह खरीदी होती तो उसका इसे पढ़कर निराश होना निश्चित ही था।
कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि